सच्ची श्रद्धांजलि
सच्ची श्रद्धांजलि
"ओहो!" रमन कितनी देर लगाओगे। तैयार होने में हम अम्मा बाबूजी को लेने जा रहे हैं। तुम्हारे रिश्ते की बात करने नहीं। तुमने तो औरतों से भी ज्यादा समय लगा दिया। तैयार होने में जल्दी करो। रमा ने अपने पति से कहा अरे!अम्मा बाबूजी के पास जा रहा हूं तो तैयार होना पड़ेगा। वरना अम्मा क्या सोचेंगी?
अच्छा !अब चलो।
बच्चे कहां है? रमन ने कहा
वो तो कब से दादा दादी से मिलने की खुशी में पहले ही कार में जा बैठे है?
पापा.... मम्मी जल्दी करो। बच्चों ने शोर मचाते हुए कहा।
रमन ! रूको एक बार फिर से सोच लो क्या वो लोग हमारे साथ रहने के लिए राजी होंगे? क्या जो हम कर रहे है वो ठीक है। क्योंकि उन लोगों का पहले भी एक बार भरोसा टूट चुका है। तो क्या वापिस हम जोड़ पाएंगे। -रमा ने कहा
रमा उस दिन तुम्हारी बात ना मान के मैंने जीवन की बहुत बड़ी भूल की थी। तभी मैंने निश्चय कर लिया था कि अब मैं कोई भी फैसला लेने से पहले दोनों के नजरिए से देख कर तब लूंगा। और आज भी मैंने वही किया है। मुझे पूरा यकीन है कि वो लोग मना नहीं करेंगे। -रमन ने कहा
हम्म! ठीक हैं फिर चलो। -रमा ने कहा
कार वृद्धाश्रम के बाहर रुकी तो बच्चे दौड़ के दादा दादी के गले लग गए। और कहा "हम लोग आज आपको हमेशा हमेशा के लिए अपने साथ ले जाएंगे। और हम सब एक दूसरे के साथ रहेंगे।"
रमन और रमा ने आके अम्मा बाबुजी के पैर छुए।
बेटा तुम हमें वापिस क्यों ले जाना चाहते हो। बहुत मुश्किल से हमने खुद को यहाँ रहने के लिए समझाया था। अब ये बूढ़ी आंखें और मन और दर्द नहीं बर्दाश्त कर सकते।
नहीं बाबूजी अब आपके साथ ऐसा कुछ नहीं होगा। जो आपको दर्द दे। मैंने सारी बात कर ली है हिमांशु जी से वो तैयार हो गए है। उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन बेटा....
तभी रमन ने बीच में बात काटते हुए कहा "प्लीज् बाबूजी मना मत कीजियेगा। आप मेरे साथ चलेंगे तभी मेरे पापों का प्रयाश्चित होगा।......बाबूजी उस दिन जब मैंने पिताजी से गुस्से में कहा "कि मैं इतना कमाता हूं, और आप हमेशा अपना जन्मदिन उस वृद्धाश्रम में मनाते थे, मैंने कुछ नहीं कहा। लेकिन अब आप उनमें से एक वृद्ध कपल को लेने की बात कर रहे है। आपका दिमाग तो ठिकाने है। लोग बच्चे गोद लेते है वो भी जिनके पास कोई बच्चा नहीं। और आप उल्टी गंगा बहा ने जा रहे है। उन लोगों को गोद लेकर, अगर उनके कर्म इतने ही अच्छे होते तो क्या उनलोगों को उनके बच्चे ही वृद्धाश्रम में छोड़ कर जाते? जरूर उनमें कुछ कमी होगी।"
तब पिताजी ने कहा "बेटा! इंसान स्वभाव से बड़ा स्वार्थी होता है। हर काम मे नफा नुकसान देखता है। जहाँ फायदा होता है वहीं पर खर्च करता है अब वो चाहे पैसा हो या समय। सब तो नहीं लेकिन अधिकतर लोग यही करते है।"
मरने के बाद तो सब श्रंद्धाजलि देते है लेकिन अगर जीते जी उस व्यक्ति को आपने कोई सुख नहीं दिया तो क्या फायदा मरने के बाद तर्पण करने से" बेटा मेरा मानना है कि लोग जिस तरह बच्चे गोद लेते है उसी प्रकार माता पिता को भी गोद लेने लगे तो शायद कोई वृद्धाश्रम ना रहे।"
बेटा अगर सच में कभी तुम्हारा मन मेरे लिए कुछ करने का हो तो तुम वृद्धाश्रम के वृद्धों की सेवा करना। अभी तो मैं जा रहा हूं। मैं अपना फैसला नहीं बदलूंगा।
लेकिन आप की इतनी उम्र रही है। कि आप ये कर पाएंगे।-रमन ने कहा
बेटा जिनको मैं लेने जा रहा हूं उनकी उम्र 80 और मेरी 54 है । तो मैं अभी उनकी सेवा तो कर ही सकता हूं। तुम कल विदेश चले जाओगे। तो हमारा उनके साथ मन लगा रहेगा। लोगों को जो कहना हो कहते रहे। नयी सही लेकिन मैं इस प्रथा की शुरुआत करूँगा।"
रास्ते में ही बाबूजी के कार का एक्सीडेंट हुआ। और माँ बाबूजी इस दुनिया से चले गए। उनके ना रहने पर मैंने रमा के कहने पर उनकी बात माननी शुरू की। फिर आपके बारे में पता चला। तिनका तिनका जोड़ के आपने हिमांशु सर को पढ़ाया। और उनको अफसर बनाया। लेकिन कोई उनको गार्ड का बेटा ना कहे इसलिए उन्होंने आपको वृद्धाश्रम में छोड़ दिया।
आज मैं आप लोगों को अपने साथ ले जाकर अपने पिताजी का सपना पूरा करूँगा। ये मेरी उनको दी हुई सच्ची श्रद्धांजलि होगी। और अपने बच्चों के जीवन में दादा दादी की कमी को पूरा करूँगा।
मैं गलत था मेरी सोच गलत थी हर बार गलती खुद की नहीं होती। ना हीं जरूरी है कि हमारे कर्म ही बुरे हो। कई बार हमें दूसरों की गलती की सजा भुगतनी पड़ती हैं।
तभी बच्चों ने कहा "जल्दी चलिये" ना दादा जी दादी जी"
रमन और रमा दोनों प्यार से अम्मा बाबूजी को घर ले के आये। और अपने जीवन के अधूरे पड़े कोने को पूरा किया।