Ajay Singla

Inspirational

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Ajay Singla

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सही निर्णय

सही निर्णय

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प्राचीन काल में दक्षिण में सिंधु प्रदेश नाम का एक बहुत खुशहाल राज्य था। उसका राजा अमरप्रताप बहुत ही प्रजा परायण था। वो हर सुख -दुःख में अपनी प्रजा की भरपूर मदद करता था। प्रजा भी उसे बहुत मानती थी। वो धर्मपूर्वक प्रजा पालन करता था। उसी राज्य में एक बहुत निर्धन ब्राह्मण रहता था।उसका नाम शंकर था। उसके चार बच्चे थे। वो ब्राह्मण पूजा पाठ से ही अपनी गुजर बसर चला रहा था। पूजा पाठ करके जो रुखा सूखा मिल जाता उसी से अपने और अपने बच्चों का पेट पालता था। हालाँकि वो कर्म काण्ड में निपुण था पर कभी भी उसको अपनी आमदनी का जरिया नहीं बनाना चाहता था। बस भगवान के भजन में ही अपना ज्यादातर वक़्त गुजारता था।

एक बार उस राज्य में आकाल पड़ा। प्रजा भूख से मरने लगी। राजा ने जब देखा तो अपने अन्न के भंडार प्रजा के लिए खोल दिए। आकाल से पहले तो शंकर को पूजा पाठ से कुछ खाने को मिल जाता था पर आकाल के बाद खाने के भी लाले पड गए। कुछ अन्न तो राजा के भण्डार से मिल जाता था पर उससे उसका और उसके परिवार का पूरा नहीं पड़ता था। एक रात जब उसके बच्चे भूख से बिलख रहे थे तो वो बाहर अन्न की तलाश में निकल पड़ा। पास में ही राजा द्वारा अन्न बांटने के लिए एक गोदाम बनाया हुआ था। उसने जाकर उसके संतरी से गुहार लगाई कि उसे बच्चों के लिए थोड़ा अन्न दे दे पर संतरी ने ऐसे उसे अन्न देने के लिए मना कर दिया और अगले दिन सुबह आने को कहा। वो निराश होकर वापिस जा ही रहा था की उसकी नजर गोदाम में पड़ी अन्न की एक बोरी पर पड़ी। उस वक्त गोदाम का द्वारपाल ही कहीं नहीं दिख रहा था। ना चाहते हुए भी बच्चों के बिलखते चेहरों को सोचकर उसके मन में चोर आ गया। वो चुपके से अंदर गया और अन्न की बोरी को उठाकर घर की और भाग लिया। पर गोदाम के दरवाजे पर पहुँचते ही दरबान ने उसे देख लिया और सिपाहीयों ने उसे पकड़ लिया।

अगले दिन उसे राजा के सामने पेश किया गया। उन दिनों अकाल के कारण राजा के गोदाम से अन्न चुराने वालों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान रखा था। राजा ने शंकर को अपनी सफाई में कुछ कहने को कहा पर उसने सिर झुकाए अपने अपराध को स्वीकार कर लिया और कुछ नहीं बोला। राजा अमरप्रताप ने तब अपने मंत्रियों से इस बारे में राय मांगी पर मंत्रियों की राय बंटी हुई थी। कुछ मंत्री कह रहे थे के इसे मृत्यु दण्ड मिलना चाहिए ताकि इस आपदा के समय और कोई ऐसी जुर्रत न कर सके और कुछ मंत्री कह रहे थे कि मृत्यु दण्ड देने से ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा और इस ब्राह्मण को चेतावनी देकर छोड़ देना चाहिए। राजा अमरप्रताप को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या निर्णय ले। उसे सोचने के लिए शायद कुछ समय चाहिए था। उसने सभा में घोषणा की कि वो इसका निर्णय अगली सुबह करेंगे। इसी बात को रात भर सोचते सोचते वो सो गए।

सोते की उनका सपना शुरू हो गया। उन्होंने देखा कि वो राज सभा में बैठे हैं और उन्होंने ब्राह्मण शंकर को मृत्युदंड दे दिया। बहुत से लोग इस के पक्ष में थे और कई इसके विरुद्ध थे। अगले दिन शंकर को फँसी दे दी गयी। ब्रह्महत्या का पाप तो उन्हें लग ही गया था। इससे उस राज्य में आकाल ने और भयंकर रूप धारण कर लिया। धीरे धीरे प्रजा भी राजा के खिलाफ हो गयी। अच्छा मौका देख पडोसी राजा ने उस के राज्य पर आकर्मण कर दिया और राजा मारा गया। जब वो यमराज के पास पहुंचा तो ब्रह्महत्या के कारण उसे नर्क भोगना पड़ा। राजा को सोते सोते भी पसीना आ रहा था। उसका स्वपन भी ख़त्म हो गया था पर वो नींद से अभी जागा नहीं था।

कुछ देर और सो लेने के बाद राजा को दूसरा स्वपन आया। उसने देखा वो राज सभा में बैठा है और तभी उसने ब्राह्मण को चेतावनी देकर छोड़ दिया है। इस तरह छूटने पर राज्य भर में कई दुष्ट ब्राह्मणों ने चोरियां करनी शुरू कर दीं और फिर वो सब इकठ्ठे होकर एक बहुत बड़ा चोरों का समाज बन गया। प्रजा भी राजा से बहुत नाराज थी क्योंकि उन्हें लग रहा था कि ये सब राजा के ब्राह्मण को चोरी का दंड न देने के कारण हुआ है। समय बीतने के साथ लोगों का राजा के प्रति विश्वास घटता गया और राज्य में बगावत शुरू हो गयी और सारा राज्य कुछ ही काल में बहुत बुरी स्थिति में आ गया। इसके बाद स्वपन ख़तम हो गया। राजा अभी भी पसीने पसीने हो रहा था पर वो अभी भी जग नहीं पाया था।

कुछ समय बीतने पर राजा का तीसरा स्वपन शुरू हो गया। इस बार राजा ने निर्णय करते हुए ब्राह्मण को कहा कि तुम्हे अगले एक साल राजमहल के कर्मकांड करने होंगे और सजा के तौर पर तुम्हे सिर्फ एक वक्त का खाना दिया जायेगा। शंकर ने भी राजा की दी हुई इस सजा को स्वीकार किया और राजमहल के सभी कर्मकांड बड़ी ही श्रद्धा से करने लगा। इस काम में तो वो निपुण तो था ही सो राजा को भी उसका काम पसंद आया और एक साल की सजा के बाद उसे राजमहल का पुरोहित बना लिया। सपना तभी ख़तम हो गया।

सुबह जब राजा उठा तो उसके चेहरे पर एक प्रसन्नता का भाव था और मन में बहुत सकून और शांति थी। वो सभा में जाने के लिए तैयार हो रहा था और उसे पता था कि वो सही निर्णय कौन सा है जो उसे सभा में जा कर सुनाना है।


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