Padma Agrawal

Inspirational

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Padma Agrawal

Inspirational

प्रायश्चित्त

प्रायश्चित्त

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रतनलाल जब शाम को अपने काम से घर लौटे तो घर में सन्नाटा देख कर सीधे अंदर कमरे में पहुंच गये तो वहां उन्होंने देखा कि सिया दहाड़े मार कर रो रही है और कुसुम चुप कराने के लिये पानी का गिलास लेकर उसे पिलाने की कोशिश कर रही हैं ...

‘फिर से फेल हो गईं ना ... पढ़ाई करने के समय तो टी. वी . और मोबाइल से फुर्सत नहीं थी तो अब किसे दिखाने के लिये रोना धोना कर रही हो .....’

वह क्रोध से तमतमा कर बोले , ऐसा मन कर रहा है कि मार मार कर गाल लाल कर दूं ‘...आज सबके सामने मेरी नाक कटा करके रख दी ... पड़ोस में चाटवाला रतन लाल है , उसकी बिटिया रानी फर्स्ट आई है ... वह लड्डू बांट रहा है.

‘बंद करो पढ़ाई लिखाई , झाड़ू पोंछा और चौका चूल्हा करो , वही जिंदगी में काम आयेगा .... चाह रहे थे कि पढ़ लिख लो , हम दोनों तो ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं ... कम से कम बिटिया तो पढ़ लिख कर कुछ बन जाये ... लेकिन चलो जो ऊपर वाले की इच्छा ...’ वह निराश होकर अपना हाथ सिर पर रख कर बोले ,’ एक गिलास पानी देना ....’

कुसुम , पानी लेकर आईं और पति से बोलीं ,’ एक तो लड़की वैसे ही परेशान और दुखी है , आप उस पर चीखने चिल्लाने लगे ,उसने कुछ उल्टा सीधा कर लिया तो जिंदगी भर रोते रहना ... ‘

‘तुमसे कितने बार इंग्लिश और मैथ्स की ट्यूशन लगवाने को कहा था, तब तो ध्यान नहीं दिया ... अब फेल हो गई तो मारने पीटने पर उतारू हो रहे हो...’

‘तुम आरती उतारो अपनी लाडली की , ‘तुम जानो और तुम्हारी बेटी जाने ’ कह कर वह तेजी से निकल गये थे .

जब कुसुम जी फिर से कमरे में गई तो रोती हुई सिया ने अपनी अम्मा को गले से लगा लिया ,’ अम्मा , अब अगले साल हम खूब मेहनत करेंगे और फर्स्ट आकर आपको दिखायेंगे ‘.

कुसुम जी बोलीं , ‘तुम फिकर मत करो मैं शर्मा बहन जी का रिश्तेदार सोम से कह दूंगी ....तुम उससे पढ़ लिया करना ... बेटा अब तुम मन लगा कर खूब मेहनत करना और अपने पापा का माथा ऊंचा कर देना ...’

‘हां अम्मा अब हम खूब मन लगा कर पढ़ाई किया करेंगे , टी. वी. बिल्कुल नहीं देखा करेंगे .’

रतनलाल एक दुकान में एकाउंटेंट जरूर थे लेकिन मालिक के बहुत विश्वसनीय थे , इसलिये उनको उन्होंने बहुत सा सुविधा दे रखी थी ... रहने के घर ... बिजली फ्री और दीवाली का बोनस के साथ .साथ कपड़े वगैरह भी दिया करते थे , जिंदगी आराम से चल रही थी , वह बेटी के लिये कुछ न कुछ जेवर खरीद लिया करते थे . वह अपनी जिंदगी में बहुत खुश और संतुष्ट थे . उनकी पत्नी कुसुम जी और बेटी सिया थी. उनका खुशहाल परिवार था .

    16 साल की सिया गेहुँए रंग की अवश्य थी लेकिन उसके नैन नक्श बहुत आकर्षक थे ....गोल चेहरे पर बड़ी बड़ी काली कजरारी आंखें , छोटी सी नुकीली नाक पर पहनी हुई लाल रंग की लौंग , गालों पर पड़ते डिंपल तो होंठ पर छोटा सा काला तिल , कुल मिलाकर वह सुंदर और आकर्षक दिखती थी .सजना संवरना , टी.वी. के सीरियल देखना , मोबाइल पर गेम खेलना और लंबी लंबी फोन पर बाते करना उसे पसंद था ...  कोरोना का समय था इसलिये क्लासेज ऑनलाइन चल रही थीं ...सिया का बिल्कुल भी पढ़ने में मन नहीं लगता था ... वह फोन हाथ में लेकर गेम खेलती या गाने सुना करती .. एक दिन वह अपनी अम्मा से बोली , हमें मैथ्स का प्लस माइनस बिल्कुल नही समझ आता ... कुसुम जी तुरंत बोलीं , ‘मैं आज ही सोम से कहूंगीं , बेटा जरा सिया की पढ़ाई में मदद कर दिया करो’

सोम साइंस ग्रेजुएट था और कंप्यूटर का कोर्स करके कंपटीशन की तैयारी में लगा हुआ था . 22 वर्षीय सोम गरीब परिवार का शिष्ट एवम् शालीन लड़का था , मां बाप गांव में रहते थे , वह यहां दूर की बुआ के मकान में रह कर पढ़ाई कर रहा था ...

 शर्मा बहन जी ऊपर रहती थीं और सोम का कमरा नीचे बिल्कुल अलग से था ....सिया सोम के घर पर रोज जाती और पढ़ाई के नाम पर देर तक वहां पर बनी रहती तो कुसुम जी को मन में शंका हुई थी कि दोनों के बीच कुछ चक्कर तो नहीं है ... इसलिये उन्होंने उसे वहां जाने से मना कर दिया ... अब सोम उनके घर पर ही आ जाता , कुछ दिनों तक उन्होंने बिटिया की निगरानी की फिर वह अपने काम में लग जाया करतीं ...पढ़ाई के नाम पर आना जाना चलता रहा ....दो जवां दिल बार बार पास बैठें तो कुछ कुछ होना स्वाभाविक था ... सिया का पढ़ने में मन लगता ही नहीं था, वह तो अपलक सोम के चेहरे को निहारती रहती ... यदि वह कहता कि पढ़ने में मन लगाओ तो कहती आज मन नहीं है , या आज सिर में दर्द हो रहा है ... कल से जरूर पढ़ाई करेंगे ...

        सोम भी सिया की नजदीकियों से आकर्षित होने लगा था ... दोनों ही अनजान बनते हुय़े एक दूसरे के हाथ को स्पर्श कर लेते ... स्पर्श के कारण दोनों के शरीर में बिजली सी कौंध जाती ... फिर संयमित हो जाते ... जल्दी ही दोनों के बीच की आंख मिचौली आपसी शारीरिक संबंधों तक पहुंच गई ... फिर तो उसका प्रतिफल आना ही था ... हाईस्कूल तो वह बिना परीक्षा दिये पास हो गई थी लेकिन सोम और सिया का संबंध दूसरा ही गुल खिला रहा था ...

         एक दिन सुबह जब कुसुम जी ने बेटी सिया को उल्टी करते देखा तो सोचा कि कुछ खाने में गड़बड़ हो गई होगी , उन्होंने पुदीनहरा की गोली खिला दी थी ..लेकिन सिया जब लगभग रोज सुबह उल्टी करने लगी और अलसाय़ी सी रहती . जब कुछ महीनों तक वह बराबर सुस्त और थकी थकी सी रहती तो वह एक दिन वह उसे डॉक्टर के पास लेकर गई ... और जब उनके फेमिली डॉक्टर ने सिया के प्रेग्नेंट होने की बात कही तो कुसुम जी शॉक के कारण वहीं पर मूर्छित होकर गिर पडी थी .. सिया ने ही अपनी अम्मा को संभाला था . फिर तो घर में रोना पीटना मच गया था ... नासमझ सिया समझ ही नहीं पा रही थी कि आखिर उसका क्या कसूर है ?

     रतनलाल को जब सिया की प्रेग्नेंसी की खबर मिली तो वह व्यथित होकर दीवार में अपना सिर फोड़ने लगे पत्नी कुसुम को डांटने डपटने लगे और सिया को थप्पड़ थप्पड़ मार कर रोने लगे थे ... वह समझ नहीं पा रहे थे कि इस मुश्किल समस्या से कैसे निजात पाये ... डॉक्टर ने अधिक समय बीत जाने की वजह से एबार्शन करने से मना कर दिया था . पति पत्नी दोनों निराशा और हताशा में डूबे हुय़े थे . न किसी को खाने की होश थी न पीने की .... घर में मुर्दनी छाई हुई थी . सबसे ज्यादा चिंता तो इस बात की थी कि किसी को कानोंकान खबर न लग जाये नहीं तो इज्जत मिट्टी में मिल जायेगी और बेटी की जिन्दगी अलग बरबाद होगी....

     सिया समझ नहीं पा रही थी कि ये सब क्या हो गया .... क्यों कि संबंध बनाने का यह परिणाम होगा , यदि उसे इस विषय में पहले से जानकारी होती तो वह सोम से दूरी बना कर रखती .... हमारे समाज में सेक्स ऐसा विषय समझा जाता है , जिसकी बात करना टैबू मानते हैं , यही वजह है कि युवा होते बच्चे सही जानकारी के अभाव में गल्ती करके मुश्किल में पड़ जाते हैं ... जैसे आज सिया ने अनजाने में अपने मां बाप को संकट में डाल दिया है ....

      जब सिया सोम को नहीं दिखी और उनके घर पर ताला मुंह चिड़ाता हुआ उसे दिखाई दिया तो उसका माथा ठनका था कि क्या कुसुम आंटी को उसके प्रेम प्रसंग की जानकारी हो गई है .... सिया ने किसी तरह से उसको मेसेज कर दिया था कि वह और उसका परिवार इस समय किस मुश्किल घड़ी से गुजर रहा है..

         रतनलाल ने शहर से दूर गलियों के अंदर एक छोटा पुराना मकान और जिसकी छत पर टीन डली हुई थी ढूंढा और रातोरात सामान लदवा कर पत्नी और बेटी को साथ लेकर उस अनजान बस्ती के उस मकान में शिफ्ट हो गये , जहां कोई भी उन लोगों को जानने पहचानने वाला नहीं था .... रतनलाल के लिये अपना जीवन बोझ बन गया था ...दिनोंदिन निराशा के भंवर में डूबते जा रहे थे . डिप्रेशन के शिकार बनते जा रहे थे ....बात बात में पत्नी और बेटी को गाली देना ... चिड़चिड़ाते रहना ...न खाने का होश रहता और न ही नहाने का ..... सिया कोने में पड़ी पड़ी रोती सिसकती रहती ... कुसुम जी भी बेटी को देख देख दुखी होतीं ...मन ही मन सिया की मौत की कामना करती रहतीं ...

कुछ महीनों तक तो उनका जुड़ा हुआ पैसा उन सबकी पेट की आग बुझाता रहा ..कुसुम जी परेशान थी कि इस तरह से कैसे काम चलेगा ....

 वह पति को प्यार से समझातीं कि जीवन में संकट तो आते रहते हैं लेकिन उनका डट कर सामना करना चाहिये , इस तरह से हार मान लेने से जिंदगी नहीं चलती लेकिन रतनलाल तो घर से बाहर ही नहीं निकलते वह चारपाई पर लेट कर छत पर टकटकी लगाये पड़े रहते , यदि वह पति को कुछ समझाने की कोशिश करतीं तो वह गाली गलौज पर उतर आते .... सब तुम्हारी ही करनी है ...

कुसुम जी पर दोहरी जिम्मेदारी आ पड़ी थी , एक ओर बेटी की बढ़ता हुआ गर्भ देख कर वह दुखी होतीं , दूसरी ओर बेटी के भविष्य के बारे में सोच कर वह चिंतित और परेशान रहतीं ... उन लोगों के जीवन से खुशियां तो रूठ कर सात समंदर पार चली गई थी .... वह क्या करें ....कैसे पति को काम करने के लिये प्रेरित करें ... घर की जमा पूंजी से किसी तरह से दाल रोटी चल रही थी ...अब तो जेवरों के बिकने का नंबर आ गया था

वह डॉक्टर के पास सिया को जब लेकर जाती तो उसे शादीशुदा दिखाने के लिये मांग में सिंदूर लगा कर ले जाती ... डॉक्टर ने दवा और इंजेक्शन लिख कर दिया था .वह दूर के मेडिकल स्टोर पर लेने गई तो सेल्समैन ने पूछ लिया कि ‘बहन जी यह दवा किसके लिये ले जा रही हैं ?’

कुसुम जी को तो काटो तो खून नहीं , उन्हें ऐसा लगा कि जैसे वह जानता है कि उनकी क्वाँरी बेटी पेट से है वैसे तो वह अपने घर से काफी दूर की दुकान से दवा लेने गईं थी, परंतु चोर की दाढी में तिनका होता है वैसे ही घबराई हुई तेजी से कदम बढाते हुये चलने में बुरी तरह हांफ गईं थी, उनका मन फूट फूट कर रोने का कर रहा था लेकिन पति के गमगीन चेहरे को देख वह अपने आंसू मन ही मन पी लिया था .

 कुसुम परेशान रहतीं थीं उन्होंने किसी से नौकरी के लिये बात भी कर ली थी, ‘सुनिये ऐसे लेटे रहने से समस्या तो दूर नहीं हो सकती ... गुप्ता साड़ी सेंटर पर एकउंटेंट की तुरंत जरूरत है ... आप चले जाइये .. शायद बात बन जाये ..

कुसुम मैं किस मुंह से बाहर लोगों के सामने जाऊं.... तुम्हारी बेटी के कारण सब कुछ बर्बाद हो गया ....उसकी शादी के लिये जो रुपये जोड़ रखे थे , आज उन पैसों से पेट की आग बुझा रहे हैं .... कहकर वह पत्नी के कंधे पर सिर रख कर बच्चों की तरह सिसक पड़े थे , वह भी पति के आंसू देख विह्वल होकर रो पड़ीं थी ....

 फिर उन्होंने अपने को संभाला फिर उनके आंसू पोंछ कर बोलीं ,’देखिये , जो कुछ भी अपनी मासूम बेटी के साथ घटित हो चुका है , उसको स्वीकारना ही होगा ... आखिर अपनी बेटी भी तो कितनी मानसिक और शारीरिक यातनाओं से गुजर रही है . हम दोनों को उसका सहारा बनना चाहिये .... इसकी बजाय हम उसके साथ परायों सा व्यवहार कर रहे हैं ....यदि हमारी अबोध बच्ची को पहले ही इसके दुष्परिणाम के विषय में जानकारी दी गई होती, शायद ये दिन न देखना पड़ता... ये तो प्राकृतिक आकर्षण का परिणाम है ...कुछ दिनों की बात और हैं फिर सब नार्मल हो जायेगा. 

मेरी बेटी इतनी तकलीफों से गुजर रही है ... मैं अक्सर सोचती हूँ कि जब सिया होने वाली थी , हम दोनों कितने सपने बुनते रहते थे , कितने खुश थे ....आज वह मासूम हम दोनों के क्रोध का शिकार बनती रहती है...अब मैं भी कुछ काम करने लगूंगी .... आप भी नौकरी तलाश करिये ....सिया को प्राइवेट इम्तहान दिलवा देंगे. जिंदगी रुकने का नाम नहीं है ... आगे बढ़ने का नाम जिंदगी है ..

‘बहुत हुआ . चुप हो जाओ...एक शब्द भी मत बोलना ....सिया मेरे लिये मर गई है , उसके लिये मैं मर चुका हूं ... उसने तो मुझे जिंदा जी ही मार डाला है .... कुसुम गिलास में पानी लेकर आईं और उन्हे पिला दिया ... पानी पीने के बाद वह शांत होकर लेट गये .....

सिया बार बार मां के गले से लिपट कर फूट फूट कर रो पड़ती ... कुसुम भी बेटी की हालत देख कर रो पड़तीं लेकिन बेटी को तसल्ली भी देतीं .

 डिलिवरी का समय नजदीक आ रहा था ... पति पत्नी दोनों ही घबराये हुए बेसब्री से उस पल का इंतजार कर रहे थे.... कुसुम जी ने किसी से पालनाघर का पता लगा लिया था , वहां पर बच्चे को अच्छी तरह से रखा जाता था .

आखिर में वह घड़ी आ ही गई थी और सिया को बेटी पैदा हुई ....कुसुम ने नर्स को मुंह बंद रखने के लिये अपने गले की चेन दी थी . कुसुम बेटी का चेहरा देखने के लिये रोती कलपती रहीं लेकिन नर्स सुशीला को तो ऐसे दृश्य देखते रहने की आदत थी ..... सिया से तो कह दिया कि तुम्हारे मरी हुई बेटी पैदा हुई थी परंतु कुसुम स्वयं को संभालें कि बेटी को संभालें ... वह बेटी को गले लगा कर फूट फूट कर रोती रही थी ... उन्हें पता था कि समाज में क्वांरी मां की क्या स्थिति है ..... और यह तो सभी जानते हैं कि वह अपने बच्चे को लेकर सारी दुनिया को क्या मुंह दिखायेंगी ...

कुसुम अगले दिन ही सिया को घर ले आई थी , बच्चा पैदा होने के बाद पौष्टिक खाने का तो ठिकाना ही नहीं था , किसी तरह से पेट भरने के लिये रोटी का इंतजाम हो पाता...वह कभी सोंठ खिलातीं तो कभी काढ़ा पिलाती .... अप्रिशिक्षित नर्स के कारण सिया के टांके पक गये थे ... कमजोरी , बुखार आदि के कारण वह शारीरिक रूप से कमजोर हो गई थी ...चेहरा पीला पड़ गया था ... वह मां बनने के बाद शरीर में होने वाली परेशानियों से निजात नहीं पा रही थी .... 15-20 दिनों तक मां बनने पर प्रकृति के वरदान का दंश उसे झेलना पड़ रहा था ... जो अमृत उसके बच्चे के लिये जीवनी शक्ति प्रदान करता ., उससे बार बार उसका कुर्ता भीग जाता ... मासूम सिया दर्द के कारण न खुल कर कराह पाती और न ही बिलख बिलख कर रो पाती .... बस तकिये के नीचे मुंह छिपाकर सिसक सिसक कर अपने दुःख की ज्वाला को शांत करती ....

 उसके सपनों में सोम दिखाई पड़ता , उसे सांत्वना देता.... कि सिया मैं अवश्य आऊंगा , बस मैं कुछ योग्य तो बन जाऊं ... वह आधी रात को चौंक कर उठ बैठती और अपने चारों ओर अपने सोम को ढूँढने की कोशिश करती और फिर निराश होकर घृणा से लेट जाती .... सोम यदि धोखेबाज न होता तो जाता ही क्यों ....उसके मन में भी सोम को लेकर दुर्भावना आ गई थी ....

  सिया की डिलिवरी को जब एक महीना बीत गया और वह घर के काम करने लगी तो रतनलाल ने चैन की सांस ली और भागदौड़ करने पर एक कपड़ों की दुकान पर बही खाता करने की नौकरी मिल गई थी ... कुसुम जी भी उसी दुकान से फाल लगाने के लिये साड़ियाँ लाने लगी ... वह दिन भर फाल लगाती , दिन भर में 5-6 साड़ियां में वह लगा लेती . उसे एक साड़ी के लिये 10 रुपये मिल जाते ... इन पैसों से साग सब्जी या घर के फुटकर खर्चे में मदद मिलने लगी थी . सिया घर का खाना बनाती .. वह उससे भी एक दो साडियों में फाल लगवा ही लेती .... फिर वह एक पेटीकोट की दुकान से पेटीकोट सिलने का काम करने लगी थी ... वह सारा दिन मशीन चलाती रहती ... दोनों मां बेटी दिन भर मशीन चला कर पेटीकोट सिला करतीं ... जब वह थक कर चूर हो जातीं तो उन्हें अपनी पिछली जिंदगी याद आती जब वह आराम से बैठ कर टी.वी देखा करती थी और पड़ोसियों के साथ गप मारा करती थी ... दिन भर की जी तोड़ मेहनत के बाद भी उसे चंद रुपयों से संतोष करना पड़ता था ...

 शायद दुर्भाग्य उनका पीछा छोडने को तैयार ही नहीं था .... जरा सी गल्ती के कारण रतन लाल को नौकरी से हटा दिया गया था . उन्हें मजबूरी में यहां वहां छोटी मोटी नौकरी करनी पड़ रही थी .... मानसिक असंतोष और अवसाद के कारण वह जरा जरा सी बात पर आक्रोशित हो उठते ... 50 वर्ष की उम्र में ही वह 70 के दिखने लगे थे ,, हर समय बेटी के भविष्य के लिये चिंतित रहते ...चिंता अवसाद और तनाव के कारण उनका ब्लडप्रेशर ज्यादा बढ़ गया तो उन्हें हल्का पैरालिसिस का अटैक आ गया था ... उनका हाथ पैर कांपने लगा था , डॉक्टरों के पास की भागदौड़ और दवाई पर पैसे खर्च हो रहे थे ...

 कुसुम जी क्रोधित होकर सिया पर ही भड़क कर चिल्ला उठतीं ... ‘तेरे कारण ही उनका जीना मुश्किल हो गया है ....तूने सब कुछ बर्बाद कर दिया .... ‘

 एक हंसता खेलता परिवार बर्बाद हो गया , अपने नाते रिश्तेदारों की नजरों से गिर गया था ... अपने प्रिय जनों से दूर होकर नयी जगह नये लोग और हर दिन नई मुसीबतों को झेलते झेलते दुखी हो जातीं ... दिन भर मशीन चलाचला कर दाल रोटी का तो जुगाड़ हो पाता था लेकिन युवा बेटी का भविष्य क्या होगा और रतनलाल के गिरते हुय़े स्वास्थ्य को देख कुसुम जी का भी धैर्य समाप्त हो चला था .

 सिया भी रात दिन मशीन चलाती रहती, उसके चेहरे की लुनाई खो चुकी थी ... उलझे बालों और भुतमैले कपड़ों में उसे ना तन का होश रहता न ही मन का .....

 उधर सोम अपनी मेहनत के बलबूते से एस. डी. एम बन गया था . उसने अपने पद के सोर्स से रतनलाल का पता लगा लिया था .... उसे अपनी बेटी की जानकारी भी उस नर्स के माध्यम से हो गई थी . उसने कोशिश करके बेटी को वहां से निकाल कर ले आया था .... वह बेटी को लिपटा कर फूट फूट कर रो पड़ा था , उसे खूब प्यार करके उससे वादा किया कि अब वह उसकी मां से भी उसे जरूर मिलवायेगा ...

     एक दिन वह रतनलाल के घर पहुंच गया था .... बजबजाती बद्बूदार नालियों के पास सीलन भरा मकान जिसकी दीवारों का प्लास्टर जगह जगह से उखड़ा हुआ था ... अंधेरे से निजात पाने के लिये एक छोटा बल्ब टिमटिमा रहा था .... वह मन ही मन उन लोगों की दुर्दशा के लिये खुद को जिम्मेदार मानते हुय़े सिया के साथ शादी कर लेने की अनुमति उसके मां बाप से मांगता है लेकिन वह सब तो मिलकर उसके ऊपर चीखने चिल्लाने लगते हैं ...सिया भी उन्हें अंट शंट बोलने लगती है ...यहां तक नौबत आ जाती है कि कुसुम जी उसे धक्का देकर घर से बाहर निकाल देती हैं ..

सोम बार बार समझाने की कोशिश करता रहा कि उस समय सिया नाबालिग थी , और वह भी किसी लायक नहीं था इसीलिये चुप रहा था .... अब वह योग्य बन गया है और सिया की जिम्मेदारी उठा सकता है परंतु कोई कुछ भी सुनने को नहीं तैयार था ....और दोनों ने मिल कर उसे बाहर निकाल कर अपने दरवाजे को बंद कर लिया .......

  सोम सिया से मिलने की बहुत कोशिश करता है परंतु सिया के मन में जो घृणा की काई जम चुकी थी , उसके कारण वह किसी तरह से भी उससे मिलने को तैयार ही नहीं थी ... उसकी सारी कोशिश विफल हो गई थी .

     अच्छे भले ... हंसते खेलते परिवार की बर्बादी के लिये वह खुद को जिम्मेदार मान कर वह मन ही मन बहुत दुखी था. परिवार की दरिद्रता देख उसका मन द्रवित हो उठा था ... वह समझ नहीं पा रहा था कि सिया और उसके परिवार की मदद कैसे करे ....

जब सिया को उसने देखा था तो वह बहुत दुखी हो गया था ... उसकी सिया मुरझाई हुई लता के समान अपनी उम्र से काफी बड़ी प्रौढ़ स्त्री की भांति दिख रही थी , उसका गेंहुआं रंग काला पड़ चुका था, उसकी आंखें अंदर को धंस गईं थी ,रूखा सा चेहरा , उलझे बाल , भुतमैला सा सलवार कुर्ता , दुर्बल काया मानों अस्थि का कंकाल सी प्रतीत हो रही थी . उसकी आंखें उसे देखते ही भीग उठी थीं ..... एक क्षण को वह अपनी प्रियतमा को पहचान ही नहीं पाया ही था . उसकी सिया कितनी सुंदर थी ... कहाँ खो गई वह फूल सी खिली हुई सुंदर मनमोहिनी हंसती मुस्कुराती कजरारी आंखों वाली कितनी प्यारी लगती थी .... सोम इसकी और इसके पूरे परिवार की दुर्दशा के लिये तुम और केवल तुम जिम्मेदार हो .....उसकी बार बार आंखें छलक उठतीं और आंखों की नींद उड़ चुकी थी ....

 जब सीधी अंगुली से काम नहीं बना तो उसने अपने एस डी एम के ओहदे के रुतबे की ताकत से एक दिन सिया को पुलिस के द्वारा उठवा लिया परंतु सिया के मन में तो उसके प्रति प्यार के स्थान पर घृणा और कटुता ने अपनी जगह बना ली थी ... वह तो उसकी किसी बात को सुनने को ही तैयार नहीं थी .... वह अपने परिवार की बर्बादी के लिये सोम को जिम्मेदार मान कर अपनी चिल्ला चिल्ला कर जब थक गई तो अपनी हथेलियों से अपना मुंह ढक कर बैठ गई और फूट फूट कर रोने लगी .....तभी अंदर के कमरे से 6-7 साल की लड़की पापा कहती हुई बाहर आ गई थी .....वह तो बिल्कुल ही सिया की प्रतिमूर्ति या फिर फोटो कॉपी थी ....सिया एकटक उस परी जैसी लड़की को देखती ही रह गई थी .... जब उसे होश आया तो वह आश्चर्य से बोली , ‘यह किसकी बेटी है ?’

यह मेरी बेटी है .... कहते हुय़े उसे अपनी बांहों में भर लिया और प्यार से उसको चूमने लगी थी ... मेरी बच्ची , मेरी लाड़ो , मेरी राजदुलारी ...मैंने तेरे गम में कितनी रातें जाग कर काटी है .... उसकी आंखों से खुशी के आंसू निर्झर प्रवाहित हो रहे थे ...

वह सोम की ओर प्यार और कृतज्ञता की दृष्टि से अपलक निहार रही थी ......

आज सोम का प्रायश्चित पूरा हो चुका था .... उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई थी ....



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