शरद पूर्णिमा
शरद पूर्णिमा
आश्विन मास की पूर्णिमा की रात चन्द्रमा अपनी सोलह कलाओं से खिलता है,धवल चांदनी रात में धरती पर अमृत बरसता है। इस रात में आयुर्वेदाचार्य जड़ी बूटियों से व्याधि हरने वाली औषधियॉं बनाते हैं। आज के ही दिन ग़ौर वर्ण सुन्दर कार्तिकेय ने जन्म लिया था। आज के ही दिन देवी लक्ष्मी का भी जन्म माना जाता है।
शरद पूर्णिमा का एक नाम 'कोजागरी पूर्णिमा' भी है। मान्यता है कि धन की देवी लक्ष्मी रात में यह देखने निकलती हैं कि कौन जाग रहा है, और वे अपने कर्मनिष्ठ भक्तों को धनधान्य से पूर्ण करती हैं।शरद पूर्णिमा को 'कौमुदी व्रत ',रास पूर्णिमा' और 'कुमार पूर्णिमा' के नाम से भी जाना जाता है।
जनश्रुति में एक रोचक कथा आती है कि चन्द्रमा एक बार भगवान् राम के पास शिकायत करने गया कि अयोध्या में जब उनका जन्मोत्सव हुआ, सब लोगों ने उनके दर्शन किये, उत्सव में भाग लिया पर चन्द्रमा को यह मौक़ा नहीं मिला। भगवान् राम मध्य दिवस में दोपहर के समय प्रकट हुए ,गन्धर्वों ने गुणगान किया,पुष्प बरसाये, आकाश में धमाधम नगाड़े बजे; नाग, देवता, मुनि स्तुति करने लगे; ध्वजा, पताका और तोरणों से नगर छा गया; सूत बन्दीजन और गवैये रघुकुल के स्वामी के पवित्र गुणों का गान करने लगे, राजभवन में अति कोमल वाणी से वेदध्वनि होने लगी, यह कौतुक देखकर सूर्य भी अपनी चाल भूल गये,एक महीना वहीं बीत गया। महीने भर का दिन हो गया,पर किसी को यह रहस्य पता नहीं चला। एक महीने बाद सूर्यदेव गए, तो रात कैसे होती। चन्द्रमा यह उत्सव देखने से वंचित रह गये।
चन्द्रमा को और भी शिकायत थी कि जब रावण को जीतकर प्रभु राम अयोध्या लौटे, दीपावली का उत्सव मनाया गया, तब भी चाँद नहीं देख पाया, क्योंकि तब अमावस्या की काली काली रात थी, चाँद वहां नही था।
चाँद ने यह भी याद दिलाया कि सीता जी के विरह में चाँद को देखकर ही श्रीराम सीता जी का स्मरण करते थे। चाँद ने उनकी सहायता की थी।
श्रीराम ने चाँद को सॉंन्त्वना दी और कहा कि कृष्णावतार के समय वे अर्द्ध रात्रि में मथुरा में जन्म लेंगे, तब वे मथुरा से गोकुल जायेंगे और चाँद उन्हें देख सकेगा। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि शरदपूर्णिमा के दिन वे वृन्दावन में यमुना के पुलिन में गोपियों के साथ रास रचायेंगे।
श्रीराम ने चन्द्रमा को प्रसन्न करते हुए यह भी कहा," मेरा राम छोटा सा नाम है, मैं आज से तुम्हारा नाम भी अपने नाम के साथ जोड़ता हूँ अबसे मैं रामचन्द्र कहलाऊँगा। "
श्री राम के ये कोमल मीठे वचन सुनकर चन्द्रमा की ख़ुशी का पार न रहा,वह संतुष्ट होकर चला गया और प्रतीक्षा करने लगा।
कृष्णावतार में चाँद की मनोकामना पूरी हुई। शरद पूर्णिमा की रात को कान्हा ने वृन्दावन में महारास गोपिकाओं के साथ रचाया था। चन्द्रमा ने दूर आसमान से इसे देख भावविभोर हो शीतलता के साथ अमृत बरसाया था। शरद ऋतु थी। बेला चमेली आदि सुगन्धित पुष्प खिलकर महँ महँ महँक रहे थे। चन्द्रदेव ने प्राची दिशा के मुखमंडल पर अपने शीतल करकमलों से लालिमा की केशर रोली मल दी। चन्द्रदेव का मंडल अखंड था। चन्द्रमा की कोमल किरणों से सारा वन अनुराग के रंग में रंग गया था। चांदनी के द्वारा अमृत का समुद्र उँडेल दिया था। खिले हुए कुन्द और मन्दार के पुष्पों की सुरभि लेकर बड़ी ही शीतल सुगन्धित मन्द मन्द वायु चल रही थी।
शरद की वह पूर्णिमा की रात्रि,जिसके रूप में अनेक रात्रियाँ पुंजीभूत हो गईं थी, बहुत ही सुन्दर थी। चारों ओर चन्द्रमा की बड़ी सुन्दर चांदनी छिटक रही थी। ब्रह्म की रात्रि के बराबर वह रात्रि बीत गई। केवल शरद पूर्णिमा को ही चन्द्रमा अपनी सोलह कलाओं से सम्पूर्ण होकर पृथिवी के सबसे निकट आता है।
चन्द्र घटता बढ़ता है। इसकी भी कथा है। चन्द्र ने दक्ष प्रजापति की सत्ताईस कन्याओं से विवाह किया था। ये ही सत्ताईस नक्षत्र कहलाती हैं जिनसे एक चन्द्र मास पूरा होता है। चन्द्रमा को अपनी पत्नी रोहिणी अधिक प्रिय थी। दक्ष ने चन्द्र को समझाया भी कि सबसे एकसा व्यवहार करें। कुछ दिन सब कुछ ठीक रहा पर फिर चन्द्रमा रोहिणी को अधिक मानने लगे। अब दक्ष ने कन्याओं के दु:ख से दुखित होकर चन्द्नमा को क्षय रोग होने का शाप दे दिया।
क्षय रोग के कारण चन्द्रमा का तेज घट गया, कान्ति चमक चली गई। वे धूमिल हो गये। ऋषि मुनियों को चिन्ता हुई क्योंकि चन्द्रमा को ही औषधीश कहा गया है,वे ही जल के देवता हैं, मनसो जात: हैं, मन के कारक हैं,शरद पूर्णिमा की अमृत से नहाई जड़ी बूटियों से जो दवा बनाई जाती है, वह रोगी पर तुरन्त असरकारक है।ऋषि मुनि ब्रह्मा जी के पास गये। ब्रह्मा जी ने चन्द्रमा को शिव जी का तप करने को कहा।
चन्द्रमा का एक नाम सोम भी है उन्होंने प्रभास क्षेत्र में जाकर सोमनाथ में शिव जी का तप किया। छह महीने तक कड़ी तपस्या की। और शिवजी को प्रसन्न कर उनसे क्षय रोग से मुक्ति मॉंगी। शिवजी ने कहा- 'शाप को पूरी तरह ख़त्म नहीं किया जा सकता है,लेकिन मध्य मार्ग निकाला जा सकता है।एक मास में दो पक्ष होते हैं , उनमें एक पक्ष में तुम निखरते जाओगे ,और दूसरे पक्ष में घटते जाओगे।'
इस तरह चन्द्रमा शुक्ल पक्ष में बढ़ता है और कृष्ण पक्ष में घटता है। शिव जी ने द्वितीया के चन्द्रमा को अपने मस्तक पर धारण करके उसे मान दिया।
चन्द्रमा की उत्पत्ति के बारे में भी कथायें हैं। एक कथा के अनुसार क्षीर सागर के मन्थन से ये प्रकट हुए थे।
शरद पूर्णिमा की रात को चन्द्रमा की किरणों से अमृत बरसता है। इसी वजह से इस दिन उत्तर भारत में गाय के कच्चे दूध में चौले(चूड़ा) भिगोकर रात में खुले आसमान के नीचे चाँद की दूधिया रोशनी में रखते हैं और मध्य रात्रि में लक्ष्मी जी का भोग लगाकर उसे प्रसाद में लेते हैं।
चन्द्रमा को लेकर कई धार्मिक सामाजिक मान्यतायें चली आ रहीं हैं। सत्ताईस नक्षत्रों का स्वामी चन्द्रमा युग युगों तक मानव के लिये रहस्य एवं रोमांच का केन्द्र बना रहा। आज भी इसके कई अनसुलझे रहस्य हैं जो आश्चर्य चकित करते हैं। आश्विन इस मास का प्रथम नक्षत्र है इसीलिये इस महीने का नाम आश्विन है। आश्विन पूर्णिमा से ही कार्तिक स्नान शुरू हो जाते हैं।