सबसे बड़ा सम्मान
सबसे बड़ा सम्मान
प्रीति का आज स्कूल में आख़िरी दिन था वह रिटायर हो गई थी। अपनी ज़िंदगी के तीस साल उसने बच्चों को पढ़ाने और पढ़ने में ही बिता दिया। इतने साल कैसे गुजर गए पता ही नहीं चला। बच्चे और पति दोस्त सब बधाई दे रहे थे। आगे के प्लान पूछ रहे थे। सबको हँसते हुए जवाब तो दे रही थी। अपने पिछले दिनों को याद करते हुए उसके चेहरे पर हल्की सी हँसी की लहर भी आकर चली गई। कल की ही बात लगती है!!!!!!!
प्रीति माता - पिता की इकलौती बेटी थी। उससे तीन छोटे भाई भी थे। अपने घर की सबसे लाड़ली थी। चाचा और चाचियों से भरा पूरा परिवार था सब अलग - अलग रहते थे पर त्योहारों में मिलते थे। सबको प्रीति से प्यार था क्योंकि पूरे परिवार में वही एक लड़की थी। वैसे तो घर में पढ़ाई के लिए कोई रोक टोक तो नहीं थी पर सभी लड़कियों को दसवीं तक पढ़ा कर शादी करा देते थे। उनकी सोच यह थी कि अगर लड़की को ज़्यादा पढ़ा लिखा दिया तो उससे भी ज़्यादा पढ़े लिखे लड़के को ढूँढना पड़ेगा फिर भी सबसे छोटी बुआ ने बी.ए किया था क्योंकि उसकी शादी तय नहीं हो पाई तो घर में ख़ाली बिठाने से अच्छा पढ़ा लें यह सोचकर उन्हें पढ़ा दिया गया। प्रीति जब ग्यारहवीं में थी तब छोटी बुआ की शादी हुई थी। फूफाजी आर्मी में मेजर थे। अब घर वाले यह गलती नहीं दोहराना चाहते थे। इसलिए प्रीति के लिए लड़का ढूँढने लगे। प्रीति पढ़ना चाहती थी। एक साल ख़ाली घर में बिठा दिया गया पढ तो नहीं पाई पर सोचा चलो सिलाई कढ़ाई ही सिखा दें क्योंकि यह हुनर ससुराल में काम आएगी। यह सोचकर उसे सिलाई के क्लास में भर्ती करा दिया गया। प्रीति से पूछा भी नहीं कि तुम्हें सीखना है कि नहीं। उस समय लड़कियाँ माता-पिता जिधर जोत देते थे उधर ही जुत जाते थे। ख़ैर प्रीति सिलाई सीखने लगी। वहीं पर उसकी मुलाक़ात हेमा से हुई जो वहाँ कढ़ाई सीखने आती थी। प्रीति और हेमा दोनों में जमने लगी। हेमा की माँ नहीं थी वह अपने पिता के साथ रह रही थी। वह सुबह के कॉलेज में (मार्निंग) एम . ए कर रही थी। प्रीति के घर उसका आना - जाना होने लगा। प्रीति के माता-पिता भी उसे पसंद करने लगे, बातों बातों में जब उसे पता चला कि शादी के लिए प्रीति की पढ़ाई छुड़वा दी गई है तो वह प्रीति के पिताजी से कहने लगी मैं जिस कॉलेज में पढ़ती हूँ वह सुबह सात बजे से ग्यारह बजे तक ही है मेरे साथ भेज दीजिए। जब शादी तय हो जाएगी पढ़ाई रुकवा दीजिए। अभी घर में बैठकर क्या करेगी। उस समय लड़कियाँ कॉलेज कम ही जाती थी। इसलिए कॉलेज की फ़ीस भी कम थी। आप लोगों को आश्चर्य होगा कि प्रीति महीने में कॉलेज फ़ीस सात रुपये भरती थी। लड़कों के लिए चौदह रूपये थे। उनसे आधी फ़ीस लड़कियाँ भरती थीं।
कहते हैं न कब किस की बातों का असर कर जाए पता नहीं पर प्रीति के तो भाग ही खुल गए। पिताजी को हेमा की बात पसंद आ गई इसलिए उन्होंने दादा दादी से भी इजाज़त लेकर प्रीति को हेमा के साथ मार्निंग कॉलेज में दाख़िला दिला दिया। दादी ने कहा इस कॉलेज में लड़कियों के साथ लड़के भी पढ़ते हैं इसलिए रोज साड़ी पहनकर कॉलेज जाना है। प्रीति ने सोचा ठीक है कॉलेज जाने तो मिल रहा है न बस। साड़ी पहनकर कॉलेज जाने लगी। किसी तरह साल गुजर रहे थे। मस्ती भी चल रही थी साथ ही पढ़ाई भी चल रही थी।
प्रीति को हर साल डर ही लगा रहता था कि कहीं शादी तय हो गई तो पढ़ाई छूट जाएगी। ईश्वर से प्रार्थना करती रहती थी कि पढ़ाई पूरी होने के बाद रिश्ता आए तो अच्छा है। प्रीति की प्रार्थना काम कर गई। उसने अपनी बी. ए की पढ़ाई पूरी कर ली। अंतिम परीक्षा देकर उसने चैन की साँस ली।
जिस दिन परीक्षा फल आया उस दिन उसके पैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। वह खुश थी कि उसने ग्रेजुएशन पूरा कर लिया है। वह पोस्ट ग्रेजुएट करना चाहती थी पर यह तो ज़मीन पर रहकर आसमां छूने के जैसे था। कुछ दोस्तों की शादी तय थी। कुछ की तो बीच में ही हो भी गई थी। सब अपनी आँखों में ढेरों सपने लेकर एक-दूसरे से अलग हो गए। प्रीति भागते हुए दादा - दादी के पास गई। परीक्षा फल सुनते ही दादा जी ने कहा बेटा —बी.एड. कॉलेज अपने घर के पास ही है उसमें दाखिला ले ले एक साल में तेरा कोर्स भी हो जाएगा। सुनते ही प्रीति के मुंह से निकला छी…मैं नहीं करती बी.एड. क्योंकि उस समय प्रीति देखती थी बी.एड. करने वाली लड़कियाँ जूड़ा बाँध कर साड़ी पहनकर कॉलेज जाती थी। प्रीति को यह अच्छा नहीं लगता था। ( वह पहले से ही साड़ी में ही पढ़ने जाती थी और अब फिर साड़ी) न दादा जी ने कहा, तेरी मर्ज़ी बेटा पर लड़कियों के लिए यह बहुत ही अच्छा कोर्स है। बात आई गई हो गई। प्रीति की बड़ी बुआ हैदराबाद में रहती थी। वह प्रीति के घर आई हुई थी। आते ही प्रीति की शादी की चर्चा शुरू हो गई। बुआ ने कहा भैया एक बहुत ही अच्छा रिश्ता है। आप चाहें तो मैं बात चलाऊँगी। लड़का टीचर है और उसकी बड़ी बहन अमेरिका में रहती है। शायद कभी मौक़ा मिले तो अपने छोटे भाई को भी ले जाएगी। उस ज़माने में अमेरिका तो आसमान पर उड़ान भरने जैसा था। अमेरिका का नाम सुनते ही लोगों के आँखों में चमक आ जाती थी। पिताजी चुप थे। माँ ने कहा कि लड़का अच्छा है तो बात चला सकते हैं। प्रीति ने कहा नहीं मैं टीचर से शादी नहीं करूँगी। यह सुनते ही बुआ आग बबूला हो गई। देखा ज़्यादा पढ़ाने का नतीजा ? मेरी लड़की की शादी मैंने उसकी दसवीं की परीक्षा के पास होते ही कर दिया था। देखा था न !!!मुँह बंद करके कैसे उसने हमारी बात मानी थी। हमारे यहाँ हमारी बड़ी बुआ की खूब चलती है। घर के सारे लोग उनकी बात को मानते हैं। प्रीति को डर था कि कहीं माँ पापा उस पर दबाव न डालने लगे। वैसे ही हुआ जैसे प्रीति ने सोचा। पिताजी ने कहा लड़का टीचर है तो क्या हुआ बहन तो अमेरिका में रहती है। सोच तो सकते हैं प्रीति को ग़ुस्सा आया उसने कहा मुझसे लोग यह पूछेंगे कि तुम्हारे पति क्या काम करते हैं कोई यह नहीं पूछेगा कि तुम्हारी ननद कहाँ रहती है। मैं नहीं बताना चाहती कि मेरा पति टीचर है और पैर पटकते हुए कमरे में चली गई। पिताजी ने बहन को समझा दिया कि हम इसके बारे में बाद में बात करेंगे। बुआ वापस हैदराबाद चली गई। कुछ महीनों में प्रीति की शादी बैंक में काम करने वाले विकास से हो गई। शादी के बारह सालों में प्रीति के दो बच्चे भी हो गए और पति का तबादला वहीं हो गया जहाँ उसकी बड़ी बुआ रहती है। बुआ के बेटे प्रीति से मिलने आते थे। प्रीति हमेशा बहुत सारे दोस्तों से घिरी रहती थी। उन्होंने ने माँ को बताया प्रीति अपना समय बरबाद कर रही है गपशप करने में इसलिए उसके लिए कुछ करना चाहिए फिर क्या नेकी और सोच सोच। बुआ ने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा की एक एड आई थी बी.एड. की एडमिशन के लिए उस पेपर को जिसमें एड आया था प्रीति के पास भेजा। प्रीति ने भी देखा और दाख़िला ले लिया। जो प्रीति कभी टीचर नहीं बनना चाहती थी उसने फस्ट क्लास में बी.एड. पास कर लिया। बच्चों की देखभाल घर का काम सबको अच्छे से निभाते हुए उसने अपनी पढ़ाई पूरी की। एक साल एक छोटे से स्कूल में फिर घर के पास के ही एक स्कूल सात साल काम किया। अब प्रीति को शहर के एक बहुत ही अच्छे स्कूल में काम मिल गया और वह वहाँ ख़ुशी ख़ुशी काम करने लगी। हिंदी विभागाध्यक्ष के पद पर नियुक्त होकर बीस साल उसने काम किया। और बहुत नाम तथा हज़ारों बच्चों का प्यार पाया। आज रिटायर हो गई। अपनी ज़िंदगी के इतने साल बच्चों को पढ़ाया आज सोचती है कि अगर टीचर नहीं बनती तो हज़ारों बच्चों के दिल में वह कभी नहीं बसती थी। किसी ने सच ही कहा है कि एक टीचर कभी रिटायर नहीं हो सकती। वह कभी बूढ़े नहीं हो सकती। छोटे-छोटे बच्चों के साथ काम करते हुए वह हमेशा एक बच्चा ही बनकर रह जाती हैं।
एक शिक्षिका बनने के बाद प्रीति को एहसास हुआ कि ‘ शिक्षण कार्य एक बहुत बढ़िया पेशा है अगर लोग मुझे एक अच्छी शिक्षिका के रूप में याद करते हैं तो मेरे लिए यह सबसे बड़ा सम्मान होगा। ‘