सावन और मल्हार
सावन और मल्हार
सावन का महीना हो । रिमझिम बारिश का मौसम हो । मोर की बोली हो। झूलों की बहार हो । प्रिय का साथ हो तो श्रृंगार रस टपकता है । हाथों में मेहंदी हो। बालों में गजरा हो । कंगन से भरपूर कलाई हो । गाल मक्खन मलाई हो। पैरों में पायल हो । दिल क्यों न घायल हो। अंग अंग में रसधार हो। फिर कैसे ना श्रृंगार हो ।धरती पे छाई हरियाली है। मन मगन मस्त दीवाली है। कोयल की कूक बुलाती है। दिल में इक हूक उठाती है। मन छेड़े सरगम मस्ती में। पग पड़ते नहीं हैं धरती में। संयोग - वियोग बारंबार हो । फिर कैसे ना श्रृंगार हो ।
भारतीय कैलेण्डर में सावन और फागुन महीने का विशेष महत्व है। इन दोनों महीनों में "काम" की प्रधानता होती है। प्रकृति ने छटा बिखेरी होती है। मन में प्रीति के धागे बुनने लगते हैं। प्रिया और प्रियतम अगर साथ साथ हों तो धरती स्वर्ग से भी सुंदर लगती है और अगर साथ ना हों तो इससे बढ़कर नर्क और क्या होगा ?
भारतीय साहित्य में नौ रस बताये हैं। उनमें श्रृंगार रस को सर्वश्रेष्ठ बताया है । श्रृंगार रस भी दो प्रकार का होता है। संयोग और वियोग । इनमें से संयोग को श्रेष्ठ बताया गया है। संयोग का अर्थ है मिलन । नायक और नायिका का मिलन । राधा और कृष्ण का मिलन। भारतीय साहित्य में राधा नायिका और कृष्ण नायक के रूप में चित्रित किये गये हैं।
भारतीय साहित्य को पढ़ना तो शायद अब लगभग बंद हो गया है। अंग्रेजी साहित्य का प्रचलन युवा पीढ़ी में अधिक मात्रा में हो रहा है । इसमें भी रोमांटिक साहित्य कम और फिक्शन , एक्शन , फैंटेसी साहित्य ज्यादा पढ़ा जा रहा है। जैसे हैरी पाॅटर । पर हम जैसे हिन्दी प्रेमियों को तो देसी, लोकगीत, सिनेमा के गीत ही पसंद आते हैं।
सावन का महीना पवन करे सोर ।जियरा रा झूमे ऐसे जैसे मनमां नाचे मोर ।।ये गीत रेडियो या दूरदर्शन पर आते ही बाछें खिल जाती हैं। होंठ स्वत: ही गुनगुनाने लगते हैं। मन में हिलोरें उठने लगती हैं। ऐसा ही एक गीत और है
तुम्हें गीतों में ढालूंगा
सावन को आने दो ।
सावन को आने दो।।
सुनकर ऐसा लगता है कि जैसे गीतकार ने मेरे मन की बात सुन ली हो । दिल का कोना कोना झंकृत हो उठता है। एक गीत और है जिसमें नायक नायिका को और रुकने के लिए कहता है लेकिन नायिका जाने की जल्दी में है और ऐसे में बारिश आ जाती है। नायक को मुंह मांगी मुराद मिल जाती है और वह अब बरसात से आग्रह करके कहता है
बरखा रानी, जरा जम के बरसो
मेरा दिलबर जा ना पाये
झूमकर बरसो ।
बरखा रानी ।।
इसी प्रकार ब्रज क्षेत्र में सावन की मल्हार गायी जाती हैं।
झूला तो पड़ गये, अंबुआ की डार पे जी ।
ऐ जी कोई राधा जी
हम्बे कोई राधा जी झुलावै श्री गोपाल।।
झूला तो पड़ गयै।
संयोग श्रृंगार का ही एक गीत और है जो मुझे बेहद पसंद हैं
अली बहना , सावन की आयी है बहार
चल झूला झूलें बाग में ।।
जब बहुत सारी सहेलियां साथ हों। झूलों की कतार हो । सांवरे का दीदार हो तो मजा सावन का और ही आता है।
लेकिन सब कुछ हो पर प्रियतम का साथ ना हों। पिया परदेस में हो तो उदास मन कुछ इस तरह बिरहा की मल्हार गाता है।
अरी बहना, अंखियां हैं प्यासी प्यासी
मनवा में पूरनमासी
अब तक ना आयो मेरो सांवरो ।।
वो देखो श्याम घटा घिर आई
मोह पै बिजुरी काहे गिराई
हिचकी रह रह के आई
अब तक ना आयो मेरो सावरो ।।
अरी बहना , अंखियां हैं प्यासी प्यासी ...
और भी बहुत सारे गीत हैं। यू ट्यूब पर सर्च करेंगे तो खजाना मिल जायेगा। हां, ब्रज के लोकगीतों में अंजलि जैन का कोई जवाब नहीं है। उन्होंने ब्रज गीतों को उतनी ही बुलंदियों पर पहुंचाया है जितना सीमा मिश्रा ने राजस्थानी गीतों को ।राजस्थान भी इसमें पीछे नहीं है। एक से बढ़कर एक गीत हैं राजस्थानी में। जब से स्वर कोकिला ( राजस्थान) सीमा मिश्रा ने राजस्थानी गीतों को अपनी आवाज़ दी है तब से राजस्थानी लोकगीत घर घर में लोकप्रिय हो गये हैं। कुछ ऐसे गीत निम्न हैं
मोरिया आछ्यौ बोल्यो रे ढलती रात में
म्हारै हिवड़ै रै उठी है हिलौर
मोरिया, आछ्यौ बोल्यो रै ढलती रात में ।
एक गीत और है
मोर बोलै रे ओ मल जी आप रै बाड़ा में
रै मल जी मोर बोलै रे ।
इतने गीत हैं कि सुनते सुनते मन विभोर हो जाता है और नाचने लगता है। जब तक मन में राग मल्हार ना उठे, मन ता ता थैया करके थिरक न उठे , तब तक सावन का कोई मतलब नहीं है।