पार्ट 6: मालबन में "वो"
पार्ट 6: मालबन में "वो"
आपने पिछले पार्ट में पढ़ा कि मंजरी राहुल से मिलने जाती है जहॉं जहाँ देवांश उसे बारहवीं क्लास का वादा निभाते हुए उसे कंगन देता है..उधर राहुल, मंजरी को नई गाड़ी की चाभी गिफ्ट में देता है जिसे अर्जुन देख लेता है और पैर पटकता वापस चला जाता है ...अब आगे..
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अर्जुन सिर पकड़े अपने ऑफिस में बैठा था...उसके दिमाग में वही सीन चल रहे थे..कि कैसे राहुल ने मंजरी की ओर देखा और फुसफुसाते हुए कुछ कहा...क्या कहा होगा जिसे सुनकर मंजरी ने फौरन कार की चाबी पकड़ ली...हो सकता कोई ऐसी बात जो मंजरी को माननी ही पड़ी हो.. लेकिन ऐसी कौन सी बात हो सकती है...शायद उसके प्रोजेक्ट से जुड़ी कोई बात...लेकिन मंजरी के चेहरे पर लेशमात्र भी शिकन नहीं थी बल्कि वो मुस्कुरा रही थी ...मतलब खुश थी...ओह तो तुम्हें कार की चमक ज्यादा लुभाने लगी है मंजरी...पैसे की चमक मेरे प्यार पर भारी पड़ रही है...(मेज पर घूँसा मारते हुए) और वो राहुल..कमीना..छोडूंगा नहीं..सब जानने के बाद भी...(माथे पर बल पड़ गए थे..दाँत भिचते हुए) उसका भी क्या दोष..जब खुद का ही सिक्का खोटा हो....(माथे को दोनों हाथों से दबाते हुए) आह मेरा सिर..
"अर्जुन सर..नांगिया मीटिंग के लिए मान गया है" रावत ने अर्जुन के केबिन में कदम रखते ही कहा..नांगिया काले धंधो में लगा बेशुमार दौलत का मालिक..जिसका दिखावे के लिए एक फाइनेंस का बिजनेस था..जिससे मिलकर अर्जुन कोई मोटी रकम लेने की उम्मीद कर रहा था और बहुत मिन्नतों के बाद आज मीटिंग के लिए तैयार हुआ था..
"क्या..? चलो कुछ तो अच्छा हुआ..क्या टाइम है मीटिंग का"? अर्जुन ने पूछा
"एक घण्टे बाद का समय दिया है...चलिए अभी निकलना होगा" रावत ने जवाब दिया
"हम्म " अर्जुन अपनी सीट से उठा और बाहर निकलने लगा
"अर्जुन सर कपड़े नहीं बदलेंगे"? रावत ने अर्जुन को ऐसे ही चलते देख आश्चर्य से पूछा
"ओह्ह हाँ.."(अर्जुन को जैसे कुछ याद आया हो ..वो बापस पलटा और अपने केबिन में बने कबर्ड को खोल कर कपड़े देखने लगा ..और हेंगर पर टंगे एक सफेद शर्ट और नेवी ब्लू ब्लेज़र को उठा लिया. बड़े प्यार से उस ब्लेज़र के कॉलर को सहलाने लगा...उसकी आँखो में नमी आ गयी थी जिसे देखकर रावत ने कहा "सर मैं गाड़ी निकालता हूँ"
अर्जुन ने रावत की ओर बिना देखे ही सिर हिलाकर "हम्म "कहा..और शर्ट पहनने लगा...ये ब्लेज़र उसे मंजरी ने दिया था..उसे याद हो आया..लगभग तीन साल पहले उसकी रोज़ ही राहुल से बात हुआ करती वो दोनों एक दूसरे से अपने काम के अनुभव साझा किया करते थे..एक दिन उसने फोन किया और राहुल ने फोन नहीं उठाया तो उसने राहुल के ऑफिस के लैंडलाइन पर फोन कर दिया था... मंजरी, जिसने उन्हीं दिनों राहुल का ऑफिस जॉइन किया था, ने फोन उठाया था
"हेलो, राहुल ट्रैवल्स एन्ड होलीडेज
शहद घुली उसकी आवाज ने अर्जुन के चेहरे पर एक तसल्ली भरी मुस्कान ला दी थी..
"हैलो, राहुल से बात कराएंगी प्लीज़
"जी आप कौन?"
"मेरा नाम अर्जुन है और आपका"
"जी.. मंजरी" बोलकर उसने राहुल को रिसीवर पकड़ा दिया था..
फिर अर्जुन ने अगले दिन राहुल के ऑफिस के लैन्डलाइन पर फोन करके मन ही मन मंजरी से बात होने की प्रार्थना की और फोन मंजरी ने ही उठाया
"हैलो "
"मंजरी..राइट"
"राइट सर..आप अर्जुन सर बात कर रहे हैं ना"?
"हम्म.."
"राहुल सर इस वक़्त कहीं गए हैं"
"कोई बात नहीं ,आप का क्या प्रोफ़ाइल हैं यहाँ"
"मैं एयर टिकट और होटेल रिजर्वेशन में हूँ"
"गुड..तो कुछ सेक्टर्स की टिकेट्स बतायेंगी प्लीज़"
"जी क्यों नहीं"
फिर ऐसे ही अर्जुन कुछ सेक्टर्स की एयर टिकट पूछता रहा था..ताकि इसी बहाने से मंजरी को सुन सके...फिर अगले दिन उसने उससे एक टिकट बनवा ली थी और राहुल के ऑफिस पहुंच गया था..राहुल के केबिन में बैठ उसने चालाकी से मंजरी के बारे में जानने के लिए राहुल से पूछा "राहुल, तुम्हारे स्टाफ में कोई मंजरी है जिससे कल एक टिकट बनवाई है..कौन है मंजरी यहाँ"?
राहुल ने उँगली से मंजरी की ओर इशारा किया ..और अर्जुन ने उसे पहली बार देखा..वो उसे बहुत प्यारी लगी थी..मंजरी अपने काम में डूबी रही..और अर्जुन मंजरी को देखने में...फिर जब तब अर्जुन, राहुल के ऑफिस जाता और मंजरी को देखता रहता ...लगभग रोज़ ही लैंडलाइन पर फोन करके इधर उधर की बात शुरू कर मंजरी को बोलने का मौका देता और उसे सुनता रहता
फिर लगभग दो हफ्ते बाद उसने मंजरी को फोन करके कहा
"मंजरी क्या हम मिल सकते हैं"
"मिलना..क्यों "
"क्यों क्या ? ऐसे ही..मिल लो ना मंजरी"
"नहीं मुझे नहीं मिलना आपसे"
"तो वजह बता देता हूँ..प्यार हो गया तुमसे"
"हा हा अच्छा...मजाक के मूड में हो"
" नहीं बहुत गंभीर हूँ मंजरी, वो भी पहली और आखिरी बार भी.."
"आप जानते ही क्या है मेरे बारे में..आपने तो मुझे देखा भी नहीं तो प्यार कैसे हो सकता है"
"जितना जाना बहुत है...मेरे मन को कोई इतना, कभी नहीं भाया मंजरी..."
"लेकिन"
"चलो तो देख लेते हैं...मिल कर बात करते हैं मंजरी ,मिल लो"
"मिलना.. नहीं नहीं"
"क्यों क्या मैं इंसान नहीं"?
"मैंने ऐसा कब कहा"?
"क्या मेरे चार पैर हैं"?
"मैंने ऐसा कब कहा"?
"तो?"
"तो ये कि मेरे मन में कुछ नहीं तुम्हारे लिए"
"हम्म..(थोड़ी देर चुप रहकर) चलो कोई बात नहीं फिर भी मिल लो"
"नहीं अर्जुन..प्लीज़ मान जाओ"
"तुम्हारे ऑफिस में कोई लड़का नहीं क्या"?
"हां हैं"
"तो क्या तुम उनसे बात नही करती मंजरी "?
"करती हूँ ना"
"तो बस्स ..बात ही तो करनी है ..फोन पर बात करते हैं ना मंजरी ..बस आमने सामने बात कर लेंगे"
"मैं ...ओह्ह ..न नहीं'
"पब्लिक प्लेस पर मिल लेंगे मंजरी..बस्स एक कॉफी साथ साथ ..हाँ कर दो ना मंजरी"
"सुनो अर्जुन नहीं मिलना मुझे..बस्स रखो फोन"
"कल ..जब तक तुम मुझसे मिलने नहीं आओगी ना मंजरी मैं कुछ नहीं खाऊंगा..ये वादा रहा"
"ये क्या है अर्जुन"
"ये मेरा प्रण है"
"तो खूब रखो अपना प्रण मैं नहीं आऊँगी" बोलकर उसने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया था..
अगले दिन
लैंडलाइन पर अर्जुन का फोन आया, ऑफिस की एक कुलीग ने फ़ोन का रिसीवर उसे ये बोलकर पकड़ा दिया "मंजरी किसी का फोन है आपके लिए..
"हेलो"
"मंजरी ..तुम्हारे ऑफिस के पास वाला वो "कॉफी पॉइन्ट " शॉप है ना ..वहीं बाहर ही खड़ा इंतज़ार कर रहा हूँ तुम्हारा"
"बन्द करो ये सब..मैंने कल ही मना किया था..नहीं आना मुझे" वो चिढ़ते हुए बोली
"मैंने भी कहा था...चाहे शाम हो जाये या रात ना तो घर जाऊंगा ना कुछ खाऊँगा, पिऊँगा"
"मत खाओ पीओ ..मेरी बला से...नहीं आना मुझे"और फोन डिस्कनेक्ट कर दिया उसने ...लगभग आधे घण्टे बाद फिर अर्जुन ने फोन किया मंजरी के मोबाइल पर लेकिन मंजरी ने फोन नहीं उठाया ..वो लगातार कॉल करता रहा .लेकिन मंजरी गुस्से में भुनभुनाती रही...फ़ोन नहीं उठाया ..कई कॉल्स के बाद लगभग एक घण्टे का गैप लिया और फिर फोन कर दिया अर्जुन ने ..मंजरी ने गुस्से में फोन उठाया और बोली
"अर्जुन क्यों डरा रहे हो मुझे...क्यों मजबूर कर रहे हो ये सोचने पर कि तुमसे बात करके गलती की मैंने...बोलो"
"ऐसा मत सोचो मंजरी...अच्छा मत आओ लेकिन कम से कम बात तो करो... यहां अकेले बैठकर इंतज़ार करना बहुत कठिन काम है ..."गुस्से में हाँफती मंजरी ये सुन कर संयत हो गयी थी...
"अच्छा ..कोई उपाय बताओ ..कि प्यास लगना महसूस ना हो" अर्जुन बड़ा निरीह आवाज में बोला
"मतलब तुमने अब तक पानी भी नहीं पिया" मंजरी ने आश्चर्य से पूछा
"प्रण लिया है मैंने ...पता तो है तुम्हें"
"और मैं नहीं आ रही हूँ...फिर क्या करोगे"? वो डांटते हुए बोली
(फीकी हँसी हँसते हुए)फिर क्या..आज ऐसे ही रहूँगा...कल कुछ खा लूँगा..तुम मेरी फिक्र मत करो मंजरी"
बड़ी चालाकी से अर्जुन ने मंजरी को भावुक करने के लिए ये बात बोल दी और अपनी पीड़ा भी बता दी, तो कुछ देर वो चुप रही फिर बोली.."अच्छा ..तुम क्या वहीं हो ?"
अपनी बात बनते देख, मन ही मन खुश होकर बड़े सधी आवाज में" हम्म वहीं हूँ"
"अच्छा सुनो..आ रही हूँ"
"(खुशी में चहकते हुए) "सच"?
"हम्म" कहते हुए उसने बैग उठाया और ऑफिस से निकल गयी...एक मुश्किल से 15 टेबिल वाला छोटा मगर खूबसूरत कॉफी शॉप था जिसके बाहर भी कुछ कुर्सियाँ लगी हुई थीं..मंजरी ने सोचा कि वो पहचानेगी कैसे ..फिर अर्जुन के मोबाइल पर एक कॉल किया अर्जुन जो एक कुर्सी पर बैठा था और कबूतरों को देख रहा था ..कबूतर जो सड़क के किनारे बने एक घेरे में कुछ बाजरे के दाने चुंग रहे थे और आपस मे अटखेलियां कर रहे थे...अर्जुन मोबाइल कान से लगा अपनी सीट से उठा और इधर-उधर देखने लगा.."ओह तो ये जनाब हैं..हम्म... है तो हैंडसम" मुस्कुराती मंजरी ने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर नजर डाली... चार बज गए थे ..उसने पास की एक दुकान से जूस की बोतल खरीदी ...और अर्जुन के सामने जाकर खड़ी हो गई....अर्जुन खुश होकर उछल पड़ा...मंजरी ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए उसकी ओर जूस की बोतल बढ़ा दी..
"मैं सही सोच रहा था..." वो बोतल मुंह से लगाते हुए बोला
बैग से एक सेब निकालकर अर्जुन को देते हुए "क्या"
"यही कि तुम बहुत केयरिंग हो"
"हुम् कोई केयरिंग वेयरिंग नहीं...मैं नहीं चाहती कोई मेरी वजह से भूखा रहे या बीमार हो जाये"
" हा हा अच्छा ठीक है"
"कैसे पहचाना तुमने मुझे"?
"लो कम से कम दो हफ्तों से ताड़ता (फिर बात संभाल कर ) मतलब देखता आ रहा हूँ तुम्हें"
(मुँह खोले )कैसे ...कब "
"तुम्हारा बॉस मतलब राहुल मेरा दोस्त है, उसी के केबिन में बैठा तुम्हें देखता आ रहा हूँ...तुम्हारी सीट उसके केबिन के सामने है"
"तो सामने क्यों नहीं आये कभी"
"सोचा प्यार गहरा हो जाए"
"ओह्ह..चालाक ..चीटर..(फिर अपना पर्स अर्जुन के कंधे पर मारते हुए) बहुत बुरे हो
"अरे अरे मंजरी देखो सब देख रहे हैं..उन्हें लगेगा हम रिलेशनशिप में हैं" अर्जुन के इतना बोलते ही मंजरी झेंप कर चुप हो गयी और बोली "अर्जुन बात देखने की थी..प्रण हो गया तुम्हारा..अब जा रही हूँ"
"अरे ये क्या.." वो आश्चर्य से मुंह खोलकर बोला इतने में मंजरी बापस पलटते हुए भागती सी जाने लगी..अर्जुन उसके पीछे -पीछे जाने लगा...मंजरी ने हाथ का इशारा देकर एक रिक्शा रोका और उसमें जाकर बैठ गयी..इतने में अर्जुन ने भागते हुए आकर अपना पैर रिक्शे में जमा दिया..
"ये क्या तरीका हुआ..कम से कम एक कॉफी तो पियो" वो मुस्कुराते हुए बोला, मंजरी ने इधर -उधर देखा बहुत से लोग उनकी तरफ ही देख रहे थे...वो झेंपते हुए बोली.."अर्जुन सब देख रहे हैं हमें..सीन क्रिएट मत करो"
"मैडम सीन क्रिएट आप कर रही हैं..जल्दी नीचे उतरिये" उसने अपना पैर अब भी रिक्शे में रखा हुआ था..और मुस्कुरा रहा था
"मुझे क्या करना है अब, वो तो बताइए...चलूँ या नहीं" रिक्शेवाले ने मुँह सिकोड़कर मनुहार करते हुए कहा तो अर्जुन ने अपने पर्स से कुछ पैसे निकालकर उसे पकड़ाते हुए कहा
"तू जा यार ..." (फिर मंजरी की ओर देखकर ) मान भी जाओ मंजरी..गुस्से में आग बबूला मंजरी धम्म से रिक्शे से नीचे उतरी और ये बुदबुदाती "ना जाने क्या सूझा मुझे, जो इससे बात की" वो तेज़ कदमों से चलते हुए सीधे कॉफी शॉप में जाकर एक कुर्सी पर बैठ गयी...अर्जुन भी मुस्कुराता हुआ बैठ गया ..कॉफी और स्नैक्स का आर्डर दिया और मंजरी को निहारने लगा...
"तुमने तो फोन पर कहा था कि तुम गोरे हो" मंजरी बिल्कुल सपाट अंदाज़ में बोली
"तो क्या मैं गोरा नहीं"? मंजरी ने "ना" में सिर हिला दिया
"मां तो हमेशा मुझे गोरा ही बताती है.. इसका मतलब मां ने झूठ कहा था.." अर्जुन के इस मासूमियत भरे जवाब पर मंजरी को बड़ी तेज़ हँसी आई और उसने पास ही बैठे एक लड़के की ओर इशारा करते हुए कहा
"इसे कहते हैं गोरा ...हा हा हा ..माँ गोरा कहती है" अर्जुन को मंजरी का हँसना अच्छा लग रहा था.....
फिर उस दिन लौटने के बाद से अपने काम में फंसे अर्जुन ने दो से तीन दिन तक मंजरी से जानबूझकर बात नहीं की थी ....और चौथे दिन मंजरी ने अर्जुन को फोंन कर दिया था..
"कहाँ हो इतने दिनों से.... तुम ठीक हो ना"
"हाँ मंजरी..वो जरा काम में फंस गया था..तुम कहो कैसी हो"
"क्या कैसी..बड़ा घबरा गई थी मैं तो.सुबह भी तुमने फ़ोन नहीं उठाया ...क्यों"?
"क्या तुमने कॉल किया था.आह..माफ करना ..काम बहुत था फोन देखा तक नहीं".
"बहुत काम होता है तो भूल जाते हो ..कल को और काम होगा तो बिल्कुल भूल जाओगे"
"हम्म..हम्म... सीधे क्यों नहीं कहती मंजरी कि मिस कर रही थी मुझे"
इस पर बहुत देर दोनों चुप रहे..फिर मंजरी बोली "हम्म मिस कर रही थी तुम्हें"
"बस्स मिस "? (खुश होकर )
"पसंद करने लगी हूँ "
"बस्स पसंद "?
"ओहहो ..हाँ प्यार करने लगी हूँ तुमसे"
"क्या कहा सुना नहीं... फिर से कहो " अर्जुन ने सुन लेने के बाद भी हँसते हुए कहा...
"जाओ नहीं करनी कोई बात " मंजरी शर्माते हुए बोली तो
"मैं भी तुमसे बहुत प्यार करता हूँ मंजरी..और हमेशा करूँगा..तुम्हें प्रेम का एहसास कराने के लिए ही जानबूझकर बात नहीं कर रहा था " अर्जुन हँसते हुए बोला..
एक तेज़ झटके के साथ गाड़ी रोक दी रावत ने और बेख्याली में बैठे अर्जुन के गोद में रखा लेपटॉप गाड़ी में लुढ़क गया जिससे वो मंजरी के ख्याल से वापस वर्तमान में लौटा
"माफ करना अर्जुन सर..वो खड्डा दिखा नहीं" रावत ने कहा तो अर्जुन ने सिर झटक दिया और बोला "कोई बात नहीं रावत ..जाओ देखो नांगिया कितनी देर में आ रहा है"
दोनो अंदर पहुंचे लगभग एक बीघा में आलीशान हॉल बना था जिस पर थोड़ी थोड़ी दूरी पर एक टेबिल के साथ चार कुर्सियां लगी थी ..सीलिंग बस थोड़ी सी खुली थी..जमीन पर सफेद टाइल्स लगे थे...जो उस जगह को बहुत सुंदर और शांत दर्शा रहे थे.....अर्जुन एक कुर्सी पर बैठने के लिए कुर्सी खींची..इतने में एक वेटर उनके सामने दो कॉफी रखते हुए कहा..."सर आपको आधे घंटे इंतज़ार करने को बोला है .."
"ओके ..(फिर अर्जुन की ओर देखकर ) मैं तब तक कुछ कॉल कर लेता हूँ'" रावत ने दूर हटते हुए कहा तो अर्जुन इज़ाज़त देने के इशारे में सिर हिलाता हुआ बैठ गया...नजर पास ही बनी सीढ़ियों की ओर चली गयी जिससे एक लड़की नीचे उतर रही थी..अर्जुन उसे देखने लगा...दो से तीन सीढियां ही बची होंगी कि वो लड़खड़ा गयी ..अर्जुन 'मंजरी ' चीखते हुए उसी ओर दौड़ा और लड़की को अपनी बाँहों में सम्भाल लिया .."थैंक यू " वो मुस्कुराते हुए बोली तो अर्जुन अपना मुंह खोले उसे कुछ पल ताकता रहा
"...ये तो ..ये तो ..मंजरी नहीं..ये हो क्या रहा है मेरे साथ" वो मन ही मन खुद से बोला..इतने में एक हैंडसम से लड़का बिल्कुल उसके पास आकर बोला " थैंक यू यार..तुमने जिसे सम्भाला वो मेरी गर्लफ्रैंड थी..नाराज है आजकल मुझसे'
"मुझे माफ़ करना वो ..वो" अर्जुन खुद में शर्मिंदा महसूस कर रहा था क्योंकि उसने बड़े प्यार से उस लड़की को मंजरी समंझ कर सम्भाला था
"अरे कुछ ऐसा वैसा मत सोचिए...आप ही क्या दुनिया का कोई भी इंसान उसे मुझसे बेवफाई करने पर मजबूर नही कर सकता है"
"इतना भरोसा है आपको उस पर" अर्जुन ने पूछा
"इतना उतना मैं नहीं जानता..वो प्रेम और भरोसा ही क्या जो पूरा ना हो..जिसमें कोई कमी हो " उसने मुस्कुरा कर जवाब दिया ...तो अर्जुन को अपनी गलती का एहसास हुआ वो दौड़ता सा वहाँ से बाहर निकल गया ...और उसके निकलते ही वो लड़का मुस्कुराया और उसने अपनी आखे बन्द कर ली थोड़ी देर में ही एक धुँआ सा उठा और वो गायब हो गया ...पहने हुए उसके कपड़े नीचे जमीन पर गिर गए....दूर खड़ा वेटर जिसने अर्जुन को कॉफी दी थी ..उसने ये देखा तो सिर चकरा गया और वो बेहोश हो कर गिर पड़ा...................
क्रमश:............