Padma Agrawal

Inspirational Others

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Padma Agrawal

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सक्सेसर

सक्सेसर

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       लखनऊ के गोमतीनगर की पॉश कालोनी में तीन मंजिला, आलीशान कोठी, जिसे निश्चल कपूर ने अपनी मेहनत के बलबूते पर बनाया था ... चंद वर्षों के अंदर ही उन्होंने समृद्ध और प्रतिष्ठित लोगों के बीच में अपना स्थान बना लिया था ...लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के कहर ने सब कुछ बदल दिया था।


 “निश्चल ,प्लीज मास्क ठीक से लगाओ ... तुम्हारी नाक खुली हुई है ...मास्क ठुड्डी पर लटका कर किसे धोखा दे रहे हो ?“

“माई डियर निभा , तुम मेरी फिक्र छोड़ कर अपनी फिक्र करो ...मुझ जैसे हट्टे कट्टे तंदुरुस्त इंसान को देख कर कोरोना खुद ही डर कर भाग जायेगा “....जोर का ठहाका लगाते हुये पत्नी निभा की ओर फ्लाइंग किस उछालते हुये वह गाडी स्टार्ट करके ऑफिस चला गया था । जब भी वह कोरोना नियमों की बात करती निश्चल उसे हंस कर टाल देते ., एक हफ्ता भी नहीं बीता कि निश्चल को हल्का बुखार खांसी हुई , वह टेस्ट करवाने को कहती रही लेकिन निश्चल ने उसकी एक न सुनी और गोलियां निगल कर ऑफिस जाते रहे । जब सांस लेने में दिक्कत होने लगी तो भी जबर्दस्ती करने पर टेस्ट करवाया और पॉजिटिव रिपोर्ट आते ही एंबुलेंस में निश्चल को हॉस्पिटल जाते देख कर पूरा परिवार सदमे में आ गया ,, उन्हें ‘यथार्थ ‘ सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल में एडमिट करवा दिया गया ...चूंकि वह कोरोना पॉजिटिव थे इसलिये उनके छोटे भाई निशीथ दूसरी गाड़ी में अलग से गये और एडमिट करवा कर घर लौट आये थे । यद्यपि सब लोग सदमें में थे परंतु फिर भी सबके मन में आशा की किरण थी कि निश्चल जल्दी ही स्वस्थ होकर आ जायेंगें लेकिन 3-4 दिन ही बीते थे कि निभा भी पॉजिटिव हो गई और तब तक कोरोना अपना विकराल रूप धारण कर चुका था , पूरे दिन की जद्दोजहद के बाद बहुत मुश्किलों में रात 11 बजे उन्हे बेड मिल पाया था .... निश्चल के सीटी स्कैन में उनके लंग्स तक इन्फेक्शन पहुंच गया था इसलिये वह आई. सी. यू. में रखे गये थे । मोबाइल फोन ही ऐसा माध्यम था जिसके द्वारा किसी से संपर्क किया जा सकता था । 3-4 दिनों तक तो वह निश्चल और परिवार के संपर्क में रही फिर वह अपनी बीमारी में उलझती चली गई । वह खुद ही अपना होश खोती चली गई .... अपनी सांसों के लिये संघर्ष करते रहने में वह सब कुछ भूलती चली गई .... आई .सी .यू. में ऑक्सीजन मास्क लगाये हुये वह अकेलेपन से जूझती रही थी ...उसके चारों तरफ उसका कोई अपना नहीं दिखाई पड़ता था । कभी उसे प्यास लगती तो सिस्टर की ओर आस भरी नजरों से देखती ...सिस्टर मुझे प्यास लग रही है .... उस समय यह अनुभूति हुई कि पानी की एक बूंद भी कितनी मूल्यवान है .... क्यों कि सिस्टर के लिये तो बहुत सारे सीरियस मरीज होते थे , जिनको देखना उनके लिये ज्यादा जरूरी होता था ।

एक रात उसे बहुत ठंड लग रही थी .... सिस्टर दूर कुर्सी पर बैठी जमुहाई ले रही थी ... उसने डूबती हुई आवाज में सिस्टर को आवाज दी थी परंतु कमजोर तन से इतनी धीमी आवाज निकल रही थी कि कोई बिल्कुल उनके करीब हो , तभी सुन समझ सकता था । सिस्टर भी तो आखिर इंसान ही थी , वह सारी रात ठंड से ठिठुरती रही थी ... मुंह में ऑक्सीजन मॉस्क लगा हुआ था, मॉस्क निकालते सांसें उखड़ने को बेताब हो उठतीं थीं ....... उन्हीं दिनों यह एहसास हुआ था कि एक एक सांस कितनी मूल्यवान है ...उस मर्मांतक पीड़ा याद करके वह आज भी कांप उठती है ...

लगभग दो महीने तक वह जीवन मौत के झूले में झूलती हुई कभी आई सी यू तो कभी बाहर एक एक सांस के लिये संघर्ष करती हुई , डॉक्टर और नर्सों के अथक परिश्रम के कारण अंततः वह कोरोना से जंग जीतने में सफल हो गई और अपने घर आ गई परंतु पोस्ट कोविड के कारण वह नित नई परेशानियों और तकलीफों से गुजर रही थी .... ना ही वह अपनी नन्हीं परियों को ढंग से प्यार कर पा रही थी और ना ही निश्चल की आवाज उसे सुनाई पड़ रही थी .... जब भी वह निश्चल को फोन लगाती तो निशीथ भइया उठाते .... वह अक्सर आते और किसी न किसी कागज पर उसके दस्तखत करवा कर ले जाया करते ..... जब एक दिन वह फफक कर रो पड़ी कि निश्चल कहां हैं ... वह क्यों नहीं दिखाई पड़ रहे ....तो मम्मी जी ने बताया कि निश्चल तो कोविड से जंग में हार गये ....अब पोछ दो अपने माथे का सिंदूर ... तुम्हारा सुहाग उजड़ चुका है....... सहसा वह विश्वास ही नहीं कर पाई थी, लेकिन समझ में आते ही वह रोते रोते बेहोश हो गई थी... उसका ब्लडप्रेशर 100 से नीचे चला गया था ....डॉक्टर आये....... वह रोती बिलखती रही थी ... वह सोच ही नहीं पा रही थी कि निश्चल के बिना वह कैसे जीवित रह पायेगी .... दो नन्हीं मासूम बेटियां ..... वह क्या करेगी ... कैसे जियेगी .... इस समय वह तन से तो टूटी थी ही अब मन से भी टूट चुकी थी । उसको अपने जीवन के चारों ओर घना अंधकार पसरा दिखाई दे रहा था ....

     निश्चल ने बिजनेस से उसको बिल्कुल अलग थलग रखा था । एक बार वह ऑफिस पहुंच गई थी तो उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं आया था ... वह उस पर बहुत नाराज भी हुये थे ...... ऑफिस से उसे बस इतना वास्ता था कि ....इस कागज पर अपना साइन कर दो तो कभी चेक पर साइन कर दो ... वह भी अधिकतर ऐसा समय होता जब वह ऑफिस जाने के लिये जल्दी में होते ... वह दस्तखत करके उन्हें पकड़ा देती , कभी क्या लिखा है , यह जानने समझने की न ही इच्छा हुई और न ही जरूरत ही समझी थी ।

   सास सुनैना उसे हिम्मत बंधाती रहतीं , उसे बेटी की तरह ही प्यार करतीं .... समय समय पर दवाई फल , दूध खाना आदि सब उसके कमरे में पहुंचा देतीं ।

“निभा , निश्चल तो अब लौट कर नहीं आने वाला लेकिन वह जो अपने प्रतिरूप नन्हीं परियों की जिम्मेदारी तुम्हें सौंप कर गये हैं , उन्हें संभालो ...अपनी घर गृहस्थी में अपना मन लगाओ ...’ वह सुनैना जी के गले से लग कर फूट फूट कर रो पड़ी थी , उसकी सिसकी नहीं रुक रही थी ...

“निभा , तुम ठीक हो गईं , ये इन बेटियों का भाग्य है ...निश्चल तो तुझे मंझधार में छोड़ कर चला ही गया”बहुत ही कारुणिक दृश्य था ... निशा भी फूट फूट कर रो पड़ी .... भाभी अपने को संभालो ...

थोड़े दिनों के बाद एक दिन निशीथ ऑफिस से आकर बोले ,” भाभी, भइया तो अब लौट कर आने वाले नहीं ... रोज रोज आपसे साइन करवाने के चक्कर में अक्सर जरूरी काम अटक जाता है आप ‘पावर ऑफ अटार्नी’ मुझे दे दें तो फिर हर समय आपके पास दौड़ नहीं लगानी पड़ेगी और काम भी नहीं रुका करेगा।“

उसने तुरंत कागज पर साइन करके भइया को दे दिया था ।

  उसकी मां भी उससे मिलने के लिये आईं थी , उन्होंने उसे समझाया कि इस तरह से जिंदगी थोड़े ही कटेगी .... अपनी मासूम बच्चियों में मन लगाओ ,अपने भविष्य के बारे में सोचो , अभी तुम्हारी उम्र ही क्या हुई है मात्र 32 वर्ष ...आजकल तो इतनी उम्र में लड़कियां शादी कर रही हैं ... मां उसे अपने साथ कुछ दिनों के लिये ले जाना चाहती थीं लेकिन वह तो किसी के सामने ही नहीं जाना चाहती थी ... वह रोती हुई लौट गईं थीं ।

आखिर कब तक वह अपने कमरे की छतों पर नजर गड़ाये शून्य में निहारती रहती ... वह अपने कमरे से बाहर निकल कर ड्राइंगरूम में आई तो वहां का नया फर्नीचर और रेनोवेशन देख कर वह आश्चर्य से भर उठी ... .. घर में इतना बड़ा हादसा हो चुका है ... घर का मालिक इस दुनिया से विदा हो गया है और ऐसी हालत में ड्रांइगरूम का सौंदर्यीकरण .....वह निशीथ से पूछ बैठी थी ... इस समय रिनोवेशन .....     उसके पूछते ही उसका चेहरा सफेद पड़ गया और वह सकपका कर बोला, “भाभी यह सब तो भइया की ही प्लानिंग थी और उन्होंने ही सब ऑर्डर कर रखा था ... मैंने सोचा कि उनकी आत्मा को दुःख नहीं पहुंचना चाहिये । “

वह उनसे नजरें चुरा कर तेजी से अपने कमरे की ओर चला गया था ।

निभा की आंखें छलछला उठीं थीं , निश्चल ने तो इस बारे में उससे कभी कुछ नहीं बताया .... अब उसे अपना घर ही बदला बदला सा दिखाई पड़ रहा था ... सब कुछ अनजाना अनपहचाना सा लग रहा था । बस बदला नहीं था तो उसका अपना कमरा ......

वह देख रही थी कि जब से उसने निशीथ को ‘पॉवर ऑफ एटार्नी दी ‘ थी , उसके प्रति सबकी निगाहें बदल सी गई थीं ।

“मम्मी जी , मैं जब से हॉस्पिटल से लौट कर आई हूं , सुदेश काका मुझे नहीं दिखाई पड़ रहे हैं ?”

निश्चल ने उसे बहुत सिर चढ़ा रखा था .... एक दिन निशीथ के साथ वह बहस करते चले जा रहे थे बस उसको गुस्सा आ गई ...अपने देवर को तो जानती ही हो कि उसके नाक पर गुस्सा रक्खा रहता है, कह दिया निकल जाओ .... अपना मनहूस चेहरा यहां फिर मत दिखाना ...वह भी चिल्ला कर बोले ,” मालिक हम तो बड़े भइया की वजह से यहां पर बने हुये थे.... नहीं तो मेरा लड़का तो मुझे कब से बुला रहा है “... कहते हुये अपना सामान लेकर चले गये फिर लौट कर न तो फोन किया न ही आये ...

सब सुन कर वह दुःखी हो गई थी । काका उन लोगों के दाहिने हाथ की तरह से थे वह हर समय किसी भी काम के लिये तैयार रहते थे ।

वह किचेन में गई तो उसका भी रंग रूप बदल चुका था ...अब उसने मौन रहना ही ठीक समझा ....जहां उसका राजपाट था अब वहां की मालकिन निशा बन चुकी थी ..... वह बच्चों के लिये दूध बनाने लगी तो बोर्नविटा नहीं दिखाई दिया ...” निशा ,बोर्नविटा नहीं दिखाई दे रहा है , उसका डब्बा कहां रक्खा है ?”

“भाभी बोर्नविटा तो खत्म हो गया है , कोई जरूरी थोड़े ही है कि बोर्नविटा डाल कर ही दूध पिया जाये , सादा दूध दे दीजिये ।“उसके अंदर कुछ दरक सा गया था .....

उसने चुपचाप बच्चों को दूध दिया और अपने कमरे में जाकर निश्चल की फोटो के सामने फफक पड़ी थी । जब नन्हें हाथों से रिनी और मिनी ने उसके आंसू पोछे तो उसने दोनों को अपनी बाहों में भर लिया था ।

नया नौकर प्रकाश जो निशा और मम्मीजी के सिवा उसे तो पहचानता ही नहीं था ...उसने आवाज दी ,’प्रकाश बाजार से बोर्नविटा और दो किलो सेव ले आना “

“जी मैडम , रुपये दे दीजिये “

वह यहां वहां बगलें झांकने लगी थी तभी निशा तेजी से आई और एक फाइल उसे पकड़ा कर बोली , “प्रकाश, सर ,को पहले ऑफिस में ये फाइल देकर आओ...”

वह विस्फरित नेत्रों से सब देखती रह गई थी वह मन ही मन कहने लगी प्लीज निश्चल कुछ रास्ता दिखाइये ऐसे जिंदगी कैसे कटेगी ....

अगली सुबह प्रकाश बोर्नविटा का डब्बा और सेव की थैली उसको देते हुये बोला , “मैडम जी बोलीं हैं कि जो सामान चाहिये पहले दिन बता दिया करिये तभी आ पायेगा।“

यदि निशा या मम्मी जी कहतीं तो शायद उसे इतना बुरा नहीं लगता लेकिन प्रकाश के कहने के अंदाज से वह व्यथित हो उठी थी ।

उसे घर आये लगभग 6 महीने से ज्यादा बीत चुका था ...वह अपने लिये चाय बना रही थी तभी निशा उसे सुनाने के लिये कह रही थी मम्मी जी भाभी को समझा देना ,अब भाई साहब नहीं हैं इसलिये और कोविड के कारण काम पहले जैसा नहीं रहा है , इसलिये अपनी राजशाही न दिखाया करें सोच समझ कर सामान मंगाया करें ....

उसके दिल पर आघात पर आघात लगता जा रहा था .... बच्चों के लिये बोर्नविटा नहीं .... फल नहीं ...

वह अपने कमरे में उदास बैठी थी तभी मम्मी जी ने आवाज दी “निभा , आज बुआ जी आ रही है ... कोई हल्के रंग का सूट पहन लेना ...वह पुराने ख्यालों की है .... माथे पर बिंदी भी मत लगाना .... “ समझदार के लिये इशारा काफी होता है ....उस दिन उसने अपने वार्डरोब से सारी रंगबिरंगी साड़ियां और सूट हटा दिया फिर वह रो पड़ी ... निश्चल , जब इतनी जल्दी आपको जाना था तो उसके जीवन में इतने सारे रंग क्यों भर दिये थे ....

अब तो सिलसिला चल निकला था कभी बुआ तो कभी ताई तो कभी चाची .....मिलने के नाम पर उसे रुलाने के लिये आया करतीं थीं .. वह कुछ नॉर्मल होने की कोशिश करती कि फिर कोई आ धमकता और फिर वही गमगीन माहौल .....

मम्मी जी का भी रवैया भी बदल गया था.... निभा अब तुम निश्चल की विधवा हो , थोड़ा समझदारी से पहना ओढा करो ......अब तुम्हारे हाथों में रंगबिरंगी चूड़ियों को देख कर भला लोग क्या कहेंगें .... विधवा हो विधवा की तरह रहा करो ... वह बरछी से व्यंगवाण चला कर उसके अंतर्मन को लहुलुहान करके बाहर निकल रही थीं तभी निश्चल की बड़ी मौसी आ गईं मम्मी जी पर नाराज होकर बोलीं , “कैसी बात करती हो सुनैना , फूल सी बच्ची को ऐसा बोलते तुम्हारा जी नहीं दुखता “.... उन्होंने मम्मी जी के सामने ही उसके माथे पर बिंदी लगा दी थी ....” बेटी तो तुम जैसे पहले रहतीं थीं वैसे ही रहा करो ... सुनैना को तो तेरे से ज्यादा दूसरों की फिक्र हो रही है ....” वह उनके गले लग कर घंटों तक सिसकती रही थी ....

महराज तो कोविड और लॉकडाउन की वजह से आ नहीं रहे थे .... निशा प्रेग्नेंट थी , वह कंप्लीट बेडरेस्ट पर थी और मम्मी जी को गठिया के कारण परेशानी थी ....

सुबह के समय निशीथ उसके कमरे में आकर बोले , “भाभी आपके हाथ के मूली के परांठे खाये बहुत दिन हो गये ….आज बना दीजिये ..निशा का बहुत मन हो रहा है .... “

वह खुशी खुशी बनाने में जुट गई थी ... “वाह भाभी यू आर ग्रेट ...”

वह इन तारीफों के जाल में उलझ कर खुशी खुशी रोज नये नये पकवान बनाने में उलझती गई । मम्मी जी बोली , “निभा के खाना बनाने की वजह से सबको बढिया खाना मिल जाता है और उसका समय भी अच्छी तरह बीत जाता है “।

निशा प्रेग्नेंट थी इसलिये मम्मी जी उसीकी सेवा में लगी रहतीं क्योंकि उन्हें पूरी उम्मीद थी कि इस खानदान का वारिस आने वाला है.... उसे बेड से नीचे पैर न रखने देतीं , जब कि वह डॉक्टर के यहां जा रही हूं कह कर घंटों के लिये घर से बाहर रहा करती ।

कोविड की लहर उतार पर थी ... निशा के बेबी शॉवर की तैयारी धूमधाम से करने के लिये रोज बैठकें हो रहीं थीं , जिसमें उसका प्रवेश निषेध था क्यों कि वह विधवा थी , उसकी बुरी नजर से कुछ अशगुन हो जाता तो ... निशा के माइके वाले और मम्मी जी और निशीथ सब बैठ कर प्रोग्राम को शानदार और यादगार बनाने के लिये प्लानिंग करते रहते .....

तभी एक दिन उसके मोबाइल की घंटी बजी ... उधर उसके पुराने ज्वेलर थे , वह कह रहे थे कि ,”मैडम , जो आपने डायमंड सेट का ऑर्डर दिया था वह बन कर आ गया है , उसकोआपके घर पर पहुंचा दें या फिर यहां आकर देखेंगी ...”

अब तो उसका दिमाग चकरा उठा था .... पर्दे के पीछे चल क्या रहा है ?

उसके साथ मीठी मीठी बातें बना करके उसे खाना बनाने वाली बना कर रख छोड़ा है .... निभा , तुम्हारे हाथ का खाना खाकर मन खुश हो जाता है ... सबको स्वाद वाला बढिया खाना भी मिल जाया करता है ....

पहले तो वह कुछ समझ नहीं पाई थी और वह घरेलू कामों में ही उलझती चली गई ....

वह अपने मन का दर्द कहे तो किससे कहे ....

ज्वेलर के फोन ने मानो उसकी आंखें किसी ने खोल कर दी थी .... उसको ऐसा लगा मानों निश्चल कह रहे हों ... घरेलू कामों में उलझ कर क्यों नौकरानी की तरह काम करती रहती हो ......

अगली सुबह जब वह तैयार होकर घर से निकलने लगी तो मम्मी जी नाराजगी भरे स्वर में बोलीं , “ हाय कुछ तो शरम करो ...अभी निश्चल को गये साल भी पूरा नहीं हुआ है और तुम सज धज कर निकल पड़ी .... हाय हाय मेरी तो किस्मत ही फूटी है ... बेटा तो चला ही गया और घर की इज्जत भी सरेआम बाजार में नीलाम करने में लगी हो ..... लोग क्या कहेंगें ... बिरादरी वालों को क्या जवाब देंगें “..... कह कर झूठ मूठ का रोने का नाटक करने लगीं ....

असंमंजस में उसके कदम क्षण भर के लिये ठिठक कर रुक गये थे , परंतु फिर उसने अपने मन को पक्का किया और बोली , “मम्मी जी रामदीन नहीं दिखाई पड़ रहे हैं ....” निशीथ ने रामदीन को हटा दिया .... आखिर कब तक उसे बैठे बैठे की तनख्वाह दी जाती .... फिर से वह रोती बिसूरती हुई बोलीं ...निश्चल तो अब लौट कर आने वाला नहीं ... वह उसे दिखाने के लिये अपने आंसू पोछने का नाटक करने लगीं थीं ....

तभी उसका मोबाइल बज उठा था , निशीथ का फोन था ,” भाभी मैं गाड़ी भेज रहा हूं , आपको कहां जाना है ?”

“नहीं... निशीथ भइया मैंने ओला बुक कर ली है , बस वह आने ही वाली है ....”

‘ओला’ शब्द सुनते ही सबके कान खड़े हो गये थे

‘ठहरो भाभी मैं खुद ही आ रहा हूं ...”

‘नहीं भइया , मैं अपनी फ्रेंड से मिलने जा रही हूं ...” तब तक मम्मी जी तेजी से दौड़ती हुई आईं ,निभा तुम अकेले मत जाओ ... मैं तुम्हारे साथ चलती हूं ....

वह अनसुना करती हुई टैक्सी में बैठ गई थी और सीधा ज्वेलर्स के शोरूम पर पहुंची तो वहां मालूम हुआ कि निशीथ और निशा ने इन दिनों में काफी सारी ज्वेलरी खरीदी है .... डायमंड सेट देख कर उसकी आंखें चौंधिया उठीं थीं ...

अब वह सीधा ऑफिस पहुंची थी ... निशीथ तो उसको ऑफिस में देखते ही घबरा उठा था ...

निश्चल का केबिन और उसकी कुर्सी अब निशीथ की हो चुकी थी , हां निश्चल की फोटो जरूर दीवार पर टंगी थी और उस पर माला देख उसकी आंखें नम हो उठीं थीं ....

उसने जाकर पति की फोटो को नमन् किया और मन ही मन उनसे मार्ग प्रशस्त करते रहने के लिये विनती की ...

“भाभी आपको ऑफिस आने की क्या जरूरत पड़ गई ... आप तो जानती हैं कि भइया को तो आपका ऑफिस आना बिल्कुल भी पसंद नहीं था ... लोग यह कहेंगें कि मैं आपकी सही से देखभाल नहीं कर रहा हूं ....”

“ऐसा कुछ नहीं है ... लोगों का तो काम ही है कुछ कहना .... अब मैं रोज ऑफिस आया करूंगीं और तुम्हारी मदद किया करूंगीं ...इस समय निशा को तुम्हारी जरूरत है और तुम सारा दिन ऑफिस के कामों में उलझे रहते हो .... “

निशीथ के चेहरे के हावभाव से उसका आक्रोश साफ साफ दिखाई पड़ रहा था लेकिन समय की नाजुकता देख कर वह, वहां सबके सामने बोला , “भाभी के लिये कॉफी लाओ “ कहते हुये उसे अपनी कुर्सी पर बिठा दिया था.....

मैडम निभा आज ऑफिस आईं हैं , यह खबर हवा की तरह पूरे ऑफिस में पहुंच गई थी और लोग उससे मिलने के लिये आने लगे थे ... निश्चल के प्रति उन लोगों का प्यार देख उसकी आंखें छलक उठीं थीं ।

निशीथ जल्दी ही उसे अपनी गाड़ी में बिठा कर घर ले आये थे .. वह समझ रही थी कि निशीथ को उसका ऑफिस आना बिल्कुल भी पसंद नहीं आयेगा लेकिन अब वह घर से निकल कर निश्चल के अधूरे काम को पूरा करने की कोशिश करेगी ...

घर आते ही वह बोला , “आपको ऑफिस आने की क्या जरूरत पड़ गई ? आखिर आपको क्या कमी है ?जो आप आज ऑफिस तक पहुंच गईं .... सबको दिखाना चाहती हैं कि मैं आपकी देखभाल सही से नहीं कर रहा हूं? और तो और सीधा ज्वेलर्स के पास पहुंच गईं.... आखिर आप चाहती क्या हैं ......क्या मैं कंगाल हूं कि अपनी बीबी के लिये एक सेट नहीं खरीद कर दे सकता हूं .... मम्मी जी और निशा वहां खड़ी होकर जलती निगाहों से उसे घूर रहीं थीं और उसकी हां में हां भी मिला रही थीं .....

“क्या कंपनी में मेरे शेयर ही नहीं हैं ..... भइया का ‘सक्सेसर’ तो मैं ही हूं .... आपको क्या पता कि कंपनी को कैसे चलाते हैं , कुछ समझ है क्या .....चुपचाप घर में बैठिये .... जैसे इतने दिनों से रह रहीं थीं .... ज्यादा हाथ पैर मारने की जरूरत नहीं है .....”

अपनी गुस्सा निकाल कर वह आराम से बोला “, मुझे भूख लग रही है , कुछ खाने को दीजिये …. ज्यादा पंख फड़फड़ाने की जरूरत नहीं है….”

वह डर कर चुप हो गई थी और फिर निशीथ और मम्मी जी के हाथ की कठपुतली बन कर रह गई थी । वह मन ही मन सोचा करती कि निश्चल जिसे अपनी पलकों पर बिठा कर रखते थे , आज उसकी स्थिति कोने में रखे कचरे की तरह हो गई है .....

निश्चल को इस दुनिया से विदा हुये एक वर्ष हो गया था , सबको दिखाने के लिये निशीथ ने एक प्रार्थना सभा का आयोजन किया था , वहां पर उसकी मुलाकात अखिल भइया से हुई , उन्होने और निश्चल ने मिल कर यह कंपनी बनाई थी फिर उनकी पत्नी भी कोरोना के शिकार हो गयी थीं ,वह भी उन्हें अकेला कर गईं थीं ... इन्हीं परेशानियों से घिरे रहने के कारण काफी दिनों से उन्हे ज्यादा कुछ मालूम नहीं था परंतु उनकी अनुभवी आंखों ने एक नजर में सब कुछ समझ लिया था ....

निशीथ और मम्मी जी ने होशियारी से सभी पुराने नौकरों को हटा कर नये रख लिये थे , जो केवल निशा और निशीथ को ही मालिक समझते थे । मम्मी जी अपना स्वार्थ देख कर निशीथ और निशा का साथ दे रहीं थीं ।

वह साधारण परिवार से थी , मम्मी जी का सोचना था कि उसने निश्चल को अपने प्रेम पाश में बांध कर उसे शादी करने के लिये मजबूर कर दिया , जिसके कारण उसे लव मैरिज करनी पड़ी थी । सोने पर सुहागा था कि उसके जल्दी जल्दी दो बेटियां भी हो गईं , जिसके वजह से वह उनकी आंख की किरकिरी हमेशा से थी लेकिन निश्चल के सामने उसकी ओर उंगली उठाने की किसी की हिम्मत नहीं होती थी । अब उसके जाते ही दोनों ने मिल कर उसे घर और कंपनी दोनों से किनारे करने की ठान ली थी ।

एक दिन निशीथ फोन पर किसी से कह रहे थे कि ‘पॉवर ऑफ एटार्नी’ तो मेरे पास है , वह भला क्या कर सकती है .... इस एक वाक्य ने उसके ज्ञान चक्षु जागृत कर दिये थे .... वह पॉवर ऑफ एटार्नी कैंसिल करवायेगी और अपना हक हासिल करेगी ।

उसने गूगल पर सर्च किया और सोचने लगी कि शायद ये लोग नहीं जानते कि निभा किस मिट्टी की बनी है....उसने जीवन की जंग जीती है तो यह कौन बड़ी बात है ... उसने प्यार से अपनी दोनों बेटियों को अपने गले से लगा कर उनके माथे पर प्यार किया और फिर,  ओला बुक करके वह रजिस्ट्रार ऑफिस में जाकर अपनी पॉवर ऑफ एटार्नी कैंसिल करवाने के लिये पहुंच गई ...

 इस तरह के काम करने का उसका पहला अवसर था , इसलिये वह थोड़ी नर्वस भी थी लेकिन यदि इरादे बुलंद हों तो सब कुछ संभव है .....वहां पर वह लोगों से पूछताछ कर रही थी तभी वहां पर उसका पुराना क्लासफेलो चंदन वर्मा दिखाई पड़ा था ।

वह रजिस्ट्रार ऑफिस में उसे अकेले उसके श्रंगार विहीन और कांतिहीन चेहरे को देख कर चौंक उठा ......

‘निभा कैसी हो ?’

‘बस कोरोना की मार झेल रही हूं ‘

‘ तुमने तो निश्चल के साथ लव मैरिज की थी ...’

‘हां, चंदन निश्चल को कोरोना ने निगल लिया ,’ उसकी आंखें बरस पड़ीं थीं ....

“रजिस्ट्रार ऑफिस में कैसे आना हुआ ?”

“ चंदन तुमने तो लॉ किया था न...’’

“हां .... हां .... लेकिन अभी भी बेकार सा घूम रहा हूं .... छोटे मोटे कामों से बस किसी तरह गुजर हो पा रही है .... ‘

“तुमने तो अपने बैच में टॉप किया था न ....”

“ जिंदगी में तो कछुए की तरह रेंग रहा हूं ।“

“मेरी कुछ हेल्प करोगे ....”

“यह भी कोई पूछने की बात है ....”

“आओ सामने रेस्टोरेंट में कॉफी पीते हैं , फिर वहीं पर बैठ कर बातें होंगीं ।“

चंदन शुरू से क्लास में पढ़ने में बहुत होशियार था लेकिन वह गरीब और अनु सूचित जाति के कोटे से आता था इसलिये क्लास में कोई उसको भाव नहीं देता था .... वह अलग अलग सा रहता ...डरा सहमा सा रहता कि कब कोई उसका मजाक न बना दे .... फिर वह लॉ करने लगा और उसने एम. ए. किया तो लगभग मिलना जुलना बंद सा हो गया ....

उसने लगभग सकुचाते हुए अपनी लिखी हुई एप्लिकेशन दिखाई , जिसमें पॉवर ऑफ एटॉर्नी कैंसिल करवाने के लिये लिखा था .... चंदन ने एप्लिकेशन में कुछ सुधार किया और बोला , “पॉवर ऑफ एटार्नी तो मैं एक दिन में कैंसिल करवा दूंगा ....लेकिन यह समझ लो यदि तुम्हारे देवर की नियत खराब है तो वह खुद ही कंपनी का मैनेजिंग डाइरेक्टर बन जाने की कोशिश कर रहा होगा या फिर वह तुम्हारी कंपनी को अपने नाम पर करवाने की कोशिश में लगा होगा .... इसलिये “पॉवर ऑफ एटार्ऩी कैंसिल करवाने के बाद ये पता लगाने की कोशिश करो कि कंपनी में निश्चल के कितने पर्सेंट शेयर थे ..... वह सब शेयर तो अपने आप तुम्हारे नाम ट्रांसफर हो जायेंगें क्योंकि तुम निश्चल जी की पत्नी और उनकी सक्सेसर हो ... “

‘” लेकिन निश्चल ने तो मुझे कभी कुछ बताया ही नहीं ....” वह रुंआसी हो उठी थी ....

“कोई बात नहीं , निभा ...”

“तुम घबराओ नहीं , मैं तुम्हारा हक तुम्हें अवश्य दिलवाऊंगा .... ये रो कर कमजोर मत बनो वरन् हिम्मत रखो ....”

“ चंदन , यदि तुम मुझे मेरा हक दिलवा दोगे तो मैं तुम्हें मुंह मांगे 20 लाख रुपये या उससे कहीं ज्यादा रकम दूंगी .... यदि तुम यह केस मुझे जिता दोगे तो तुम्हारा नाम हो जायेगा, और फिर तुम्हें बहुत सारे केस मिलने लगेंगें .... लेकिन इस समय तो बस तुम्हें जरूरी खर्च वाले पैसे ही दे पाऊंगी ।“

“निभा ,तुम बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स में निश्चल के किसी विश्वासी मित्र को जानती हो .... तो तुम्हारा काम आसान हो जायेगा ।“

“हां ... अखिल भइया और निश्चल ने मिल कर यह कंपनी बनाई थी ... लेकिन मुझे लगता है कि अब निशीथ खुद डाइरेक्टर बनना चाहता होगा ।“

“ वह भोलेपन से बोली थी , फिर कौन बनेगा ....”

“तुम बनोगी ... अपने पति की सक्सेसर हो ...”

“ मुझे तो कुछ समझ में नहीं आता ... कैसे हो पायेगा “…

“सब काम मैनेजर और टीम करती है , धीरे धीरे सब समझ में आने लगेगा ..”

“ ठीक है निभा , तुम मेरे संपर्क में रहना ... इस विषय पर दूसरे केसेज को स्टडी करूंगा , उनके फैसले और डीटेल्स समझूंगां ....तब आगे क्या करना होगा , मैं यह तुम्हॆं बताऊंगा ....”

“एक बात ध्यान रखना ... घर में इन बातों की किसी से भी चर्चा मत करना क्योंकि इस समय तुम्हारा देवर तुम्हारी कंपनी पर अपना कब्जा करके तुम्हारे अधिकार को छीन कर , तुम्हें घर से बाहर कर देने की कोशिश में लगें होंगे । “

“ मुझे पक्का विश्वास है कि निशीथ ने कंपनी कोर्ट या लॉ ट्रिब्यूनल में कंपनी अपने नाम करने के लिये एप्लिकेशन डाल रखी होगी .... हो सकता है कि वह तुम्हारा फोन ट्रैक कर रहा ह , इसलिये तुम्हें बहुत होशियार रहना होगा .... यदि तुम्हारे फोन में अखिल का नंबर हो तो मुझे दे दो .....मैं सब कुछ तुम्हारे हक में करवा कर ही चैन लूंगा ।“

जो चंदन , उसकी नजरों में गंवार और ऐं वैं ही था , आज उसकी बातों से अत्यंत सुलझा हुआ समझदार दिखाई पड़ रहा था । उसके बात करने के ढंग और उसकी मदद के लिये उठे हुये उसके हाथ को देख कर वह गद्गद् हो उठी थी ...उसके व्यवहार ने उसके दिल को छू लिया था ।

चंदन का अनुमान सही निकला था ...निशीथ ने लॉ ट्रिब्यूनल में कंपनी का नाम बदल कर अपने नाम कर लेने की एप्लीकेशन लगा रखी थी और निश्चल के शेयर्स पर अपना कब्जा करने के लिये बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स को अपनी तरफ मिलाने के लिये उनको तरह तरह का प्रलोभन देने में लगा हुआ था ।

पावर ऑफ एटार्नी के कैंसिल होते ही निशीथ के कान खड़े हो गये थे और अब उसके सुर बदलने लगे, लेकिन वह अंदर ही अंदर बोर्ड मेंबर्स से मिल रहा था और अपने को निश्चल का सक्सेरर बता रहा था । निश्चल की जगह वह खुद मैनेजिंग डाइरेक्टर बनने के लिये गुटबंदी की कोशिश में लगा हुआ था .... लोगों के सामने निभा को अयोग्य बता कर समय बिताने के प्रयास में लगा हुआ , वह चाह रहा था कि किसी तरह लॉ ट्रिब्यूनल में कंपनी उसके नाम रजिस्टर हो जाये फिर एक एक को वह देख लेगा ....

इधर घर में निभा को अपनी तरफ मिलाने के लिये , उसकी चापलूसी करता रहता ... अब भइया तो लौट कर आयेंगें नहीं ... अब सब कुछ उसे ही करना है ....

 वह सबसे कहता फिर रहा था कि निभा भाभी तो एक घरेलू महिला हैं वह भला कंपनी का ए बी सी डी क्या जानें , इसी लिये तो उन्होंने पॉवर ऑफ एटार्नी मुझे दे रखी है ।

...मैं तो भाभी का सेवक हूं , भइया की अमानत संभाल रहा हूं .... रिनी मिनी को तो विदेश में पढ़ने के लिये भेजूंगा .... हर समय यही सोचता रहता हूं और यही चाहता हूं कि मेरी भाभी को भइया की कमी न महसूस होने पाये ...अब वह उन दोनों के लिये कभी कुछ तो कभी कुछ खिलौना या कपड़ा लेकर आया करता .... लेकिन अब वह उसकी नियत को अच्छी तरह समझ गई थी , इसलिये उसके भुलावे में आने का सवाल ही नहीं था ।

अखिल दास ने बोर्ड मेम्बर्स, की मीटिंग बुला ली जिसमें नये मैनेजिंग डाइरेक्टर को भी चुना जाना था ....बड़ी गहमागहमी थी । चंदन और अखिल दास के सहयोग से वह अब कंपनी के काम काज को अच्छी तरह समझ चुकी थी .... लेकिन निशीथ आसानी से कंपनी अपने हाथ से जाने नहीं दे सकता था इसलिये उसने एक कागज पर निश्चल के दस्तखत के साथ बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स के सामने रखा , जिसके अनुसार निश्चल के 51 पर्सेंट शेयर्स और कंपनी निशीथ की हो जायेगी और वह चाहते थे कि कंपनी के मैनेजिंग डाइरेक्टर निशीथ ही बने ... निशीथ की विल के अनुसार निश्चल के शेयर्स, जमीन जायदाद और कंपनी का मालिक निशीथ ही होगा ... बैठक बहुत हंगामे दार हुई और केस लॉ ट्रिब्यूनल को सौंप दिया गया ....

बोर्ड मेम्बर्स निभा को निश्चल की उत्तराधिकारी मानते हुये उसे ही डाइरेक्टर चुनना चाहते थे लेकिनकानूनी दांवपेच में उलझ कर मामला लॉ ट्रिब्यूनल से कोर्ट में पहुंच गया और विल की सच्चाई सिद्ध करने के लिये सिविल कोर्ट पहुंच गया था , परंतु चंदन के अकाट्य तर्कों के आगे निशीथ का वकील कहीं नहीं टिक पाये थे और लगभग तीन वर्षों के लंबे अंतराल के बाद निभा के हक में फैसला हुआ ....उसने खुशी के मारे अपनी गर्म हथेलियां चंदन के हाथों पर रख दीं ....

“चंदन तुम्हें धन्यवाद देने के लिये मेरे पास शब्द ही नहीं हैं ... मैं आजीवन तुम्हारी एहसानमंद रहूंगी ....”

“निभा आज पहले दिन ऑफिस जा रही हो , लो दही शक्कर से मुंह मीठा करके जाओ ।“ वह आश्चर्य से भर उठी थी .... यह रिश्ते भी कितने स्वार्थी होते हैं .....वह ऑफिस आई तो गेट को फूलों से सजा हुआ देख , उसे अच्छा लगा था ... उसके लिये रेड कार्पेट बिछाई गई थी ... फूलों की वर्षा के साथ वेलकम सांग भी गाया गया ... केबिन के बाहर नेमप्लेट पर ‘निभा सिंह ‘ और नीचे मैनेजिंग डाइरेक्टर देख उसकी आंखें नम हो गईं थी ।

  वह फाइल पर अपने साइन करती जा रही थी परंतु उसका मन तो चंदन में ही उलझा हुआ था .....

उसने जब ईमानदारी से उसे चेक साइन करके दिया तो उसने उसका हाथ पकड़ लिया था ...” निभा .... प्लीज यह एक दोस्त की तरफ से भेट समझ लो ....”

वह उसे एकटक निहारती रह गई थी ....

“चंदन , तुम शादी क्यों नहीं कर लेते ..?”

“बस दिल में कोई बसा है...”

“उससे अपने दिल की बात कह दो ....”

“हिम्मत नहीं जुटा पाता .... यदि उसने ना कर दी तो .....”

चंदन का जादू उसके सिर पर चढ़ता जा रहा था । वह हर पल उसकी आँखों में अपने लिये प्यार ढूंढा करती लेकिन उसकी सूनी आंखों में सिवाय उदासी और खालीपन के सिवा कुछ नहीं दिखता ...

वह रात में लेटी तो उसका मन चंदन की बातों में ही उलझा था ... चंदन ...चंदन ....चंदन उसे क्या होता जा रहा है ... वह मन ही मन मुस्कुरा उठी थी ....... उसने चंदन को अपना हम सफर बनाने का निश्चय कर लिया था ... उसने चंदन को फोन किया ....कल शाम को डिनर पर आ सकते हो ....

“आप बुलायें और हम न आयें .... ऐसा तो कभी हो ही नहीं सकता .... “

अगले दिन ...“मैडम नहीं केवल निभा कहो चंदन ....”

“मैं तो कब से इस पल का इंतजार कर रहा था ....”

 चंदन ने सबके सामने उसकी हथेलियों को हमेशा के लिये अपनी मुट्ठी में बंद कर लिया था .......”



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