arun gode

Tragedy

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arun gode

Tragedy

साली की खबर

साली की खबर

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एक दिन मैं दुपेहर खाना खाने के बाद रवीवार की छुट्टी होने के कारण अपने सामने वाले दालान में आराम से हिंदी समाचार पत्र पढ रहा था। मैं और मेरा परिवार ज्यादातर मध्यप्रदेश में नौकरी के कारण रहे हैं। उधर मराठी अकबार नहीं मिलता था। मरता क्या न करता ? इसलिए हिंदी अकबार पढा करता था। बच्चे भी केंद्रीय विद्यालय के छात्र होने से और लग-भग सभी वर्गमित्र ज्यादातर, या तो हिंदी भाषी,या मजबुरी में अपनी मातृभाषा को छोड हिंदी या अंग्रेजी में बात करते थे। इसलिए पुरा परिवार हिंदी भाषा का अभ्यस्थ,आदी हो चुका था। सभी घर के सदस्य हिंदी अकबार पढने के आदी हो चुके थे। वहाँ से हमारा अन्न जल उठ जाने बाद। अपने प्रांत में वापिस आने पर भी हम सब हिंदी अकबार पढना पसंद करते थे। अधजल गगरी छलकत जाय। हम अपने को हिंदी के विदवान समझते थे। इसलिए हम सब नवभारत अकबार पढते थे।वहाँ के कई वर्षों के रहवासी होने के कारण ज्यादातर संभागों की जानकारी सभी को थी।इस लिए खबर पढने में रुची बनी हुई थी।

अकबार पढते- पढते मेरी नजर अचानक एक छपी तस्वीर पर पडी। तस्वीर में जो महिला चित्र नजर आ रहा था,वह कुछ जाना-पहचाना सा लग रहा था। अकबार को और आँखो के नजदिक लाकर पहचाने की कोशिष कर रहा था। फिर चष्मा लगाकर देखा,तो फोटो जो मैं सोच रहा था।वही थी। फिर मुझे लगा की मेरे मुंहबोली साली ने कौनसा पराक्र्म किया होगा।इसलिए अकबार में छाई हुँई है। मैंने अपने पत्नी को छेडने के बहाने, आवाज दी।अरे देखो तुम्हारे बहन का फोटो छपा है।वो झलाकर कहने लगी।तुम्हे मेरे बहनों के शिवाय कुछ औए नहीं दिखता क्या ?। अरे कैसे और कोई दिखेगा !। हामारी जैसी होनहार सालीयँ, मुझ जैसे काबीलियत वाले जीजा के ही नसिब में होती है।सालीयाँ आदी घर वाली होती है।हमारे जैसे खुशमिजास जिजा हो, तो आपके अनुमती से उसे पुरी घरवाली बनालें !

।अरे मुंगेरिलाल के हसिन सपनें देखना बंद कर दो। मेरी कोई भी बहन तुम्हे घास नहीं डालती। मालुम नहीं,क्यों मेरी मती मारी गई थी।जो तुम्हारे जैसे निक्कमें से शादी के लिए हाँ कर दी थी।मेरे तो भाग ही फुट गये है।इन सब बातों में उसने अपना काम पुरा कर दिया था।अब उसे फुर्सत मिली थी।जिज्ञासा के कारण ,वो मेरे पास आई थी।आपका साली को घुरना हो गया हो तो,मैं भी देखु कौनसी साली है जो अकबार में तुम्हे मिलने के लिए छा गई है ? उसने मेरे हात से अकबार छिन लिया था। खुद अकबार में ढुंढने लगी। उसकी भी नजर उस फोटो पर गिरी थी। अरे ये तो तुम्हारी चाहती मुंह बोली मध्यप्रदेश वाली साली हैं। अरे इसने ऐसा क्या किया हैं कि इसकी फोटो अकबार में छ्प गई है। मैंने कहाँ खबर कुछ अच्छी नहीं है।पुलिस ने उसे जाली नोट सिलसिले में बैंक में जमा करने के अपराध में गिरफतार किया है। छानबिन चल रही है। अभी अदालतने उसे पोलिस कस्ट्डी में रखा है।जैल में बंद है। यह बात सुन कर उसके पैर तले जमिन खिसक गई थी। हमें इधर आके कॉफी अरसा हो गया था।लग-भग रिश्ता टुट सा गया था। उस जमाने में मोबाईल नहीं हुआ करते थे। मध्यम वर्गीयों के पास लैंड लाईन फोन भी नहीं हुआ करते थे। एक दो बार शुरु –शुरु में कुछ साल तक चिठ्ठीयों का सिलसिला चला था। बाद में वह भी दोनों तरफ से रुक गया था। खबर सुन कर हमे बहुत बुरा लगा था। हम फिर थोडी देर के लिए भुतकाल में चले गये थे।

       जब हम सब उधर थे। इनका खुदका घर हमारे किरायें के घर के कतार में थोडी दुरी पर स्थित था। हम जिस मकान में रहते थे। उन्होने ही हमें उनके बारे में बताया था। हम समभाषीय होने के कारण मेरे पत्नी की उनके साथ दोस्ती हुई थी। हमे भी कोई परिचित चाहिए था। उस परिवार में तीन लडकियाँ और सेवानिवृत्त पिता और गृहिनी माता थी।उन्हे कोई पुत्र नहीं था। वे सभी लडकीयां, मेरे पत्नीसे छोटी होने से उसे दिदी कहती थी।मान न मान मैं तेरा महेमान। इस तरह में उस घर का दामात बन गया था।वे सभी लडकियां मुझे प्यार से जिजाजी कहके बुलाती थी। रिश्त के नाते कभी हसी –मजाक हम कर लेते थे। बडी लडकी पुलिस में, दफ्तर में कार्य करती थी।कभी-कभी मुझे वह महिला पुलिस का पोषाक पहन कर घर निकलते दिखने पर,मैं उसे रुखकर जोरसे नमस्ते ठानेदार साहब कहके पुकारता था। वह शर्म से लाल हो जाती थी।अरे जिजाजी इतने जोर सलाम मत ठोका करों किसी दिन जबान बाहार आ जाऐगीं। फिर अपने सालीयों से बात भी नहीं कर पायेगें !। दुसरी और तीसरी कॉलेज और स्कूल में जाया करती थी। उस घर को देख कर ऐसा लगता था कि सिर्फ छोटी ही खाना खाती है।वह कॉफी गोलमटोल थी।अन्य तो फूंक मारने पर उडने की संभावना रहती थी।छोटी अकसर घर आया करती।फिर मेरे लडकी को उठाकर अपने घर खेलने ले जाती थी। वहाँ परिवार में बहुत सदस्य होने के कारण सभी उसे बडे प्यार से खिलाते थे। छोटी अकसर उसे किसी प्रतियोंगिता में भाग लेना रहा तो वह मेरे पास आकर जैसे निबंध, प्रश्न मंच, भाषन वैगरे की तैयारी कर लेती थी।बहुंत बार उसे पारितोषिक भी मिला करते थे।इस तरह हम जब तक वहाँ थे हमरे सबंध काफी मधुर थे। परिवार एक सिधा सरल परिवार लगता था। बाद में दोनों बडी लडकियों की शादी हुई थी। हमें बुलायां गया था। लेकिन मैंने पत्नि से कहाँ, हम सब मेरे सबसे छोटी प्यारी साली के शादि में जाएगें ! ।तब सब से मुलाकात होग़ी।एक दो दिन रहेगें।ऐसी चिठ्ठी भी मेरे पत्निने डाली थी। छोटी साली का नाम पूर्मिमा था।

उसने जवाब लिखा था। जिजाजी,ओ,मेरे प्यारे,अच्छे जिजाजी ,अपना वादा मत भूल जाना।वर्णा ये साली कुंवारी ही रह जाएगीं। हमारा वो सपना कभी पुरा नहीं हुआ था।अकबार में वही माँ-बाप ने रखा नाम और उपनाम था। हमे कोई निमंत्रण नहीं कभी आया था।शायद गलत संगत में पडकर, मजबुरी,लालच में आकर यह गलत काम में शायद पड गई होगी !। उसकी बडी बहन पुलिस में होने से उस में कुछ ज्यादाहि साहस आया होगा।इसी साहस और पुलिस पृष्ठभूमि को किसी ने दूर उपयोग करने की योजना बनाई होगीं। वो शायद किसी के बहकावे में आकर अक्ल के पीछे लठ लिए घुमंती होगीं। उसे लगता होगा मैं कुछ अच्छा काम करती हूं। लेकिन आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास, जैसा गलत कार्य किया होगा। प्रकृति हमेशा सबको सदबुध्दि दे।


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