परिवार भाग-9
परिवार भाग-9
वीना जब बाबा जी के आश्रम से लौट कर घर पहुँची तो वह भ्रम का शिकार थी। अपने साथ लायी भभूत को अपने घर के चारों कोनों में डालकर निश्चिंत हो गयी कि उसके स्कूल न जाने की बात किसी को पता नहीं चलेगी लेकिन जब उसकी सहेली उसका हालचाल पूछने उसके घर तक आ गयी तो उसकी धड़कनें तेज हो गयीं और बहुत से प्रश्न उसके दिमाग ने पैदा किए और उसी के अनुरूप उसने बहाने भी तैयार कर लिए। सबसे पहले तो उसने अपनी सीखी हुई सम्मोहन क्रिया का प्रयोग उस पर आजमाया। जब सहेली रीना ने पूछा, आज स्कूल क्यों नहीं पहुंची तो उसने कहा , "रीना ! देख तो मेरी इन आँखों में कुछ दिखाई दिया क्या ?"
" देख तो जरा मैं तुझे कहाँ पर दिखाई दे रही हूँ ?
" ओह मेरा सिर चकरा रहा है"
" ये मेरा- तेरा स्कूल ही है न ? आज मैं स्कूल गयी थीं न ! अरे बता न , तू भूल गयी नमैं स्कूल गयी थी पांचवीं सीट पर ध्यान कर, मैं बैठी थी कि नहीं बेबी के बगल में,?
"हाँ बैठी तो थी "। ओह मेरा दिमाग भी काम नहीं करता अब।"
" दिखा अपने आज के नोट्स कुछ लिखे भी हैं या किसी मुन्ना के ख्याल में खोयी रही थी।"
" वीना! तुझे कैसे मालूम हुआ कि मैं किसी के ख्याल में खोयी थी। ? क्या किसी ने तुझे बताया है उसके बारे में ?
" अरे यार कौन बताएगा ? तूने ही बताया था न एक दिनतो बस तुक्का लग गया । अब जा अपने घर , सबको अपने जैसा समझ रखा है।"
" ठीक है अब कल मिलते हैं क्लास में।"
वीना को महसूस हुआ, सचमुच साधना में शक्ति है और उससे सिद्धी प्राप्त होती है,जिसका एक छोटा सा उदाहरण उसने आज रीना पर आजमा कर अपने विश्वास को पुख्ता कर लिया था।
इस तरह दिन -महीने -साल गुजर गया
" एक दिन सुबह जब वीना अपनी साधना के लिए छत पर अपनी चटाई बिछाती है । एक कागज का टुकड़ा उसके पास आकर गिरता है जिस पर खून से लिखा था। मेरी अपनी जैसी वीना! आइलवयू तुमने मुझ पर भरोसा किया और उसके बदले में मैं तुम्हें अपना दिल दे चुका हूँ । मेरे अभिमंत्रित कबूतर कल रात किसी ने गोह के पेट में रस्सी बाँध कर छत पर चढ़ कर पिंजड़ों सहित चोरी कर लिए । मुझे अफसोस है कि मेरी सिद्धियां कुछ नहीं कर सकीं। जब तक मैं उस व्यक्ति का पता नहीं लगा लेता और अपने कबूतर वापस नहीं ले आता मैं घर नहीं लौटूंगा। मेरा इंतजार करना। "
तुम्हारा लल्लन
सही मायने में लल्लन ने जब सुबह देखा कि कोई अजीब सा जीवदीवार पर चिपका है तो उसकी घिग्घी बंध गयी। दूसरी ओर उसके कबूतर भी पिंजरे सहित गायब थे । उसे लगा कि अब इसकी सूचना तो आश्रम के बाबाजी को दे ही देनी चाहिए। वह सीधा वहाँ पहुँचा और अपनी समस्या से अवगत कराया। बाबा जी ने कहा, " बेटा अब अपना टिकट कटवा कर इतनी दूर निकल जाओ कि तुम्हें भी यह पता न चले कि तुम भी कभी यहाँ रहे थे। हो सकता है पुलिस तुम्हें तलाश रही हो ।"
" लेकिन गुरुवर ! ख़र्च कैसे चलेगा । "
"जो विद्या सीखी है उसी से चलेगा , अब तक कैसे चला रहे थे। "
" पर गुरु जी वह सब तो मैं आपको ही पहुँचाता रहा हूँ । मेरे पास तो कुछ भी नहीं है।" अंततः कुछ भी प्राप्त न होने की आशा से निराश होकर वह हरिद्वार के लिए रेलगाड़ी में बैठ गया और उसमें मिलने वाले यात्रियों से मोहिनी बातें बनाकर , उनके हाथों की रेखाएं देखकर उनका भूत जो कि सभी का होता है संघर्ष मय और यदि नहीं भी होता है तो सब यह मानने के लिए तैयार रहते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया है। लोग सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं।
वर्तमान में रोजी रोटी चल रही है कहकर और भविष्य उज्जवल आने वाला है स्वीकार कर लेने में आत्मसंतुष्टि मिलती है । बिना मेहनताना किसी की सेवाएं नहीं लेनी चाहिए की बात जब वह सबसे कहता तो जो भी अपना भविष्य जानना चाहते थे, कुछ दक्षिणा भी उसे प्राप्त हो गयी और आराम से हरिद्वार गंगा किनारे साधुओं की जमात में शामिल हो गया। वहाँ दानदाताओं की कोई कमी नहीं थी। गंगा मैया ने सबकी रोटी का इंतजाम कर रखा है। एक अंतराल बाद बड़ी हुई दाढ़ी, गेरूआ वस्त्र, शमशान के बाबाओं की संगत और भक्ष्य,अभक्ष्य के सेवन से वह भूल ही गया था कि वह कभी उस शहर में भी रहता था जहाँ वीना का मकान था। बड़े का दूध लगाकर उसने अपने बाल जटाओं जैसे कर लिए थे।
वीना ने जब लल्लन का पत्र पढ़ा तो उसे बहुत बैचेनी होने लगी। उसका किसी साधना में मन नहीं लगा। उसने गली में झांक कर देखा। सचमुच एक रस्सी वहाँ लटकी हुई थी और एक अजूबा सा जीव दीवार पर चिपका हुआ था। सुबह छः बजे जब लल्लन के नीचे फ्लोर पर रहने वाले किराएदार जागे तो सब ओर यह शोर हुआ कि कबूतर पिंजड़ों सहित कोई ले गया और लल्लन भी गायब हो गया है और उसका भी कोई अता पता नहीं है। वीना ने लल्लन का लिखा पत्र ऊपर लगी टंकी के पानी में भिगोकर चिंदी-चिंदी करके नाली में बहा दिया और राहत की सांस ली। जिसे देखिए वहीं लल्लन के घर चला आ रहा था। एक मजमा लगा हुआ था,गोह और रस्सी अभी भी दीवार के सहारे लटकी हुई थी। पुलिस आयी और छानबीन कर के चली गयी। कबूतर चोरी और लल्लन की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवा दी गयी। अजीब से जीव को पुलिस अपनी कस्टडी में लेकर थाने पहुंची।
" इस घटनाक्रम से वीना एकदम डरी-डरी रहने लगी क्योंकि एक दो बार आटो की सवारी करते समय उसमें बैठी सवारियों के पर्स और चेन वह भी सम्मोहन क्रिया से ले चुकी थी और लल्लन को दे दिए थे। अपने लिए नेलपालिश,काजल,बिन्दी, आर्टिफिशियल ज्वेलरी वह दुकानदार को बातों में उलझाकर ,कुछ लटके झटके,नैनमटक्का करके बिना पैसे दिए ही लाने लगी थी। दुकानदार भी रसिकमिजाजी में भूल जाया करते कि सामान के बदले पैसे दिए गये हैं या नहीं। वीना की इस तरह की सफलता उसके विचारों को मजबूती देने लगे थे कि संसार में संपत्ति चलायमान प्रवृत्ति की होती है,उसका स्थायी मालिक कोई नहीं होता। वह जिसकी भी अधीनता में रहती है,उसी की हो जाती है। धन दौलत तो हाथ का मैल है, साबुन लगाओ साफ। जैसा कि वह यदा-कदा प्रवचन सुनती गुरुओं के वचन और मान्यता अनुसार अपने धन से दान का एक अंश निकाल कर धन शुद्धी हो जाती है। वह सोचती ,न जाने कितने लोगों ने धन को दूसरे की जेब से अपनी जेब में लाने के हर सम्भव तरीके ईजाद किए हैं। मंद बुद्धि लोग मेहनत, आदर्श, सेक्रिफाइस जैसे शब्दों की गुलामी करते हैं। अपनी गरीबी को महानता के सांचे में ढाल कर कुछ खास लोगों की गुलामी करते हुए अपना जीवन गुजार देते हैं। कुछ खास लोग व्यवस्था,समाज , परिवार,परिजन ,पद , प्रतिष्ठा को अपने मनोनुकूल बनाने में सफल हो जाते हैं। धर्म, राजनीति, धर्मादे, ट्रस्ट जैसे न जाने कितने संस्थान इंसान ने बनाए हैं और दान का रुपहला पहलू सभी नियम ,कायदे , कानून से परे गुप्त खजाने भर देता है। वह भी थोड़ा बहुत नहींवल्कि बोरों में बंद धन अपनी बेवशी की जगह अपनी प्रभुता का प्रदर्शन कुछ इस तरह करता है कि लोग कहते हैंभैया इनकी बराबरी कौन करेगा ? साक्षात भगवान हैं लक्ष्मी यहाँ पानी भरती हैं और टाट के बोरों, तहखानों में कैद अपनी रिहाई की दुआ मांगती नजर आती हैं कि वह कब उन लोगों के हाथों तक पहुँचे जहाँ उसकी जरूरत है। मगर वातानुकूलित आवास , मंचों पर वेशकीमती उपहारों,कीमती फूलों के मोहजाल में वह स्वयं वहीं बनी रहती हैं क्योंकि एक गरीब इंसान तो एक स्वच्छ नोट भी नहीं रख पाता। स्वच्छ वातानुकूलित माहौल कहाँ से देगा। वीना अब बड़ी हो रही थी और ग्रेजुएशन में इतिहास, राजनीति शास्त्र जैसे आसान विषयों का चयन उसने किया था। उसमें स्वनिर्मित विचार अब उसे आज की स्थिति और पुरातन स्थित का तुलनात्मक अध्ययन करने में समर्थ थे। राजनीति उसका पसंदीदा विषय था। उसे पता चल रहा था कि एक साधारण आदमी लोकतंत्र में भी राजशाही का प्रतीक बन जाता हैउसकी इच्छा ही कानून होती है,उसका प्रभुत्व जनता भले ही समाप्त करने की ताकत रखती है लेकिन बदलाव भी कोई अच्छी खबर लेकर नहीं आता। बेवश जनता छोटे-छोटे प्रलोभन में ही खुश होकर अपना समर्पण कर देती है। वे गोटे किनारी की साड़ियां,शराब, मंगलसूत्र, साइकिल,लेपटाप ,दो वक्त का भोजन, भंडारे, मुफ्त के आश्वासन,वायदे कुछ भी हो सकते हैं। महज डेढ़ हजार रुपए में पचास घंटे, यानि एक हफ्ते कमाने वाला व्यक्ति आखिर सोच भी क्या सकता है ? सिवाय दिहाड़ी,दो वक्त की रोटी बीमार हो जाने पर इलाज के अलावा। वह भी पेरासिटामोल, बंगाली डाक्टर, लाल- पीली गोली के नाम से ही जो ठीक हो जाता है। क्या सोचेगा वह तिल- तिल सिकुड़ते मस्तिष्क का व्यक्ति
वीना के रंग ढंग बदल रहे थेकाजल लगी उसकी आंखें बरबस ही देखने वाले का ध्यान खींच लेने में कामयाब हो जातीं। तराशे हुए सुंदर पालिश किए हुए हाथ और पैरों के नाखून, हल्के रंग की लिपिस्टिक लगा कर जब वह घर से बाहर जाती तो माँ कहतीं"कहाँ चल दीं खसम को दिखावे ? महारानी सोलह श्रृंगार करके, किसे दिखाने हैं ? मैं भी तो जानूं। "
" मीना उसके समर्थन में कहती, मम्मी! आजकल सब अच्छी तरह से ही रहते हैं। पता है अगर सज- संवर कर नहीं रहेंगे तो सब बहनजी कहके चिढ़ाते हैं। लोग गरीब समझ कर हमारी मजाक बनाते हैं।"
" अच्छा तो अब वकील भी तैयार कर ली" बेटा पढ़ लिख के कचहरी में करियोचार पैसा घर में आएंगे"।
" मम्मी! आइडिया बुरा नहीं है पता है पंजाबन आंटी के यहाँ जो खाना बनाने आती हैं नउनकी बड़ी लड़की एल एलबी करके कोर्ट जाने लगी है। उन आंटी ने अपनी मेहनत से अपनी दोनों लड़कियां पढ़ायी हैं। उनके पति तो दूसरी शादी करके बाहर चले गये हैं। छोटी वाली तो एक स्कूल में पढ़ाने जा रही है। पहले वह उसी स्कूल में रजिस्टर उठाने और पानी पिलाने का काम करती थी अब बच्चों को पढ़ाती है। "
" सही कह रही है मीना तू ! मैंने भी देखा है उसे , सालों से वही काम करने आ रही है। उनकी बेटियां इतनी पढ़ गयीं ! बड़े ताज्जुब की बात है यह तो। पर तू सबकी खबर कैसे रख लेती है। पड़ोस की पंचायत से दूर रहा कर "
" हाँ मम्मी! अभी आप धीरज रखिए,आपकी मीना भी जरूर आपका नाम रोशन करेगी"।
माँ को सोचते छोड़ वीना अपने काम से बाहर चली गयी।
क्रमश: