सामना सूझबूझ से !
सामना सूझबूझ से !
नंदन वन में राजा शेर सिंह प्रजा प्रिय राजा थे। सभी पशु-पक्षी मिल-जुलकर रहते थे। वन का शासन चलाने के लिए उनके सेनापति भालू और प्रधानमंत्री बाघ थे। वे बहुत अक्लमंद एवं साहसी थे।
राजा शेर सिंह अब बुजुर्ग हो गये थे इसलिए राज्य की देखभाल और रक्षा सेनापति भालू और प्रधानमंत्री बाघ ही किया करते थे।
दिवाली मनाने के लिए राजा शेर सिंह ने जंगल में सभा बुलाई ।सभी आ गए पर प्रधानमंत्री बाघ आज आ नहीं पाए। सभा में वन के पशु-पक्षी एक-दूसरे को बधाई देने के साथ दिवाली पर क्या क्या करेंगे, इस पर चर्चा कर रहे थे कि इतने में जासूस कबूतर आसमान में उड़ते हुए नज़र आया।
राजा शेर सिंह को प्रणाम कर कबूतर ने बताया कि प्रधानमंत्री बाघ ने शेर सिंह से बगावत कर दी है। आधी सेना उसका साथ दे रही है। बाघ सेना लेकर आक्रमण करने बड़ा चला आ रहा है।
सेनापति भालू ने राजा शेर सिंह से कहा," महाराज आप चिंता मत करें। हम सब धोखेबाज प्रधानमंत्री को मजा चखा देंगे।"
जासूस खरगोश ने भी आकर बताया, ' दूषक वन के राजा शेर जोर सिंह हमारे वन पर आक्रमण करने वाला है और प्रधानमंत्री बाघ उनके साथ मिल गया है।"
स्थिति अब साफ हो गई, प्रधानमंत्री बाघ चार दिन पहले किसी काम बहाना कर दूषक वन गया था। अभी तक लौटा नहीं और आज ऐसी खबर!
इसका मतलब यह कि बाघ ने दूषक वन के राजा को नंदन वन के राजा शेर सिंह की अस्वस्थता के बारे में बताया तभी वह राज्य पर कब्जा करने के लिए हमला करने आ गया।
खैर, अब तो दिमाग से यदि काम नहीं लिया तो दूषक वन के राजा जोर सिंह, नंदनवन को हराकर कब्जा कर लेगा जो नंदन वन की प्रजा और राजा नहीं चाहते थे।
सेनापति भालू के साथ मिलकर राजा शेर सिंह ने एक गोपनीय सभा बुलाई। सभा में कुछ बुद्धिमान एवं विश्वासपात्र पशु-पक्षी थे। सेनापति ने सभी को आने वाली मुसीबत के संबंध में बताया।
रक्षा मंत्री हाथी ने कहा,"'हमारा वन चारों ओर से बांस के पेड़ों से घिरा हुआ है। उसके साथ बाडंड्री हमने कांटेदार तार की लगा रखी है। फिर दुश्मन भला कैसे घुस सकते हैं?"
मंत्री बंदर ने कहा,"' इस बार की बारिश में पश्चिमी वन की बाउंड्री पर एक हिस्सा जमीन में धंस गया था। वहां से दुश्मन आ सकता है। प्रधानमंत्री बाघ को मालूम था पर लगता है जान बूझकर ठीक नहीं कराई गई।
सेनापति भालू ने कहा, "कुछ भी हो, हम अपने वन को गुलामी से बचाकर रहेंगे। चाहे हमें अपनी जान ही क्यों न गंवानी पड़े।"
मंत्री मकड़ी अभी पहुंची ही थीं, उन्होंने सारी स्थिति समझकर एक उपाय बताया।
मंत्री मकड़ी ने कहा," हम सभी मकड़ियां पश्चिमी भाग के उस हिस्से को जालों से ढक लेंगे। प्रधानमंत्री बाघ को उस हिस्से के बारे में पता है वो दूषक वन की सेना के साथ रात में वहीं से हमारे वन में घुसने का सोच कर आए होंगे। रात के समय जालें दिखाई नहीं देंगे तो उनमें उलझकर गिर जाएंगे , उसी वक्त हम उन्हें बंदी बना लेंगे।"
राजा शेर सिंह ने फौरन से ऐसा करने को कहा। जैसा सोचा था वैसा ही हुआ और दुश्मन दूषक वन के राजा जोर सिंह के सारी सेना जालों में उलझकर गिरी और नंदन वन की सेना के हाथों बंदी बना ली गई।
दूषक वन के राजा जोर सिंह और नंदन वन के धोखेबाज प्रधानमंत्री बाघ को मौत की सजा मिली। दूषक वन पर नंदन वन के राजा शेर सिंह का अधिकार हो गया। प्रजा उनके राज में खुशी से रहने लगी क्योंकि दूषक वन के राजा जोर सिंह के अत्याचारों से मुक्ति मिल गई।
नंदन वन और दूषक वन मिलाकर राजा शेर सिंह का साम्राज्य बहुत बड़ा हो गया, राज्य ने काफ़ी प्रगति की। प्रजा आनंदपूर्वक रहने लगी।
सीख- इस कहानी से यही प्रेरणा और शिक्षा मिलती है कि परेशानी, मुसीबत, विपत्ति या कठिनाई में अपना आपा नहीं खोना चाहिए बल्कि दिमाग का प्रयोग करके एकजुट होकर मुसीबत का डटकर सामना करना चाहिए। एकता में ही शक्ति है!"