रात के तीसरे पहर में
रात के तीसरे पहर में
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रात के तीसरे पहर में
अंतिमा रात के तीसरे पहर पानी पीने के लिए उठी थी तो उसने देखा कि बरगल वाले कमरे में माधवी और सुशांत फुसफुसाकर बात कर रहे थे।
सुशांत कह रहा था....
" माधवी तुम किसी से क्यों डरती हो? मैं तुमसे प्यार करता हूं, क्या यह काफी नहीं है। तुम नहीं कह सकती हो तो मुझे कहने दो,मैं ही भाभी से कह देता हूं कि मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं और तुमसे शादी करना चाहता हूं !"
शायद माधवी की आवाज में रोना आ गया था
क्योंकि माधवी भारी गले से कह रही थी,
" कुछ समझने की कोशिश करो सुशांत मैं तुम्हारे भाभी की छोटी बहन हूं लेकिन साथ ही.... लेकिन मैं एक विधवा हूं। और तुम्हारे घर वाले एक विधवा लड़की को बहू के रूप में नहीं स्वीकारेंगे !"
कई दिनों से वह देख रही थी सुशांत और माधवी करीब आ रहे थे दोनों आपस में बात करते थे हम उम्र होने की वजह से दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई थी।
अंतिमा चुपके से पानी लेकर अपने कमरे में आ गई और.रात भर सोचती रही।.सुबह-सुबह उसने जाकर अम्मा और बाबूजी से कहा....
" आप लोगों को माधवी कैसी लगती है...?अपने सुशांत के लिए कैसी रहेगी? "
अंतिमा सुशांत और प्रतीक से बड़ी थी और घर में उसकी बात का वजन था।उसकी बात कोई नहीं टाल सकता था।.इसलिए सब ने उसकी मां बात मान ली और .... इस तरह माधवी सुशांत की दुल्हन बनकर आ गई।
आज भी जब अंतिमा सुशांत और माधवी को चिढ़ाते हुए यह कहती है और यह कहती है कि...
" अगर उसे रात के तीसरे पर में मैं नहीं जगी होती और तुम्हारी बातें नहीं सुनी होती तो तुम्हारी शादी कभी नहीं हो पाती. और तुम दोनों एक दूसरे के लिए तड़पते रहते!"
तब...
माधवी और सुशांत दोनों ही अंतिमा को धन्यवाद देते थे।
उन दोनों प्रेमी जोड़ों को आज पति-पत्नी में देखकर अंतिमा को बहुत खुशी होती थी।
सच प्रेम तो प्रेम होता है।
लेकिन प्रेमी युगल को अपने प्रेम के लिए दूसरों से अनुमति लेने में बहुत मुश्किल होती है।और अंतिमा ने उन दोनों का काम आसान कर दिया था।
इस बात की उसे बहुत खुशी थी कि उसके घर में माधवी जैसी समझदार लड़की आ गई थी।भले ही वह विधवा थी तो क्या हुआ....उसमें एक अच्छी और सुगढ़ बहू के सारे गुण थे। और तो सबसे बढ़कर सुशांत और माधवी एक दूसरे से प्यार करते थे।
प्रेम से बढ़कर इस दुनिया में और क्या चीज हो सकती है भला।
[समाप्त ]
©®V. Aaradhyaa