साहेब सायराना-13
साहेब सायराना-13
कहते हैं कभी- कभी एक और एक ग्यारह हो जाते हैं। लेकिन वहां तो एक, एक और एक मिलकर हज़ारों हो गए।
ये पहेली तब की है जब कालजयी फ़िल्म "मुगले आज़म" बन रही थी। वैसे तो कोई भी निर्माता अपनी फ़िल्म को ये सोच कर नहीं बनाता कि ये असफल हो जाएगी। सब उसे बेहतरीन मान कर ही बनाते हैं। लेकिन इस फ़िल्म के निर्देशक के. आसिफ़, चरित्र अभिनेता पृथ्वीराज कपूर और नायक दिलीप कुमार तीनों ही "परफेक्शन" के जबरदस्त हिमायती थे। तीनों ही एक बार में एक ही काम पर ध्यान देने के आदी थे। एक - एक संवाद, एक एक फ़्रेम को सबसे मंज़ूर हो जाने के बाद ही चुना जाता।
ऊपर से फ़िल्म की नायिका मधुबाला भी उस दौर का सबसे चमकदार नाम था।
फ़िल्म के निर्माण में लगभग चौदह साल का समय लगा और ये इतिहास की भव्यतम फ़िल्म अपने आगाज़ के सोलह साल बाद पर्दे का मुंह देख सकी। लेकिन दिलीप साहब का ज़मीर और ईमान इस अत्यंत महत्वाकांक्षी फ़िल्म की किस्मत से भी कहीं ज़्यादा ऊपर था। फ़िल्म के निर्देशक करीमुद्दीन आसिफ़ रिश्ते में दिलीप कुमार के बहनोई ही होते थे। कहते हैं कि एक बार दिलीप साहब के इन जीजा का उनकी पत्नी, यानी दिलीप कुमार की बहन अख़्तर से किसी बात पर झगड़ा हो गया। घर की बात जानकर दिलीप कुमार दोनों के बीच सुलह और बीचबचाव कराने की गरज से वहां पहुंच गए। पर तमतमाए जीजा ने कह दिया कि "तुम अपनी स्टारडम मेरे घर के मामले में बीच में मत लाओ"! दिलीप कुमार का स्वाभिमान अहंकार की इस अपमान जनक टिप्पणी से आहत हो गया और वो आसिफ़ की जिस महान बजट की ऐतिहासिक फ़िल्म के निर्माण में चौदह साल से लगे हुए थे उसके प्रीमियर तक पर नहीं पहुंचे। उन्होंने अपनी व्यावसायिक ज़रूरत को रिश्तों के सामने रत्ती भर भी अहमियत नहीं दी।
ऐसी ही कई घटनाओं व विवादों ने दिलीप कुमार को "दिलीप कुमार" बनाया है!
इन्हीं दिलीप कुमार के साथ सायरा बानो की ये जोड़ी लगभग पचपन साल तक छाई रही। दिलीप अभिनय और इंसानियत के एक स्कूल थे, जिसकी गरिमा और तिलिस्म की हिफाज़त सायरा बानो ने आज तलक की।