पुनर्विवाह
पुनर्विवाह
"पांय लागी पंडित जी"
"अरे कौन ? जसराज जी । आओ आओ , कैसे आना हुआ आज ? कोई हवन वगैरह करवाना है क्या" ? पंडित हरिदास जी ने उन्हें आसन देते हुए कहा
"नहीं नहीं पंडित जी , हवन नहीं करवाना , "सावा" (विवाह का मुहुर्त) निकलवाना है" । जसराज जी ने मुस्कुराते हुए कहा
"अरे ! बचुवा इतना बड़ा हई गइलवा का" ?
"अरे नहीं पंडित जी , बचुवा तो अभी छोटा है । हम तो शैली की शादी का सावा निकलवाने आए हैं"
"शैली की शादी ? वो तो साल भर पहले ही हो गई थी ना ? हमने ही तो फेरे पड़वाए थे उसके । मैं गलत हूं क्या" ? पंडित हरिदास चौंककर बोले
"आप कब गलत बोलते हैं पंडित जी ? आप तो महापुरुष ठहरे । वो क्या है कि शैली का पिछले महीने ही तलाक हो गया था । अब उसका पुनर्विवाह करना है । एक बढिया सा लड़का मिल गया है , बस अगले महीने का कोई मुहुर्त निकाल दो"
पंडित जी ने आश्चर्य से जसराज को देखा । कैसा बाप है ? साल भर पहले बेटी की शादी हुई थी । एक महीने पहले तलाक भी हो गया और अब दूसरा ब्याह ? दुनिया कितनी तेजी से बदल रही है ।
"क्या बात हो गई ? तलाक कैसे हो गया" ?
"अब क्या बतायें पंडित जी, वो लड़का ठीक नहीं था । दारू पीता था और बदचलन भी था । शैली को जैसे ही पता चला वैसे ही उसे छोड़कर आ गई । मुश्किल से एक महीना रही थी उसके साथ । वो तो तलाक के सेटलमेंट में दस महीने लग गये वरना ये शादी तो बहुत पहले ही हो जाती" । रामजस जी खुश होते हुए बोले ।
पंडित हरिदास को आश्चर्य हो रहा था कि जिसकी बेटी अपने पति को एक महीने में ही छोड़कर आ गई और तलाक के सेटलमेंट में दस महीने लग गये , फिर भी यह आदमी बहुत खुश नजर आ रहा है । शायद यही कलयुग है ।
पंडित जी ने अगले महीने का सावा निकालकर दे दिया । रामजस जी चले गये ।
इतने में उनके फोन की घंटी बज उठी
"हैलो"
"हैलो पंडित जी , मैं शिवकुमार बोल रहा हूं । कैसे हैं आप" ?
"हम तो अच्छे हैं । अभी अभी एक शादी का मुहुर्त निकाले हैं । आप कैसे हैं" ?
"हम बहुत बढिया हैं । शादी के नाम से आपने बहुत बढिया याद दिलाया । मेरे भानजे की शादी का भी मुहुर्त निकलवाना है । कोई बढिया सा मुहुर्त निकाल दो ना । पिछली दफा मेरे बहनोई जी ने अपने स्तर पर मुहुर्त निकलवा लिया था । एक महीने में ही उसकी बहू अपने प्रेमी के संग भाग गई । अबकी बार कोई बढिया सा मुहुर्त निकालना"
"एक महीने में ही भाग गई ! क्या नाम था उसका" ?
"कोई शैली नाम की लड़की थी । बाप का नाम रामजस था । चाल चलन की खराब थी । बढिया हुआ जो भाग गई वरना हमारा भानजा जिंदगी भर परेशान रहता उसके साथ"
पंडित जी अवाक रह गए । रामजस जी तो कह रहे थे कि लड़का दारू पीता था, आवारा था । मगर ये कह रहे हैं कि लड़की प्रेमी संग भाग गई ? अजीब उलझन है । कौन सही है कौन गलत, कुछ पता ही नहीं है । वे सोच में पड़ गये ।
इतने में एक सज्जन शीतल प्रसाद जी आ गये । उनके साथ उनका बेटा छैल बिहारी भी था
"राम राम पंडित जी"
"राम राम जी । कैसे आना हुआ यजमान" ?
"ये मेरा बेटा है पंडित जी । इसकी शादी का कोई मुहुर्त निकलवाना है"
"कब का निकालूं"
"दो चार दिन का ही निकाल दो पंडित जी"
"इतनी जल्दी" ?
"अब क्या बतायें पंडित जी , ये हमारे साहबजादे केवल नाम के ही छैल बिहारी नहीं हैं , स्वभाव से भी छैल बिहारी ही हैं । वो हमारे पड़ोसी रामजस जी की बेटी शैली है ना , उससे "लारालप्पा" कर बैठे । रामजस जी ने उसकी शादी कहीं और कर दी । हमारे साहबजादे उस ब्याहता शैली को लेकर कहीं भाग गये । कोर्ट कचहरी हुई । अब जाकर मामला सुलटा है । बहुत रुपया बरबाद हो गया हमारा । अब एक सुशील लड़की मिल गई है । दो चार दिन में हाथ पीले हो जायें तो गंगा नहा लें । बस यही बात है" ।
पूरी बात सुनने से पहले ही पंडित जी बेहोश हो गये ।