फेसबुकिया बहू
फेसबुकिया बहू
निशा पढ़ी लिखी सुशिक्षित, सुलझे हुए विचारों वाली और सौम्य व्यवहार वाली खूबसूरत हँसमुख युवती थी। मेहनती व सेवाभावी स्वभाव की वजह से वह चंद दिनों में ही ससुराल में सबकी चहेती बन गयी थी।
घर का सभी काम करते हुए व सभी की जरूरतों का पूरा ख्याल रखते हुए भी वह मोबाइल की सोशल साइट्स पर हमेशा सक्रिय रहती। मोबाइल पर समय बिताना, अच्छे पसंदीदा लोगों से बातें करना व किस्से कहानियां पढ़ना उसके प्रिय शौक थे।
पड़ोसियों की नजरों में वह अपने इन्हीं आदतों की वजह से चुभती रहती थी। पड़ोसी भी गाहेबगाहे उसके इन आदतों की चर्चा उसके ससुर और पति से किया करते और अपनी नापसंदगी जाहिर करते। पड़ोस के रामधनी चाचा कहते ' अरे बहू पढ़ी लिखी है यह तो ठीक है लेकिन उसका हरदम फेसबुक पर अनजान लोगों से बातें करना ठीक नहीं। ' उनके शिकायत के आधार पर निशा ' फेसबुकिया बहू ' के छद्म नाम से जानी जाने लगी थी ।
एक दिन पड़ोसी रामधनी का सात वर्षीय पौत्र घर के सामने खेल रहा था कि कोई मोटर साइकिल वाला उसे रौंद कर भाग गया। जख्मी लहूलुहान पोते को देखकर रामधनी के घर में कोहराम मच गया। लेकिन उनके घर में बूढ़े रामधनी के अलावा घर में महिलाएं ही थीं जिन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था क्या करें क्या न करें ?
ऐसे में निशा ने आगे बढ़कर सारी जिम्मेदारी संभाल ली। मोबाइल चलाने की अच्छी जानकारी होने की वजह से उसने नेट की सहायता से नजदीकी सरकारी अस्पताल के आपातकालीन विभाग में फोन किया। तुरंत ही अस्पताल कर्मी एम्बुलेंस लेकर आ गए और बच्चे को अस्पताल में भर्ती कराकर इलाज शुरू कर दिया गया। अत्यधिक रक्त बह जाने की वजह से रक्त चढ़ाए जाने की जरूरत थी। अब फिर निशा ने अपने मोबाइल का उपयोग किया। उस बच्चे की घायल अवस्था में तस्वीर अपनी वॉल पर डाल कर रक्त दाताओं से अपील की थी। कुछ ही मिनटों में नजदीक रहनेवाले कुछ युवक उस बच्चे की मदद करने के लिए पहुंच गए थे। निशा की सूझबूझ व उसके मोबाइल की वजह से उस बच्चे की जान बचाई जा सकी।
बात बात में निशा को उसकी आधुनिकता व मोबाइल प्रेम को लेकर ताने मारनेवाले रामधनी व उनके परिजन अब फेसबुकिया बहू की जी भर कर तारीफ कर रहे थे।