Arun Gode

Thriller

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Arun Gode

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प्रिय मित्र का आगमन

प्रिय मित्र का आगमन

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वर्ग मित्रों के पुनरमिलन कार्यक्रम की पुरी तैयारियां लग-भग हो चुकी थी। सभी स्थानीय तथा बाहर से आनेवाले वर्गमित्रों ने कार्यक्रम में आने के लिए अपनी-अपनी कमर कस ली थी। लेकिन श्रीकांत को जो दिल का दौरा पड़ा था। उसके कारण सभी मित्र चिंतित हो चुके थे। लेकिन कार्यक्रम आयोजन के अन्य सक्रिय कार्यकर्ताओं ने समय रहते परिस्थिति को संभाल लिया था। मित्रों में जो संभ्रम की स्थिति पैदा हुई थी। उसे दूर कर दिया गया था। सभी मित्रों को यह यकीन दिलाया था कि उनका मित्र अभी स्वस्थ हो रहा है। वो अपने कार्यक्रम में पूरे दम-खम के साथ आएगा !। आप सभी चिंतामुक्त होकर कार्यक्रम में आने का कष्ट करे। ऐसा आश्वासन उन्हें अन्य आयोजकों ने दिया था। मित्रों का कार्यक्रम में आने का सिलसिला शुरु हो चुका था। पदमनाभन अरुण का बहूँ त घनिष्ठ मित्र होने से वह एक –दो दिन पहिले उसके घर आनेवा ला था।

पदमनाभन : हैलो। अरुण, मैं अभी चैन्नई से निकल चुका हूँ । कल दोपहर दो बजे के करीब पहुँच जाऊंगा !।   

अरुण: अरे आपका संत्रा नगरी में तहे दिल से मनपूर्वक स्वागत है। आप का मित्र आपके स्वागत के लिए प्लेटफार्म पर बिलकुल खड़ा मिलेगा !। आप का कोच संख्या और सीट संख्या मुझे वाट्सअप कर दो। आप के मंगलमय यात्रा के लिए शुभकामनायें। आप का स्वागत है।  

    दूसरे दिन अरुन ठीक समय पर उसे लेने रेल्वेस्टेशन पहुँचा था। कई साल पहले वो मेरे घर आके गया था। धीरे- धीरे गाड़ी का समय हूँ आ। गाड़ी आने के संकेत और उद्घोषक द्वारा घोषणा की गई थी। मैं, जहां कोच आने की संभावना थी। मैं वही खड़ा था। गाड़ी आके रुकी, थोड़े देर बाद , हमारे प्रिय मित्र नीचे उतरे। दोनों एक –दूसरे से गले मिले, हाथ मिलाते हुये, कुछ बातें करते हुये, मेरी फोर्व्हीलर की और निकले। उसके चेहरे पर बहूँ त प्रसन्नता दिख रही थी। बीच- बीच में पुराने नागपुर में कितना बदलाव आ चुका हैं, इसका जिक्र करता रहा। मैं हां में हां मिलते रहा। इस तरह हमारी गाड़ी आगे बढ़ती रही थी। इधर –उधर की बातें हाँकते हुये, धीरे- धीरे पंद्रह किलोमीटर का सफर तय करके हम घर पहुंचे थे। प्रवास के दौरान हम आसमान से बातें करते रहे। मेरे श्रीमती ने उनका हंसते हुये स्वागत किया था। फ्रेश होने के बाद भोजन के दौरान सभी बातों पर चर्चा होती रही। खाना खाते-खाते अच्छे व्यंजन के लिए वह भाभी के तारीफ के पुल बांध रहा था।

अरुण ; अरे अभी तक आप मेरे गुण-गान गा रहे थे। घर आते ही आप ने पार्टी बदल दी है । भाभी के प्रशंसा में जुट गये हो !।

वर्षा: अरे। भाईसाहब, वैसे तो मैं अच्छा खाना बनाती हूं, लेकिन तुम्हारे दोस्त को खाने का तरीका मालूम नहीं। वैसे घर की मुर्गी हमेशा दाल बराबर होती है। , ये कभी मेरे बनायें व्यंजनों की तारीफ नहीं करते। अभी दो-तीन दिन, आपको हमारे हाथों का ही खाना खाना है। वैसे आप की तारीफ करना मुझे बहूँ त अच्छी लगी। वैसे आप की नीति जिधर बॅम उधर हम, मुझे सही लगती है।

     श्याम के समय उसे मैं विमानतल पर ले गया। जहां मैं सेवानिवृत्ति के पहिले कार्यरत था। वहां मेरे पुराने मित्रों और निदेशक से भी परिचय करवाया।  कार्यालय के सभी इकाई में ले गया। मैं, अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना नहीं चाहता था। यहां कैसे कार्य किया जाता है, इसकी जानकारी कार्यालय के सहयोगियों को देने का अनुरोध मैंने किया था। मेरे पुराने सहकर्मियों ने उसे मौसम विमानन के सेवायें क्यों जहाज के सुरक्षित आवागमन के लिए और कैसे जरूरी है। ये समझाने का प्रयास कर रहे थे। मौसमी प्राचलों का जैसे हवा का दाब, तापमान, हवा की गति और दिशा, वर्षा का कैसे परिणाम विमानन सेवाओं पर होता है। कैसे मौसम सेवा में कार्यरत सेवक जहाज के सुरक्षा के लिए दिन-रात मेहनत करते है। मौसम की पल-पल जानकारी सांकेतिक भाषा में ए. टी. सी द्वारा हरेक जहाज के पायलट को दी जाती है। इन सभी बातों पर मेरे पुराने सहकर्मियों ने प्रकाश डाला था। इन सब की जानकारी होने पर और सभी चीजों को प्रत्यक्ष देखने के बाद, वह बहूँ त खुश हुआ था। उसने पहिली बार इतने नजदीक से विमानन सेवाओं का संचालन देखा था। उसने मेरे प्रती आभार व्यक्त किया था। आज तेरे वजह से विमान सेवाओं के संबंध में मुझे किंमती और उपयोगी जानकारी मिली हैं। जो चीज या वस्तु, जीतनी आसान दिखती है, वह वास्तविकता में इतनी सरल नहीं होती है। फिर शहर का चक्कर काटते हुये हम घर लौट आये थे। दूसरे दिन हमें गौरेवाडा की जंगल सफारी करनी थी। आप अभी आराम करो और सुबह जल्दी तैयार होना है। वह जंगल सफारी के प्रस्ताव से बहूँ त खुश था। क्योंकि उसने अभी तक कोई जंगल सफारी का आनंद नहीं लिया था।

गुनवंता : हैलो अरुण, क्या चल रहा है। मैंने कहा कुछ नहीं, पदमनाभन आया है। उसके सेवा में लगे है। अभी वो फिलाल सोने गया है। उसे सुबह जल्दी उठने को कह दिया है। कल उसे जंगल सफारी कराने के लिए गौरेवाडा के जंगल में ले जाना है। कल मैं ,हमारी श्रीमती और भतीजा मिलकर सुबह जाएंगे। कल जीतने भी नागपुर में महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थान है, उसे दिखाता हूँ। गुनवंता ने कहाँ, उसके साथ भी उसने तेरे संबंध बात करी थी।  तेरी बहूँ त प्रशंसा भी कर रहा था। शायद तू उसे विमानतल ले के गया था।

अरूण : अच्छा बता, तुने श्रीकांत को, ना आने के लिए राजी कर लिया की नहीं। गुनवंता : इसी बात से तो मैं बहूँ त परेशान हूँ। चिंता मत कर कल उसे मैं पटा लूँगा !। उसे वैसे राजी करना याने उलटी गंगा बहाना है। प्रयास करने वालों को ही अक्सर सफलता मिलती है। देखो कल ऊंट किस तरफ करवट लेता है।

अरुण : ठीक है, तू उसे पटा ले, मैं पदमनाभन को कल तफरी कराता हूँ। तुझे मालूम है ना परसो सुबह हमें जाना है।

गुनवंता: वो सब तैयारी हो चुकी है। बस तू, पदमनाभन को लेकर मेरे घर आ जा। फिर हम सब श्रीकांत को मिलते हुये निकलेंगे। अच्छा , जंगल सफारी के लिए शुभकामनायें। फोन रखता हूँ ।

     नागपुर शहर में जंगल सफारी इसी साल शुरू हुई थी। इसके पहिले में अपने परिवार के साथ अगल-बगल में जो अभ्यारण्य थे वहाँ जा चुके थे। वहाँ भी हमें जंगल के राजा के दर्शन नसिब नहीं हुयें थे। कल हम फिर अपने मित्र पदमनाभन के साथ अपनी किसमत अजमाना चाहते थे। मुझे लगा कि मेरे मित्र के पदकमल इस मिट्टी पर पड़े है। जरूर कुछ अच्छा होगा। सोने से पहिले , मैंने अपने भतीजे को सुबह समय पर आने के लिए आगाह किया था। उसे बतायां था कि मेरे पगड़ी की लाज तेरे हाथ में है। दक्षिण के लोक बहूँ त समय के पक्के होते है। वो समय पर तैयार हो जाएगा !। आप समय पर आ जाना !। धीरे- धीरे मेरे आँखें छोटी होने लगी थी। थोड़ी देर बाद मैं गहरी नींद में जाने वाला था। आँखों की पलकें कॉफी भारी हो चुकी थी। कुछ पुराने यादें याद आ रही थी। सोचते-सोचते नींद लग गई थी।

    कुछ साल पहिले मैं पदमनाभन के शहर चैन्नई में गया था। उसने और भाभी ने मेरा वहाँ बहूँ त अपेक्षा से ज्यादा गर्म जोशी से स्वागत और आव-भगत की थी। उसने मुझे शहर के सभी प्रख्यात स्थलों का परिवार के साथ दर्शन कराया था। मेरे वहाँ जाने से पूरा परिवार खुशियों से झूम उठा था। वो दोनों अपने तरफ से मुझे खुश करने का भरसक प्रयास कर रहे थे। ये सब बाते मुझे धीरे –धीरे याद आ रही थी। तभी मैंने सोचा था कि मैं भी उसकी जीतनी खातिरदारी कर सकता हूं ,जरूर करूंगा । ये सब सोचते- सोचते मैं गहरी नींद में चला गया था।

     गहरे नींद में जो बाते मैंने दिन में सोची थी। वही खाब मुझे अपने नींद में दिख रहे थे। हम सभी गौरेवाडा जंगल में भ्रमन कर रहे थे। कई प्रकार के पेड़-पौधे, रंगी-बिरंगी फूल सब तरफ खिले थे। मौर जंगल में सुबह-सुबह नाच रहे थे। खरगोश इधर- उधर भाग रहे थे। कई अन्य प्राणीयों के भी समय-समय पर दर्शन हो रहे थे। विभिन्न प्रकार के पक्षी आसमान में स्वछंद होकर उड़ रहे थे। हमें जीस चीज का इंतजार था। वह जंगल का राजा अभी तक नजर नहीं आया था। गाईड ने बताया अभी शायद आप शेर को नहीं देख पायेंगे !। हम सभी निराश हुँये थे। हमने एक जगह गाड़ी खडी की थी। सभी गाड़ी के बाहर खड़े थे। हमारे बाजु से एक नाला बह रहा था। उस नाले में पानी भी था। मैंने सोचा शायद शेर अपनी शिकार करके उसे अभी तक हजम कर चुका होगा। अभी कॉफी समय हो चुका है। अभी उसे प्यास भी लगी होगी। हो सकता है की उसके अभी दीदार हो जाए। अचानक मेरा मित्र जोर से चिल्लायां, अरे भागों। वो देखो शेर अपने तरफ तेजी से आ रहा है। उसके चिल्लाने से मेरी नींद टूट गई थी। देखा तो घर की शेरनी मुझे हिला के जगा रही थी। अरे उठो। हमें आज तुम्हारे मित्र के साथ जंगल सफारी करने जाना हैं की नहीं ? आपका दोस्त कब का जाग गया हैं, उसकी पुजा-पाठ भी हो चुकी है। उसने अभी- अभी चाय भी पी ली है। और आप कुंभ कर्ण की निंद ले रहे है। गृहिणी के गर्जन से मैं जाग चुका था। पत्नी के बातों पर, मैंने आँखें फेर ली थी। तुरंत उठ कर जंगल सफारी के लिए तैयार होने लगा।



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