राम से श्री राम तक
राम से श्री राम तक
रामायण का घंटों पाठ करने के बाद आज जब अनिल उठा तो उसके मन में बहुत बेचैनी थी..... ऐसी बेचैनी...... राम का चरित्र आज उसके हृदय में चितकार कर रहा था।ऐसा चितकार...... जो शिक्षाएं उसने सबको दी थी। राम के जीवन को जिस गहराई से मनन किया था और दूसरों को राम नाम का जो दर्शन दिया था। उन आदर्शो पर चल कर, उसने जो जीवन जिया था। उसने राम के चरित्र को यथार्थ कर दिया था। सत्य है..... जीवन का एक ही कर्म आपके साथ जाएगा। राम का नाम वो राम जिसने अपना जीवन अपने वचनों के लिए समर्पित कर दिया। माता- पिता को समर्पित कर दिया। उनकी इतनी सेवा की उनके शब्दों को ही सर्वोपरि माना।
कभी यह नहीं सोचा...... उसके माता- पिता जी उसकी इस अंधभक्ति का कितना फायदा उठा रहे हैं। बाकी भाइयों की तारीफ करते उनको कभी काम नहीं कहते क्योंकि उनका कहना था कि यह तो सरकारी नौकरी करते हैं... अनिल का क्या है........ यह तो अपना काम करता है जब अपना काम खत्म कर लेगा तो काम कर देगा। इसलिए उससे सिर्फ काम कहते, काम करवाते हैं और वह अपना सारा काम छोड़कर उसने तो सिर्फ यही पाठ पढ़ा था। जो माता-पिताजी ने कहा वहीं सत्य माना। अपने साथ जुड़े सात फेरों के रिश्ते को भी कभी सम्मान नहीं दिया। पत्नी की तो कभी सुनी नहीं..... क्योंकि शादी तो माता-पिता जी के लिए की थी। उनकी सेवा करने के लिए की थी उसे तो शादी का कोई चाव नहीं था। वो तो माता -पिता का आदर्श पुत्र राम था। इसलिए तो कभी उसके मन की पूछी नहीं अगर शायद...... मन की पूछता तो कुछ कहती...... हो सकता था माता -पिता जी के लिए कुछ कह देती। इसलिए दो शब्दों से ज्यादा कभी बात ही नहीं की। बस जब भी कहा माता -पिता जी की सेवा के लिए कहा उन्हें कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए। पत्नी ने भी कुछ समय देखने के बाद फिर वह कुछ कह ही नहीं सकी बस अपनी बारी का इंतजार करती रही।
कभी भूल से कुछ कह देती गुस्से में तो सुनने को मिलता मेरे लिए जिंदगी पड़ी है मां- पिताजी कितने साल जी लेंगे। इस इंतजार में वह भी चली गई। क्योंकि शायद वो भूल गया था मौत उम्र देख कर नहीं आती। अनिल ने अपना काम भी नहीं देखा माता- पिता की सेवा में हमेशा तत्पर रहा हूं वह भी समय के साथ परमधाम को चले गए। सब भाई -बहन धीरे- धीरे अपने कामों में व्यस्त हो कर उससे अलग हो गए। बच्चे भी पढ़- लिख कर अपने कामों में व्यस्त हो गए। आज उसे पहली बार अपने बनवासी होने का एहसास हुआ कि उसने तो खुद को ही बनवास दे डाला था। खुशियों को साथ लेकर चलने की बजाय एक धुन में ही चलता रहा। राम से श्री राम बनने का उसका सफर उसके भाग्य में बनवास ही लिख गया।