Priyanka Gupta

Others

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सफ़ेद रंग

सफ़ेद रंग

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" क्या दिवू ,होली के दिन भी किताबों में सिर घुसाए बेटी है। जा बाहर जा ,देख क्या रौनक लगी हुई है। ",देवांगना की मम्मी ने पढ़ाकू बेटी से कहा। 


"मम्मी ,मुझे काले - पीले चेहरे अच्छे नहीं लगते। लोग रंगों के पीछे अपना असली चेहरा छिपा लेते हैं। फिर 'बुरा न मानो होली 'के नाम पर इधर -उधर छूने की कोशिश करते हैं। वैसे मैं अभी शर्मा आंटी के घर जाऊँगी और उनके बगीचे में हरसिंगार के पेड़ के नीचे बैठकर अपनी क़िताब पढूँगी। ",देवांगना ने बोला। 


"जैसी तेरी मर्ज़ी। रंगों इसको इतनी चिढ़ क्यों हैं ?बिना रंगों के ज़िन्दगी बेरंग हो जाती है। ",मम्मी ने कहा। 


"मम्मा ,मुझे तो सफ़ेद रंग ही पसंद है। हर रंग के साथ घुल -मिल जाता है। ",देवांगना ने अपनी मम्मी के गले में बाँहें डालते हुए कहा। 


"अच्छा -अच्छा। आंटी के लिए कांजी बड़े ले जाना ;रिशु को बहुत पसंद है। ",मम्मी ने कहा। 


"दिवू ,क्या सोचने लगी बेटा ?",हरसिंगार के पेड़ के नीचे सुबह से ही आकर बैठी दिवू से शर्मा आंटी ने पूछा। 


पिछली बातें याद कर रही दिवू वर्तमान में लौट आयी थी। पिछली होली तक सब कुछ ठीक था ,लेकिन आज सब कुछ बदल गया था। सफ़ेद रंग पसंद करने वाली दिवू पर भगवान् ने हमेशा के लिए ही सफ़ेद रंग थोंप दिया था। पिछले साल दिवू की शादी हुई थी और उसके हाथों की मेहँदी भी नहीं छूटी थी कि उसके पति स्वदेश की एक कार दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। 


"ले बेटा ,तेरी पसंद की गुंजियाँ लायी हूँ। तुझे याद है न हर होली पर यहीं इसी पेड़ के नीचे बैठकर खाती थी तू। ",शर्मा आंटी ने भरसक अपने आँसू छुपाने की कोशिश करते हुए कहा। 


"हाँ आंटी। ",देवांगना ने धीमे से कहा। 


उतने में ही आंटी का बेटा ऋषभ भी होली खेलकर आ गया था। आज भी हमेशा की तरह ऋषभ होली खेलने के बाद काला -पीला चेहरा लेकर आया था और हमेशा की तरह उसके हाथ में लाल गुलाल का एक पैकेट भी था। 


"ले ये बन्दर भी आ गया। ",आंटी ने माहौल को भरसक हल्का बनाने की कोशिश करते हुए कहा। 


लेकिन दिवू ने हर बार की तरह इस बार नहीं कहा कि ,"हाँ आंटी ,बिल्कुल बन्दर लग रहा है। अब अपनी शक्ल सुधारने के लिए आपसे कभी बेसन माँगेगा ,कभी आटा ,कभी शहद। फिर भी इसकी शक्ल तो २-४ दिन बाद ही सुधरेगी। "ऐसा कहकर दिवू और आंटी दोनों ही ज़ोर -ज़ोर से हँसने लग जाते थे। 


"अभी तो नहाने से पहले रिशु कांजी बड़े माँगेगा और बिलकुल बन्दर के जैसे ही खायेगा। ",आंटी दिवू के साथ हँसते हुए कहती। 


तब तक रिशु आंटी को आवाज़ लगाने लग जाता था। आज रिशु बिना कुछ कहे चुपचाप अंदर चला गया था और आंटी भी उसके पीछे -पीछे। 


आंटी कह रही थी कि ,"हर होली पर पता नहीं यह गुलाल का पैकेट क्यों घर पर लेकर आ जाता है ?इसे भी अपने दोस्तों को ही लगा आता। "


रिशु बिना कुछ बोले ,बाथरूम में घुस गया था। रंग छुड़ाकर रिशु ने सफ़ेद रंग का कुर्ता पायजामा पहना और गुलाल का पैकेट उठाकर हरसिंगार के पेड़ की तरफ चला गया। दिवू अपना सामान समेटकर ,जाने के लिए खड़ी हो गयी थी। 


"यह सफ़ेद रंग तुम्हारे लिए नहीं है। ",ऐसा कहकर ऋषभ ने लाल रंग देवांगना के माथे पर लगा दिया था। 


"लेकिन रिशु ,मैं एक विधवा हूँ। अब तुम्हारे लायक नहीं। ",देवांगना के मन का गुबार आँखों से बह निकला था और उधर उन दोनों को दूर से देख रही आंटी की आँखें भी भीग गयी थी। लेकिन इस बार आँसू ख़ुशी के थे। 


"मना मत करो दिवू ,इतने सालों के बाद तुम्हें रंग लगाने की हिम्मत जुटा पाया हूँ। हर बार गुलाल लाता था और मम्मी की डाँट खाता था ;लेकिन तुम्हें कभी लगा ही नहीं पाया। ",ऋषभ ने देवांगना की आँखों में झाँकते हुए कहा। 


तब तक आंटी उन दोनों के पास आ गयी थी ,"हाँ बेटा ,इस बन्दर की बात मान ले। "


"जी आंटी। ",देवांगना ने अपनी पलकें झुका ली थी। 



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