Kumar Vikrant

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पापा

पापा

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रात के १० बज चुके है। हैरान परेशान सा हेमंत बार-बार घड़ी की तरफ देखता है फिर अपने मोबाइल की स्क्रीन को देखता है और उम्मीद करता है की अभी नैना का फोन आएगा और वो उसे बता देगी कि— "पापा सब ठीक है, मैं घर पहुंच रही हूँ।"

बिन माँ की बेटी जिसे उसकी माँ उसके जन्म के १२ दिन बाद छोड़ कर न जाने कहाँ चली गयी थी, को पालना हेमंत के लिए बहुत कठिन रहा था । शर्मसार होकर वो अपना शहर छोड़ कर इस अजनबी शहर में आ बसा था। एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी में केमिस्ट्री के ट्यूटर का जॉब कर जिंदगी जैसे-तैसे गुजार रहा था।

पढ़ाई में अव्वल बी. एस. सी. के साथ मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी कर रही नैना कोचिंग से वो शाम साढ़े आठ तक आसानी से घर पहुंच जाती थी। लेकिन आज वो अब तक घर नहीं पहुंची थी, ना उसका फ़ोन लग रहा था। हेमंत एक चक्कर कोचिंग का भी लगा आया था लेकिन वहां चौकीदार के अलावा कोई ना मिला। वो वापस घर आ गया था, बहुत सारी अनजान आशंकाएँ उसके मन में घर करती जा रही थी, कहीं वो किसी गलत संगत में ना पड़ गयी हो, कहीं किसी ने उसके साथ कुछ बुरा ना कर दिया हो, कहीं उसकी स्कूटी का एक्सीडेंट ना हो गया हो, कहीं वो किसी अस्पताल में एडमिट न हो? लेकिन किस अस्पताल में जाये उसे पता नहीं था ।

वो घर से निकला, एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भटकता रहा लेकिन नैना का कुछ पता न लग सका। रात के १२ बज आये थे, वो बुरी तरह से थक चुका था, टूट चुका था, अब कहाँ जाना है उसे पता नहीं था।

हार कर वो पुलिस स्टेशन पहुंचा, वहां मौजूद हवलदार ने सलाह दी— "घर जा कर आराम करो, तुम्हारी लड़की आ जाएगी। जब रात-रात भर घूमने के इजाज़त दे रखी है तो इतना तो झेलना पड़ेगा। फिर भी न आयी तो कल आ जाना रिपोर्ट लिख लेंगे।"

पूरी तरह टूट चुका हेमंत घर चल पड़ा, उसे घर जाने की कोई जल्दी नहीं थी—कौन था उसका वहां?

जब वो घर पहुंचा तो घर की बत्तियाँ जली मिली, शायद वो जलती छोड़ गया थ । लेकिन एक अनजानी उम्मीद के साथ तेजी से घर में घुसा, नैना सोफे पर बैठी थी, उसके माथे और हाथ पर पट्टियाँ बंधी थी।

"सॉरी पापा....स्कूटी स्लिप हो गयी थी...मुझे चोट लग गयी है...अस्पताल जाना पड़ा...डॉक्टर्स ने ट्रीटमेंट में घंटो लगा दिए...आपको कॉल भी ना कर सकी....देखो ना मोबाइल भी टूट गया है। फिर ये स्कूटी स्टार्ट नहीं हुई...रिक्शे में लाद कर घर आयी हूँ।"

नैना के मुंह से निकले एक-एक शब्द हेमंत के शरीर में प्राण फूंक रहे थे।

"मुझे ढूंढने गए थे न आप? मैं कहीं नहीं जाऊंगी आप को छोड़ कर।"

"क्यों मेडिकल कॉलेज नहीं जाना क्या?" —हेमंत ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा।

"वहां तो पक्का जाना है पापा।"

"कुछ खायेगी?" —हेमंत ने पूछा।

"कुछ भी ले आओ पापा, बहुत भूख लगी है।"

हेमंत ने ठंडी सांस ली और रसोई की तरफ बढ़ गया।


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