न्याय
न्याय
ठेकेदार बहुत दिनों से घर का काम रोक दिया था, वह अनुबंध में दिए विवरण कितना काम होने पर किश्त की कितनी राशि देनी होगी का पालन ना कर बिना काम किये किश्त का ढाई लाख रुपये मांग रहा था। वृद्ध दंपति ने हिसाब लगाकर कहा अभी तो कुछ काम नहीं हुआ है तो किश्त की राशि क्यों दे ?बेटा अनुबंध के मुताबिक तो अगली किश्त लेंटर ढलने पर देनी है। ठेकेदार ने नाराज होते हुए कहा ठीक है काम थोड़े दिन और बंद रहेगा जब पैसा देने का मन हो तो फोन करना तभी मैं काम शुरू करवाऊंगा।
पत्नी ने पति को समझाते हुये कहा बुढ़ापे में तो अपने घर में रहने की इच्छा पूरी कर लेते है कितने दिन किराए के घर में रहेंगे, ठेकेदार से लड़कर कोर्ट-कचहरी के चक्कर कहाँ लगा पाएंगे आप। मेरे सोने का हार बेचकर उसे ढाई लाख दे दीजिये कम से कम काम तो शुरू करवाएगा इस बार वकील के साथ पैसा देने जाना और कागज में लिखवा लेना कि अगली किश्त लेंटर ढलने के बाद ही देंगे। ठेकेदार ढाई लाख पाते ही खुश होकर बोला अंकल कल से आपके मकान का काम शुरू हो जायेगा, वृद्ध ने हामी में सर हिलाते हुये कहा बेटा जल्दी काम पूरा कर दो मरने से पहले कुछ दिन अपने घर में रहने की हसरत पूरी कर लेंगे। दूसरे दिन वृद्ध दंपति अखबार पढ़ रहे थे अंदर के पेज में हेडलाइन था शहर के बड़े ठेकेदार के यहाँ से सोने-चाँदी के आभूषण के साथ ढाई लाख नकद की चोरी। वृद्ध दंपति एक-दूसरे को देख कर मन ही मन कुछ कह रहे थे न्याय तो भगवान करते है हम तो केवल मोहरे है।