chandraprabha kumar

Children Stories Inspirational

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chandraprabha kumar

Children Stories Inspirational

निश्छलता

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 अनीशा कान्वेंट स्कूल में तीसरी-चौथी कक्षा में थी। टिफ़िन घर से ही लेकर जाती थी। एक बार स्कूल में टिफ़िन टाइम में बच्चों के लिये एक डोसेवाले को स्कूल में बुला लिया गया। बच्चे पैसे देकर स्वयं डोसा ख़रीद रहे थे और पसन्द भी कर रहे थे। अनीशा भी अपनी सहपाठिन के साथ डोसा लेने गई। सोचा आज डोसा लेकर देखा जाय। 

    पहिले दिन ही स्कूल में बता दिया गया था कि कल स्कूल में डोसेवाला आयेगा और जो बच्चे डोसा लेना चाहें , पैसा देकर डोसा ले सकते हैं। इसीलिये बच्चे डोसा लेने के लिये पैसे लेकर आये थे। 

  टिफ़िन टाईम में अनीशा ने जाकर डोसा लिया, उसकी अन्य दोस्त भी डोसा ले रही थीं। अनीशा को डोसा अच्छा लगा। डोसा खाने के बाद वह डोसेवाले को डोसे के पैसे देने लगी तो उसने कहा-“ पैसे आ गये।" 

     इतनी भीड़ थी कि डोसेवाला भूल गया था कि किसके पैसे आ गये किसके नहीं। पर अनीशा ने कहा-“ पैसे तुम्हें अभी नहीं दिये हैं। “ और यह कहकर उसने डोसेवाले को एक डोसे के पैसे दे दिये। 

    अनीशा के साथ खड़ी उसकी एक दोस्त ने कहा-“ एक डोसा और लेकर खा लेती, जब वह भूल गया था तो तुम्हें पैसे देने की क्या ज़रूरत थी ?”

   उसकी यह बात सुनकर अनीशा आश्चर्य- चकित रह गई, वह तो स्वप्न में भी ऐसी बात नहीं सोच सकती थी। ईमानदारी का पाठ उसमें स्वाभाविक रूप से था। यह बात उसके दिमाग में आई ही नहीं थी कि डोसेवाले के विस्मरण का लाभ उठाकर दूसरा डोसा ले ले। 

  उसने छुट्टी के बाद यह बात घर आकर अपनी मम्मी को बताई। मम्मी से सब सुनकर उसकी प्रशंसा की और कहा- “ तुमने बहुत ठीक किया जो दूसरा डोसा नहीं लिया और उसके पैसे चुका दिये। । ईमानदारी और सत्य सबसे बड़ी चीज है। दूसरे की भूल या गलती का अनुचित लाभ नहीं उठाना चाहिये, उसे सुधार देना चाहिये।”

   हमारा जीवन आपसी विश्वास और सत्य से ही सुखमय सुचारु रूप से चलता है। सत्य सरल व्यवहार जीवन की अनमोल निधि है।

             


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