Rajiva Srivastava

Inspirational

5.0  

Rajiva Srivastava

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सबरी के बेर

सबरी के बेर

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रामायण में एक प्रसंग है कि वनवास में श्री राम और लक्ष्मण घूमते हुए सबरी नामक एक भीलनी की कुटिया में पहुंच जाते हैं, सबरी बहुत ही भाव विव्हल हो जाती है, "अहो भाग्य जो श्री राम मुझ गरीब की कुटिया में पधारे"।ऐसा सोचकर वो बेचारी सोचती है कि वो भगवान राम को क्या खिलाये, क्या पिलाये?तभी उसे अपने पास पड़े हुए कुछ बेर का ध्यान आ जाता है, वो प्रभु को वो ही दे देती है, लेकिन फिर उसे लगता है कि बेर कहीं खट्टे न हों, अतः वो एक एक बेर को प्रभु राम को देने से पहले स्वयं चख कर देखती है फिर चख कर जूठा फल ही उन्हें खाने को देती है। भावावेश में उसे ये भी नहीं याद रहता कि वो प्रभु राम को जूठे बेर खिला रही है और प्रभु राम मुस्कुराते हुए बेर खाते जा रहे हैं।

बचपन से रामायण का ये प्रसंग मुझे बहुत अजीब सा लगता था, कि कोई किसी का जूठा इस तरह कैसे खा सकता है।

अब भी अजीब लगता अगर आज मेरे साथ ये घटना न घटी होती। वर्षों से हम कुछ मित्रों का समूह महीने के एक रविवार को पास के वृद्धाश्रम में जाकर वहाँ के रहवासियों के एक समय भोजन की व्यवस्था देखते हैं।

आज भी इसी प्रकार हम वहाँ गये थे,सभी बुजुर्ग भोजन करने लगे।मेरे समीप एक वृद्धा ऐसे मगन होकर खा रही थी,जैसे बरसों बाद भर पेट भोजन मिला हो। मैंने पूछा "माँजी और कुछ दूं" वृद्धा ने सर उठा कर मुझे देखा और बोली "न रे,आज तो जी भर गया,तू भी खा बेटा",और खाते खाते उन्हीं जूठे हांथों से एक निवाला मेरे मुँह में डाल दिया।

 सच कह रहा हूँ,उस समय जो अलौकिक आनन्द मुझे मिला वो व्यक्त नहीं कर सकता। दिमाग में एक ही ख्याल आ रहा था 'सबरी के बेर'।


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