पीड़ा खेत की
पीड़ा खेत की




“ माना कि कड़ाके की ठंढ पड़ रही है, पर! खेत में आग क्यों लगा रहे हो ?”
“ मैं खेत का मालिक हूँ , जो चाहूँगा, करूँगा। तुम कौन होते हो टोकाटाकी करने वाले।” खेत के बीच खर-पतवार में आग सुलगाते हुए किसान ने तमतमा कर जवाब दिया।
“खेत में अन्न उपजता है, इसलिये इसमें आग लगाना बहुत पाप है। देखो इधर, ताप से हम झुलस रहे हैं।” इर्दगिर्द खड़े सभी पौध ने आकुल होकर एक साथ मर्माहत स्वर में किसान से कहा।
"अरे... मूर्खों , दूसरी फसल लगाने के लिए मैं खेत तैयार कर रहा हूँ।” धू-धू कर जल रहे खर-पतवार की ज्वाला देख किसान मंत्रमुग्ध था। “
लेकिन , भाई, यह तरीका सही नहीं है। इससे खेत की मिट्टी को नुक्सान होता है। हमारे अग्रज ने हमें एकबार समझाया था , 'फसल का उत्पादन मुख्यतया मिटटी में पाये जाने वाले जीवाणुओं के कारण होता है। आग लगाने से खेत के जीवाणु मर जाते हैं, जिसके चलते प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बाधित हो जाती है ! मैंने सुना है, आपके पुरखे अनपढ़ किसान थे । वो खेत की पूजा करते थे, कभी उसमें आग नहीं लगाते ! आज के मुकाबले, पहले जमाने में फसल की गुणवत्ता बहुत अच्छी होती थी।
ओह! ये क्या? ! ऊपर देखो भाई , स्वच्छ आकाश धुंआ से आच्छादित हो गया !हमें सांस लेने में दिक्कत हो रही है। प्लीज, आग मत लगाइए।” सभी पौध करबद्ध किसान से विनती करने लगे। “
चुप्प! तब से बकर-बकर किए जा रहे हो। जानते नहीं ? मैं, पढ़ा-लिखा, अमीर किसान हूँ। यहाँ से दूर तक जो भी खेत नजर आ रहा है , सब मेरा ही है। मैं अत्याधुनिक खेती करना जानता हूँ, हाँ ...|” किसान का अहं गरजने लगा।
“आप मुझे गलत समझ रहे हैं।किसान भाई, हम स्वार्थी नहीं हैं| भगवान ने सम्पूर्ण जगत के लिए ही हमें बनाया है। जड़ से लेकर पत्ते , फल, फूल... हमारा सब कुछ आपलोगों के लिए ही तो है।
आपलोगों के द्वारा छोड़े गये दूषित वायु (CO2) को पी कर , हम, आप सभी के लिए प्राणवायु (02) उत्सर्जित करते हैं। फिर भी आप...इस तरह खेत में...आग... ! कहते हुए सभी पौध ताप से झुलसकर अचेत गिर गये।
मासूमों की मौत से बेफिक्र, आधुनिक किसान खर-पतवार को घंटों तक खुशी- खुशी जलाता रहा !