श्रद्धासुमन
श्रद्धासुमन


मैडम मैं इस बच्चे का एडमिशन अपनी क्लास में नहीं कर सकती। तिमाही परीक्षा भी हो चुकी है। चौथी कक्षा में पिछला सिलेब्स कवर करवाना कितना मुश्किल होता है, समझ सकती है आप और इसे तो स्कूल छोड़े भी साल भर हो गया है।" मिसेज कौशिक ने प्रिंसिपल मैडम के सामने अपनी बात रखी। " देख लो मैडम। एडजस्ट हो सके तो। वैसे भी आप के सेक्शन में बच्चे कम भी है।" प्रिंसिपल ने उन्हें समझाना चाहा। उनकी बात सुन मिसेज कौशिक कुछ नाराज़ सी होते हुए बोली " मैडम बच्चे कम है तो क्या ऐसे बच्चे का एडमिशन मैं अपनी क्लास में कर लूं। जिससे मेरी क्लास का रिज़ल्ट खराब हो जाए। सॉरी मैडम इसका जुगाड आप किसी और सेक्शन में कर दे। नहीं तो कोई बहाना बना चलता करे। वैसे भी इन लोगों का हर साल का यही नाटक है। जब जी चाहा गांव चले गए और फिर आकर नए नए किस्से सुना देते हैं " कहते हुए वो उठ कर चली गई।
मिसेज कौशिक विद्यालय में सबसे वरिष्ठ थी। इसलिए वह उनकी बात काट नहीं पाई। उन्होंने बाहर बैठे उस व्यक्ति को अन्दर बुलाया। उसके साथ उसकी दुबली सी लड़की जो लगभग नौ- दस साल की थी अन्दर आई।"देखिए एक सत्र न निकल गया है। इसलिए आपकी बेटी का दाखिला नहीं हो सकता। आप अगले साल सत्र शुरू होते ही आना हम इसका दाखिला ज़रूर कर लेंगे।" प्रिंसिपल ने उसे समझाया। इतना सुनते ही वह गिड़गिड़ाना लगा।
"मेहरबानी करो मैडम। लड़की का साल खराब हो जाएगा। पढ़ने में बहुत होशियार है ये। वो तो इसका छोटा भाई छत से गिर गया था उसके इलाज के चक्कर में इसकी पढ़ाई छूट गई। लड़का तो चल बसा पर इसका भविष्य बचा लो।" तभी मिसेज शुक्ला ऑफ़िस में किसी काम से दाखिल हुई और उन्होंने ये सब माजरा समझने के लिए प्रिंसिपल की ओर देखा।
उन्होंने उसे सारी बात बताई। मिसेज शुक्ला ने बच्ची को अपने पास बुलाया और बड़े प्यार से उससे पूछा "पढ़ना चाहती हो क्या? मेहनत करोगी?" लड़की ने डरते हुए धीरे से हां में गर्दन हिला दी।"ठीक है कल तुम इसके सारे कागज़ात ले आना। इसका दाखिला हो जाएगा।"मिसेज शुक्ला ने उस व्यक्ति से कहा। उस व्यक्ति व लड़की के चेहरे पर मुस्कुराहट दौड़ गई। और उनका धन्यवाद करते हुए वो दोनो चले गए।
"मिसेज शुक्ला भावुकता व जल्दबाजी में लिया गया फैसला कहीं आपकी क्लास का रिज़ल्ट न बिगाड़ दे। आखिर आपकी भी तो चौथी कक्षा है और ऊपर से आपके पास बच्चे भी ज्यादा हैं।"
" मैडम ऐसी ही भावुकता मेरी प्राईमरी टीचर ने न दिखाई होती तो शायद मैं आज यहां तक ना पहुँचती।"
" क्या मतलब !" प्रिंसिपल ने हैरानी के साथ पूछा।
" मैडम ऐसी ही एक विपदा मेरे परिवार पर भी आ पड़ी थी। जिसके कारण मैं कई महीने तक स्कूल ना जा सकी इस कारण मेरा नाम कट गया और जब मैं दोबारा एडमिशन के लिए गई तब तक मैं कोरी सलेट हो चुकी थी। इसलिए मुझे भी कोई अपनी कक्षा में लेने को तैयार न था। तब सुदेश मैडम एक फरिश्ते की तरह आगे आईं और मेरे ऊपर विश्वास दिखाया। मैने भी उनके विश्वास को कभी नहीं तोड़ा। वो एक सच्ची अध्यापिका व मार्गदर्शक थी। मैं तो बस उनके नक्शे कदम पर चलने का प्रयास कर रही हूं। मेरी इस कोशिश से अगर किसी बच्चें का भविष्य संवरता है तो ये सुदेश मैडम के लिए मेरे सच्चे श्रद्धासुमन होंगे।"