Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

Classics

प्रकृति की गोद में

प्रकृति की गोद में

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मैं और मेरा दोस्त अनुपम मुंबई की एक सोसाइटी में आठवीं मंजिल पर रहते हैं, हम बचपन के दोस्त हैं। हमारा बचपन एक गांव में गुजरा है जहाँ पर खुले खेत, ताज़ी हवा, फलों के पेड़ और गांव के बाहर एक छोटी सी नहर, ये सब हमारी जिंदगी का एक हिस्सा थे।

हम बड़े हुए,अच्छा पढ़ लिख गए और मुंबई में आकर बस गए। मैंने एक बड़ी कंपनी में नौकरी कर ली और अनुपम एक अच्छा लेखक बन गया। वो एक काफी मशहूर पत्रिका में अपनी कहानियां और कवितायेँ लिखने लगा। उसकी कमाई भी काफी अच्छी है।

अनुपम जब भी कोई कविता या कहानी लिखता तो मुझे जरूर दिखाता था, मुझे उसकी ज्यादातर रचनाएँ अच्छी लगती थीं। उसे अपने पाठकों से भी अच्छी वाहवाई मिलती थी पर हर बार वो यही कहता था कि यार पता नहीं क्या पर मुझे अपनी रचनाओं में कुछ कमी महसूस होती है।

एक कवि होने के नाते अनुपम को प्रकृति से बहुत प्यार था, वो अक्सर कहता था कि मुंबई में एक कोठरी में रहकर उसका मन नहीं लगता और उसे बचपन के वो गांव का माहौल बहुत याद आता है।

एक बार उसने फैसला किया कि वो कुछ दिनों के लिए कहीं ऐसी जगह जायेगा जहाँ प्रकृति की गोद में बैठ कर कुछ अपने मन का लिख सके। उसने अपने पांच छह दिन की एक समुंद्री जहाज की यात्रा की योजना बनाई और अपना लिखने का सारा सामान लेकर चल दिया। समुन्दर के बीच में सिर्फ लहरों की आवाज में बैठ कर उसे बहुत अच्छा लग रहा था।

दूसरे ही दिन जहाज में कुछ खराबी आ गयी और जहाज में पानी भरने लगा, कप्तान ने भी सभी यात्रिओं को जहाज छोड़ने के आदेश दे दिए। सभी लोग लाइफ बोट्स में बैठ कर जहाज से उतरने लगे। अनुपम भी एक लाइफ बोट में बैठ गया, वो उस लाइफ बोट में अकेला ही था। सभी लोग बस किसी दूसरे जहाज की इंतजार में थे जो कि उन लोगों को सुरक्षित किनारे पे ले जाए।

इतने में एक लहर आयी और वो अनुपम की बोट को बाकी लोगों से दूर ले गयी और थोड़ी ही देर बाद वो एक सुनसान टापू के किनारे पहुँच गया। बोट से उतरकर वो टापू के अंदर चला गया और वहां एक गुफा जैसी जगह पर आराम करने के लिए बैठ गया। नजदीक के एक पेड़ से उसने कुछ फल तोड़ लिए और उसकी भूख मिट गयी। वो अब भी यही सोच रहा था के थोड़ी देर में कोई जहाज आ जायेगा और उसे वहां से निकाल ले जायेगा। यही सोचते सोचते वो सो गया।

सुबह जब वो उठा तो बहुत ताजा महसूस कर रहा था। पक्षिओं की चहचहाहट उसे कुछ लिखने की प्रेरणा दे रही थी। समुन्दर की लहरें भी जैसे उससे बातें कर रहीं थी। अनुपम को अपने बचपन का गांव याद आ गया। वहां का शांत वातावरण उसे भा गया था और कविता लिखने के लिए बहुत ही सुंदर माहौल था। रात में तारों की टिमटिमाहट आसमान की खूबसूरती बढ़ा रही थी। वो बार बार बचपन की तरह तारे गिन रहा था और उनसे तरह तरह की आकृतियां बना रहा था। उसके अंदर के लेखक को शायद रूह मिल गयी थी।

तीन चार दिन अनुपम वहीं पर रहा और उसने कई रचनाएँ लिख डालीं, पांचवें दिन एक जहाज उसे वहां से लेकर मुंबई ले आया।

जब अनुपम मेरे पास आया तो उसने मुझे वो सारी रचनाएँ पढ़ने को दीं। इस बार लग रहा था कि शायद वो अपनी रचनाओं से बहुत संतुष्ट है। मैंने भी जब वो कविताएं और कहानियां पढ़ी तो पहले के मुकाबले काफी बेहतर लगीं।

मुझे लगा कि कलम और स्याही से तो वो पहले भी लिखता था पर इस बार शायद उसने अपनी आत्मा से लिखा है और जो कमी उसे अपनी रचनाओं में लगा करती थी वो कमी शायद अब पूरी हो गयी है।


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