रेत की घड़ी
रेत की घड़ी


"मम्मी मुझे स्कूल जाना है नाश्ता तैयार है", राकेश चिल्लाया।
"शालीनी मेरा नाश्ता आँफिस के लिये लेट हो रहा हूँ", अजय चिल्लाया।
" माँ जल्दी करो मेरा पेपर है आज काॅलेज में ", रेशु बोली।
"हाँ, हाँ, हाँ, सब रेडी है बाबा नीचे तो आओ तुमलोग", शालीनी हंसते हुए बोल पर पड़ी।
थोड़ी देर में सब के सब नाश्ते के टेबल पर होते हैं।
" अच्छा प्रणाम माँ पापा आज पेपर है निकलती हूँ ", रेशु बोली।
"राकेश को भी बस तक छोड़ते जाओ बेटा,", शालीनी बोली।
"ओके माँ", कहते हुये रेशु और राकेश निकल गये।
जैसे अजय जाने को हुआ, "अरे तुम भी जा रहे हो, कुछ देर तो बैठो मेरे साथ", शालीनी बोली।
"आने वाले सालों में जब रिटायर्ड हो जाऊँगा तुम्हारी ये शिकायत भी जाती रहेगी, फिर तो बोलोगी, बुड्ढा सारा दिन बक-बक करता है, अच्छा चलता हूँ रेशु के शादी कि तैयारियां भी देखनी है, बाय", अजय हंसते हुये बोल पड़ा!
शालीनी अकेली रह गयी, देखा तो रेत की घड़ी का रेत पुरा गिर चुका था, उसने उलट कर वापस रख दिया उसको।
सारा दिन घर का काम किया, रिश्तेदारों को फोन किया, गप्पें मारी।
रात में अजय और शालीनी एकांत में।
"सारे इंतजाम कर दिये कहीं कोई कमी नहीं रहनी चाहिए बेटी के शादी में", अजय ने उत्साहित होते हुये कहा!
" सारा दिन यही बात, कभी तुमने मुझसे पूछा है, कैसी हूँ , कैसा महसूस करती हूँ, मैं भी आखिर मैं भी इंसान हूँ अजय ", शालीनी ने झिड़कते हुये कहा।
" अरे जान, सब तुम्हारा ही तो है, ये सब मैं अपने बच्चों के लिये और तुम्हारे लिये ही तो कर रहा हूँ ", अजय ने शालीनी को आगोश में लेकर चुमते हुये कहा।
"जबसे दुल्हन बना कर लाये हो, तरस गयी हूँ , कि कभी मन भर कर बात करुं, कहीं घूमने जाऊँ, उतरते के साथ चुल्हे घर में घुस गयी! पहले सास, ससुर, ननद कि सेवा कि,अब बच्चे और तुम! कभी अपने लिये जी ही नहीं पायी", कहते हुये शालीनी अतीत के यादों में चली गयी।
" अच्छा बस रेशु कि शादी हो जाये और राकेश विदेश में सेटल हो जाये, उसके बाद सारा वक्त हम दोनो का", अजय ने शालीनी का हाथ अपने हाथों में लेते हुये बोला।
"हाँ देखते है, माँ-बाप होने के नाते हमारी जिम्मेदारियों का कोई अंत नही है, चलो सोते है अब बहुत रात हो गयी", शालीनी आंखे बंद करते हुये बोली।
आखिर रेशु कि शादी हो गयी, मेहमान भी सारे घर को गये !
अजय, शालीनी बरामदे में बैठे होते हैं और राकेश फार्म लाने गया था अपने मेडिकल के परीक्षा का।
" वक्त कितनी जल्दी बीत गया ना अपनी रेशु अब परायी भी हो गयी, अभी तो नन्ही सी थी वो", शालीनी ने आंखे पोंछते हुये कहा।
"हां शालीनी जिंदगी इस रेत के घड़ी के रेत जैसे हाथ से छूटती चली जा रही है", अजय ने पास पड़े रेत के घड़ी को हाथ में लेकर कहा।
अगले दिन फिर सुबह शालीनी बोली ",थोड़ा बैठो तो साथ।"
"बस राकेश की परीक्षा हो जाये फिर बैठना ही बैठना है", अजय बोला।
दोनों हँस पड़े ।
राकेश विदेश चला गया, शालीनी और अजय हरदम उससे बातें करते फोन पर, उसी पर पता चला राकेश कि नौकरी वहीं हो गयी है, धीरे- धीरे राकेश का फोन आना कम हो गया।
अचानक एक दिन राकेश का फोन आया और बोला पापा,"मैं अपनी मर्जी से शादी करना चाहता हूँ और शादी कल ही है ,आप लोग तो इतनी जल्दी आ नहीं पाओगे तो विडियो काॅल पर आशीर्वाद दे देना, साॅरी माँ- पापा, सब कुछ अचानक हुआ, आरती कि माँ की तबियत काफी सिरियस है, होप यू बोथ अंडरस्टैंड।"
आखिर माँ-बाप थे माफ़ तो करना ही था, नया जमाना था भाई, और हो भी क्यों ना शादी के दस सालों बाद जो पैदा हुए थे रेशु और राकेश।
फिर राकेश का कभी फोन ना आया और फोन करने पर लगता भी नहीं था, शायद उसने नंबर के साथ-साथ रिश्ते भी बदल लिये थे।
रेशु भी अपनी गृहस्थी में रम गयी थी, शायद वो अब शालीनी कि जिंदगी जी रही थी।
"लो भाई आ गया हमारा रिटायरमेंट लेटर भी, अब वक्त ही वक्त है शिकायत ना करना", अजय बोलते हुये बैठ गया और शालीनी को भी अपनी तरफ खिंच कर पास बैठा लिया।
दोनो एक दूसरे को अपलक देखने लगे जैसे शादी कि पहली रात को देखा था।
"कितनी झुरियां आ गयी है ना तुम्हारे चेहरे पर, पर अभी भी उतनी ही खूबसूरत हो जैसे दुल्हन के लिबास में थी", अजय बोला।
" तुम्हारे बाल भी तो कितने पक गये है, पर जब पहली बार देखा था, वो ही बेबाकपन आज भी है", शालीनी बोली।
तुम को याद है आपने हमारी शादी से ठीक पहले की एक बात!
अपनी माँ को छुप कर तुमने एक ख़त लिखा था जिसमें तुमने अपने गुस्से का इज़हार करते हुए लिखा था की तुम मुझसे शादी नहीं करना चाहते क्योंकि ये
रिश्ता तुम को पसन्द नहीं था।
अजय ने हैरान होकर पूछा, "अरे वो ख़त तुम को कहाँ मिला वो तो बहुत पुरानी बात है।"
शालीनी आँखों में आँसू भरके बोली, "कल आपके बक्से से मुझे ये पुराना ख़त मिला।
मुझे नहीं पता था कि ये शादी आपकी मर्जी के खिलाफ हुई थी वरना मैं खुद ही मना कर देती।
अजय ने अपना सर शालीनी की बाँहों में रखा और बोला," अरे पगली उस वक्त तो मैं सिर्फ 14 साल का ही था और मुझे लगा तू मेरे से शादी करके जब आएगी, तो मेरे कमरे में मेरे साथ मेरे बिस्तर और तकिये पे सोएगी। मेरे सारे खिलौनों के साथ खेलेगी और मेरे पैसे भी चुरा लोगी।
लेकिन उस वक्त मैं ये कहाँ जानता था कि तुम मेरी जिन्दगी में आकर मेरी जिन्दगी को एक कमरे से बाहर एक घर तक ले जाओगी, ये कहाँ जानता था कि मुझे कपड़ों के बने खिलौनों से कहीं ज्यादा खूबसूरत और प्यारे खिलौने (हमारे बच्चे) तुम मुझे दोगी।
ये कहाँ जानता था कि मेरे थोड़े से पैसे के मुकाबले तुम मुझे प्यार की बेशकीमती दौलत दोगी।
"सच शालिनी तुम्हारे जैसी बीवी नहीं मिलती तो शायद मैं यहाँ ना होता जो हूँ , बेटे को बहु ले गयी और बेटी को दामाद, माँ- बाप भी दुनिया छोड़ दिये, बस एक तुम ही हो जिसने हरपल, हर वक्त साथ दिया है।
शालिनी ने तसल्ली के साथ कहा, "भगवान का शुक्र है मैं तो यही समझ रही थी कि तुम्हें तुम्हारी दोस्त राधा से प्रेम था।"
अजय ने सिर खुजा के शरारती मुस्कान से कहा, " हां था तो थोड़ा।"
शालिनी ने गुस्से से आंखे दिखाई।
फिर अजय ने हँसते हुए कहा,
"पर तुम मेरी खूबसूरत रानी हो और वो डायन।"
फिर दोनों पत्नी और पति एक दूसरे से लिपट गए,प्यार के आखिरी सफ़र की मंज़िल अब कुछ ही दूर बची थी, पता ना कौन चला जाये कौन रह जाये!
तभी टीवी पर धीमे- धीमे गाना ल रहा था, "एक प्यार का नगमा है, मौजों कि रवानी है, जिंदगी और कुछ भी नहीं तेरी मेरी कहानी है"!
रेत कि घड़ी से बालू फिसल रहा था धीरे- धीरे!