नया सच
नया सच
मौसम का मिजाज बेहद बिगड़ा हुआ था। और नीटे का कोई अता पता नहीं। जाने आधी रात तक कहाँ भटकता रहता है। शाम पाँच बजे का निकला ग्यारह से पहले कभी नहीं लौटता। कई बार फोन घुमाने का भी कोई असर नहीं होता। जब भी टोको, हंस कर टाल जाता है ,
पर आज तो आंधी तूफ़ान चला पड़ा है ऊपर से लाइट भी चली गई है। थोड़ी देर में बारिश भी शुरू हो जायेगी। बलजीत ने मोबाइल की रौशनी में घड़ी देखी -अभी तो पौने दस हुए है। अभी से कहाँ आ जायेगा। पर मन नहीं मानता। दो मिनट बाद ही उसकी उँगलियाँ अपने को फोन पर मिलती हैं। उधर से नीतीश की जगह आपरेटर की आवाज सुनाई देती है - आप जिस व्यक्ति से सम्पर्क करना चाहते है वह इस समय कवरेज एरिया से बाहर है। कृपया थोड़ी देर बाद सम्पर्क करें "
निराश होकर बलजीत ने फोन रख दिया और सलाईयां बुनने के लिए उठा ली। उसकी बेचैनी हर फंदे के साथ बढ़ती जा रही है। बार बार घड़ी की ओर निगाह जा रही है कान पूरी तरह दरवाजे पर लगे हैं।
उसकी परेशानी देख नीतीश के पापा चप्पल पहन तैयार हो गए है। मैं ढूंढ़ कर लाता हूँ। देखूं तो सही ये जाता कहाँ है। क्या करता है ? बलजीत ने भी शाल लपेट लिया- “ चलो जी मैं भी चलती हूँ " मन में एक डर है बाप बेटा कहीं लड़ न पड़ें। वैसे आज तक तो कभी आगे से बोला नहीं पर आज तो ये गुस्से में कुछ ज्यादा ही न कह बैठे सो साथ जाना ही ठीक। उसने गिरीश को दरवाजा बंद करने की हिदायत दी। दोनों सड़क पर निकल आये है। पुल पर कार चढ़ाते ही उसने उँगली से कार रोकने का इशारा किया। कार की हैड लाईट की रौशनी में उन्होंने देखा -नीतीश अपने तीन दोस्तों के साथ पुल के नीचे सर्दी से काँप रहे बेघर लोगों के लिए अलाव जला रहा था। आग की लपटों में चमकता उनका चेहरा किसी देवदूत से कम नहीं था।