Yogesh Kanava Litkan2020

Drama Inspirational

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Yogesh Kanava Litkan2020

Drama Inspirational

सावन

सावन

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शाम का धुंधलका आसमान मे हल्के सुनहरी रंग के बादल परिन्दों का झुण्ड मण्डराता सा और एकदम शान्त वातावरण। वो धीरे धीरे मकान की छत पर टहल रही थी, आँंखों पर चश्मा घुंघराले लहराते से बाल और हाथ में एक किताब। बड़ा ही सुकून सा मिल रहा था उसे। हां ईशा है ये जो छत पर टहल रही है बिलकुल अड़ गई थी मैं इण्डिया नहीं जाऊँगी कहती थी।

- ओह नो व्हाट आई विल डू देयर द पूअर कण्ट्री, द कण्ट्री आफ स्नेकस एण्ड ट्राइबल्स नो चार्म देयर। फायनली एम नोट गोइंग। दैट्स आल।

और उसकी मां सुनन्दिनी उसे समझाने की कोशिश कर रही थी कि नहीं भारत सांपों या सपेरों का देश नहीं है, जो कल्चर भारत में है वो दुनिया के किसी भी देश में नहीं है इतना रिचव कल्चर। यूं कह लीजिए कि सुनन्दिनी और ईशा में एक तरह का गृह युद्ध छिड़ा था भारत जाने और न जाने के लिए। और इधर राजन सोच रहा था ईशा की गलती नहीं है गलती तो सुनन्दिनी और मेरी है जिसे कभी भी अपनी माटी, अपने देश के बारे में नहीं बताया था। वो खो गया अपनी ही यादों में। कोई तीस बरस पहले वो केलीफोर्निया आया था पढ़ने और फिर यहीं नौकरी करने लगा। ठीक उसी की तरह यहीं पर आयी थी सुनन्दिनी। बस दोनों मिले एक ही देश एक ही माटी के लोग, हो गया मेल मिलाप। धीरे धीरे प्यार की पींगे बढ़ी और दोनों ने ही विवाह का मन बना लिया था। दोनों के घरवाले इसके लिए तैयार नहीं थे सो दोनों ने ही वहीं केलिफोर्निया मे ही मेरीज रजिस्ट्रार के यहाँ पर विवाह कर लिया। शादी के बाद वे दोनों एक बार ही भारत आये थे लेकिन दोनों के घरवालों ने खास उत्साह नहीं दिखाया। ईशा हो गयी थी तभी दोनों ने निर्णय लिया था कि एक ही बच्चा करेंगे बस।

ईशा कोई दस बरस की हुई होगी तभी अचानक ही एक दिन सुनन्दिनी के पिता ने उसे फोन किया गिले शिकवे दूर हुए और उन्हीं के प्रयासों से राजन के पिता ने भी बेटे बहु और पोती को स्वीकार कर लिया था लेकिन संयोगवश वो लोग भारत नहीं आ पाए थे। हां राजन के माता पिता और सुनन्दिनी के माता पिता ज़रूर केलिफोर्निया एक एक बार जाकर आ गए थे।

आज भारत जाने को लेकर सुनन्दिनी बेहद उत्साहित है तो ईशा बिल्कुल तैयार नहीं। राजन इस युद्ध में कूद पड़ा और पत्नी का साथ दिया। निर्णय यही लिया गया कि भारत चला जाए, सभी जाएंगे। खैर ईशा बड़े ही बेमन से भारत आ गई और पहले राजन के गांव गए। कल ही आना हुआ था तीनों का गांव में। ईशा के लिए एकदम अनजान लोग, अनजान जगह और भाषा की भी दीवार थी थोड़ी थोड़ी हिन्दी जानती थी लेकिन ठेठ देहाती बोली तो बिल्कुल नहीं समझ पाती थी वो।

लेकिन आज शाम जब वो अपने दादा की हवेली की छत पर यूँ टहल रही है तो उसे बहुत अच्छा लग रहा है। सोच रही थी मोम डेड सही कह रहे थे इण्डिया में मजा तो आ रहा है। वो अकेली ही घूम रही थी तभी उसके चाचा की लड़की और उसकी सहेलियां भी आ गई उसे कहने लगी -

दीदी कल सावणी तीज है कल हम लोग खूब मजे करेंगे। झूला झूलेंगे और भी मजे करेंगे। दीदी चलोगी ना, ये सब मेरी दोस्त हैं ये सब भी आपसे मिलना चाहती हैं दोस्ती करना चाहती हैं और तीज खेलना चाहती हैं। और बताऊँ कल ना दादू कह रहे थे हम सबको जयपुर भी लेकर चलेंगे वहां ना तीज की सवारी निकलती है और मेला भी लगता है। दादू ने ना एक गाड़ी मंगवाई है वो क्या कहते हैं उसको इनोबा। चलोगी ना दीदी। उसके मुंह से अनजाने ही निकल गया ओ के विल गो। मैं भी देखेगा इण्डिया का फेस्टिव इवेन्ट।

-दीदी चलो ना ये अपने घर ले जाना चाह रही है इसकी मम्मी बहुत खुश होगी आपको देखकर।

-बट वो मोम से पूछना पड़ेगा ना, आइ डोन्ट नो एनिवन सो लेट मी आस्क।

दीदी वो ताई जी से तो मैंने पूछ लिया है ताई जी ने कहा है गाँव घुमाकर लाओ ईशा को। अब तो चलोगी ना दीदी।

ओके यस चलो

वे सभी अंजू की सहेली के घर चले गए। वहाँ पर कुछ आधे कच्चे आधे पक्के मकानों को देखकर ईशा को गाँव की गरीबी का तो अहसास हो गया था लेकिन गांववालों के दिल से अमीरी से अहसास उसे अंजू की सहेली की मां और बापू की आवभगत देखकर हुआ। उन्होंने तो कोई कमी नहीं रखी थी ईशा के सत्कार में। थोड़ी ही देर में ईशा के मोम डेड को भी बुलाकर ले आए थे वो लोग। देर रात तक उन्हीं के घर पर रहे तीनों लोग। ईशा सोचने लगी कितना पे्रम है यहां इण्डिया में। वहाँ केलीफोर्निया में तो किसी को किसी से कोई मतलब नहीं है बस एवरीवन अलोन।

अगले दिन सुबह सुबह ही अंजू ने ईशा को तैयार होने को कहा। दीदी जल्दी तैयार हो जाओ ना, पहले गांव की लड़कियों के साथ सावनी तीज गाएंगे, बिरिया खाएगें फिर झूला झूलेंगे। दादू ने घेवर बनवाएं देशा घी के वो तो खाने ही हैं और फिर तीज माता की सवारी देखने चलेंगे जयपुर। उसे लगा कितने जीवन्त हैं यहां के लोग लेकिन सावणी तीज क्या होती है वो नहीं जानती थी सो करीब से जानना चाहती थी। उसने अपनी मोम से पूछा - मोम वाट्स सावनी तीज।

-इट्स रेन फेस्टिवल माई डोल, हमारे देश में त्योहारों, उत्सवों की कोई कमी नहीं है। बेटा यहां ग़रीबी ज़रूर है लेकिन दिल से लोग अमीर हैं। अपनी ग़रीबी में भी वे लोग खुश हैं, त्योहार ज़रूर मनाते हैं। आज तीज है, दिस इज द बिगनिंग आफ फेस्टिवल्स फोर द ईयर अप टू गणगोर। आफ्टर गणगोर देयर इज अ बे्रक फोर फ्यू टाइम। अगेन स्टाट्र्स फ्रोम तीज।

-ओ के मोम आइ गोट इट। सो आज से फेस्टिवल्स शुरू।

तभी अंजू बोली - नहीं दीदी हमारा फेस्टिवल तो आपके आने के साथ ही शुरू हो गया था। सब लोग हंसने लगे।

पूरे दिन की मौज मस्ती के बाद रात को वे लोग जयपुर से वापस गाँव लौट आये थे। लेकिन ईशा का मन तो तीज की सवारी, तीज का मेला और गांव वालों की रंग बिरंगी पौशाकों में ही उलझा था। वो साचे जा रही थी ये सावनी फुहारें इन लोगों के दिलों से निकलती है, बादलों से नहीं। बरसात अमेरीका में भी होती है लेकिन इतने उत्साह के साथ कुदरत का श्रृंगार उत्सव उसने पहली बार देखा है। वो सोचे जा रही थी अगर वो इण्डिया नहीं आती तो जीवन की सबसे बड़ी भूल होती।

अगली सुबह ही उसने अपने दादू से कहा ग्रांड फा, यू आर ग्रेट, दिस कण्ट्री इज गे्रट एण्ड द रेन फेस्ट आइमीन वो सावन तीज अमेजिंग।

ईशा की इच्छा पर ही उसके मम्मी पापा ने निर्णय लिया कि पूरा एक महिना हाँ सावन गाँव में ही बिताया जाए और ईशा मंत्रमुग्ध बस सावन में खोई सी।



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