minni mishra

Inspirational Children

4  

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नन्ही परी

नन्ही परी

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जैसे ही माँ शाम को घर वापस आई , ग्यारह साल की परी ने दिन का बचा खाना..प्लेट में लेकर उसके आगे बढ़ाते हुए दुखी स्वर में कहा , "माँ ! आज इतना लेट क्यों हो गया ? दोपहर की निकली अभी आई हो !देखो, कितना अंधेरा हो गया ! लो, पहले इसे खा लो ।"

" मुझे नहीं खाना ।"

" क्यों ? मेमसाहब ने आज पेट भर खिलाया है ?" वह अपनी माँ के मन को टटोलना चाह रही थी ।

“हाँ, मिला था, दो समोसे और चाय । लेकिन काम के धुन में मुझे समोसे और चाय का बिल्कुल ख्याल ही नहीं रहा ! जब ध्यान गया, तब तक सर्द हो चुके थे । फिर भी गटक ली ! बेटी, ज्वाला शांत करनी ही पड़ती है ! चाहे, पेट की हो या चूल्हे की ! आज मेमसाहब के घर अचानक चार मेहमान पहुँच गए । सभी का खाना -पीना हुआ ....बर्तनों का तो अंबार लगा गया ! ओह! आह.. !कमर में तेज दर्द ..." कराहते हुए वह सामने पड़ी खाट पर निढाल लेट गई ।

" बहुत बड़ी हवेली है मेमसाहब की। उनके घर हमेशा कोई न कोई आते रहता है । तुम कल से वहाँ काम करने हरगिज मत जाना ? अगर तुम बीमार हो जाओगी, फिर मैं कैसे रहूँगी! कौन मुझे पालेगा ?" रुआंसा होकर वह माँ के कमर में तेल मलने बैठ गई । उसे जैसे ही राहत महसूस हुई, करवट बदल कर पुचकारते हुए वह बोली, " मेमसाब मुझे बहुत पगार देती हैं । यदि उनके घर काम नहीं करूँगी तो तुमको अच्छे स्कूल में कैसे पढ़ाऊँगी, बता ? "

" हूह...नहीं पढ़ना है मुझे अच्छे स्कूल में !" बेटी ने आक्रोशित स्वर में जवाब दिया ।

" पढ़ोगी तभी तो बढ़िया नौकरी मिलेगी ,फिर ढेर सारे पैसे भी । मुझे आराम लग रहा है। जा, अब तू मन लगाकर पढ । कल तुझे डी .ए. वी स्कूल में नामांकन के लिए पाँचवीं कक्षा का टेस्ट देने जाना है ।

अपने मेमसाब के मुँह से हमेशा


डी.ए. वी . स्कूल की प्रशंसा सुनते आयी हूँ । उनके दोनों बेटे इसी स्कूल से पढ़कर , अभी बढ़िया कंपनी में नौकरी कर रहे हैं। अब उनके पास फ्लैट, गाड़ी सब कुछ है। सुन , यदि मन से नहीं पढ़ोगी तो तुझे भी मेरी तरह ..." माँ का गला अवरूद्ध हो गया !अनकहे शब्द उसके कंठ में फँसकर रह गये। उसके सजल नयन बरसने को आतुर थे।

" माँ, तुम दुखी मत हो, मैं सब समझ गई। यदि अच्छे से नहीं पढूँगी तो तुम्हारी तरह मेरी जिन्दगी भी चूल्हे-चौके तक सिमट कर रह जायेगी ?! यही न?"

"हाँ ....बेटी ... । " माँ ने जोर देकर कहा।

" अच्छा , एक बात बता । नानी ने तुम्हें अधिक क्यों नहीं पढ़ाया ?! नानी को तो गाँव के सभी लोग बहुत समझदार कहते हैं ?!"

"जानना चाहती है तो ध्यान से सुन, तेरी नानी ने मुझे केवल छठी कक्षा तक ही स्कूल जाने दिया ।उसने मुझे घर का सारा काम सिखालाया। वह मेरे पीछे पड़ी रहती थी। 'लड़की को घर संभालना होता है, अधिक पढ लिख कर क्या करेगी !तुम्हें कोई कलक्टर थोड़ी बनना है! ' यही मुझे सुनाती !

हाँ, उसने तेरे मामा को शहर भेजकर अंग्रेजी से एम.ए. करवाया । पास करने के साथ ही ,अपने गाँव के अंग्रेजी स्कूल में उसे नौकरी लग गई और हर महीने तनख्वाह भी । कुछ महीनों बाद, स्कूल के बच्चे ट्यूशन पढ़ने घर आने लगे ।शाम मिट्टी लीपे बरामदे पर बच्चों का ताँता लग जाता था।

साल बीतते ही तेरी नानी की कच्चे मकान पक्के में तबदील हो गई। फिर उस सिमेंटेड फर्श को मैं सुगन्धित फिनाइल से पोंछती और राख के बदल , बर्तन को वीम साबुन से मांजने लगी । तेरी नानी मुझसे यह कहते नहीं थकती , “वाह! तुम घर के सारे काम बहुत सफाई से कर लेती हो , जिस घर जाओगी उस घर को स्वर्ग बना दोगी ! ”

परन्तु , इन तारीफों को सुनकर मेरा मन कभी तृप्त नहीं हुआ ! मैं, तेरे मामा के किताब की आलमारी को एकटक निहारते रहती और जब भी थोड़ा समय मिलता, चुपके से उनके हिंदी, अंग्रेजी आदि सारे किताबों को खोलकर बैठ जाती... कुछ समझती, कुछ नहीं भी।

मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करती ,

“हे, प्रभु... मुझे एक बेटी की माँ जरूर बनाना ! उसे हाकिम बनाकर इन लोगों को दिखाऊँगी कि बेटी को घर की चहारदीवारी से निकाल कर उसे बड़ा आदमी कैसे बनाया जाता है !

समय द्रुत गति से आगे बढ़ने लगा ।कुछ सालों बाद मेरी शादी हुई और मैं तेरे पापा संग गाँव से सीधे कलकत्ते रहने आ गई । सड़क के किनारे वो सब्जी और फल की दुकान लगाते थे ।धीरे-धीरे मैं भी दुकान के कामों में उन्हें हाथ बटाने लगी । कलकत्ते में हमारी गृहस्थी मजे से कट रही थी । ईश्वर की कृपा, जैसे ही कोख में तेरे आने का भान हुआ, मैंने तेरे पापा को बताया , वो बहुत खुश हुए । आह्लादित होकर मुझसे कहा , "अब हमारे घर एक नन्हा मेहमान आएगा .. मैं पिता कहलाऊँगा और तू माँ ।"

परन्तु ! काल के क्रूर हाथ ने हमें दबोच लिया ! अचानक, एक दिन तेरे पापा का मेरी नजरों के सामने सड़क दुर्घटना हो गया ! सड़क पर वो बेहोश पड़े थे। शरीर से खून बहे जा रहा था । अफरा तफरी मच गई। मैं बदहवास, उन्हें उठा कर रिक्शे से अस्पताल ले गई । दो दिनों बाद .. मुझे छोड़ वो चल बसे ! लेकिन अंत घड़ी में भी उन्हें तेरी बहुत फ़िक्र थी । उन्होंने उदास स्वर में कहा ,


“ शायद मैं नहीं बच पाऊँ! तू अपनी कोख का ख्याल रखना । एक जीव, तुम्हारे माध्यम से इस धरती पर आ रहा है । बेटा हो या बेटी, उसे अच्छी शिक्षा देना और बढ़िया इंसान बनाना । गाँव में खपरैल का अपना घर है और मिलनसार समाज भी । वहाँ सरकार ने हाल में ही बढ़िया अस्पताल खोल दिया है । अब तू वहीं चली जा । इस बड़े शहर में कोई किसी का नहीं होता ! सभी मतलब के यार हैं ।" उनकी कही आखिरी बातों को मैंने गाँठ बाँध ली और तुम्हें कोख में लेकर गाँव चली आई। "

माँ के धैर्य का बाँध अब टूट चूका था। मैंने देखा, उसकी आँखों से आँसू सैलाब बन बह रहे थे ।

" मत रो माँ ! तूने बहुत कष्ट झेले हैं ! लेकिन नानी को मामा की तरह तुझे भी पढ़ना चाहिए था । पता नहीं! तुम्हें क्यों नहीं पढ़ाया ?!" बेटी ने आकुल होकर फिर से सवाल किया ।


" क्योंकि तेरा मामा बेटा था ... बस! इसलिए उसे पढ़ाया गया ! समझी! " माँ की आवाज में आक्रोश मिश्रित करुणा थी।

“ लेकिन नानी ने यह अच्छा नहीं किया । बेटा -बेटी में भेद करना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं ।”

"हाँ, तू सच कहती है । दोनों संतान ही हुए, फिर भेद कैसा?! बचपन में मैंने यही भेदभाव देखे हैं, मुझे अच्छा नहीं लगता था । परंतु .... मन की बात कहूँ तो किसे? !

मैं, जब बहुत छोटी थी, तभी तेरे नानाजी का देहांत हो गया और तेरी नानी पुराने ख्यालात की औरत थी । उसे अपने वंश का सुख केवल बेटे में ही नजर आता था । वह बेटी को पराई धन समझती थी ।जवान होते ही बेटी को किसी खाते-पीते घर ब्याह दो , बस इतना ही स्नेह था उसे अपनी बेटी से !. खैर! इन पुरानी बातों को छोड़ ।जा, जल्दी से ।कल होने वाली अपनी टेस्ट परीक्षा की अब तैयारी कर । जो पाठ याद कर चुकी हो, उसको फिर से पढ़ लेना । ”

" तुम व्यर्थ में चिंतित हो रही हो। मैं सब समझ गई । तुम मुझे स्वाबलंबी बनाना चाहती हो। यही न..?”

“हाँ..लाडो । ताकि मेरी तरह तुझे दूसरों के घर जाकर झूठे बर्तन नहीं धोने पड़े !”


माँ ने दृढ़ता से कहा ।

“ मैं बहुत पढूँगी। एक दिन बड़ा आफिसर बनूँगी और तुमको हमेशा अपने साथ ही रखूँगी । तू मेरी जननी , मेरी प्रथम गुरु हो। माँ, मैं तुम्हारे नाम से एक ‘मातृ-सदन ‘ बनाऊँगी । जिसमें गरीब, असहाय औरतें आकर निवास करेंगी । ताकि उन्हें


खाने–पीने , कपड़ा, दवा आदि सब कुछ मुफ्त में मिल सके । उस मातृ सदन के अंदर एक प्रार्थना कक्ष भी होगा । सबलोग परिवार की तरह एक दूसरे के साथ घुल-मिलकर यहाँ शान्ति से जीवन यापन करेंगे । माँ, मैं जीवन दानी बनूँगी ।"

इतना कहते हुए बेटी किताब -काॅपी लेकर , माँ के समीप बैठ गई ।


माँ की आँखें कब लग गईं ,बेटी को पता भी नहीं चला। नन्ही परी का ध्यान ... कल होने वाली टेस्ट परीक्षा की तैयारी में लग चुका था । अपने सुनहरे भविष्य की आधारशिला रखने में तन, मन से वह समर्पित थी।



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