सार्थक जीवन
सार्थक जीवन
कितनी खुशी होती है जब अपनों से ही यह जीवन सार्थक हो जाए और जब अपनों से ही अंग मिल जाए तो। आज अपनी काया देखकर नीलम बेहद गदगद है। वह वो क्षण याद करती है जब उसकी किडनी खराब हो गई थी। नीलम बहुत बीमार थी। गरीब होने के कारण कोई उसकी सहायता नहीं कर पा रहा था।मां से उसकी यह स्थिति देखी नहीं जा रही थी।
कैसे मां अपने बच्चों की यह स्थिति देख सकती है। जिसे उसने 9 महीने गर्भ में पाला हो। लाडो से पाला हो।
क्या करें ??? अब कैसे होगा ???
यह सोच माँ परेशान रहने लगी क्योंकि वह यह सोच सोच कर बीमार होने लगी। धन के अभाव में किसी और से किडनी ले भी नहीं सकती थी।अंत में वह अपने आप को काबू न रख सकी। उन्होंने निश्चय किया कि वह अपनी बेटी को अपनी किडनी दे देंगी। डॉक्टर के अनुसार उनका अंग और बेटी अंग का मैच हो गया। ऑपरेशन सफल रहा। ऑपरेशन के उपरांत मां और बेटी पूरी तरह स्वस्थ हो गए।
आज मां और उसकी बेटी नीलम बहुत हंसी-खुशी जीवन बिता रहे हैं।
जब मैंने यह कहानी लिखी और यह कहानी मेरी सहेली की जीवन से प्रभावित है। मैंने उसके जीवन से सीख यह निश्चय कर लिया है कि यह शरीर मेरे मरने के बाद किसी जरूरतमंद प्राणी को काम आ जाए यह संबंध में मैंने डॉक्टर से बात की। मैंने अपना अंगदान करने का निश्चय किया और फॉर्म पर साइन करके डॉक्टर को दे दिया है।
जीवन की सार्थकता तभी है जब हम दूसरों के काम आ जाए चाहे वह तन से हो या मन से या धन से।