हरि शंकर गोयल

Inspirational

1.3  

हरि शंकर गोयल

Inspirational

पहला कदम

पहला कदम

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"नमस्कार गुप्ता जी" नरेश ने अशोक गुप्ता जी के घर में प्रवेश करते हुए कहा "अरे शर्मा जी आप ! आओ आओ । आज तो बहुत दिनों बाद इधर आना हुआ । कहो कैसे याद आ गई हमारी" ? गुप्ता जी ने शिकायती लहजे में कहा 

"इधर वर्मा जी से मिलने आया था तो सोचा आपसे भी मिलता चलूं" 

"क्या कोई खास बात है वर्मा जी के यहां ? कोई शादी वगैरह" ? 

"नहीं ऐसी कोई बात नहीं है । दरअसल उज्जैन में तीन दिन की भगवत गीता सेमीनार है । उसी के सिलसिले में उन्होंने मुझे बुलाया था" 

"क्या तीन दिनों में पूरी भगवत गीता पढा देंगे" ? 

"अरे नहीं भाईसाहब, तीन दिनों में भगवत गीता पढी जा सकती है क्या ? तीन दिनों में तो लोगों को यह समझाया जायेगा कि हमें भगवत गीता क्यों पढनी चाहिए" नरेश जी ने समझाने की कोशिश की 

"फिर भगवत गीता कब पढायेंगे" ? 

"उसके लिये अलग से कक्षाऐं लगती हैं , साप्ताहिक । उसमें पढाते हैं गीता । अलग अलग जगह अलग अलग बैचों में कक्षा लगती है" 

"तो क्या वर्मा जी जा रहे हैं उज्जैन" ? 

"हां, वे अपनी श्रीमती जी को भी साथ ले जा रहे हैं । आप चाहें तो आप भी चल सकते हैं" नरेश जी ने उनका मन टटोला 

"भगवत गीता की सेमीनार में चलकर क्या करेंगे ? कोई घूमने फिरने का कार्यक्रम होता तो जरूर चलते" उन्होंने खिल्ली उड़ाने वाले अंदाज में कहा 

"उज्जैन बड़ा सुंदर शहर है और महाकाल की नगरी भी है । माता हरसिद्धि का बहुत सुंदर और दिव्य मंदिर भी है वहां पर । वहां राजा भर्तहरि की गुफाऐं भी हैं । उज्जैन एक दर्शनीय स्थल है । एक पंथ दो काज हो जायेंगे । गीता सेमीनार भी हो जायेगी और उज्जैन भ्रमण भी हो जायेगा । बोलो, क्या खयाल है" नरेश जी ने जाल फेंक दिया था । 

"ठहरने की क्या व्यवस्था होगी ? खाने पीने का क्या इंतजाम होगा और चलेंगे कैसे" ? 

"नाश्ता और दोपहर का भोजन तो वहीं होगा । रात्रि कालीन भोजन अपनी पसंद से ले सकते हैं । ठहरने की व्यवस्था एक गेस्टहाउस में की है । स्वयं की व्यवस्था भी की जा सकती है । रही बात चलने की तो एक बस जा रही है , उसमें चल सकते हैं या फिर स्वयं के साधनों से भी जा सकते हैं" नरेश जी ने सारी बातें स्पष्ट कर दीं । 

"गीता को क्या पढना ? क्या होगा उसे पढकर ? सब कुछ जानते हैं उसके बारे में फिर सेमीनार में क्या जाना" । गुप्ता जी को प्रस्ताव पसंद नहीं आया । 

"देखिये गुप्ता जी, मैं कोई विद्वान तो हूं नहीं , बस इतना जानता हूं कि हम भगवत गीता के बारे में कुछ नहीं जानते मगर सब कुछ जानने का दंभ भरते हैं । गीता को जानने का, ईश्वर को महसूस करने का यह अवसर पहला कदम बनकर आया है । क्या पता यह अवसर हमें हमारी मंजिल की ओर ले जाये । इसलिए मेरे कहने से आप इस सेमीनार में अवश्य चलिए । और भाभीजी को भी साथ ले चलेंगे तो और भी ज्यादा आनंद आयेगा" 


नरेश जी ने अपनी बात खत्म की ही थी कि इतने में गुप्ता जी की पत्नी भी वहां आ गई । आते ही उन्होंने तुरंत कहा "अवश्य चलेंगे भाईसाहब । और आप सबके साथ बस में ही चलेंगे और वहीं पर सबके साथ ही रहेंगे" । श्रीमती जी के कहने के बाद गुप्ता जी को कुछ कहने की आवश्यकता नहीं थी । श्रीमती जी की बात काटने की उनमें हिम्मत नहीं थी । उन्होंने झट से 3000 रुपए दे दिये । 


सब लोग बस से उज्जैन के लिए रवाना हुए । कुछ महिलाऐं भजन सुनाने लगीं तो कुछ लोग बस में गैलेरी में आकर नृत्य करने लगे । सबको बहुत आनंद आ रहा था । सबके साथ रहने में बहुत आनंद आता है । इस बस में सेवानिवृत्त IAS, IPS इंजीनियर, डॉक्टर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, वकील , जज और उद्योग पति भी बैठे हुए थे । अशोक गुप्ता जो स्वयं को बहुत कुलीन समझ रहे थे , यहां उन्हें पता चला कि उनसे भी श्रेष्ठ लोग इस सेमीनार में जा रहे हैं । इससे उन्हें बड़ा सुकून मिला । 


उज्जैन पहुंच कर सब लोगों को एक एक कमरा आबंटित कर दिया गया और सुबह साढे आठ बजे तैयार होकर नाश्ते पर मिलने के लिए कहा गया । रात को सब लोग जल्दी ही सो गये । 


सुबह नियत समय पर सब लोग नाश्ते पर मिल गये । नाश्ते में वेज सैंडविच, गर्म पकौड़े, खमण और जलेबियां थीं । हल्का नाश्ता लेकर सब लोग एक हॉल में आ गये और रजिस्ट्रेशन के बाद अपने अपने स्थान पर बैठ गये । लगभग 150 लोग उपस्थित थे वहां । 


थोड़ी देर में "व्यास पीठ" पर श्रीमान सौरभ अग्रवाल बैठे । वे पेशे से वकील हैं मगर भगवत गीता की कक्षाऐं लेने को ही उन्होंने अपना कर्म बना लिया था । भगवान श्रीकृष्ण एवं भगवत गीता को प्रणाम करके वे बोले 

"बहनों और भाइयो, ये परमपिता परमेश्वर की हम पर असीम अनुकंपा है जो हम लोग यहां पर विश्व की सर्वोत्तम ज्ञान की पुस्तक भगवत गीता के बारे में कुछ जानने आये हैं । तीन दिन में हम लोग पूरी भगवत गीता का अध्ययन नहीं कर सकते हैं लेकिन हम इसके बारे में मुख्य बातें जान सकते हैं । वस्तुत : हमें गीता का अध्ययन क्यों करना चाहिए इसे जानने की कोशिश करेंगे इन तीन दिनों में । 

गीता का अध्ययन हमको इसलिए करना चाहिए क्योंकि हम लोग अज्ञान के सागर में गोते लगा रहे हैं । जिसके हाथ जो लग रहा है वही उसे "ज्ञान" समझ रहा है । परंतु यह सत्य नहीं है । पहली बात तो यह है कि हम लोग यह भी नहीं जानते हैं कि सत्य क्या है । वस्तुत : जो कुछ कल था , आज है और कल भी रहेगा वही सत्य है बाकी सब असत्य है । 


जिस प्रकार यह शरीर आज है पर कल नहीं रहेगा तो यह शरीर असत्य है और आत्मा कल भी थी, आज भी है और कल भी रहेगी इसलिए वह सत्य है । ईश्वर भी वही हैं जो कल भी थे, आज भी हैं और कल भी रहेंगे इसलिए ईश्वर सत्य हैं । इसलिए हम लोग कहते हैं "राम नाम सत्य है" बाकी सब मिथ्या है । शरीर और आत्मा पृथक पृथक हैं । हम लोग शरीर नहीं बल्कि आत्मा हैं और यह जानना ही "ज्ञान" कहलाता है । तो आप सबने गीता सेमीनार में भाग लेकर "ज्ञान" प्राप्त करने की दिशा में अपना पहला कदम बढा दिया है इसलिए आप सब लोग बधाई के अधिकारी हैं । ईश्वर की प्राप्ति के लिए "ज्ञान" आवश्यक है बिना "ज्ञान" के ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है । और ज्ञान गीता पढने से ही मिलेगा । तो आपने ईश्वर को प्राप्त करने की दिशा में अपना पहला कदम बढा दिया है , यह शुभ संकेत है । 

हर कोई इस सेमीनार में भाग नहीं ले रहा है । आप लोगों पर ईश्वर की कृपा हो गयी है तो आप उनकी ओर एक कदम चल निकले हो । बाकी लोगों पर उसकी कृपा नहीं हुई है अभी , इसलिए वे लोग अभी अज्ञान के सागर में ही गोता लगा रहे हैं । जब कभी उन पर भगवद्कृपा होगी तब उनका नंबर आयेगा । 

गीता ईश्वर से साक्षात्कार कराने का माध्यम है । पर यह पहले स्वयं से साक्षात्कार करवाती है फिर ईश्वर से साक्षात्कार करवाती है । गीता कहती है कि हम सब आत्मा हैं जो ईश्वर का अंश हैं । हमारी मुक्ति तभी होगी जब हम ईश्वर में ही मिल जायेंगे । ईश्वर में समाहित होने की क्रिया को "मोक्ष" प्राप्त करना कहते हैं । भगवान ने अपने मुख से गीता कही है इसलिए इससे अधिक प्रमाणिक ग्रंथ और कोई नहीं है विश्व में । अत: इसमें बताई गई बातों को हमें स्वीकार करना होगा । मोक्ष प्राप्ति के तीन मार्ग हैं गीता में । ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग । आइये इनके बारे में थोड़ा थोड़ा जानते हैं । 

ज्ञान योग कहता है कि वह मनुष्य ज्ञानी है जो राग -द्वेष , हानि - लाभ , सुख - दुख , शीत - उष्ण, जन्म - मृत्यु अर्थात हर परिस्थित में सम अर्थात समान भाव से रहता है । वह देवता और दानव में कोई भेद न कर सबमें ईश्वर का अस्तित्व देखता है वही ज्ञानी है और वह अंतत: मोक्ष को प्राप्त कर लेता है । 

कर्म योग कहता है कि उसका जो कर्तव्य कर्म है उसे बिना फल की कामना से करना चाहिए । मनुष्य का कर्तव्य है निष्काम कर्म अर्थात फल की इच्छा किये बगैर कर्म करना । फल देना ईश्वर के हाथ है । जैसे एक सैनिक का कर्तव्य है अपने देश के लिये बिना हार जीत की परवाह किये जी जान से लड़ना । एक किसान का कर्तव्य है बिना यह चिंता किये कि फसल कितनी होगी , खेत में फसल उगाना । इस तरह निष्काम कर्मयोगी भी मोक्ष को प्राप्त कर लेता है । कर्म योग ज्ञान योग से आसान है । 

भक्ति योग के अंतर्गत मनुष्य अपने समस्त कार्य ईश्वर को सुपुर्द कर देता है । जैसे एक स्त्री खाना बनाती है तो वह यह समझ कर खाना बनाये कि वह भगवान के लिए भोजन बना रही है । फिर वह भगवान को भोग लगाकर पूरे परिवार को जो भोजन करायेगी तो वह भोजन न होकर प्रसादी बन जाता है । इस तरह वह भोजन आसक्ति के पाप से मुक्त हो जाता है । प्रत्येक व्यक्ति अपने समस्त कर्म भगवान के निमित्त कर दे तो यह भक्ति योग कहलाता है । यह सबसे आसान योग है इसलिए सबसे अधिक लोकप्रिय भी है । सब कुछ भूलकर भगवान की शरण में आना ही भक्ति योग है और यह योग सर्वश्रेष्ठ भी है । 

इस प्रकार हम लोग एक एक अध्याय के महत्वपूर्ण श्लोक और उनकी व्याख्या को जानने का प्रयास करेंगे । प्रत्येक सत्र के अंत में आप प्रश्न पूछ सकेंगे जिनका यथा योग्य उत्तर देने की हम लोग कोशिश करेंगे । तो आइये, अब हम विधिवत गीता के महत्वपूर्ण श्लोकों का अध्ययन करते हैं" । 


सौरभ अग्रवाल जी के इस व्याख्यान का सब पर बहुत प्रभाव पड़ा । निसंदेह उनका ज्ञान परिमार्जित था । वे विनम्रता की प्रतिमूर्ति थे । सबके प्रति समभाव रखते थे और अपनी बात कहने की कला उनमें अद्भुत थी । अशोक गुप्ता जी जैसे लोगों को अब पता चला था कि वास्तव में वे गीता के बारे में कुछ नहीं जानते थे । 


तीन दिन तक नियमित सत्र चलते रहे । प्रश्नोत्तर होते रहे और सभी साधक लोग आपस में एक दूसरे से भी मिलते रहे । ये तीन दिन कब निकल गए पता ही नहीं चला । उज्जैन देखने के लिए आये थे गुप्ता जी मगर गीता में इतने मग्न हो गये कि उनकी उज्जैन देखने की इच्छा ही नहीं रही । 


गुप्ता जी ने साल भर के कोर्स में अपना नाम लिखवा दिया ।अब उनकी हर रविवार को कक्षाऐं लगने लगीं । उसमें प्रत्येक श्लोक को विधिवत समझाया जाता था । बीच बीच में परीक्षा भी ली जाती थी । इस प्रकार गुप्ता जी ने पूरी गीता विधिवत पढ ली थी । 


एक दिन नरेश जी को गुप्ता जी बाजार में मिल गए । नरेश जी को प्रणाम कर कहने लगे "आदरणीय, आपने मुझे मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त कराया है । आप मेरे गुरू बन गये हैं । मैं आपका यह उपकार कभी नहीं भूल सकता हूं । गीता के अध्ययन के पश्चात अब मुझे मानसिक तनाव नहीं रहता है । ब्लडप्रेशर भी सामान्य हो गया है और अब गुस्सा भी नहीं आता है । पहले मैं लोगों के दोष ढूंढता था अब मैं उनमें गुण तलाशता हूं । नकारात्मकता समाप्त हो गई है और सकारात्मक ऊर्जा से लबरेज हो गया हूं । भगवत गीता का नियमित अध्ययन अब मेरी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है । आपने मुझ पर महती कृपा की है मान्यवर, जो मुझे उस दिन गीता सेमीनार में ले गये थे । आप मुझे बतायें कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं" ? 


अशोक गुप्ता जी के इस बदले हुए स्वरूप को देखकर नरेश जी गदगद हो गये । उन्होंने गुप्ता जी को गले से लगाते हुए कहा "जिस तरह मैं आपको गीता सेमीनार में लेकर गया था उसी तरह आप भी ऐसे ही लोगों को गीता सेमीनार एवं कक्षाओं में लेकर आओ । भगवान ने यही कहा है कि जो गीता का सबसे ज्यादा प्रचार प्रसार करेगा, वही मुझे सबसे अधिक प्रिय है । अत: आप भी गीता के प्रचार प्रसार में लग जाओ । यही श्रेष्ठ कार्य है" । 


अशोक गुप्ता जी उसी दिन से गीता के प्रचार प्रसार में लग गये! 


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