रिश्तो में पैसे का गणित/ सफल समझौता
रिश्तो में पैसे का गणित/ सफल समझौता
समझौता (Compromise) का अर्थ होता है दो या दो से अधिक पक्षों के बीच विवाद या मतभेद को सुलझाने के लिए एक मध्य मार्ग या सहमति पर पहुँचना।
इसमें सभी पक्ष अपनी कुछ इच्छाओं, अधिकारों, या अपेक्षाओं को छोड़ते हैं ताकि एक समझ विकसित की जा सके जो सभी के लिए स्वीकार्य हो। समझौता आमतौर पर एक संतुलित हल होता है जिसमें सभी पक्षों को कुछ न कुछ लाभ या हानि होती है, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से हल करना होता है।
हर इंसान को अपनी जिंदगी में शांतिपूर्ण चलाने के लिए समझौता तो करना ही पड़ता है नहीं तो शांति अशांति में बदल जाती है ऐसे में कोई समझदार इंसान मध्यस्थता करके उस विवाद को शांतिपूर्णढंग से सुलझाने में सहायता करता है तो जिंदगी को सही दिशा मिल जाती है।
प्रस्तुत कहानी इसी पर आधारित
नीरू और नीरज दोनों की पसंद मिलती-जुलती थी।
दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे और दोनों ने बहुत अच्छी पढ़ाई करी थी।
दोनों का प्यार परवान चढ़ा घर वालों की सहमति से उन्होंने शादी कर ली।
जिंदगी में सब कुछ अच्छा चल रहा था।
पहले नीरज को नौकरी मिली नौकरी काफी अच्छी थी। तनख्वाह भी अच्छी थी,
मगर अब उसको पैसा कमाने की लत लग गई थी।
पैसे वाला बनने के चाह में उसने नीरू को भी बोला की नौकरी कर ले, घर में डबल पैसे आएंगे अपन एक घर खरीद लेंगे।
अभी अपन एक फ्लैट में रहते हैं, सब सुख सुविधा कर लेंगे।
नीरू भी घर में रहकर थक गई थी।
उसने भी सोचा पढ़ाई का उपयोग करना चाहिए जोब के लिए कोशिश करने पर अच्छी जॉब मिल गई अब उसको उसके पति से ज्यादा पैसे मिलने लगे।
थोड़े दिन तो घर में पैसे की रामायण नहीं चली।
मगर एक बार नीरज ने नीरू को बोला थोड़े पैसे हमको बचाने भी चाहिए,
ताकि हम घर खरीद सकें और दूसरी सुख सुविधाएं अच्छी तरह से घर में बसा सकें।
नीरू को थोड़े दिन तो यह बात पसंद आई।
कुछ महीने तो उसने बचत करी और घर बहुत अच्छे से चल रहा था।
फिर एक बार उसके पीहर में उसकी मां ने बोला यह पैसा तू कमाती है।
जो तेरा है इस पर तेरा हक है तेरी इच्छा हो जैसे खर्च कर। और घर का खर्चा सब नीरज को करने दे।
अपने फायदे की बात होती है, तो सबको बहुत जल्दी समझ आती है।
नीरू को भी यह बात समझ में आई कि मेरा पैसा तो मेरा है।
बस उसी दिन से उसका दिमाग फिर गया।
उसने अपने पति से कहा अब मैं घर में एक भी पैसा नहीं दूंगी।
मकान बनाना घर की सुविधाएं जुटा ना घर चलाना यह सब तुम्हारी जिम्मेदारी है मेरी नहीं मैं मेरे पैसे से ऐश करूंगी मेरे मनचाही इच्छा से खर्च करूंगी।
नीरज को बहुत गुस्सा आया। उसने कहा ठीक है।
अभी तक तो तेरा पैसा मेरा पैसा नहीं हो रहा था।
अब अपने रिश्तों में गणित घुस गया है तो अब ऐसा करते हैं घर का सामान और घर का खर्च मैं करूंगा।
बाई का दूध का और कार में पेट्रोल डलवाने का खर्चा तुम करना।
नतीजन दोनों में झगड़ा होने लगे।
कभी तो मेहमान भी घर में आ जाते तो झगड़ा बढ़ जाता।
बच्चे का तो सवाल ही नहीं क्योंकि उसके आने से खर्चा बढ़ जाता।
जिंदगी में गणित घुसने से उनकी जिंदगी से प्यार खत्म हो गया और एक स्थिरता आ गई। दोनों अपने-अपने पैसे से अपने-अपने अहम से चल रहे थे बराबर।
ऐसे में एक दिन उसकी बहन घर पर आई ।
नीरू बहुत खुश हुई बहन दो-चार दिन रुकने के लिए आई थी।
उसने वहां के हाल-चाल देख कर अंदाज लगा लिया क्या हो रहा है।
जाने से एक दिन पहले उसके पति भी आ गए ।
दोनों जनों ने मिलकर के अब उनके घर के हाल-चाल सुधारने का सोचा।
दोनों ने अलग-अलग नीरू और नीरज से बात करी
बात की तह में जाने पर पता लगा की नीरू मां के बहकावे में आ गई है ।
और उसने अपने पैसे को अपने अहम का मुद्दा बना लिया।
उसने अपनी बहन को समझाया कि तू मां के बहकावे में आ गई।
मां ने कभी पिताजी को भी अच्छी तरह नहीं समझा उनके घर वालों को भी नहीं।
इसलिए वह अपन दोनों को लेकर के अकेले ही रहने चली गई।
यह बात तु भूल गई उनकी जिंदगी में भी पैसे का गणित घुस गया था ।
जिसने सारे रिश्तों में घुन लगा दिया।
मुझे तो बहुत जल्दी समझ में आ गया था।
इसलिए मैं कोर्ट मैरिज करके दूर हो गई ,और इसीलिए मेरे से नाराज है कि मैंने उनकी कोई बात नहीं मानी।
अब उन्होंने तेरे को भी भड़का दिया ।
यह मेरा पैसा तेरा पैसा क्या होता है।
तू यह बता नीरज तेरा है।
नीरू बोलती है हां मेरा है ।
तो फिर उसका पैसा भी तेरा ही हुआ तो तू किसकी है उसने कहा मैं नीरज की पत्नी हूं तो बोली तेरा पैसा भी उसका ही हुआ।
तो क्यों नहीं तुम बड़ा अकाउंट बनाकर खर्च करो
और एक अकाउंट ऐसा बनाओ जिसमें बचत का रखो। और एक अकाउंट तुम्हारे पर्सनल खर्च के लिए बनाओ। इससे मगजमारी भी कम होगी और जिंदगी का प्यार भी बना रहेगा।
नहीं तो तुम पिक्चर और होटल तक नहीं जाते हो, कि खर्च का पैसा कौन निकालेगा।
तुमको छोटी-छोटी चीजों के लिए छोटे-छोटे क्षणों को तुम बर्बाद कर रहे हो जो खुशी के क्षण होती है ।
यह समय तो घर में एक किलकारियां गूंजनी चाहिए थी बच्चे की ।
उसकी जगह तुम तो पैसे में ऐसे घुस गए हो कि उसमें से निकल ही नहीं पा रहे हो। जिंदगी में गणित को नहीं जिंदा दिली को अपना कर खुश रहो।
उधर उसका पति भी नीरज को काफी समझाता है।
उसको भी यह सब समझ में आ जाता है।
वे दोनों चले जाते हैं।
उनके जाने के थोड़ी देर बाद ही नीरू अपने सारे पैसे ले जाकर के नीरज के सेफ में रख देती है।
नीरज यह देख कर बोलता है, यह क्या हो रहा है यह क्यों कर रही हो ये तो तुम्हारे पैसे हैं ।
वह रोते हुए बोलती है आज मुझे समझ में आया रिश्तो में गणित नहीं ,अपनापन चाहिए। तुम मेरे हो तो तुम्हारा पैसा भी मेरा है ।
तुम्हारा सब कुछ मेरा है और मेरा सब कुछ तुम्हारा है तो फिर यह मेरा तुम्हारा क्यों।
आज से यह मेरा तुम्हारा नहीं अब यह हमारा रहेगा और दोनों एक दूसरे से प्यार से गले लग जाते हैं।
दोनों के बंद दिमाग के ताले खोलकर उनकी दीदी चली गई। दोनों दीदी को दिल से शुक्रिया अदा करते हैं ।
वो लोग आये तो इतनी समझ दी और हम दोनों को समझौता करवा दिया।
अब हम जिंदगी को अपनी अच्छी तरह से जियेंगे और हमारे परिवार में भी बच्चे की किलकारियां गूंजेगी।
दोनों एक दूसरे में खोए हुए होते हैं।
इतने में उसकी मां का फोन आता है कि मैंने सुना है तेरी दीदी आई थी।
तु उसकी बात मत सुनना वह तो बहुत सुफियानी सलाह देती है।
जो मैं कहती हूं वही करना। अपना पैसा अपने पास रखना तू किसी से कम थोड़ी है।
वह कहती है मां आपने जो आज तक सलाह दी है अब वह सलाह आप अपने पास रखें। मुझे समझ में आ गया है कि मुझे क्या करना है ।
और दीदी ने जो सलाह दी है वह बहुत अच्छी है।
अब हमारे में समझौता हो गया है और कृपा करके आप मेरे को आप इस तरह के फोन ना करें और फोन रख देती है।
दोनों के बीच एक प्यारा सा समझौता हो जाता है और रिश्तो के अंदर पैसों का गणित गायब हो जाता है आशा है आपको यह कहानी पसंद आएगी कृपया समीक्षा देकर बताइए कैसी लगी यह मेरे दिमाग में बहुत दिनों से चल रहा था जिसको आज मैंने कहानी में शब्दों में बुनकर अपनी बात समझानी चाही
है।