Arunima Thakur

Abstract Romance Inspirational

4.7  

Arunima Thakur

Abstract Romance Inspirational

सही या गलत

सही या गलत

7 mins
470


रेणुका और आनंद का घर आज बिजली की रंगीन झालरों से दुल्हन की तरह सजा और खुशियों से जगमगा रहा है। ठीक उनकी बेटी मायरा की तरह । हाँ ठीक समझे आप, आज मायरा का विवाह है । अब मैं कौन . . . ? मैं रेणुका की सबसे अच्छी सहेली I हम दोनों का विवाह तो एक ही शहर में नहीं हुआ था पर विवाह के सालों बाद आनंद की नियुक्ति इस शहर में ही हो गई। इत्तफाक से हम दोनों मिले और बस आज भी स्कूल कॉलेज वाली दोस्ती बरकरार है। पर यह क्या..... ? यह रेणुका और आनंद परेशान से घर के अंदर क्यों जा रहे हैं ? अरे.... और यह रेवा भी I मेहमान सब आ चुके हैं । बारात दरवाजे पर खड़ी है। मायरा का चचेरा भाई द्वार पूजा की रस्म कर रहा है । चचेरा भाई क्यों.... ? थोड़ी दुखद कहानी है। मायरा का सगा बड़ा भाई मिहिर दो साल पहले एक अपघात (एक्सीडेंट) में नहीं रहा । मैं भी रेवा के पीछे पीछे अंदर गयी। अंदर कमरे में रेणुका सिर पर हाथ रख कर बैठी थी और उसके पति किसी को फोन लगा रहे थे I रेवा वही रेणुका के साथ ही खड़ी थी । मुझे देखते ही रेणुका बिलखकर रो पड़ी I देख मायरा ने क्या किया... ? पता नहीं कहां गायब हो गई.....? अभी तक तो सहेलियों के साथ कमरे में ही थी I जब बारात आई तो वह सब बारात देखने गई और लौटकर आकर देखा तो मायरा कमरे में नहीं थी । यह भी पता नहीं कि खुद से गई है या किसी ने अगवा कर लिया है। आनंद ने उसको चुप कराते हुए बोला, "परेशान मत हो वह तो अच्छा है कि जयमाला की रस्म नहीं रखी है । जब उन्होंने बोला था की शादी में जयमाला की रस्म नहीं होगी क्योंकि परिवार में बड़े बूढ़ों के सामने हमारे यहां यह रस्म नहीं होती है तो तुम कितना नाराज हुई थी I कि लड़का विदेश में नौकरी करता है और परिवार वाले कितने दकियानूसी I पर अब यही हमारे लिए अच्छा हो गया है। द्वार पूजा समाप्त होने के बाद में खाना खाने के बाद शादी का मुहूर्त लगने तक हमारे पास दो-तीन घंटों का समय रहेगा। हम मायरा को ढूंढ लेंगे I तुम तो जानती ही हो ना डीआईजी साहब मेरे दोस्त हैं। मैं उनको ही फोन कर रहा हूँ।


मेरा भी मन नहीं मान रहा था कि मायरा ऐसे विवाह के मंडप से भाग सकती है। अरे इतनी प्यारी संस्कारी लड़की जो अपनी हर एक बात अपनी मम्मी और मुझसे साझा करती है, नहीं भाग नहीं सकती। उसे विवाह नहीं करना होता तो वह इतनी हिम्मती तो थी कि वह उसी दिन ना बोल देती l मेरे आँखों के आगे वह दिन घूम गया, जब समीर और उसके परिवार वाले मायरा को देखने आने वाले थे। मैंने, रेणुका और रेवा ने मिलकर सारी तैयारियां की थीI अरे माफ कीजिएगा मैं बताना तो भूल ही गई की रेवा कौन... ? रेवा रेणुका की बहू, उसके बेटे मिहिर की विधवा, बहुत ही प्यारी है। रेवा व मायरा सहेलियां थी I रेवा मिहिर को पसंद आ गई तो दोनों परिवारों की आपसी सहमति से विवाह भी हो गया । पर नसीब .... सुख शायद उसकी किस्मत में थे ही नहीं । हाँ तो रेवा ने उस दिन हल्के नीले रंग की साड़ी पहनी थी और छोटी सी बिंदी लगाई थी । उसने मायरा को भी शालीनता से तैयार किया था। मायरा भी नारंगी जोगिया रंग की साड़ी में बहुत ही सुंदर लग रही थी I तय समय पर समीर अपने माता-पिता के साथ आ गया। समीर की बड़ी बहन भी थी पर वह नहीं आ पाई थी I औपचारिक अभिवादन और परिचय के बाद जैसे ही समीर की नजर मिहिर की माला चढ़ी हुई फोटो पर पड़ी वह बोल पड़ा, "यह तो मिहिर हैं ना .. ? क्या हुआ मिहिर को... "? फिर उसने रेणुका व आनंद को याद दिलाया कि जब वे मेरठ में रहते थे तब वह और मिहिर एक ही स्कूल में एक ही क्लास में पढ़ते थे। और बहुत अच्छे दोस्त थे I बाद में शायद बारहवीं के बाद उसके पापा का स्थानांतरण दिल्ली हो गया था। कुछ दिन तो वह संपर्क में रहे फिर... I रेणूका को याद आया हॉं ना वह लड़का जो साइकिल से हमारे घर आता था और तुम और मिहिर सारा दिन साइकल लेकर घूमते रहते थे । आनंद ने बताया कि बारहवीं के बाद मिहिर का इंजीनियरिंग में सिलेक्शन हो गया था और उसके लगभग छह महीने बाद ही उनका भी यहां स्थानांतरण हो गया I हँसी-खुशी का माहौल थोड़ी देर के लिए गमगीन हो गया। मैंने ही माहौल को हल्का करते हुए कहा, "मिहिर कहीं नहीं गया है। वह आज भी हमारे बीच है रेवा के रूप मेंI" बाद में मायरा व समीर ने थोड़ी देर आपस में बातें की और विवाह के लिए अपनी सहमति दे दी । मायरा के मन में कोई और होता तो वह उसी दिन मना कर देती।


समय निकलता जा रहा था मायरा का अभी तक कुछ पता नहीं चला था I आखिर तय हुआ अब और छुपाना ठीक नहीं है I समीर व उसके माता-पिता को अब सूचित कर देना चाहिए । थोड़ी ही देर बाद समीर व उसके माता-पिता भी चिंता ग्रस्त होकर बैठे थे कि अब क्या होगा... ? बारात दुल्हन के बगैर वापस जाएगी तो कितनी बदनामी हो जाएगी। समाज तो वर और वर पक्ष में ही खोट निकालेगा। तभी समीर बोला, "सभी बड़े आज्ञा दे तो एक बात कहना चाहता हूँ। इतना ढूंढने पर भी मायरा नहीं मिल रही है और वह अपनी मर्जी से गई है तो अगर आप सब आज्ञा दें और रेवा भी तैयार हो तो मैं रेवा के साथ विवाह करना चाहता हूँ। इससे दोनों परिवारों के मान सम्मान पर आँच भी नहीं आएगी।" 


समीर के माता-पिता एक विधवा को बहू बनाने के पक्ष में तो बिल्कुल नहीं थे। पर दूसरा कोई विकल्प नहीं था। मायरा की कोई छोटी चचेरी बहनें भी नहीं थी। वही रेणुका व आनंद ने रेवा के पास जाकर उसके सिर पर हाथ रखते हुए प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा। चाहते तो वह भी थे कि रेवा दूसरी शादी कर ले I पर रेवा तैयार ही नहीं होती थी। पर आज तो इज्जत का सवाल था। सब कुछ रेवा पर निर्भर था। उसने हिम्मत करके बोला, "मैं सिर्फ एक शर्त पर विवाह कर सकती हूँ कि आप मिहिर के माता पिता के प्रति मेरी जिम्मेदारी को समझेंगे। भगवान ना करे पर कभी जरूरत पड़ने पर आप कभी हस्तक्षेप नहीं करेंगेI" समीर के माता-पिता को तो बहुत गुस्सा आया पर क्या कर सकते थे। रेवा के माता-पिता को बुलाया गया। तीनों परिवारों की आपसी सहमति से उन दोनों का विवाह हो गया। हँसी खुशी दुल्हन के साथ बारात विदा भी हो गई।


हम सब अंदर जाकर बैठे ही थे कि मायरा आ गयी। उसे देखते ही रेणुका व आनंद ने उसे डांटना शुरू कर दिया । कहां चली गई थी ? नाक कटवा दी हमारी । वह तो भला हो रेवा का. . I मायरा चुपचाप सुनती रही I मुझे उसकी खामोशी कुछ अनकही सी लग रही थी। मैंने रेणुका और आनंद को चुप कराते हुए बोला, "एक बार उसकी भी तो सुन लो। अगर भागना ही उसका मकसद होता तो वह अभी लौट कर वापस नहीं आई होती।" मैंने मायरा को बांहों में भिंच कर उसके बालों को, माथे को चूमते हुए बोला, "हाँ बेटा बता तो ऐसी कौन सी बात है जो तुम हम लोगों के साथ भी साझा नहीं कर पाईI "


अब उसने जो बताया वह यह कि विवाह की बात पक्की होने के बाद एक दिन समीर ने उसे फोन करके मिलने बुलाया। मायरा अपने जीवन की पहली डेट पर बहुत ही उल्लसित होकर पहुँची। समीर ने उससे कहा, "अगर तुम्हें बुरा ना लगे तो मैं तुम्हारी भाभी से विवाह करना चाहता हूँ। मैंने जब उस दिन मिहिर की फोटो देखी तो मुझे लगा मानो वह मुझसे कह रहा हो "दोस्त मेरी अधूरी जिम्मेदारी पूरी करेगा ना। उन सब खुशियों को जिन का वादा मैंने रेवा से किया था वह उसके आंचल में डालेगा ना दोस्त I" समीर ने आगे बोलते हुए कहा, "मेरे परिवार वाले बहुत ही रूढ़िवादी हैं। वह कभी तैयार नहीं होंगे।"


 मायरा ने कहा, "रेवा भी भैया को बहुत चाहती है I वह भी कभी तैयार नहीं होगी।" मायरा को थोड़ा बुरा तो लगा पर वह रेवा के लिए खुश थी। तो उसने व समीर ने मिलकर यह योजना बनायी थी। रेणुका ने आगे बढ़कर अपनी बेटी को चूम लिया कि उनकी बेटी इतनी हिम्मती है कि दूसरों की खुशी के लिए उसने सारा इल्जाम अपने सिर ले लिया।


 रेणुका और आनंद की आँखों में अपनी बेटी के लिए असीमित गर्व के भाव थे। मैं सोच रही थी शायद कुछ लोगों को यह लगे कि बिना रेवा की पसंद नापसंद जाने बिना उसे किसी के साथ विवाह के लिए बाध्य करना शायद गलत है l पर मायरा को उस समय वही सही लगा कि जो लड़का उसके लिए अच्छा है वह रेवा के लिए भी अच्छा ही होगा । कम से कम वह रेवा से प्यार तो करता ही है। पता नहीं मायरा गलत थी या.... I


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