निराशाबन्धन
निराशाबन्धन
भाई बहन का प्यार, अनोखा और अनुठा होता है, जिसमें नोकझोक औेर प्रेम का आविश्वस्नीय तालमेल देखने को मिलता है। कहते हैं सोने को जितना तपाओ उस पर उतना अधिक निखार आता है। ठीक वैसे ही भाई बहन का प्यार होता है बचपन में जितनी अधिक तकरार होती है बड़े होकर उतना ही अटूट रिश्ता बनता है। यह रिश्ता ह्दय की जमीन पर टिका होता है साथ ही पवित्रता की दिवारें और विस्वास की छत जीवन भर इसे सहज और सुरक्षित रखती है। यह रिश्ता अमिरी गरीबी और जात पात के बन्धन से भी मुक्त होता है, और यह मुक्ति बन्धन हमें देखने को मिलता है रक्षाबन्धन के त्योहार पर जो कि भाई बहन के प्यार को और ज्यादा मजबूत बनाता है। आपने ऐंसे लाखों किस्से सुने या देखे होंगे जिसमें कि कोई मुस्लिम भाई हिन्दु लड़की से राखी बंधबाता है या फिर मुस्लिम बहन हिन्दु भाई को राखी बाँधती है। बाकी सभी धर्मो में भी यह किस्से सुनने को मिलते हैं, और ऐंसा ही एक किस्सा मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ ।
किस्सा है एक गरीब परिवार का, अजी गरीब क्या गरीब से नीचे भी कोई रेंक हो उस परिवार का जिनके जीवन में खाने के लाले और दुखो के छाले हमेशा बने रहते हैं। ऐंसा लगता है जैंसे उनकी किस्मत भगवान ने निब टुटे पेन से लिखी हो जिसमें कुछ लिखा गया और कुछ नहीं लिखा गया। जो लिखा गया वो दुख और जो नहीं लिखा गया वो सुख। खैर जो है सो है, जिन्दगी जैंसे तैंसे कट ही रही है। इनको जिन्दगी से अब कोई गिला शिकबा नहीं है। हाँ कभी कभी इन साल भर में आने वाले ढैर सारे त्योहारो से जरुर थोड़ी शिकायत होती है जो इनकी कमर तोड़कर रख देते है। दिवाली पर दिये जरुर जलाओ घर का चुल्हा जले या ना जले, होली पर पकबान जरुर बनाओ चाँहे घर में खाने को एक दाना ना हो, रक्षाबन्धन पर मिठाई जरुर लाओ, भले ही महिनों से होठ मिठी चाय को तरस रहें हो। खाली जैब तो मानो यह सारे त्योहार ढोंग से नजर आते है, या फिर सजा जैंसे लगते हैं जिनको मानो या ना मानो भुगतने ही पड़ेंगे।
रक्षाबन्धन का दिन था मनाने वाले जोर शोर से त्योहार मना रहे है। पर उस गरीब परिवार को उससे क्या उनके लियें तो यह निराशाबन्धन था। बहन, दोनो भाइओ के राखी बाँध चुकि थी, और हर बार की तरह इस बार भी भाइओ को मिश्री से ही मुँह मीठा करना पड़ा था। बड़े भाई को यारी दोस्ती का चस्का था। जो उनकी गरीबी का एक मुख्य कारण भी था, वो कहते हैं ना, काम का ना काज का दुश्मन अनाज का । हर गली के हर दुसरे घर में तो उसके यार दोस्त थे ही, पर ज्यों ज्यों वो बड़ा हो रहा था उसके यार दोस्त भी बड़ते जा रहे थे। उन्ही बड़ते हुए दोस्तो में एक मुस्लिम दोस्त शायद बहुत अजीज हो गया था, जो कि रक्षाबन्धन पर बहन से राखी बँधबाने घर आ गया। उसके आने पर बहन को खुशी तो हुई पर साथ ही थोड़ी चिन्ता भी थी, कि अपने भाइओ को तो मिश्री की डली और सादा सा लाल धागा बाँधकर रक्षाबन्धन का त्योहार निबटा दिया था, पर यह बेचारा तो पहली बार घर आया है, वो भी राखी बँधबाने ऊपर से यह है भी दुसरे धर्म का, अगर इसका अच्छे से आदर सत्कार नहीं किया तो क्या सोचेगा यह हमारे बारे में और हमारे त्योहारो के बारे में, नहीं नहीं इसके लियें तो मिठाई मंगवानी ही पड़ेगी। पर मेरे पास तो सिर्फ 20 ही रुपये हैं इतने में तो सिर्फ दो ही पीस मिलेंगे तो क्या हुआ उस अकेले के लियें दो पीस काफी है। यही सोचकर बहन ने अपने छोटे भाई को 20 रुपये दिये और मिठ
ाई लाने को कहा, भाई अत्याधिक मासूम था, बेचारा 20 रुपये मुट्ठी में दबाकर मिठाई की दुकान पर पहुँचा तो देखा कि वहाँ तो एक किलो, दो किलो, और पाँच किलो मिठाई खरिदने वालो की भीड़ लगी है। दस मिनट तो बैचारा इसी असमंजस में रहा कि मिठाई वाला इतने कम पैसो की मिठाई देगा या नहीं देगा। इतने सारे ग्राहको में उसका मन तो नहीं था लज्जित होने का पर मिठाई लेकर नहीं गया तो बहन को बुरा लगेगा, कि कितनी उम्मीद से वो भाई का दोस्त आया है गर राखी बाँधने के बाद मिठाई ना खिलाई तो बुरी बात होगी। तदपश्चात उसने मिठाई वाले से बीस रुपये की मिठाई माँगी, पर दुकानदार ने हल्की तिरछी निगाह से उसकी तरफ देखा और उसकी बात को अनसुना कर दिया क्योकि वो किलो किलो वाले डिब्बे तौलनेे में व्यस्त था। लड़के ने कुछ दैर बाद फिर कहा पर इस बार भी दुकान वाले को कुछ फर्क ना पड़ा।
दुकान पर खड़े खड़े उसको आधा घंटा बीत चुका था पर दुकान वाले को उस लड़के पर जरा भी रहम ना आया। लड़के की उदासी और निराशा बड़ती जा रही थी। लड़के को इन्तेजार था कि भीड़ खत्म होगी फिर तो इसको मिठाई देनी ही पड़ेगी, पर भीड़ तो दम पे दम बड़ती ही जा रही थी। लड़का भीड़ से पीछे, और पीछे, और पिछे होता जा रहा था। उसकी आँखो के सामने बार बार भोली सी बहन का चेहरा और कितनी उम्मीदो से राखी बँधबाने आये भाई के दोस्त का चेहरा आ रहा था। लड़के को अब खुद पर दया और दुकान वाले पर क्रोध आ रहा था और उसी क्रोध की धुन में वो धक्का मुक्की करके भीड़ को चीरता हुआ सबसे आगे जाकर तेज आवाज में बोला भइया 20 रुपये की मिठाई दे दो।
मिठाईवाले ने उसकी फिरकी लेते हुए कहा - थेला लाया है इतनी सारी मिठाई कैंसे लेकर जायेगा। यह सुनकर दुकान पर खड़े सभी लोग उस लड़के पर हँसने लगे किसी ने उसकी मजबूरी और गरीबी को नहीं समझा । लड़के ने शर्मिन्दगी से सिर नीचे झुका लिया और कुछ दैर के लियें फिर खामोश हो गया।
एक घण्टा बीत चुका था। उसके मन में अब डर, परेशानी, चिन्ता, दया, उदासी, फरियाद और गुस्से का मेला सा लग गया था । आँखे नम सी हो रहीं थी और क्रोध से दाँत किचकिचा रहे थे, और धैर्य साथ छोड़ रहा था। एक बार फिर उसने उम्मीद भरी आवाज में कहा कि भइया अब तो मिठाई दे दो एक घण्टा हो गया है।
दुकान वाले को अब वो लड़का मनहूश सा प्रतीत हो रहा था सो उसने सोचा भगाओ इस बला को उसने लड़के के हाथ से झटक कर पैसे लिये और कागज पर दो पीस उठाकर दे दिये। लड़के के चेहरे पर खुशी की बाढ़ सी आ गयी वो भागा भागा घर की तरफ ऐंसे जा रहा था जैंसे उसने बहुत बड़ी जंग जीती हो। पर घर पहुँचते ही उसकी सारी खुशी धरासायी हो गयी। क्योंकि भाई का दोस्त घर से जा चुका था। बहन ने शिकायत भरी नजरों से देखा और कहा इतनी दैर क्यो लगा दी आने में, लड़के के सब्र का बाँध अब टूट चुका था, उसकी आँखो से आँशु बह निकले और भर्राती हुई आवाज में बोला दुकान पर बहुत भीड़ लगी थी, वो बीस रुपये की मिठाई देने से मना कर रहा था, इसलियें दैर हो गयी। फिर रोते रोते बोला दीदी क्या भइया के दोस्त बिना राखी बँधबाये ही चले गये।
बहन ने भाई के आँशु पूँछते हुए कहा - नहीं वो तो राखी बँधबाकर ही गये थे और यह देख पूरे दो सौ रुपये भी देकर गयें है। भाई के चेहरे पर अब मुस्कान आयी और बोला पर दीदी मिठाई कहाँ से आयी। बहन ने कहा - मैंने मिठाई के दो पीस सामने वाली भाभी से ले लिये थे। भाई के चेहरे की मुस्कान और तेज हुई और दोनों भाई-बहन खिलखिलाकर हँसने लगे। तो ऐसा होता है भाई बहन का प्यार।