फेमिनिज़्म
फेमिनिज़्म
धड़कन!जिंदा होने का सबूत देती धड़कन!!
मैं तकरीबन हर रोज़ सुनती रहती हुँ वह धड़कन.....मेरे आसपास की हर एक कामकाजी महिला की धड़कन......
क्योंकि अब मैं जानने लगी हुँ उस कामकाजी महिला की भागमभाग! अलस्सुबह जागकर सब के लिए उसका वह टिफ़िन बनाना....क्योंकि महानगर में कम्यूटिंग करना अलग तरह का एक कठिन काम होता है... ट्रैफिक जैम में गाड़ियों की स्लो स्पीड को बीट कर उसका ऑफिस में टाइम पर पहुंचने की दौड़भाग करना....
इन सब कवायतों के बीच उसका ऑफिस पहुँचते ही किसी हाई लेवल मीटिंग अटेंड करना...
मैं अम्यूज हो जाती हूँ जब मैं उसे इंजीनियरिंग जैसे मेल डॉमिनेटिंग फील्ड में अपनी बात को पूरे कॉन्फिडेंस के साथ रखते हुए देखती हूँ....
जब कभी घर से बच्चों का टेलीफ़ोन कॉल्स आती है तब मैं उसे सबसे कठिन काम करते हुए देखती हूँ जब मैं उसको कहते हुए सुनती हुँ की 'मम्मा अभी काम मे बिजी है....'
फिर शाम को ऑफिस से घर जाते समय वह अपनी मेड को झट झट कई सारे इंस्ट्रुक्शन्स देती है....और उसकी इसी तरह की कसरत रोज़ चलती जाती है।
फेमिनिज़्म के शोर में यह सब बातें कही दूर पीछे छूट जाती है.....
पुरुष प्रधान संस्कृति में अपने अधिकारों के लिए लड़ना ही जैसे फेमिनिज़्म हो गया है।
लेकिन पुरुष प्रधान संस्कृति में अपनी मेहनत और कार्य कुशलता से अपनी जगह बनाना क्या ट्रू फेमिनिज़्म नही है?
और हाँ, सफलता का पैमाना भी.....