minni mishra

Abstract Tragedy Classics

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Abstract Tragedy Classics

राधे के कृष्ण

राधे के कृष्ण

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जैसे ही व्याधा का तीर कृष्ण को लगा , उन्हें समझते देर न लगी कि मेरी आत्मा आज इस पिंजरे से आजाद हो रही है । अब जल्दी से मृत्यु अपनी गोद में ले ले, ताकि प्राण निकलते ही मैं राधामय हो जाऊँ !

सामने मृत्य को खड़ा देख कृष्ण एक उत्सव के रूप में समझने लगे । कारण, मन में टीस दे रही अपनी प्रेयसी 'राधा' के वियोग की ज्वाला....उन्हें अब दाह-संस्कार की ज्वाला से कहीं अधिक पीड़ादायक महसूस हो रही थी।

हठात् कृष्ण सोच में पड़ गए ! ओह! राधा को मेरी बांसुरी औऱ मोर- मुकुट से बेहद प्यार था ! पर, वो सब मैं कहाँ से लाकर दूंगा ? ! मेरा अंत बहुत निकट, मेरे पास है ।अब मैं आत्मस्वरूप में ही उससे मिलूंगा !

इसी बीच एक आवाज गूँज उठी .....

“ कान्हा..ओ...कान्हा......"

यह तो मेरी राधा की आवाज है ! लेकिन इस निर्जन वन में ? अधखुली आँखों से सामने राधा को देख कृष्ण हतप्रभ हो गए। करूण स्वर में बोले, “ राधा.. तुम... यहाँ क्यों आई ?!”

“ कान्हा ! तेरे कराहने की आवाज सुन कर मुझसे रहा नहीं गया,मैं भागी चली आयी । ”

“ ओह ! इस तरह सोलह श्रृंगार करके तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए ! मैं अभी तुम्हारे पास ही आ रहा ..." कहते-कहते कृष्ण की आवाज लड़खडाने लगी ,आँखों से अश्रुधारा बह निकले !

“ सब पता है मुझे, तुम सदेह मेरे पास नहीं आते ! इसलिए मैं सोलह श्रृंगार कर यहाँ चली आयी । कान्हा! मैं तुम्हें आलिंगन करना चाहती हूँ ।” कहने के साथ राधा कृष्ण के ललाट को चूमने लगी ।यह पल राधा को कल्प के समान लग रहा था ।

वह पल- पल को जीने लगी।ऐसे लगा जैसे पूरी कायनात धरती पर उतर आयी हो ।तेज गर्जन के साथ आकाश से श्वेत पुष्प-वर्षा शुरू हो गई । देखते, देखते ...

कृष्ण- राधा दोनों का सम्पूर्ण शरीर श्वेत पुष्प की चादर से ढक गया ।

वर्षों से विरह-वेदना में तप रहे राधा-कृष्ण की समाधि को देख, पास खड़ा परम सत्य कहलाने वाला अहंकारी ' मृत्यु' अपने को बौना समझ...नतमस्तक आँसू बहा रहा था।


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