Shailaja Bhattad

Abstract

4.0  

Shailaja Bhattad

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सिद्धांत

सिद्धांत

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"आपकी बीमारी के लक्षण बताते हैं, कि आपको आर्थराइटिस है।"

 "ओह !"

 "जी ! आपको कुछ एक्सरसाइज सिखाई जाएंगी, साथ ही आपको सिर्फ विटामिन B12, कैल्शियम, विटामिन-डी ही लेना है। इनके अलावा कोई भी दूसरे मेडिसिन नहीं लेना है।"

" वह सब तो ठीक है ! डॉक्टर साहिबा, लेकिन इन सबका दाम क्या होगा? क्योंकि मैंने सुना है ये दवाइयां बहुत महंगी होती हैं, मैं इन्हें खरीद नहीं पाऊंगा।" सरकारी विद्यालय से रिटायर्ड अध्यापक जो अपनी पत्नी के साथ एक छोटे से घर में रहते हैं, ने डॉक्टर से कहा।

 कहने को तो अध्यापकजी के अच्छे कमाऊ, दो जवान शादीशुदा बेटें हैं, लेकिन उनका गुजारा सिर्फ उनकी नाममात्र पेंशन से ही होता है जिसमें पति-पत्नी का दो वक्त का खाना भी मुश्किल से ही हो पाता है, फिर दवाइयों का खर्चा?

"ना, ना ! डॉक्टर साहिबा, मैं जैसा भी हूं, ठीक हूं यह मुझसे न हो पाएगा।" 

"चिंता मत कीजिए सर, आप बस एक्सरसाइज कीजिए और ये दवाइयां लीजिए।"

 विचारों की उधेड़ बुन से जैसे ही मास्टर साहब बाहर निकले, डॉक्टर को दवाइयों के साथ अपने सामने खड़ा पाया।

" लेकिन मैं मुफ्त की कोई भी चीज नहीं लेता।" 

"जानती हूं सर ! गुरु दक्षिणा समझकर ही ले लीजिए।"

 डॉक्टर ने तुरंत ही मास्टर साहब के पैर छू लिए।

" गुरु दक्षिणा !"

" जी ! आप मुझे भूल गए, लेकिन मैं आपको कैसे भूल सकती हूं ! सर, याद है एक दिन आप ही ने हम सब विद्यार्थियों से कहा था, जिंदगी में जो चाहो बनना, लेकिन इंसानियत को सबसे आगे रखना, किसी को अपने दरवाजे से निराश न लौटने देना।" 

अपनी शिक्षा का प्रत्यक्ष प्रमाण देख मास्टर साहब गदगद हो उठे और डॉक्टर साहिबा के सिर पर आशीर्वाद का हाथ रख दिया।


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