प्रिय हिंदी दिवस!-एक खुला पत्र
प्रिय हिंदी दिवस!-एक खुला पत्र
प्रिय हिंदी दिवस!
शुभ स्नेह!
कैसे हो तुम? पूरा एक साल लगा देते हो वापस आने में, ऐसा क्यों करते हों? मात्र एक दिन के लिए आते हों सबकी भावनाओं को झिंझोड़ कर एक उफान सभी के दिलों में लाते हो और चौबीस घंटों में वापसी कर जाते हों। उफान दिलों मे सागर के ज्वार भाटे के माफिक आकर उतनी ही गति से उतर भी जाता है। हिंदी दिवस पर तो मानो कोई प्रतियोगिता चला करती है कि सभी होड़ में रहते हैं दिखाने के लिए कि डूबती, पिसती, कमजोर हिंदी की नैया पार लगाने वाले कर्णधार वे ही हैं।
कुछ लोगों के लिए तुम एक दिन के हों मेहमान तो वे लोग जमकर भाषणबाजी, नारे और कविताएं पढ़ते हैं। अगले दिन से कैसी हिंदी और कैसा है हिंदी दिवस! हिंदी दिवस पर प्रचार और प्रसार इतना करेंगे हिंदी में कि उस दिन ऐसे लोगों के समक्ष यदि भूले से कुछ शब्द या वाक्य अंग्रेजी या किसी और भाषा के मुंह से निकल जाने पर ऐसा लगा करता है कि बहुत बड़ा कोई गुनाह कर डाला। गुनाह वो भी ऐसा जिसकी कोई माफी नहीं!
वहीं कुछ लोग कुछ दिन तक तुम्हें याद रखते हैं और महीना बीतते बीतते तुम भी बीत चुके होते हों। ऐसे लोग अपनी सोशल मीडिया पोस्ट पर हिंदी में वार्तालाप शुरू कर देते हैं। हिंदी से प्यार का सबूत देते रहते हैं जब भी वे मौका पाते हैं। फिर कुछ ही दिनों में हिंदी का खुमार और बुखार दोनों उतरने लगता है। महीना बीतते बीतते बचाखुचा हिंदी प्रेम भी हवा हों जाता है।
हां, कुछ ऐसे भी हिंदी के दीवाने- मस्ताने हुआ करते हैं जो सार- सम्भाल हिंदी की प्रत्येक दिन किया करते हैं क्योंकि उनके लिए हिंदी दिवस मात्र इक दिन के लिए नहीं अपितु नित हिंदी दिवस मनाना है!
हालांकि मैं यहां हिंदी दिवस से बात कर रही हूॅ॑, सम्बोधित भी हिंदी दिवस को किया है मैंने परंतु मेरी यह खुली चिट्ठी है।सबको दिखाई देने वाला पत्र यदि आप पढ़ रहे हैं तो सोचिएगा जरूर कि आप किस श्रेणी में आते हैं?
इसी के साथ पत्र समाप्त करती हूॅ॑। आपके पत्रों की प्रतीक्षा रहेगी।
हिंदी दिवस तो मात्र एक बहाना है,
कभी तो आईना हमें भी दिखाना है!
हिंदी दिवस तुम्हें चाहूं नित दिन, जीवन में उतारुं हर दिवस...
तुम्हारी अपनी,
-प्रियंका सक्सेना