PRAMADA THAKUR

Others

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सामने वाली खिड़की

सामने वाली खिड़की

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 तीन चार दिनो से सुजाता कुछ उद्विग्न हो उठी थी,वैसे अभी भी वह सामान्य नही थी कारण? सामने फ्लैट मे जो नये किरायेदार आये हैं,उन्हे लेकर वह अपने पति मनीष की तरफ से काफी परेशानी महसूस करने लगी है। जब से ये किराये दार आये है मनीष किसी ना किसी बहाने खिड़की के सामने खड़े रहकर उन्हे निहारते रहते। बात सिर्फ निहारने की होती तो वह ऐसी परेशानी महसूस ही नही करती ,मगर मनीष की दिलचस्पी उसकी नव यौवना पत्नि मे कुछ ज्यादा ही नज़र आने लगी थी ।


वे दोनो एकदम नव विवाहित लगते थे ,ना साथ मे कोई बच्चा ना कोई और भी मेम्बर । रहने सहन से पंजाबी लगते । पति के ऑफिस जाते ही उसकी अल्हड़ पत्नि कभी गुपचुप (पानी पुड़ी)चाट ठेले वाले को आवाज़ देकर बुलाती कभी आइस्क्रीम वाले से आइस्क्रीम ले चटखारे खाते गली मे नज़र आती। पति भी कोई 27'28का लगता और पत्नि 23-24साल की। उसकी अपनी बेटी अनामिका भी तो 22 साल की होगई थी अब अपनी बेटी की उम्र की लड़की को लेकर मनीष का ऐसा छिछोरी हरकत ? बाप रे!वह तो सपने मे भी ऐसी उम्मीद मनीष से नही रखती।पूरी जिंदगी उसके पल्लू पकड़ चलने वाला उस पर जान छिड़कने वाले मनीष की ऐसी हरकत से वह हतप्रभ थी। 

अपनी ही बेटी की उम्र की लड़की को इस तरह ताकना झांकना कहां तक उचित है-'""; मनीष किसी ना किसी बहाने खिड़की के सामने खड़े हो जाते और जब कभी सुजाता उसकी यह चोरी पकड़ लेती वह हड़बड़ा ही नही बौखला भी जाता।सुजाता भी जब उसे खिड़की के पास देखती कोई ना कोई बहाना बनाकर वह भी खिड़की के पास पंहुच जाती हालाकि ऐसा करने पर भी वह अपने प्रयास मे सफल नही हो पाती मगर नारी मन की क्रोधाग्नि मे वह सिर से लेकर पैर तक जल भुन जाती।

पुनः- मनीष का दिन ब दिन उस लड़की के प्रति यह आकर्षण उसे अपनी गृहस्थी हिलती नज़र आने लगी। अनामिका इस वक्त देहरादून मे अपनी मेडिकल की पढ़ाई मेडिकल व्यस्त थी , वैसे मनीष चार साल बाद रिटायर्ड हो जायेगें शादी को 28 साल होगये कभी भी ऐसी परेशानी सुजाता ने महसूस नही किया था बल्कि उसके सौम्य सुदर्शन व्यक्तित्व के सामने अच्छे अच्छे जवान पानी भरते थे। काॅलेज स्टाफ ही नही काॅलेज गर्ल्स भी मनीष के चुम्बकीय व्यक्तित्व से काफी इम्प्रेस होते और गर्ल्स तो कोई ना कोई बहाना बनाकर स्टार रूम तक मनीष के पास आजाते।

यह बात मैडम शर्मा ने खुद सुजाता को हंसते हंसते बताया था ,लेकिन तब वह मनीष को लेकर कभी भी तनाव व दुविधा मे नही पड़ती बल्कि अपने पति पर गर्व किया करती थी।

सुजाता हर वक्त इस ताक मे रहती कहीं मनीष फिर खिड़की के पास तो नही पंहुच गये रसोई मे होते हुये भी सुजाता अपने आपको खिड़की के समीप ही महसूस करती। उस लड़की मे ऐसी कौन सी खूबी है जिसने मनीष जैसी शख्सियत को हिला दिया।माना कि वह अभी जवान है इसलिए हर एंगल से सुदंर लगती है पर--' इसका मतलब यह तो बिलकुल नही कि अपनी बेटी के उम्र '"::छि"छि": बस आगे सोचने मात्र से ही उसका पूरा तन-बदन भट्टी सा तपने लगता। मनीष के काॅलेज जाने के बाद वह घण्टो आईने के सामने अपने आप को निहारती। अभी भी वह सुदंर तो दिखती है माना कि बढ़ती उम्र के साथ पेट कुछ सामने निकल आया है,आंखो मे चश्मा चढ़ गया तो क्या हुआ"::;;आज कल कितनी छोटी छोटी बच्चियों को चश्मा लग जाता इसका मतलब यह तो नही कि बुढ़ापा आ गया। सुजाता मन ही मन तर्क करती चेहरे पर पहले जैसी ताज़गी भी नही अरे!आजकल दूनिया भर के फेशियल आगये है उसमे से कुछ ट्राई करते फिर भी वह अपने सभी हम उम्र सहेलियो मे सबसे ज्यादा स्मार्ट और आकर्षक लगती है।यह बात अनेक बार खुद मनीष ने दोहराई है। लोग तो उसे और उसकी बेटी अनामिका को बहिने भी मान लेते हैं।फिर भी सुजाता कानारी दम्भ मानो प्रचण्ड अग्नि का रूप धारण कल लेता था।

आज सुजाता ने अनामिका की आलमारी खोल उसके पुराने सलवार सूट निकाल लिए वैसे तो अब अनामिका जीन्स टाॅप ज्यादा पहनती सो अपने पुराने कपड़े वह आलमारी मे रख दिये थे। दोपहर बाद वह उन सभी सूटो को बार बार ट्राई करती गई। इस बचकानी कोशिश मे अनामिका के सूट जगह जगह से कट फट भी गये पर सुजाता कब हार मानने वाली थी आखिर कार किसी तरह एक सलवार कुर्ती काफी मशक्कत के बाद शरीर मे फिट आ भी या तो उसे निकालने मे दिक्कत होने लगी। कुर्ती की बाहों जगह जगह से उमड़ गई फिर भी ठूंस ठास के सुजाता ने उसे पहिन ही लिया। कभी माथे की बड़ी लाल बिंदी सुजाता की अपनी विशिष्ट पहिचान बनी हुई थी आज उसकी जगह छोटी सी बिंदी माथे पर सज गई थी लम्बे काले बालो की रबर बैंक लगाकर पोनी का रूप।दिया कुल मिलाकर सिगं कटवाकर बछड़े मे शामिल होने की प्रक्रिया मेज जुट गई। आईना मे आगे पीछे घूम कर देखा वह ठीक ही तो दिख।रही थी बस शाम मनीष के आने का इंतजार करने लगी।

 

शाम घर आते मनीष की नज़र उस पर पड़ी तो वह मुस्कुरा उठा "अरे !वाह!क्या बात है मैडम काफी जंच रही हो पर ये अनु की(अनामिका) ड्रेस क्यो? तुम भी अपने लिए खरीद क्यो नही लेती ।" तारीफ के पुल अभी चढ़ भी नही पाई थी कि पुल भरभरा कर टूट गया। सामने खिड़की पर वह लड़की सब्जी वाले को बुला रही थी और मनीष की आंखे खिड़की पर जम सी गई थी।

 

 कुछ दिनो तक यह खेल चलता तो शायद वह बर्दाश्त भी कर लेती मगर उसे पता तो नही था सामने वाले किराये दार कितने महिने या सालो के लिए आये हैं।मनीष की हरकते शायद सामने वाली जानती ना हो उसे क्या पड़ी हे अपने बाप के उम्र के व्यक्ति ओफ्फ!:; ,, सिर से पैर तक शरीर झनझना गया। एक दिन।तो हद हो गई जब उसने नीचे गली मे मनीष को उस लड़की से बात करते हुए देख लिया। तो जनाब इतने आगे बढ़ गये ,सुजाता के तन बदन मे आग लग गई।


 पानी सिर से उपर ना पंहुच जाय अब तो कुछ करना ही पड़ेगा। ठीक है पहले अपनी बेटी अनु को फोन पर बतायेगी। मन मे बिजली सी कौधं गई :नही "::नही उसका तो पेपर चल रहा है बिचारी डिस्टर्ब हो जाएगी तो--'तो"::फिर"::किसकी सलाह ले अपनी ननदो से पर वो तो अपने भाई की ही साईड लेगी ना"":;नही अपनी भाभी से बात करे? यदि भाभी ने भैय्या कोफ्त बता दिया तो??? भैय्या तो गुस्सैल है हो सकता है यहां आकर मनीष को अनाप शनाप कह जायं और बेकार ही जीजा साले के रिश्ते मे खटास आजाए!

सुजाता ने सोचा किसी से कहना खुद की बेइज्जती कराना है उसे अपनी सहेली आकांक्षा की याद आई चलो उसी से बात करती हूं हर समस्या पर वही है जो उसे सही सलाह देती है,उसने फोन लगाया फोन लगाया पर टका सा जवाब मिला ,नम्बर अस्तित्व मे नही है। अब?उसके लिए यह यक्ष प्रश्न बन गया। सारी रात बैचेनी से गुजरी नीदं को नही आनी थी सो नही आई।

  

मनीष के काॅलेज जाने के बाद सुजाता थके मन से सारा काम निपटाकर जरा बिस्तर पर लेट गई। रात भर की जागी अंखियो को बिस्तर का कोमल एहसास मिल गया । अचानक दरवाजा खटखटाने की आवाज से वह चौक!उठी हे!भगवान् शाम 5बज गये मनीष काॅलेज से आ गये थे हड़बड़ाहट मे उसने दरवाजा खोला सामने मनीष खड़े थे वह उल्टे पांव लौट ही रही थी कि मनीष ने कहा-"अरे!!!!!कहां चली ज़रा देखो तो कौन आया है। "उसने पलट कर देखा मनीष के पीछे वही खिड़की वाली लड़की मुस्कुराते हुए खड़ी थी।


 सुजाता अबकी हतप्रभ थी मुहं बाये कभी मनीष और कभी उस लड़की को देखे जा रही थी।तभी मनीष ने कहा अरे भई इन्हे अंदर तो बुलाओ। सुजाता ने अनमने ही कहा -"हां हां आइए ना "

 

अंदर आने पर मनीष ने कहा "सुजाता इनसे मिलो ये है हमारी भांजी साहिबा सोनिया सलूजा क्यो ?चौक गई ना":: मै पहले पहल इसे देखकर चौक गया था। "अब मनीष ने सारी गुत्थी स्वंय सुलझा दी तुम्हे याद है ना मैने तुम्हे अपनी चचेरी बहिन मंजूषा दीदी के बारे मे बताया करता था यह गुडिया उसी मंजूषा दीदी की सबसे छोटी बेटी है।


अब सब कुछ आईने की तरह साफ हो चुका था . सुजाता को हमेशा ससुराल मे ननद की कमी खलती तब मनीष ने बताया था उसकी एक ही बहिन थी चचेरी मगर वह भी अन्तरजातिय शादी कर कनाडा चली गई थी ,चाचा जी विशुद्ध ब्राम्हण और मंजूषा दीदी ने पंजाबी से शादी कर ली थी बस चाचा जी ने शादी के बाद उसे घर की देहरी चढ़ने।नही दिया बेचारी दीदी रोते रोते उल्टे पैर अपने पति के साथ चंडीगढ चलो गई फिर वहां से कनाडा। खबर मिली थी कि दीदी के दो बच्चे भी हुये शादी के कोई बारह तेरह बरस बार दीदी चल बसी पता चला था उन्हे ब्लड कैंसर था। उस वक्त मनीष काॅलेज मे थे। 


आज जैसे लम्बे समय से छाया धुंध हट चुका था ।सोनिया घर आई तो सुजाता का सारा वहम और तनाव खत्म हो चुका था सोनिया भी अपने मामा मामी से मिल कर खूब खुश थी। मनीष ने बताया मै जब भी खिड़की के पास इसे देखता मुझे मंजूषा दीदी की याद आती पर मै श्योर नही था क्योंकि जब दीदी की शादी हुई मै हाई स्कूल मे था और दीदी का वही चेहरा मुझे याद था जो अभी सोनिया का है और तो और उम्र भी लगभग सोनिया की ही थी।

खैर काफी देर रहने के बाद सोनिया घर चलो गई। लेकिन सुजाता मन ही मन मनीष को लेकर जिस तरह तनावग्रस्त थी अब वह तो नही अलबत्ता खुद को माफ नही कर पा रही थी।

"अरे भई सोना नही है क्या" मनीष ने आवाज दी।"हां अभी आई" और वह सामने ड्राइंग रूम की खिड़की खोलने लगी अब मनीष ने कहा खिड़की बंद कर दो यार सुजाता ने कहा आज खुला रहने दीजिये ठंडी शीतल हवा जो आरही है और वह गुनगुनाने लगी।


"रजनी गंधा फूल तुम्हारी

महके यूं ही जीवन मे

हां यूं ही महके प्रीत पिया की

मेरे अनुरागी मन में।


     


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