Kameshwari Karri

Inspirational

4.0  

Kameshwari Karri

Inspirational

सबसे बड़ी दौलत

सबसे बड़ी दौलत

14 mins
209


   भाग—१

रामप्रसाद जी एक गाँव के छोटे से स्कूल के टीचर थे। बहुत ही ईमानदार नेक दिल इंसान थे। उनकी तीन लड़कियाँ थीं। बड़ी लड़की बहुत ही सुंदर थी, उसे एकबार कोई देख लें तो कभी भूल नहीं सकता ....ग़ज़ब की ख़ूबसूरत थी जैसे भगवान ने बड़े ही प्यार से उसे बनाया है ,उसका नाम रखा गया लक्ष्मी। साक्षात लक्ष्मी का अवतार ही लगती थी। अब दूसरी बेटी उतनी सुंदर तो न थी पर पढ़ाई में अव्वल आती थी ..... रामप्रसाद जी के बड़े अरमान थे उसे डॉक्टर बनाने का और उन्होंने उसका नाम सरस्वती रख दिया। और सबसे अंत में पैदा हुई लड़की जिसे इस दुनिया में न चाहते हुए भी उन्हें लाना पड़ा न तो सुंदर थी न पढ़ने में होशियार थी पर एक बात तो है उसमें वह गुणों की खान थी .......घर का सारा काम मिनटों में निपटा देती थी। उसका नाम रखा गया गौरी। बड़ी को सजने संवरने से फ़ुरसत नहीं मिलती थी , और मझली को पढ़ने से फ़ुरसत ... अब घर का सारा काम माँ की मदद से सब छोटी बेटी गौरी ही करती थी। रामप्रसाद सभी लड़कियों से प्यार करते थे पर उन्हें सबसे ज़्यादा गौरी से प्यार था क्योंकि वह भोली थी , नादान थी। घर के कामकाजों में सर्वगुण संपन्न थी । 

     एक दिन रामप्रसाद स्कूल से आकर चाय पी रहे थे तभी गेट के पास खड़े होकर दो मर्द किसी से पूछ रहे थे यह रामप्रसाद जी का ही घर है न ......अपना नाम सुनते ही झट से रामप्रसाद जी गेट के पास पहुँच गए और कहा मैं ही रामप्रसाद हूँ कहिए आपको क्या काम है मुझसे उनमें से एक महिला ने कहा भाई साहब घर के अंदर चलकर बात करें ..तब मैंने देखा दो पुरुष थे और दो महिलाएँ भी थीं उनके साथ... रामप्रसाद जी ने कहा आइए अंदर चलिए और जानकी देखो कोई आए हैं पीने के लिए पानी लेकर आओ.... जानकी पानी लाती है पानी पीने के बाद रामप्रसाद कहते हैं कहिए आप कौन हैं मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ.... उनमें से एक बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा देखिए भाई साहब मैं बात को घुमा फिराकर नहीं कहता हूँ सीधे मामले पर आ जाता हूँ ..... क्या बात हो गई जानकी भी दरवाज़े के पास खड़ी होकर सुनने लगी तभी उन्होंने ने कहा हम पास के ही गाँव के ज़मींदार हैं और हमारे बेटे के लिए आपकी लक्ष्मी भा गई है अगर आपको कोई एतराज़ न हो तो हम उसे अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं....... दहेज नहीं चाहिए 

सिर्फ़ बेटी को भेज दीजिए कपड़े भी हम ही ख़रीद लेंगे। रामप्रसाद और जानकी के तो काटो तो खून नहीं उनके मुँह से आवाज़ भी नहीं निकली। उन्होंने ने कहा आप भी एक बार हमारे बारे में पूछताछ कर लीजिए हमारा इकलौता बेटा है अगर आपकी हाँ है तो ख़बर करें हम शादी का मुहूर्त निकाल लेंगे। ..... उनके जाने के बाद जानकी ने कहा ....रिश्ता बहुत अच्छा है वे लोग खुद चलकर आए हैं देर न करते हुए हाँ बोल दीजिए। रामप्रसाद ने अपने साथ के लोगों से पूछा सबने उस परिवार को बहुत अच्छा है बताया फिर क्या बस चट मंगनी पट ब्याह कहते हुए लक्ष्मी की शादी हो गई और वह अपने ससुराल चली गई , ससुराल में सभी सदस्य खुश थे कि नई बहू के कदम घर में पड़ते ही बरसों से चल रहा केस जीत गए बस लक्ष्मी कमर में चाबियों का गुच्छा लटका कर नौकरों पर हुकूमत करते दिखाई देती है । 

जानकी तो आस पड़ोस के लोगों से लक्ष्मी के ससुराल की तारीफ़ करते नहीं थकती थी। ....

क्रमश: 

भाग —२ 

रामप्रसाद ख़ुश थे कि लक्ष्मी ससुराल में खुश है, सरस्वती मेडिसिन ख़त्म करके पिछले महीने ही एक अस्पताल में नौकरी पर लग गई है,अब उसकी भी शादी करना है पर उसके लिए तो डॉक्टर को ही लाना पड़ेगा। बिरादरी में सब को बता कर रख दिया है कि कोई अच्छा सा डॉक्टर लड़का है तो बताइए कहकर ! सरस्वती अस्पताल गई थी और रामप्रसाद की उस दिन स्कूल की छुट्टी थी ...जानकी चाय बनाकर लाती है दोनों चाय पीते रहते हैं और सरस्वती आती है उसके साथ एक सुंदर सा लड़का भी था सरस्वती ने कहा सुनील meet my fother Ramprasad he is a teacher and my mother Janki house maker सुनील ने दोनों के पैर छुए सरस्वती ने कहा पापा हम दोनों एक ही कॉलेज में पढ़े हैं और अब साथ ही नौकरी भी कर रहे हैं और हम दोनों शादी करना चाहते हैं उनके घर में सबको मंज़ूर है सुनील के पापा नेता हैं आप भी इजाज़त दे दें तो हमें अच्छा लगेगा। रामप्रसाद और जानकी के लिए कहने के लिए कुछ न था हामी भरने के सिवा सुनील के घर जानकी के साथ पहुँच गए वहाँ तो किसी को किसी से बात करने की फ़ुरसत ही नहीं थी फिर भी सुनील के माता-पिता ने बहुत ही अच्छे से बात किया और कहा आप मुहूर्त निकलवा लीजिए और हमें बता दीजिए शादी पूरी तरह से हमारी तरफ़ से आप भी मेहमान बनकर आइए इतनी सुंदर पढी लिखी डॉक्टर लड़की को हमें दे रहे हैं उससे ज़्यादा हमें कुछ नहीं चाहिए। मैंने सोचा मेरी बेटियाँ खुश क़िस्मत हैं कि उन्हें इतना अच्छा परिवार मिल रहा है और फिर सरस्वती की भी शादी धूमधाम से हो गई और वह भी ससुराल चली गई। अब जानकी अपने आस-पास के लोगों को सरस्वती के ससुराल और उनके ससुर के नेता होने की बात सबको बताती है ।रामप्रसाद ने सोचा घर सूना सूना हो गया है अब सिर्फ़ मैं गौरी और जानकी ही हैं गौरी के भी जल्दी से हाथ पीले करने पड़ेंगे सोचते हुए थके हुए शरीर को आराम देने के लिए नींद में डूब गए । 

क्रमश:


  •  भाग —-3

  •  रामप्रसाद अब रिटायर होने वाले थे उन्हें लगा पहले ही गौरी की भी शादी किसी तरह कर दूँ तो गंगा नहा लूँगा बिरादरी में बोलकर रखा कि बहुत सुशील कामकाज में निपुण लड़की के लिए वर चाहिए। एक दिन रामप्रसाद स्कूल ख़त्म कर घर आ रहे थे कि रास्ते में एक लड़के ने उनका रास्ता रोक लिया और कहा मास्टर जी आपने मुझे पहचाना नहीं मैं आपका छात्र हूँ मास्टर जीने उसे आशीर्वाद दिया और कहा विनय मैं अपने सबसे होनहार छात्र को कैसे भूल सकता हूँ बोलो बेटा अब क्या कर रहे हो कहाँ रहते हो यहाँ किस काम से आए हो मास्टर जी इतने सवाल एक साथ तभी मास्टर जी का घर आ गया उन्होंने विनय को घर के अंदर बुलाया और जानकी को चाय के लिए आवाज़ देकर कहा चल बेटा अब मेरे सवालों का जवाब दे दो.......,, विनय ने कहा मास्टर जी मैंने इंजीनियरिंग की है फिर मैं मास्टर्स करने अमेरिका गया पिछले महीने ही वापस आया हूँ और गाँव में ही रहकर लोगों की मदद करना चाहता हूँ। सुनकर मास्टर जी को बहुत अच्छा लगा उन्होंने कहा तुम्हारे जैसे लोग आज के ज़माने में कहाँ मिलेंगे मुझे तुम पर गर्व है विनय और तुम्हारे माता पिता के बारे में बताओ कैसे हैं वे लोग...विनय उदास हो गया और उसने कहा मास्टर जी पिछले साल एक एक्सिडेंट में दोनों की मौत हो गई है कहते हुए उसकी आँख भर आयी। मास्टर जी ने उसे गले लगाया और कहा हम हैं न......

  •  विनय जब तक गाँव में था रोज़ मास्टर जी के घर आता जाता था एक दिन उसने कहा मास्टर जी अगर आपको कोई आपत्ति नहीं है तो मैं गौरी से शादी करना चाहता हूँ मास्टर जी तो बहुत खुश हुए कि गौरी एक अच्छे इंसान की पत्नी बनकर जा रही है विनय के तो माँ बाप नहीं थे मास्टर जी ने ही दोनों तरफ़ का काम संभाला 

  •  जानकी को विनय अपने बड़े दोनों दामादों के सामने एकदम कम लगा पर चलो गौरी के लिए ठीक है ऐसा सोच कर चुप हो गई। उसे नहीं मालूम था कि विनय बहुत पढ़ा लिखा बच्चा है, वह गौरी के प्रति उदासीन थी इसलिए उन्होंने विनय के बारे में कुछ भी जानने की कोशिश भी नहीं की, दोनों बहनों के परिवारों को न्योता गया परिवार के सदस्य व्यस्तता के चलते नहीं आ सके बहनें दोनों दो दिन पहले ही पहुँच गईं थीं अपने अपने ससुराल की डींग हांकने में लगीं थी उन्हें विनय के बारे में यह नहीं मालूम था कि वह अमेरिका से मास्टर्स करके आया है डिग्री किया होगा गौरी के लायक़ है यह सोच लिया था। शादी के दिन दोनों दामाद आ गए जानकी के लिए पूरा समय उनके नाज़ नखरे उठाने में ही लग गया ....,,शादी हो गई और गौरी भी ससुराल चली गई। मास्टर जी ने सोचा विनय गौरी के लिए सही जीवन साथी था दोनों माँ पिता से मिलने आते थे बातें करते घर पूरा हँसी ठिठोलियों से गूंज उठता था दिन बहुत ही मज़े में गुजर रहे थे । 

  •  क्रमश: 

  •  भाग—४ 

दिन ख़ुशी से बीत रहे थे सब अपने अपने घरों में व्यस्त थे पर नियति को यह नहीं भाया। एक रात दो बजे विनय को फ़ोन आया रामप्रसाद जी का विनय जल्दी से आ जाओ मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही है विनय गौरी को लेकर भागा उन्होंने सरस्वती को भी फ़ोन किया और रामप्रसाद जी को अस्पताल में भर्ती कराया क्योंकि उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। सभी लड़कियाँ आ गईं थीं और जानकी जी को तो जैसे साँप सूँघ गया था वे चुपचाप सबको भागते हुए देख रही थी, रामप्रसाद जी की हालत में सुधार आया सब अपने अपने घर चले गए सरस्वती ने कहा माँ मैं भी घर जाकर आती हूँ अब पापा ठीक हैं गौरी तो है ही न , जानकी रामप्रसाद जी के पास ही बैठी थी उन्होंने कहा देख जानकी अगर मुझे कुछ हो जाता है न तू गौरी के साथ रह और किसी के पास नहीं जाना, जानकी मन ही मन सोच रही थी कि लक्ष्मी पैसे वाली वहाँ आराम मिल सकता है नौकर चाकर सब हैं और सरस्वती वह तो डॉक्टर है वहाँ तो दवाइयों की सुविधा भी है और गौरी उनके पास तो कुछ भी नहीं है और इनका तो दिमाग़ ही ख़राब हो गया है जो मुझे सुख सुविधाओं को छोड़कर गौरी के साथ रहने के लिए कह रहे हैं ख़ैर देखेंगे तब की तब कहकर सिर्फ़ सिर हिलाकर चुप रही । 

होनी को कोई नहीं टाल सकता और रामप्रसाद जी सबको अकेले छोड़कर स्वर्ग सिधार गए। लड़कियाँ रोने लगी और दामाद सब विनय का मज़ाक़ उड़ा रहे थे बहनें गौरी से सारा काम करा रही थी कि हमें तो आदत नहीं है तुम ही कर सकती हो क्यों कि तुम्हारे यहाँ नौकर चाकर नहीं है न गौरी ने कुछ नहीं कहा और चुपचाप सब काम देखने लगी.....विनय ने भी बेटे का फ़र्ज़ निभाया....

दस दिन ख़त्म हो गए गौरी ने कहा माँ हमारे घर चल हमारे साथ ही रहना तभी लक्ष्मी ने कहा अरे नहीं माँ मेरे साथ चल तुझे मैं बहुत आराम से रखूँगी जानकी खुश हो गई तभी सरस्वती बोली माँ मेरे साथ चल मैं डॉक्टर होने के नाते तेरी पूरी देखभाल करूँगी .... जानकी लक्ष्मी के साथ जाने की तैयारी में लग गई उसने कहा सरस्वती फिर तेरे घर आऊँगी उसने गौरी की तरफ़ देखा भी नहीं वह फिर से ग़रीबी में दिन गुज़ारना नहीं चाहती थी उसे लगा अमीरों के तौर तरीक़े सब एकबार इन आँखों से देख लेती हूँ। लक्ष्मी के घर पहुँची, वहाँ दस पन्द्रह दिन उसकी ख़ूब देखभाल किया गया वह अपनी बेटी को कमर में चाबियों का गुच्छा लटकाकर घूमते देख फूली न समाती थी । 

एकदिन लक्ष्मी की सास ने कहा लक्ष्मी तुम्हारी माँ दिन भर बैठी रहती हैं रसोई में मदद करने के लिए कह दे, लक्ष्मी ने माँ से कहा माँ तुम रसोई में थोड़ा मदद करदे जानकी रसोई में पहुँची धीरे धीरे उनसे बहुत सारा काम कराने लगे। एक दिन जानकी ने लक्ष्मी से कहा मैं भी तेरे सास की उम्र की हूँ थक जाती हूँ वे कुछ काम नहीं करती हैं फिर मैं क्यों करूँ? लक्ष्मी ने कहा माँ यह उनके बेटे का घर है वे मालकिन हैं आप अपनी तुलना उनके साथ कैसे कर सकतीं हैं आपको रहना तो काम करना पड़ेगा वरना आप जा सकती हैं। जानकी लक्ष्मी की बात सुनकर सोचती है उसे अपना स्थान इस घर में बनाए रखना है तो उनकी बात सुननी ही पड़ेगी । 

 दूसरे दिन सरस्वती को ख़बर दे दी गई और वह माँ को अपने साथ ले जाने के लिए आई। 

क्रमशः 

•  भाग—५

  •  सरस्वती माँ को अपने घर ले आई और कहा आप आराम से रहिए इस घर में कोई रोकटोक नहीं है ....., जानकी ख़ुश हो गई। यह ख़ुशी भी ज़्यादा दिन नहीं मिला क्योंकि सरस्वती और पति अस्पताल चले जाते बाकी सब अपने अपने कामों में व्यस्त न कोई पूछने वाला या बात करने वाला सब अपने समय से खाना खा लेते थे जानकी ने खाया या नहीं पूछने वाला भी नहीं था , जब सरस्वती से कहा तो उसने कहा माँ ख़ुद रसोई में जाकर बना लीजिए आप मेहमान नहीं हो कहकर चली गई धीरे-धीरे उसके ससुर से मिलने आने वालों को चाय नाश्ता पकड़ाना आदि काम कराने लगे किससे क्या कहे ... कभी-कभी तो बिना खाए ही सोना पड़ता था एक दिन जानकी बेटी से बात करूँगी यह सोचकर उसके कमरे की तरफ़ जाती है अंदर से उसके दामाद की आवाज़ सुनाई देती है सरस्वती अब अपनी माँ को गौरी के पास भेज दो कल मेरी माँ ग़ुस्से से लाल पीली हो रही थी कि और कितने दिन रहेगी तेरी सास 

  •  हाँ सुनील ...लक्ष्मी भी कह रही थी घर में बिठाकर कौन खिलाए इसलिए काम बताया तो मेरी सास से अपनी तुलना कर रही थी तू भी काम करे तो रख वरना भेज दे गौरी के पास उनकी असली जगह वही है। कोई आए और पूछे माँ आपकी आपके साथ रहती है मेरी नज़र तो शर्म से झुक जाए। यह सब सुनकर जानकी उलटे पाँव वापस अपने कमरे में आती है ...,दूसरे दिन रविवार था सुबह उठते ही उन्होंने ने कहा मुझे गौरी के घर छोड़ देगी सरस्वती ने कहा नेकी और पूछ पूछ चल अभी छोड़ आऊँगी दूसरे ही पल जानकी गौरी के घर में थी ।

  •  गौरी माँ को देखकर ख़ुश हो गई। विनय ने भी जानकी के पैर छुए और कहा माँ अब आप हमारे साथ ही रहना उनका पैर छूना देख जानकी के आँखों में आँसू आ गए दोनों दामादों ने एक बार भी उनसे बात तक न की थी पैर छूना तो दूर की बात है। गौरी काम कर रही थी बड़ी बेटियों के घर हुए तमाशे के बाद वे यहाँ बैठना नहीं चाह रही थी इसलिए हाथ बँटाने पहुँची तो गौरी ने कहा माँ आपको कोई भी काम करने की ज़रूरत नहीं है आप हमारे साथ हैं वही हमारे लिए बहुत है। जानकी को अब कुछ काम करना नहीं पड़ता था सारे काम गौरी ही कर लेती थी विनय भी बहुत अच्छा था साथ मिलकर खाना खाना और साथ मिलकर घूमने जाना दिन पंख लगाकर उड़ रहे थे। रात को सोते समय जानकी ने सोचा रामप्रसाद कितनी दूर की सोचते थे उन्हें मालूम था जहां हमें इज़्ज़त मिले हमारा सम्मान हो वहीं हमें रहना है उनकी बात न मानकर मैंने कितने दुख पाए पर चलो देर आए दुरुस्त आए जीवन के अंतिम क्षण तो आराम से गुजर रहे हैं । 

  •  क्रमशः

  •  भाग-६

एक दिन शाम को विनय आया और कहने लगा माँ हमें अमेरिका जाना है मुझे वहाँ एक अच्छी सी नौकरी मिल गई है मैं चाहता हूँ आप भी हमारे साथ वहीं रहना मैंने आपके लिए भी पासपोर्ट बनवा दिया है और वीसा के लिए अप्लाई कर दिया है आते ही चलेंगे...... जानकी को आश्चर्यचकित होकर देखते हुए देख गौरी ने कहा माँ विनय ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और अमेरिका में भी पढ़कर आए हैं, जानकी की बोलती बंद हो गई उसने सोचा हे भगवान मैंने कितनी बड़ी ग़लती कर दी है खरे सोने और गिन्नी के सोने में फ़र्क़ न कर पाई विनय और गौरी तुम दोनों मुझे माफ़ कर दो दोनों ने एक साथ हँसते हुए कहा चलो माफ़ कर दिया अब हमारे साथ चलने की तैयारी कर लो बिना किसी सवाल जवाब के ..., नहीं विनय बेटा तुम लोग जहां रहोगे मैं भी वहीं रहूँगी बस एक बार उन दोनों को भी बताना चाहती हूँ कि मैं जा रही हूँ। गौरी ने कहा ठीक है माँ जाने से पहले दोनों से एक बार मिल लेना । 

जानकी और गौरी बहनों से मिलने जाने के लिए तैयार हुईं तभी डोर बेल की आवाज़ सुनाई दी गौरी ने दरवाज़ा खोला देखा बहनें दोनों खडी थी कैसी है तू .....माँ कहाँ 

है क्या है माँ हम यह क्या सुन रहे हैं तुम अमेरिका जा रही हो ..अंदर से जानकी आई और कहने लगी हाँ सही सुना तुम लोगों ने अगले हफ़्ते के टिकट बने हैं हमारेमैं और गौरी तुम लोगों को बताने के लिए ही तुम लोगों के घर आ रहे थे। पर माँ विनय तो पढ़ा लिखा भी नहीं है उसे कैसे आने देंगे वहाँ हम ख़ुद कबसे जाने की सोच रहे हैं पर हमारी वीसा दो बार रिजक्ट हो गई है लक्ष्मी ने कहा अरे दी हमारा भी यही हाल है सरस्वती ने कहा फिर विनय को तो कुछ आता जाता भी नहीं है ज़बरदस्ती तुम लोगों को वहाँ ले जाकर काम करायेगा और वैसे भी किस बेवकूफ ने उसे वीसा दिया है। दोनों की बातों से लग रहा था जैसे कितनी ईर्ष्या हो रही है उन्हें । 

माँ ने कहा कि तुम दोनों अपना मुँह बंद करो विनय ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और अमेरिका में मास्टर्स किया है मुझे भी नहीं मालूम था अभी थोड़े दिन पहले मुझे पता चला है वहीं की किसी बड़ी कंपनी ने उसे बुलाया है विनय अपने नाम की तरह ही है मैं ही मूर्ख थी जो पीतल को सोना समझ बैठी और उसकी कद्र नहीं की पर अब मुझे पता चल गया है कि असली दौलत क्या होती है तुम्हारे पिता ने इस फर्क को पहचान लिया था ख़ैर मैं यहाँ खुश हूँ तुम लोग भी अपने घरों में खुश हो यहाँ अकेले रहकर क्या करूँगी इसलिए विनय के बुलाते ही मैंने हाँ कर दी तो चलती हूँ खुश रहो कभी-कभी फ़ोन करते रहना। दोनों बहनों ने कहा माँ हमें माफ़ कर दो असली दौलत विनम्रता पूर्वक दूसरों की मदद में ही है यह हमें भी मालूम नहीं था गौरी खुश रह कहते हुए वे अपने घर चले गए। विनय , गौरी और जानकी अमेरिका में ही बस गए । 

      


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