कलमकार सत्येन्द्र सिंह

Abstract Drama

4.8  

कलमकार सत्येन्द्र सिंह

Abstract Drama

पौधे

पौधे

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वह जब से दूसरी बिटिया की अम्मा बनी थी. तब से सबके फंक्शन में बढ़ चढ़ कर भाग लेती थी

आस पड़ोस व रिश्तेदारों को कभी गिफ्ट भिजवा देती तो कभी छोटे मोटे खर्चे कर देती.

वक्त निकाल कर कभी श्रमदान करती तो कभी घर से खाना भिजवा देती.

"माँ...यह सब क्यों करती हो, कभी तो हमें भी समय दे दिया करो" - पन्द्रह वर्षीय बड़ी बिटिया बोली.

"अरे...यह सब छोटे छोटे पौधे हैं...तुम बहनों की शादी में फल बन कर लौटेंगे"- उसने समझाया.

"शर्मा आंटी भी यही सब करती थीं, आधे लोग तो उनके फंक्शन में आये ही नहीं" - बिटिया ने हिसाब समझाया.

"अब सारे पौधे थोड़े ही पनप पाते हैं" - माँ ने जस्टिफाई किया.


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