Savita Negi

Drama Inspirational

4.5  

Savita Negi

Drama Inspirational

सही निर्णय

सही निर्णय

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शंभु जी और उनकी पत्नी साधना एक ही कमरे में अपने अपने कोने पकड़ कर चुप्पी साधे बैठे थे। परंतु बार-बार साधना को प्रश्नचित नज़रों से घूर रहे थे। मानो जो कुछ हुआ उसमे सिर्फ़ साधना की गलती थी।

उनकी एकलौती बेटी किरण का हर बार रिश्ते से इनकार कर देने की असल वजह आज पता चली थी। और उसने अपना फैसला सुना दिया था कि वो शादी करेगी तो सिर्फ़ राजीव से।

शंभु जी शुरू से ही सख़्त मिज़ाज और प्रेम विवाह के ख़िलाफ़ थे। किरण का फैसला सुनकर तो गुस्से में तमतमा उठे और सारा गुस्सा साधना पर निकाल दिया।

" तुम्हारे लाड़ प्यार ने ही बिगाड़ा है उसे ।वो जो तुम हर बार उसकी गलतियों में पर्दा डालती थी न , एक ही बेटी है..एक ही बेटी है करके , ये उसी का नतीजा है। '

साधना को भरोसा था क्या पता किरण उसकी बात समझ जाए परंतु नहीं उसने कह दिया कि उसकी जिंदगी वो डिसाइड करेगी किसके साथ जीना है।

 'हर बात शेयर करती थी तू मुझसे, और इतनी बड़ी बात मुझे भी बतानी जरूरी नहीं समझी। कम से कम मुझे मिलवा तो देती कौन है कैसा है? अपने अनुभव से तुझे सही सलाह तो दे सकती थी।" माँ की बात सुनने के बाद भी किरण अपनी ज़िद पर अड़ी रही।

साधना ने शंभु जी को समझाया की "हम लोग किरण के साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते। वो बड़ी है कहीं हमारी ज़िद के चलते उसने कुछ कर दिया तो.....नहीं नही एक ही संतान है हमारी , मान जाओ जी।"

"बस ऐसे ही डरा कर तुम मुझे हर बार कमज़ोर कर देती हो और हम उसकी ज़िद के आगे झुक जाते हैं।"

इसी नाराज़गी के बीच किरण और राजीव की सगाई हो गयी। और दो महीने बाद ही शादी की तारीख़ भी तय कर दी गई। परंतु शंभु जी अभी भी अंदर से खुश नहीं थे।

इसी बीच राजीव के माता -पिता किरण के घर आये। बातों ही बातों में उन्होंने कुछ ऐसा कह दिया कि खुशियों के बीच सन्नाटा पसर गया।

उन्होंने शंभु जी से कहा कि उन्हें पंद्रह लाख दे दें और शादी का इंतजाम वो अपने हिसाब से करेंगे। उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं।

साधना और शंभु जी की चिंता करना लाजमी था। रात भर दोनों सोए नहीं कमरे में टहलते रहे। पैसों की कमी नहीं थी लेकिन ऐसे पैसे माँगना कुछ और ही संकेत दे रहा था ।उनको यूँ परेशान देख किरण को भी बुरा लग रहा था ।

अगले दिन किरण और राजीव की बहुत बहस हुई इस बात को लेकर। "क्या यार सिर्फ पंद्रह लाख ही तो मांगे हैं। ये भी देखो न कि तुमको कोई भी इंतजाम करने की जरूरत नहीं, मसलन कोई होटल नहीं खाना नहीं । वो सब पापा कराएंगे अपने हिसाब से । तुम्हारे पेरेंट्स की चिंता कम ही कर रहे हैं।तुम करते तो भी इतना ही खर्चा आता न। "

किरण को उस समय राजीव की बातें सही लगी। प्रेम पर विस्वास गलत को भी सही दिखाता है।

रात को साधना किरण के कमरे में गयीऔर उसे प्यार से समझाया,

"देख बेटा जरूरी नहीं हर बार प्यार सही हो, कभी- कभी अपने माँ बाप भी सही होते हैं उनकी भी सुननी चाहिए। जो आज अपने मुँह से इतना मांग रहे हैं कल न जाने क्या क्या डिमांड रखे। एक बार दुबारा सोच ले।"

परंतु राजीव के बार- बार मेसेज और फोन कॉल में उसको प्यार से मनाना , इन सब में आकर किरण एक बार फिर उनको सही ठहरा देती है।

फिर कुछ दिनों बाद राजीव के पिता ने शंभु जी को फ़ोन किया कि इंतजाम में थोड़ा ज्यादा खर्च हो रहा है तो पंद्रह में दो लाख और जोड़कर दे दें।

फिर से माहौल तनावपूर्ण हो गया। चाहते तो शंभु जी बहुत कुछ बोल सकते थे परंतु बेटी की ज़िद के सामने चुप रह जाते थे।

साधना चिंतित सी किरण के कमरे में बैठी थी और किरण रसोई में पानी लेने गयी थी की तभी किरण के फ़ोन में राजीव का मैसेज आया

"क्या यार तुम क्यों इतना गुस्सा होती हो। बड़ों को आपस मे बात करने दो। हम तुम क्यों बीच मे बोले? हमारी शादी हो रही है ये क्या कम बड़ी बात है। वैसे भी तुम उनकी एकलौती बेटी हो उनका सब कुछ तो तुम्हारा ही है फिर अपनी बेटी की खुशी के लिए नहीं दे सकते क्या? कौनसी बड़ी बात है ?"

जैसे ही किरण कमरे में आई साधना ने मेसेज किरण को दिखाते हुए कहा।

"ये है तेरा प्यार !! जिसके लिए तू अपने माँ पापा से भी लड़ रही है। जो इंसान सिर्फ़ अपना स्वार्थ देख रहा हो वो तुझे क्या सम्मान देगा। जो अपने दहेज़ लोभी पिता को सही ठहरा रहा हो कल को तुझे जिंदा भी जला सकता है। इसे प्यार कहते है !! थू है ऐसे प्यार पर । सच्चा प्यार होता तो आज अपने पिता की गलत बातो का समर्थन न करता ।और तुझे इस तरह विवश न करता। क्या उसने एक बार भी अपने माँ बाप का विरोध किया? शायद नहीं क्योंकि इसमें वो भी शामिल है। आजतक मैं तेरे हर फ़ैसले में तेरे साथ खड़ी रही लेकिन तेरा ये फैसला गलत है इसमें मैं तेरा साथ नहीं दूँगी । अभी भी वक़्त है आँखों में पड़ी धूल साफ कर ले।"

.साधना आँखों में लुढक आये आँसुओ को पल्लू से पौंछते हुए अपने कमरे में चली गयी।किरण ने पहली बार माँ की आँखों में उसकी वजह से आँसू देखे थे। 

अगले दिन किरण राजीव के पूरे परिवार को चाय पर बुलाती है।

शाम को राजीव अपने परिवार के साथ आ गया। सभी बैठक में बैठे थे। तभी किरण ने हाथ से सगाई की अंगूठी निकाली और राजीव को थमा दी।

" तुम्हे मुझसे नहीं मेरे पापा के पैसों से प्यार है। वो मेरी जिद के आगे झुक भी जाएंगे लेकिन मैं इतनी भी खुदगर्ज़ नहीं कि उनको तुम्हारे जैसे दहेज लोभी लोंगो के सामने झुकने दूँ। ये रिश्ता मैं इसी वक्त खत्म करती हूँ। जा सकते हो आप लोग।"

किरण ने राजीव से उसी वक़्त सारे रिश्ते खत्म कर दिए। और उसे उसके परिवार समेत बाहर का रास्ता दिखा दिया ।

माँ पापा से किरण ने अपनी गलती के लिए माफ़ी भी माँगी। शंभु जी और साधना की आँखों में आँसू थे , रिश्ता टूटने के नहीं बल्कि इसलिए कि उनकी लाडो गलत हाथों में जाने से बच गयी।

परिवार का साथ और सतर्कता से सही समय पर सही निर्णय भविष्य में होने वाली परेशानियों से बचा सकता है।


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