AMAN SINHA

Romance

4.5  

AMAN SINHA

Romance

प्रिय पत्नि - तुम मेरी दुनिया हो

प्रिय पत्नि - तुम मेरी दुनिया हो

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प्रिय पत्नि,

कई दिनों से मैं तुमसे कुछ कहना चाहता था मगर उसे कहने का उचित समय और पर्याप्त सामर्थ्य नहीं जुटा पा रहा था। आज जब हम-तुम दोनों ने अपने जीवन के चौदह साल एक दुसरे के साथ बिता लिया है तो मुझे तुमसे यह कहने मे जरा भी संकोच नहीं होता कि मैं तुमसे बहूत प्यार करता हूँ। सच कहूँ तो यह बात ना जाने मैंने तुमसे इस वैवाहिक जीवन में कितनी ही दफा कही होगी। कभी तुम्हे मनाने के लिये, कभी तुमसे काम निकलवाने के लिये, कभी तुम्हे प्यार जताने के लिये तो कभी तुमसे प्यार पाने के लिये। मगर आज जब मैं यह सब कह रहा हूँ तो उसका कारण उपरोक्त किसी भी कारण से परे है। तुम्हे पता है कि जब मेरी शादी नही हुई थी तो मुझे अक्सर यह लगता था, या मेरी सोच ऐसे थी, कि कैसे कोई आदमी अपनी पुरी ज़िंदगी किसी एक ही औरत के साथ बिता सकता है। या फिर कैसे कोई एक औरत किसी एक ही आदमी के साथ अपनी पुरी ज़िंदगी बीता सकती है?

अपनी शादी के पहले मैंने जितने भी भाई बहनों की( रिश्तेदारों) शादी को देखा था, उनमे से किसी को भी कभी भी अपने पति से या फोर अपनी पत्नी से पुरी तरह से सुखी नहीं पाया था। हर किसी के ज़ीवन मे कोई-ना-कोई परेशानी हमेशा बनी ही रहती थी। उनमे से किसी एक ने भी कभी यह नही कहा कि उसे अपने पसंद का साथी मिला है। या फिर जिसके साथ उसकी शादी हुई है वो उसे कभी भी पुरी तरह से समझता है। मैं औरतों के बारे में नही जानता मगर एक लडका होने के हैसियत से यह कह सकता हूँ कि ऐसा कहने वाला कोई भी आदमी कभी भी सच नहीं कहता। वो बताये या ना बताये मगर उसके मन में अपने साथी के लिये प्रेम तो रहता ही है। शादी के पहले के स तरह के अनुभवों से मैं हमेशा ही घबराया रहता था। सोचता था कि क्या मैं किसी भी लडकी को अभी भी अपने साथी के रूप मे सुखी रख पाउंगा। क्या वो मुझे सुखी रख पायेगी। मगर आज मैं य कह सकता हूँ कि मैं तुम्हे अपने साथी के रूप मे पाकर उस भगवान का ऋणी बन गया हूँ।

जैसी मेरी भेष-भुषा और आचार-व्यवहार था, वैसे में तो कोई भी लडकी महिने भर मे ही मुझे छोडकर चली गयी होती। मगर तुमने मुझे ना सिर्फ सम्हाला बल्कि मुझे प्यार पाने के क़ाबिल भी बनाया। एक पति होने से पहले मैं एक आदमी या पुरुष भी हूँ और यह मानता हूँ कि बाकी सभी पुरुषों की तरह मेरी भी नज़र कभी-कभार किसी दुसरी लडकी या स्त्री पर पड जाती है तो मैं थोडा विचलित हो जाता हूँ, आज भी, मगर यकिन मानों की ऐसा होने के एक क्षण के अंदर ही मेरा मन मुझे कोसने लगता है। मुझे खुद से घिन्न आने लगती है और उस शरीर के कल्पना से उल्टी। सच कहूँ तो सिवा तुम्हारे किसी और तन के बारे में सोचते ही मेरा अपना ज़मीर ही मुझे कचोटने लगता है। यह बदलाव मैंने पिछले दस सालों से महसूस कर रहा हूँ। और मैं इस बदलाव से खूश भी हूँ। जिस तरह से तुमने मुझे अपने मन के अंदर झाकने का अवसर दिया है और मेरे मन को अंदर से झांक कर देखा है ऐसा सिर्फ एक सच्चे साथी के बीच ही हो सकता है। आज मैं इस बात को स्वीकार करता हूँ कि तुम मेरी पुरी दुनिया हो, और शायद मैं भी तुम्हारा पुरा संसार हूँ।

शायद इसलिये कहा क्युंकि तुम्हारे उपर मेरी पत्नि होने के अलावा भी कई बडी-बडी ज़िम्मेदारियाँ है जिनको तुम पुरी इमानदारी से निभाती हो। मेरे माता-पिता को अपने माता-पिता की तरह मानती हो। बच्चों और घर की देखभाल करती हो। पुरा घर सम्हालती हो, तो हो सकता है कि मेरी जगह तुम्हारी उस घरेलू दुनिया मे थोरी कम हो। मगर एक पत्नि और एक प्रेमिका के रूप में मैं ही तुम्हारी पुरी दुनियाँ हूँ इसमे मुझे कोई भी सन्देह नही है। अगर मैंए तुम्हे भावनाओं मे बहा दिया हो तो थोडा सांस ले लो और ये जान लो कि यह सिलसिला बस आज भर का, एक महिने का, एक साल का या एक जनम का नहीं है। मैं हर जनम में तुम्हे ही अपनी दुनिया बनाना चाहता हूँ और हर बार तुम्हारी दुनिया बनना चहता हूँ। तो बस इतनी सी बात के साथ और मेरी दुनिया बनने के लिये तुम्हारा अभार जताने के साथ मैं तुम्हे हमारी शादी की १४ वी सालगिरह की शुभकामनाएं देता हूँ।

तुम्हारा प्रियवर


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