Yogesh Kanava Litkan2020

Romance

4.6  

Yogesh Kanava Litkan2020

Romance

श्यामा

श्यामा

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आदमी जब अकेला होता हे तो विचारों की वैतरणी उसे न जाने यादों की लहरों पर सवार करके कहाँ ले जाती है। एकान्त में व्यक्ति कभी भी अकेला नहीं होता है, और जब भी एकान्त मिलता है तो भीतर से एक आवाज़ उसे आत्म मंथन करने के लिए कहती है। अतीत के धुंधलके से तस्वीरों के अक्स एक-एक कर उभरते जाते हैं, सामने आते हैं और झकझोरते हैं, गुदगुदाते हैं, हँसाते हैं, रूलाते हैं। ये अक्स हमें वो आइना दिखाते हैं जिस पर समय ने परदा डाल दिया था। आज संदेश भी अपने कार्यालय में बैठा सोच रहा था कि मैंने तो कोई बुरा नहीं किया, किसी को भी कोई तकलीफ होती है तो मैं उसके साथ हो लिया, जहाँ कहीं किसी मजलूम पर अत्याचार होते देखा तो मैं उसी के साथ खड़ा हो गया। इसी तरह एक-एक कर ज़्यादातर लोग मेरे खि़लाफ होते गए। मैं अपने आप में मस्त किसी की परवाह किए बिना चलता रहा। लोग अपने-अपने स्वार्थ पूरे करते रहे और स्वार्थ पूरा होते ही मेरा साथ छोड़कर अलग होते गए। मैं अकेला एकदम अकेला, कभी अपनापन ढूंढता तो कभी इसमें लेकिन यह सब महज छलावा निकलता। कोई एक कदम तो कोई दो कदम साथ चलकर अलग हो जाता था। मेरी तलाश एकदम अधूरी, रेगिस्तानी प्यास की तरह, बस जज़्बातों को समझने वाला कोई एक शख़्स मिल जाए। 

इसी उधेड़बुन में न जाने श्यामा कब से सामने खड़ी थी ,संदेश को पता ही नहीं चला। उसी ने बताया कि उसने पहले भी अभिवादन किया था, किन्तु संदेश की तन्द्रा नहीं टूटी थी। वो तो अपने ही विचारेंा में मग्न किसी और दुनियाँ में विचरण कर रहा था। श्यामा, हाँ अभी कुछ ही समय पहले उसे यह जॉब मिला था। औरों से जरा हटकर उसका स्वभाव, शान्त, स्थिरचित्त और गम्भीर मुद्रा। उसका नाम श्यामा ज़रूर है लेकिन एकदम गौरवर्ण, एकदम सुन्दर। जिस पर एक बार नज़र ठहर जरूर जाए ऐसा सौन्दर्य और उस पर उसकी आँखें जिनमें ना चाहते हुए भी संदेश डूबता सा जान पड़ रहा था। वो संदेश को अच्छी लगती थी। भीतर ही भीतर संदेश भी उसके समीप जाने की इच्छा रखता था। दफ़्तर का काम, नई होने के कारण पूरी तरह से नहीं कर पाती थी। एक आध बार संदेश ने उसे आत्मीयता के साथ कार्य समझाया तो वो भी प्रभावित हुए बिना नहीं रही।

आज इस प्रकार संदेश को विचारों में खोया देख श्यामा ने आख़िर पूछ ही लिया "सर, आपकी इस ख़ामोशी का कारण जान सकती हूँ।"

संदेश उसे कुछ नहीं बताना चाहता था। वैसे वो क्या बताता, यह बताता कि उसे एक ऐसे शख़्स की तलाश है, जो उसकी भावनाओं को समझे, जो उसे समझ सके, जिसको वो अपनी मन की बातें कह सके, क्या कहता वो, बस संदेश चुप रहा। श्यामा को लगा कि इस शख़्स के मन में कुछ ज्वालामुखी के लावे सा भीतर ही भीतर कुलबुला रहा है जो किसी भी वक़्त किसी पर भी गुस्सा बनकर फूट पड़ता है और इसी गुस्से के कारण लोग उसे खड़ूस समझ बैठे हैं। संदेश ने उसे आज का काम बताकर कहा कि अब वो अपना काम शुरू कर सकती है। श्यामा वहाँ से चली तो गई ,किन्तु उसके मन में अभी भी वही विचार चलता जा रहा था ''आखिर इतना समझदार, सुसंस्कृत और शालीन व्यक्ति अचानक इतने आवेश में क्यो आ जाता है, क्यों आखिर क्यों ये शख़्स इतना अच्छा होते हुए भी ज़्यादातर लोगों के लिए एक बुरा आदमी है, एक खड़ूस आदमी है। ''

दफ़्तर के काम के मामले में या और किसी भी जानकारी के क्षेत्र में वो पूरे दफ़्तर में सबसे ज़्यादा ज्ञान रखता है तो भी लोग उसकी अवहेलना क्यों करते हैं। बस वो इसी उधेडबून में उलझी रही और काम पूरा नहीं हो पाया। चपरासी ने आकर बताया कि संदेश साहब बुला रहें हैं, तो अचानक उसे ख़याल आया कि मैंने वो काम तो पूरा किया ही नहीं लेकिन उनके गुस्से का ध्यान आते ही एक बार तो श्यामा भी सिहर गयी थी, किन्तु अगले ही पल न जाने क्या सूझा और वो सीधी संदेश के कमरे में बिना पूछे ही चली गयी। "सर, जो काम आने दिया था वो मैं अभी नहीं कर पाई हूँ, सॉरी सर, आज मैं काम नहीं कर पा रही हूँ, सर।" संदेश को लगा इसने कितनी साफगोई के साथ स्वीकार किया है कि वो काम नहीं कर पाई हैं। उसे गुस्सा भी नहीं आया बल्कि वो तो इस वक़्त भी कुछ गुमसुम सा बैठा, ना जाने क्या सोच रहा था। बस इतना ही बोला "कोई बात नहीं, अभी कर लेना, वैसे वो ज़रूरी तो है लेकिन काम तभी करो जब व्यक्ति का काम करने का मन हो।"

"सर, आपकी तबियत ठीक नहीं लगती है", श्यामा बोली।

"क्यों क्या हुआ मुझे? काम नहीं करने पर गुस्सा नहीं किया इसलिए तुम्हें ऐसा लग रहा है ना।"

" नहीं सर, ऐसी बात नहीं है, मैं सुबह आई थी तब भी आप...............।" संदेश उसे देखता रहा, बस देखता रहा। उसकी गहरी आँखों को पढ़ने की कोशिश करता रहा।

"सर, आप बुरा नहीं मानें तो एक बात कहूँ जो मैं आपके बारें में समझ पाई हूँ।" उसने जवाब नहीं दिया बस उसकी तरफ एक बार फिर से नज़रें उठाकर देखा और प्रश्नसूचक निगाहों से उसे देखने लगा। "

"सर, मुझें आप सचमुच बहुत अच्छे लगते हैं। मैं आपकी इज़्ज़त करती हूँ। सर, कई बार आपके आवेश और गुस्से को देखती हूँ। लोगों की आपके बारें में की गई टिप्पणी सुनती हूँ, पहले तो मुझे भी लगता था कि आप वाकई खडूस हैं और अपने आपको सबसे ज़्यादा विद्वान समझते हैं। लेकिन धीरे-धीरे मेरी यह धारणा बदलती गई। मैं जानती हूँ सर, बहुसंख्यक लोग आपके बारें में बहुत ग़लत और बेहूदी बातें बोलते हैं जो मेरी नज़र में सही नहीं है। यदि सही होती तो मैं उनको मान लेती। मैं जानती हूँ सर, आपके गुस्सैल व्यक्ति के भीतर एक बच्चे का समान  है जो कहीं से थोड़ा सा अपनापन चाहता है। वो चाहता है कोई उसे समझे, कोई आपके विचारों की कद्र करे। मैं जाति तौर पर आपकी और आपके विचारों की बेइन्तहा कद्र करती हूँ। सर आप रेगिस्तान में प्यास लिए पानी को भटक रहे हैं। यही भटकाव, आपको ठहरने नहीं देता है और जब ठहराव नहीं होता है तो आपका गुस्सा मुखर होता है।"

   संदेश उसकी बातें यूँ सुन रहा था जैसे वो कोई संत फकीर उपदेशक है ,और स्वंय वो एक याचक। संदेश को लगा शायद यही वो शख़्स है जिसकी उसे तलाश है, तभी रेडियो पर एक 

ग़ज़ल बज रही थी। ''ना किसी का दिल मुझे चाहिए, ना किसी नज़र की तलाश है, मेरे दिल को जो दिल समझ सके मुझे उस नज़र की तलाश है.........................।''


 



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