प्रोफेसर साहब की लव स्टोरी

प्रोफेसर साहब की लव स्टोरी

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हाथों में चाय का प्याला लिए हुए, बालकनी में सुबह का दृश्य देखते देखते स्नेहा जी की सुबह होती, पर आज अचानक मन बीती यादों के पिटारे में से एक याद को खींच लाया। यकीनन वो प्रोफेसर साहब की यादों का पिटारा था। प्रोफेसर साहब हमारी क्लास में केमिस्ट्री का लेक्चर लेने के लिए नए नए नियुक्त हुए थे। ज्यादा उम्र नहीं थी उनकी, दिखने में भी ठीक थे। वो उनका पहला दिन हमारी क्लास में और मैं लेट पहुँची। वैसे मैं क्लास में हमेशा टाइम पर ही पहुचती थी, पर उस दिन दोस्तों के चक्कर मे कैंटीन में कब टाइम निकल गया पता ही नही चला।

मैं आई कम इन सर ?

प्रोफेसर साहब ने ब्लैकबोर्ड से नजर हटाई और दरवाजे की ओर रुख किया और एक टक देखते ही रहे।

मुझे थोड़ा अजीब लगा। मैंने दोबारा पूछा "मे आई कम इन सर ?"

"हाँ कम, मिस आप लेट हैं क्लास में और मुझे ये पसन्द नहीं।

"सॉरी सर।" "आपका नाम ?" "स्नेहा" और क्लास शुरू हुई। समझाते वक़्त वो कभी मुझसे नजरे रूबरू करते कभी हटाते। मुझे थोड़ा अजीब लग रहा था, क्योंकि जब किसी की नजरें कुछ और ही अहसास करा रही हो तो महसूस हो जाता है। वही मुझे भी महसूस हो रहा था, जाने क्यों मुझे उनकी क्लास में जाना अच्छा नहीं लगता था। उनका इस तरह से देखना, जैसे कुछ गलत इशारा कर रहा हो, जैसे वो कुछ कहना चाह रहे हों पर एक दायरा उन्हें रोक रहा हो। उस दिन लाइब्रेरी में जब मैं पढ़ रही थी तो अचानक प्रोफेसर साहब आ गये, मेरी टेबल की और बढ़ते कदम उनके मेरी धड़कनों की रफ्तार बड़ा रहै थे।

"स्नेहा क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ?" मन तो किया कि कह दूँ, बहुत सारी टेबल खाली हैं, वहाँ बैठ जाओ, पर कुछ कह नहीं पाई। "जी सर, आइये बैठिए"

"तो क्या पढ़ रही हो तुम?" "मेरा पसंदीदा विषय, बायोलॉजी"

"हाँ कॉलेज की टॉपर हो तुम बायोलॉजी में" हाँ और केमिस्ट्री तुम्हे नही पसंद"

नही, पसंद है पर मैं उसमें टॉपर नहीं" "कोई बात नही टॉपर हो जाओगी" "जी मैं कोशिश करुँगी।"

अब तो कॉलेज में भी सबको शक होने लगा था कि प्रोफेसर साहब मुझ पर कुछ ज्यादा ही फिदा हो रहे हैं, डर लगता था किसी दिन प्रपोज़ ना कर दें, क्या जवाब दूँगी। इसलिए मैं उनसे दूर भागती थी। अब जैसे वक़्त के साथ आदत होने लगी थी उनकी भीनी मुस्कुराहट की, उनके आंखों ही आँखों मे कुछ कह जाने की, एक विश्वास नजर आने लगा था मुझे उनकी निगाहों में, पर कभी उन्होंने मुझे परेशान करने की कोशिश नहीं की। हमेशा मदद की और मेरा दिल उन्हें तलाशने लगा था। जाने कैसा इंतज़ार बन गया था। अब तो दोस्त भी छेड़ने लगे थे मुझे प्रोफेसर साहब कहकर और मैं छिड़ जाती थी। आज कॉलेज का आखिरी दिन था और रात को सबके लिए एक पार्टी रखी थी। 

पता नहीं क्यों आज प्रोफेसर साहब थोड़े परेशान लग रहे थे। अब इतना तो उन्हें देखकर मैं समझने लगी थी। अचानक मुझे आवाज लगाई "स्नेहा यहाँ आओ।"

मुझे घबराहट होने लगी, क्यों सर ने आवाज लगाई। स्नेहा मैं तुम्हें कुछ बताना चाहता हूँ, घबराहट के पसीने मेरे चेहरे पर साफ नजर आ रहे थे।

"क्या सर ?" "पता नही तुम्हे कैसा लगेगा, मुझे गलत मत समझना । इतने में वहाँ कॉलेज के बाकी स्टूडेंट्स ने उन्हें घेर लिया और बात अधूरी रह गयी। पता नहीं मेरे दिमाग में क्या क्या चल रहा था। अगर प्रोफेसर साहब ने मुझे प्रपोज किया तो, मैं क्या जवाब दूँ। वैसे बुरे नहीं हैं, दिखने में भी ठीक हैं और प्रोफेसर हैं। अगर हाँ भी कर दूँ तो कोई समस्या नहीं और जाने कैसे कैसे सवाल मुझे परेशान कर रहे थे।

शाम होते ही सब लोग कॉलेज में इकट्ठा हुए, आज तो प्रोफेसर साहब गजब लग रहे थे। नीले रंग की शर्ट में, आज मैं भी नीले रंग की ड्रेस में थी, ये कोई पहले से सोचा समझा नहीं था, बस संयोग था। मैं आपने दोस्तों में मग्न हो गयी और वैसे भी वो आखिरी रात थी कॉलेज की, कल से कौन कहाँ होगा क्या पता। तभी पीछे से आहट हुई, देखा तो प्रोफेसर साहब थे। 

मैं उनकी बात सुनती उससे पहले ही जवाब दे दी, 

हाँ मुझे कोई समस्या नहीं है पर एक शर्त है मैं शादी के बाद अपने कैरियर को आगे बढ़ाना चाहती हूँ, मुझे डीन बनना है और मुझे खाना बनाना नहीं आता और कोई रुचि भी नहीं है। आपको मंजूर हो तो बोलो। प्रोफेसर साहब की तो हँसी छूट गई, फिर खयाल आया मैं ये क्या बोल गई। शर्म के मारे मेरी हालत खराब हो गई। मैं जैसे ही जाने लगी वैसे ही प्रोफेसर साहब ने मेरा हाथ थामा और कहने लगे मंजूर है, सब कुछ मंजूर है और एक वादा मेरी तरफ से मैं कभी तुम्हे अकेला नही छोड़ूंगा। तभी आँखों से छलका आँसू मेरे गालों को नम कर गया और सामने सामने टंगी साहब की फ़ोटो पर गईं। 

झूठ बोला था तुमने मुझसे कि मुझे छोडकर कहीं नही जाओगे और इतना दूर चले गए कि वापस भी नहीं आने का वादा किया। मैं तुम्हे कभी माफ नहीं करुँगी। तभी कमला, स्नेहा की बाई आ गयी और वही दिन की शुरुआत रोजमर्रा के कामों के साथ हुई। मेमसाब एक बात पूछूं? आपका बेटा है, फिर भी आप अकेले क्यों रहते। अरे! अकेले कहाँ हूँ मैं? सुबह से शाम तक तो तुम रहती हो मेरे साथ।

ये सुनकर कमला के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी। भैया और भाभी क्यों नहीं रहते आपके साथ अब तो आपके पोते भी हैं।

बेटा और बहू काम में व्यस्त रहते हैं, अब उनकी भी अपनी जिंदगी है। कहाँ वक़्त निकलता इस व्यस्त जिंदगी में। कमला बाई अपने काम में लग गयी।

तभी स्नेहा को आख़िरी बहस हुई जो घर में अचानक याद आ गई। मैं ऑफिस से आई ही थी कि थक हार के सोफ़े पर बैठ गयी, 10 मिनिट इंतज़ार के बाद खुद ही पानी लेने रसोई में चली गयी, भूख भी लगी थी। सोचा चाय बना लेती हूँ, प्रोफेसर साहब काम से शहर से बाहर गए थे, तभी रौनक आया और बहू को सुना दिया कि माँ ऑफिस से आती है तो तुम एक कप चाय भी नही पिला सकती उन्हें। बहू भड़क गई, मैं ला रही थी ना पानी माँ, आपको रसोई में आने की क्या जरुरत थी!

मतलब ऐसा हो गया था कि अपने घर में कुछ करने से पहले इजाज़त लेनी पड़े? बड़ा अजीब सा लगने लगा था। आये दिन कुछ ना कुछ हंगामा जो मुझे खलने लगा था। एक दिन यूँ ही मैं और प्रोफेसर साहब बातें कर रहे थे, तो मैं बोली कि जब मैं भी रिटायर हो जाऊँगी तो हम दोनों मुम्बई में हमारे फ्लैट में चले जायेंगे।

ऐसा क्यों बोल रही हो, हम दोनों क्यों? यहाँ सब हैं ना, हम अपने बच्चों को छोड़कर क्यों जाएँगे ?

बच्चे अब बड़े हो गए हैं और मैं भी अपना बुढ़ापा सुकून से बिताना चाहती हूँ। साथ में बैठकर घंटो जहाँ सुकून के पल बिता पाएं। हर सुख दुख के साथी बनें, मरने से पहले अपनी जिंदगी को अच्छे से जियें, किसी पर बोझ ना बने। अब बच्चे अपने आप लायक हो गए हैं। ये तुम्हें क्या हो गया अचानक? ये मरने की बातें क्यों कर रही हो ?

और बाते करते करते मैं इमोशनल हो गई।

वक़्त बीत रहा था, अचानक साहब बेहोश हो गए, मेरे तो होश ही उड़ गए। साहब, क्या हुआ आपको ? रौनक जल्दी आजा बेटा, तेरे पापा अचानक बेहोश हो गए। तुरंत हॉस्पिटल पहुँचे, वहाँ पता चला साहब को कैंसर है। 

मेरे तो पैरो तले जमीन ही खिसक गई, ये किस्मत ने क्यों लिख दिया मेरी जिंदगी में! मैं तो साहब के बिना एक पल नहीं रह सकती। डॉ ने कहा आखिरी स्टेज़ है, वक़्त ज्यादा नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है? साहब तो बिल्कुल ठीक थे, कभी कोई शिकायत नही हुई उन्हें, फिर अचानक कैसे ये!

कभी कभी कैंसर के लक्षण दिखाई नहीं देते, अंदर ही अंदर ये तोड़ देता है इंसान को। हम पूरी कोशिश करेंगे पर कोई उम्मीद नहीं बांध सकते। जितना हो सके खुश माहौल रखिये। मेरी जिंदगी से खुशी जैसे छिन सी गई थी। ऐसा लग रहा था बढ़ता हुआ पल मुझे मौत के करीब ले जा रहा था। कुछ वक्त बिता और एक दिन साहब ने बोला चलो अपने मुंबई वाले फ्लैट में चलते हैं, अब वही जिंदगी गुजारेंगे।

तुम चाहती थी ना हम अपना वक़्त वहाँ बिताये, अब मेरे पास तो इतना वक़्त नहीं कि मैं और इंतजार करूँ। रौनक को ये फैसला अच्छा नहीं लगा। आप क्यों हमे छोड़ कर जाना चाहते हो? क्या मुझसे कोई गलती हो गई पापा? नहीं बेटा, ये तुम्हारी माँ की इच्छा थी कि कब हम बूढे हो जाएंगे तो सारा वक़्त एक दूसरे के साथ बिताएंगे। हमारे मुंबई वाले फ़्लैट में कुछ दिन बाद हम यहाँ आ गए थे। मैंने भी वॉलेंटियर रिटायरमेंट ले लिया था, मैं एक पल भी साहब से दूर नही रहना चाहती। एक दिन ऐसे ही पता नही साहब को क्या हुआ, मुझे बोले कि मेरी फ़ोटो तुम तुम्हारे आईने के सामने लगाना, ताकि मैं तुम्हें देख सकूँ और जब तुम तैयार हो तो मुझे देखकर अच्छे से तैयार हो। तुम्हे पता है ना कि मुझे तुम सजी धजी अच्छी लगती हो, मेरे जाने के बाद तुम ऐसे ही तैयार हुआ करोगी। 

मेरे नीर की धारा लगातार बह रही थी। साहब मैं जीना नहीं चाहती, मैं नहीं रह पाऊँगी तुम्हारे बिना। वक़्त सब सिखा देता है, देखना तुम मुझे उन्हीं यादों में समेट कर जिंदा रखोगी। अपनी मुस्कुराहट में मेरी मुस्कुराहट जिंदा रखोगी, कभी खुद के सपनों को जीने में कंजूसी मत करना। मेरे भी सपने जो अधूरे रह जाएंगे तुम पूरे करना, वरना मैं तुम्हें कभी माफ नही करूँगा। क्यों मुझे जीते जी मार रहे हो। और फिर वो वक़्त भी आया जब साहब मुझे छोड़कर चले गए। अपना वादा निभाये बिना ही चले गए, फिर एक बार रौनक ने मुझसे साथ चलने की जिद की, पर मेरा मन इसी घर में बस गया था। मैं भी अपने अंतिम दिनों में यही रहना चाहती थी, यहाँ मेरे साहब की यादें बसी हैं। बिस्तर की खुशबू मुझे उनका अहसास कराती है, बाल्कनी में साथ बैठकर चाय नहीं पीते तो क्या, पर उनकी निगाहें जैसे मुझे देख रही हैं। अहसास होता है, मुझे यहाँ अकेलापन नहीं लगता, यहाँ के एक एक कोने में मैंने और साहब ने यादें पिरोई हैं। आज भी जब मैं आईने के सामने खड़ी होती हूँ, तो सामने लगी उनकी फोटो मुझे निहारती है। मैं कैसी लग रही हूँ? रोज उनसे पूछती हूँ, एक मुस्कुराहट मुझे तस्वीर में नजर आती है।

मैं कही नहीं जाऊँगी, मेरा स्वर्ग छोड़कर, यही रहूँगी।

अरे मेमसाब आप क्यों रो रही हो, क्या हुआ है ?

और कब बैठे बैठे मैं मेरे अतीत में चली गई पता ही नहीं चला और नीर वर्तमान में बह रहे थे। अरे कुछ नहीं कमला, मैं ठीक हूँ।

जी मेमसाब तो ये थी प्रोफेसर साहब की लव स्टोरी।


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