Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Thriller

3  

Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Thriller

सीजन 2 - मेरे पापा (1)

सीजन 2 - मेरे पापा (1)

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समय रुकता कब है, वह अभी भी नहीं रुका था। पापा एवं मम्मी के स्नेह छाया में रहते हुए हर दिन मेरी, सुशांत से मोबाइल पर प्रेम की मधुर बातें होतीं और हमारे जीवन का हर पल, पिछला पल होता चला जा रहा था। ऐसे चल रहे जीवन प्रवाह में, तब दुर्भाग्य पूर्ण घड़ी आई। जिसमें लद्दाख, जहाँ सुशांत की तैनाती थीं वहाँ दुश्मन से हुए आमने सामने के संघर्ष में हमारे बीस सैनिकों को अपने प्राणों का बलिदान देना पड़ा था। 

सुशांत यद्यपि एयरफोर्स में हैं तब भी इस दुखद समाचार वाले दिन, सुशांत को लेकर मेरी आशंकाओं ने मेरे बदन में ही नहीं अपितु मेरी आत्मा तक में सिहरन उत्पन्न कर दी थी। सुशांत की पत्नी के रूप में, मैं ऐसे परिवार की नई नई सदस्य हुई थी, जिसका कोई सदस्य आर्मी में होता है। दुश्मन निर्मित आपदा एवं चुनौती के ऐसे दिनों में इन परिवारों पर जैसी बीतती है, (मनःस्थिति के) उन भय एवं साहस के बीच विचारों के दोलन (Oscillation) में, अब मुझे धैर्यपूर्वक जीवन यापन करना सीखना था। मेरे लिए यह ऐसा प्रथम अनुभव था। 

पापा एवं मम्मी के मन में क्या चल रहा है, मुझे इसका अनुमान हो रहा था। मैं नहीं समझती कि उन के मन में भय या आशंकाएं मुझसे भिन्न रही होंगी। शायद इससे उनके नेत्र भी सजल हो जाने को होते होंगे, मगर मेरे सामने वे संयत और सामान्य व्यवहार कर रहे थे। कदाचित वो मेरे को लेकर भी सोच रहे थे कि अगर वे कमजोर दिखाई दिए तो मुझ पर क्या बीतेगी। यह अनुमान होते ही मुझे भी अपने पर यह जिम्मेदारी अनुभव हुई कि मैं, अपनी आशंकाओं में रोकर उन्हें भी ना रुला दूँ। 

मुझे स्मरण आ गया था कि दीदी के सुशांत से पूछने पर, सुशांत ने देश की सारी अच्छी लड़कियों में से मुझे, अपनी अर्धागिनी बनाने का आधार यह बताया था -

“रमणीक, मेरे पापा में, अपने पापा की छवि देखती है। और लड़कियाँ, सुंदर तो ज्यादा होंगी, मगर उनकी, मेरे पापा-मम्मी के लिए, ऐसी दृष्टि शायद नहीं होगी। यह बात, रमणीक में विशेष है।” 

मुझे यह भी स्मरण आया था कि एक दिन सुशांत ने मुझे कहा था -

“पापा, मम्मी को तुम्हारे और तुम्हें, उनके हवाले कर देने से, मैं, निश्चिंत हो स्वयं को राष्ट्र रक्षा कर्तव्यों के, हवाले करता हूँ।” 

ये बातें स्मरण में आने पर, रो पड़ने की अपनी दशा को मैंने नियंत्रित किया था। मैंने इस सच्चाई को पहचाना था कि मैं युवा हूँ, पापा-मम्मी प्रौढ़ हैं। मुझे अपने कर्म एवं व्यवहार से उनका सहारा होना है। ऐसा कुछ नहीं करना है जिससे उलटे उन्हें ही मुझे सम्हालने या सहारा देने को विवश होना पड़े। यह विचार आते ही मैंने अपने मन को दृढ़ किया था। पापा के पसंद का नाश्ता टेबल पर सजाने के बाद, नाश्ता करते हुए मैंने पापा से परिहास करने के विचार से, मम्मी से कहा - 

मम्मी जी, पापा तो गंभीरता से यूँ विचार करते प्रतीत हो रहे हैं कि सरकार यदि लद्दाख सीमा पर लड़ने की, इन्हें अनुमति दे दे तो पापा ही जाकर 5-10 चीनियों को ठिकाने लगा दें। 

यह बात कहने के, मेरे मंतव्य अनुसार ही इसे सुनकर पापा और मम्मी के मुख पर विद्यमान गंभीरता छू हुई थी। हँसते हुए पापा ने कहा -

सच कहती हो रमणीक! इतनी सही तरह से तुम मेरे मन की पढ़ लेती हो। वास्तव में मेरी इच्छा तो अभी यही हो रही है, मगर मेरी बूढ़ी हो रही रगों में, खून का ऐसा खौल उठना भी राष्ट्र हित में अच्छा परिणाम नहीं दिला पाएगा। 

मैंने कहा - 

मगर पापा, आप अपनी प्रौढ़ अवस्था अनुसार अपने दायित्व निभाने में पीछे कहाँ हैं। पहले ही आप समाज बुराई से, लड़ कर उन्हें मिटाने वाले सैनिक हैं। देश के एक प्रबुद्ध नागरिक होने का दायित्व तो आप यथा प्रकार निभा ही रहे हैं। 

मेरी इस बात पर मम्मी ने मजाक आगे बढ़ाते हुए कहा - 

सही कहती हो रमणीक, ये तो ऐसे सैनिक बने फिरते हैं, जिन्हें अपने पीछे की इस प्रौढ़ा पत्नी और (तुम) मासूम बेटी का, दिनोंदिन तक कोई विचार नहीं रहता है। ये कभी नहीं सोच पाते हैं कि मन बहलाव के लिए हमें कहीं पर्यटन को ही ले चलें। 

पापा ने समझ लिया कि मम्मी भी मेरी तरफ हो गईं हैं, उन्होंने हँसते हुए कहा - 

इस कोरोना त्रासदी में भी अगर आप दोनों घूमना चाहो तो मैं, अपने प्राणों की चिंता छोड़ सकता हूँ। जहाँ कहो घूमने ले जा सकता हूँ। 

मेरे ऑफिस का समय हो रहा था अतः मैंने कहा - 

चलिए छोड़िए पापा, कोरोना थम जाने के बाद हम घूमने जाने का प्रोग्राम तय कर लेंगें। 

ऐसे नाश्ता खत्म करके, मैं ऑफिस के लिए चल दी थी। रास्ते में, मुझे सुशांत को लेकर भय नहीं रहा था अपितु मैं ‘मेरे पापा’ एवं मम्मी जी के दीर्घ जीवन की कामना कर रही थी। मैं एक बार अपने पापा को खो चुकी थी। अब इन (सुशांत के) पापा की छत्रछाया अपने पर, अपने पूरे जीवनकाल के लिए चाहती थी। 

सुबह से लेकर रात तक सुशांत के दो तीन कॉल नितदिन आ जाया करते थे। आज मगर उनका कोई कॉल नहीं आया तो ऑफिस से लौटते हुए, मैंने ही सुशांत को कॉल किया था। जिसे उन्होंने काट दिया था। घबराई हुई जब मैं घर के द्वार पर पहुँची, तब सुशांत का कॉल आया था। इसमें उन्होंने सिर्फ इतना बताया कि - 

रमणीक, अभी मैं अत्यधिक व्यस्त हूँ। मैं पूरी तरह ठीक हूँ। अभी कुछ दिनों मैं कॉल न भी कर पाऊं तब भी, तुम मेरी चिंता करके परेशान ना होना। 

मैं सिर्फ जी कह पाई थी। तभी उन्होंने बाय कहकर कॉल काट दिया था। इसी बीच, पापा ने द्वार खोले थे। परेशान चिंतित घर में प्रवेश करते हुए मैं, उनसे नितदिन की तरह मुस्कुराहट आदान प्रदान करना भूल गई थी। उन्होंने मेरे सिर पर स्नेह से थपथपाया तब मुझे अपनी भूल याद आई थी। तब अपने मनोभावों पर सप्रयास नियंत्रण पाते हुए मैंने उनकी ओर देखकर मुस्कुरा दिया था। 

पापा ने मुझे ऐसे निहारा था जैसे मुझे आश्वस्त कर रहे हों कि, ‘रमणीक चिंता न करो, जल्द ही सब ठीक हो जाएगा’। मैंने एक बार फिर मुस्कुरा दिया था। इस बात का मुझे अहसास नहीं था कि सम्हालते सम्हालते भी तब मेरे नेत्र सजल थे। पापा ने यह नोटिस कर लिया था। उन्होंने कहा - 

मेरी रमणीक, तो एक बहादुर बेटी है। 

मुझे लगा अगर मैंने पापा से दृष्टि मिलाई तो मैं रो पड़ूँगी। मैंने उतावली में पापा से कहा - 

पापा, मैं वॉशरूम से आती हूँ। 

फिर उनसे दृष्टि चुराते हुए मैं तेज कदमों से अपने कक्ष में आ गई थी। मैंने अपने पीछे शयनकक्ष का डोर लॉक किया था। मैं कपड़े तक बदलने की शक्ति अनुभव नहीं कर रही थी। मैंने जैसे तैसे कपड़े चेंज किए थे। अब तक धारण किया मेरा धैर्य तब चुक गया था। मेरी काया बिस्तर में ढह गई थी। मैं फफक फफक कर रो पड़ी थी। अश्रुओं का कुछ मिनट तक बह जाने के बाद मेरा जी कुछ हल्का हुआ था। तब मुझे विवाह तय होते समय में पापा की कही बात याद आई थी। उस समय उन्होंने कहा था -

“आर्मी फैमिली में बहुधा कठिनाइयों की, वेदनादायी स्थितियां निर्मित होती रहती हैं। जब जब सीमा पर या देश के भीतर कोई डिस्टर्बेंस होता है और घर का सेना में शामिल सदस्य, वहाँ तैनात होता है, तब तब उसके जीवन को लेकर, परिवार में गहन चिंता रहा करती है। ऐसे में सामान्य बने रहने के लिए मानसिक रूप से दृढ़ होने की जरूरत होती है। तुम्हें सुशांत से विवाह का फैसला लेने के पूर्व, अपनी मानसिक क्षमताओं का परीक्षण अवश्य करना चाहिए।”

इसके स्मरण आने के बाद मैंने अपनी शक्ति संजोई थी और वॉशरूम जाकर हाथ-पाँव, आँखें एवं मुख धोए थे। फिर मैं बाहर आई थी। मैंने देखा, मम्मी किचन में थीं। मैं रसोई के काम में उनका साथ देने लगी थी। मैं चुप थी। शायद उनका मन भी बात करने का नहीं हो रहा था। 

आवश्यक थोड़ी बातों के साथ हम काम कर रहे थे। अब मैं, अपनी छोड़ मम्मी के बारे में सोच रही थी। मैं सोच रही थी कि मेरे से अधिक विकट स्थिति तो मम्मी की हो रही होगी। सुशांत के साथ, जहाँ मेरा वर्तमान एवं भविष्य था, वहीं मम्मी जी के साथ तो सुशांत का अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों ही थे। वे चाहे प्रत्यक्ष में सुशांत की चिंता करती नहीं दिखें मगर निश्चित ही मन में सुशांत को लेकर वे आशंकित तो होंगी ही। कदाचित उन्हें मेरी मनःस्थिति का भी आभास होगा, जिससे वे भावुकता में कुछ कह देने की जगह चुप रहने का विकल्प चुन रहीं थीं। 

रात्रि का भोजन पापा, मम्मी जी एवं मैंने साथ किया था। थोड़ी बातें हममें अवश्य हुईं थीं मगर वे अन्य दिनों की तुलना में अत्यंत ही कम थीं। हमारे सैनिकों के बलिदान के साथ ही, चीनियों के मारे जाने से युद्ध की आशंका के बादल गहरा गए थे। सुशांत अब तक तो कुशल थे मगर युद्ध हुआ तो कुछ भी हो सकता था। रात में, जीने के लिए आवश्यक होता है सिर्फ इसलिए हम सभी ने भोजन किया गया था। हममें से किसी को स्वादिष्ट भोजन में कोई रस नहीं आया था। 

भोजन के बाद मैं अपने कमरे में आ गई थी। मैं अनमनी ही गूगल पर भारत-चीन के विवाद का अतीत और वर्तमान खोजने-पढ़ने लगी थी। पापा-मम्मी जी, सोने के पहले दूध पिया करते हैं। अतः उन्हें दूध के गिलास देने के विचार से मैं रसोई में आई थी। दूध लेकर जब बैठक कक्ष में पहुँची तो मैंने देखा, दोनों टीवी देख रहे हैं। मेरी दृष्टि टीवी पर पड़ी तो, उस पर राफेल उड़ता दिखाया जा रहा था। एंकर आसमान पर उड़ते राफेल को दिखा कर भारत-चीन की सैन्य क्षमताओं की तुलना करते हुए सभी तथ्य बता रहा था। 

यहाँ बात राफेल की की जा रही थी। सुशांत ने मुझे बताया हुआ था कि राफ़ेल पायलट के तौर पर उन्होंने फ़्रांस से प्रशिक्षण लिया है। अतः दूध के गिलास पापा-मम्मी जी को देने के बाद, अपनी उत्सुकता के कारण मैं भी उनके साथ टीवी देखने लगी थी।

टीवी पर तुलना करते हुए यह बताया जा रहा था कि चीन विश्व की पहले नं. की सैन्य ताकत है जबकि भारत चौथे नं. पर है। चीन पर भारत की बढ़त जिन बातों में है उसमें भारत के पास राफेल, ब्रम्होस मिसाइल एवं आईएनएस विक्रमादित्य होना प्रमुख है। 

यह सुनकर मुझे लग रहा था कि चीन से ताकत में भारत के कम होने से, यदि युद्ध हुआ तो भारत के पक्ष का बहुत कुछ दारोमदार राफेल पर रहेगा। इससे स्पष्ट था कि आसन्न युद्ध में सुशांत पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी के साथ उन पर खतरा भी अत्यंत अधिक था। यह सोचते हुए मेरा हृदय बैठा जाता लग रहा था। चिंता में मेरे मुख से निकल गया - 

पापा, यह हम पर कितनी बड़ी विपत्ति खड़ी हो गई है। 

पापा ने मेरे साहस बढ़ाने के लिए कहा - 

रमणीक, यह तुलना सुनकर थोड़े भी चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। चीन, हमसे युद्ध नहीं करेगा। वह सिर्फ धौंस दे रहा है। भले ही हम शक्ति में उससे कम हैं, तब भी यदि युद्ध हुआ तो हम चीन को बहुत बड़ी क्षति पहुँचाने की स्थिति में हैं। चीन यह भलीभांति जानता है। इससे वह युद्ध छेड़ने से बचते रहेगा। यही बात हमारी वह शक्ति होगी जिससे हमारी स्वमेव ही रक्षा होगी। 

मैंने कहा - 

मगर पापा, युद्ध होता सा दिखने का यह परिदृश्य मुझे चिंता में डाल रहा है। 

मैंने भय शब्द का प्रयोग जान बूझकर नहीं किया था। मगर पापा ने इससे ही अपनी बात आरंभ की थी। कहा - 

भयभीत न रहो, बेटी! मालूम है रमणीक, हम जैसे परिवारों में एक विशिष्ट बात होती है।    

मैंने मरे स्वर में पूछा - वह क्या, पापा!

पापा ने बताया - 

देश पर आशंका की इन परिस्थितियों में भारत के 35 करोड़ परिवार, जब भारत की सीमाओं एवं हित की चिंता करते हैं और इसे लेकर भयभीत होते हैं, तब 35 लाख परिवार जिनके बेटे-बेटी सेना में हैं, जिनमें एक हमारा परिवार भी है, एक अतिरिक्त आशंका अनुभव कर रहे होते हैं। हमारी कामना होती है कि हमारे बेटे, भाई, पति या पिता सुरक्षित रहकर विजयी हों और उन्हें कुछ क्षति न उठानी पड़े। यह 35 लाख की, 35 करोड़ परिवारों पर विशिष्टता है। आज हमें भय नहीं गौरव करना चाहिए कि हमारे सुशांत पर यह एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। 

पापा की कही गई बात पर मैं विचार करने लगी थी। कुछ पल मेरा भय, कम हुआ प्रतीत हो रहा था। मैंने उठकर, श्रद्धा से पापा एवं मम्मी के चरण छुए थे। दोनों के कहे आशीर्वचनों को सुनकर भी, मैं अपना भय पूरी तरह से दूर नहीं कर पाई थी। 

तब डर से मेरे हाथ काँप रहे थे। मैंने दूध के खाली हुए गिलास उठाए थे। मुझसे असावधानी हुई थी। कंपकंपा रहे मेरे हाथ में ली गई ट्रे में से, काँच के गिलास धरती पर गिर कर फूट गए थे। पापा और मम्मी ने तुरंत उठकर काँच के टूटे, टुकड़े समेटने में मेरी सहायता की थी। 

दोनों ने बारी बारी मुझे गले लगाकर हिम्मत रखने की बात कही थी। तत्पश्चात मैं अपने शयन कक्ष में आ गई थी।

मैंने कभी सुना था कि काँच का टूटना अशुभ संकेत होता है। इस विचार से मैं, पहले से भी अधिक भयाक्रांत हो गई थी। मैं सोचने लगी थी, पापा-मम्मी भी यदि इसे अशुभ होना मानते होंगे तो अभी वे कैसे भयभीत हो रहे होंगे। 

तब मैंने अंधविश्वास के इस विचार को यह सोचते हुए अपने मन से निकाला था कि दूर कहीं कुछ होने में, यहाँ काँच के टूट जाने का संबंध भला कैसे हो सकता है। यह सब पुरातन अंधविश्वास हैं, जिसमें सुबह किसी निर्दोष मनुष्य की शक्ल को देखना भी अपने लिए अशुभ मान लिया जाता है। यह सब मनुष्य के कमजोर मन का भय एवं कल्पना मात्र होता है, यथार्थ से इसका कोई संबंध नहीं होता है। 

मैं बेड पर आई थी। बिस्तर पर लेट कर मेरा मन सुशांत की पत्नी होने पर गर्व करना चाहता था। मैं मगर, सुशांत की पत्नी होने से ही, अधिक भयभीत थी। मैं डर रही थी कि वीर योद्धा पति के साथ की मेरी कहानी, कुछ ही दिनों की न रह जाए। 

विवाह के पहले सुशांत से दो दिनों में कुछ घंटों का साथ और विवाह के बाद पाँच दिनों के साथ में, हमारी केमिस्ट्री जिस तरह मैच करते रही थी, उससे मुझे कोई संदेह नहीं रह गया था कि सुशांत से मेरा साथ, कई जन्मों से रहा है। 

इस जन्म में भी मुझे मिल गए उनके साथ का, मैं भरपूर सुख उठाने की अभिलाषी थी। अभी भारत माता पर जो संकट आया था उससे मुझे उनका साक्षात सानिध्य नहीं मिल पा रहा था। अभी सुशांत के लद्दाख में होने पर, उनके मोबाइल कॉल्स ही वह माध्यम थे जिससे, उनसे विरह की मेरी वेदना को मलहम लग जाया करती थी। मेरे संतप्त हृदय को इसी बात से शीतलता मिला करती थी। सोने के पहले सुशांत की कही गईं प्रिय बातों से मेरी निद्रा सुलभ हो जाया करती थी मगर आज उनका मोबाइल कॉल भी नहीं आया था। आज मेरा सो पाना कठिन हुआ था। बिस्तर पर करवटें बदलते हुए नींद मुझे कई घंटों बाद लग पाई थी। 

फिर आगे के दिनों में, सुशान्त का मोबाइल कॉल नहीं आना सामान्य बात हो गई थी। अब उनकी कुशलता का अनुमान करने के लिए, प्रसारित समाचार ही एकमात्र माध्यम रह गए थे। न्यूज़ चैनलों में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर स्थिति तनावपूर्ण होने पर भी कोई और बलिदान न होना तथा युद्ध छिड़ जाने का समाचार न होना, मेरे मन को राहत देता था। 

सुशांत फाइटर जेट राफेल के पायलट हैं यह मुझे पता था। पापा मम्मी को भी यह पता है या नहीं, मैं नहीं जानती थी। समाचारों में कभी कभी एलएसी से‌ सटी एयर स्पेस एवं लेह-लद्दाख के आसमान में दिन रात, कॉम्बेट एयर पैट्रोलिंग करते हुए शक्तिशाली फाइटर जेट राफेल दिखाया जाता था। मैं इस विचार से रोमांचित हो जाती थी कि कदाचित इसे मेरे सुशांत उड़ा रहे हैं। एक क्षण को मेरा हृदय गर्व भाव से ओतप्रोत होता, अगले ही पल में मैं डरने लगती थी। 

मुझे एहसास था कि अभी हमारा सामना अत्यंत ही शक्तिशाली शत्रु ड्रैगन से हो रहा है। मुझे संशय एवं भय होता था कि वे राफेल तक को भेद लेने की क्षमता तो नहीं रखते हैं। मेरे मन में इसे लेकर भी डर होता कि राफेल उड़ाने का सुशांत का अनुभव बहुत अधिक नहीं है। कहीं कोई चूक या गलती सुशांत ही न कर बैठें। इन विचारों से मेरा हृदय काँप काँप जाता था। 

सुशांत के कॉल नहीं आना इन दिनों सामान्य बात हो गई थी। मैं सहमी सहमी रहती थी। मुझे यह भी अनुमान होता था कि भले ही वे प्रकट नहीं करते मगर पापा मम्मी जी के दिन भी ऐसे ही सहमे सहमे बीत रहे थे। 

अंततः बीस दिन बाद, सभी के मन को राहत देने वाला समाचार आया था कि चीन की सेना ने पीछे हटना शुरू कर दिया है। तब उस रात भी, मैं सो नहीं पा रही थी। मैं बिस्तर में, करवटें बदलती हुई अपने मोबाइल फोन को बड़ी आशा से निहार रही थी। भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि इसकी स्क्रीन पर सुशांत के मुस्कुराता चेहरा मेरी आँखों के समक्ष उभरने के साथ ही कर्णप्रिय वह रिंगटोन मुझे सुनाई पड़े जो मैंने सिर्फ सुशांत के इनकमिंग कॉल के लिए सेट की हुई है। 

आज लगता है मेरा ईश्वर अपनी इस पुजारन पर प्रसन्न था। एकाएक मोबाइल से वही रिंगटोन गूँज उठी थी। मैंने बड़ी आशा और प्रेम से मोबाइल हाथ में लेकर स्क्रीन देखी तो उसमें मुस्कुराते हुए मेरे सुशांत दिखाई दे रहे थे …. 

 



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