निजधृत
निजधृत
विश्वेश्वर सिंह राजा शार्दूल विक्रम सिंह एक मात्र सपूत पढ़ने लिखने में होशियार गम्भीर सूझ बूझ का व्यक्तित्व भविष्य एवं वर्तमान दोनों के लिए राजा शार्दुल विक्रम सिंह के अरमानों कि औलाद विश्वेश्वर सिंह थे।
काव्या कि परिवरिश एवं शार्दुल सिंह कि नेक नियति की छाया थे विश्वेश्वर सिंह, विशेश्वर सिंह कि शिक्षा दीक्षा की सबसे उत्तम व्यवस्था कर रखी थी कोई कोर कसर नहीं उठा रखी थी विश्वेश्वर सिंह जी ने भी पिता की आकांक्षाओं के लिए परिश्रम करने में कोई कोर कसर नहीं उठा रखी थी।
मैट्रिक टॉप इंटरमीडिएट टाप और इंटरमीडिएट के साथ ही मेडिकल कालेज में दाखिला वह भी देश की सबसे प्रतिष्ठित मेडिकल संस्थान एम्स में विश्वेश्वर सिंह ने अपने पिता के आकांक्षाओं एवं के लिए जीवन के प्रत्येक पल का सदुपयोग किया था और अपने पिता शार्दुल सिंह का मान बढ़ा रहे थे।
जो भी विशेश्वर सिंह को देखता यही कहता लायक बाप का शरीफ बेटा और यही कहता कि अमूमन राजा शार्दुल जैसा सम्पन्न सुलझा पिता एवं उसकी शान औलाद विश्वेश्वर सिंह बेटा पितृ कि जोड़ी विरले ही मिलती है ।
विशेश्वर सिंह जब मेडिकल कॉलेज प्रथम वर्ष में थे तभी उनकी मुलाकात मनीषा जिंदल से हुई वह भी बड़े व्यवसायी करम चंद जिंदल की इकलौती बेटी थी बेहद खूबसूरत और आकर्षक प्रभावी व्यक्तित्व जो किसी को भी प्रभावित कर सकता था मगर विश्वेश्वर गम्भीर, दृढ़ ,दूरदर्शी व्यक्तित्व का धनी थी।
उसके ऊपर सिर्फ अपने उद्देश्य का जुनून सवार था बाकी कुछ भी नहीं मनीषा जिंदल से उसकी जान पहचान थी ऐसा विश्वेश्वर समझते सिर्फ मनीषा समझती थी कि विश्वेश्वर उससे प्यार करता है दोनों बिंदास एक दूसरे के साथ घूमते फिरते और अध्ययन सम्बंधित विषयों पर आपस कि जानकारियों को साझा करते सभी सहपाठी यही समझते कि मनीषा विश्वेश्वर एक दूसरे से प्यार करते है।
कॉलेज के सभी कार्यक्रमों में दोनों आगे बढ़ कर सहभागिता करते थे कॉलेज के प्रोफेसर्स भी मनीषा और विश्वेश्वर कि जोड़ी को यही मानते की दोनों भविष्य के नामचीन डॉक्टर दम्पति में शुमार होकर कॉलेज का नाम रौशन करेंगे ।
मनीषा का जन्म दिन था वह अपने घर उदयपुर विश्वेश्वर सिंह को ले गयी मनीषा के डैडी करम चंद जिंदल बोले तो के सी जिंदल एवं माँ विनीता जिंदल विश्वेश्वर को बहुत पसंद करते उन्हें इस बात का इत्मीनान था कि बेटी मनीषा ने उनकी इच्छाओं के अनुरूप ही विश्वेश्वर को चुना है।
वे भी ऐसे ही लड़के की तलाश करते मनीषा के लिए यदि उन्हें मनीषा के लिए वर तलाश करना होता यही कारण था कि उन्होंने मनीषा को विश्वेश्वर को साथ लाने के लिए कहा था और मनीषा के जन्म दिन पर बहुत बड़ी पार्टी का आयोजन किया था।
जन्म दिन की पार्टी शुरू हुई के सी जिंदल शहर एवं प्रदेश के बहुत बड़े एवं प्रतिष्ठित व्यवसायी ही नहीं बल्कि रसूख वाले व्यक्तित्व थे उनकी अपनी कई मिले थी जिसमें मनीषा जन्म के साथ शेयर धारक थी लेकिन मनीषा को भाइयों की तरह पिता के नक्शे कदम पर उद्योग पति बनने की कोई इच्छा नहीं थी ।
उसे तो अपनी मेहनत प्रतिभा कि पहचान कि तलाश थी जिसके लिए वह दिन रात मेहनत कर रही थी ।
मनीषा के जन्म दिन कि खास पार्टी में शहर ही नहीं प्रदेश एवं देश विदेश से लोग आए थे जन्म दिन कि पार्टी में विनीता एवं के सी जिंदल ने एका एक पार्टी के सुरूर में सबका ध्यान आकृष्ट करते हुए बोली देवियों एवं सज्जनों आज मनीषा हमारे परिवार कि लाड़ली बेटी पूरा परिवार उसकी हर खुशियों के लिए सभी सम्भव प्रयास करता है मेरी प्यारी मनीषा ने अपनी खुशियों के लिए एक ऐसे जीवन साथी की तलाश कर लिया है जो जिंदल परिवार की सोच एवं मनीषा के लिए उपयुक्तता का सत्यार्थ है ।
आज पूरा जिंदल परिवार मनीषा के भाई एव अन्य सभी रिश्ते जो इस जन्म दिन कि पार्टी में उपस्थित है मनीषा की पसंद कि दाद देते हुए उसे मनीषा के जीवन साथी के रूप में स्वीकार करते है आप सभी जनाना चाहेंगे वह खुशनसीब कौन है ?
तो दिल धाम लीजिये जनाब वह खासियत कि खान हमारा अभिमान और मनीषा कि जिंदगी जान है विश्वेश्वर सिंह पूरा हाल तालियों कोई गड़गड़ाहट से गूंज उठा और सभी विश्वेश्वर एवं मनीषा को बधाई देने लगे।
विश्ववेशर की समझ में यह नहीं आ रहा था कि वह क्या करे ? उसने मौके की नजाकत को भांप कर चुप रहना ही बेहतर समझा और सबकी बधाइयों का मुस्कुराते हुए स्वीकार करते हुए जवाब देता जा रहा था रात को तीन बजे तक पार्टी चली और सुबह देर तक सभी सोते रहे
के सी जिंदल एवं विनीता जिंदल ने स्वयं जाकर विश्ववेशर को उठाया और बोले गुड मॉर्निंग बेटे उठो तुम अब हमारे परिवार के महत्वपूर्ण हिस्सा हो विश्ववेशर उठा और नहा धो कर नाश्ता करने के उपरांत बोला कि अंकल अब मुझे जाने की इज़ाजत दे जिंदल दंपति एक साथ बोल उठा नहीं बेटे तुम तो सभी मेहमानों के जाने के बाद मनीषा के साथ ही दिल्ली के लिए रवाना होंगे तब तक तुम और मनीष राजस्थान के दार्शनिक एव टूरिस्ट् स्पॉट का भ्रमण करने जाओगे तुम लोगों के जाने का बंदोबस्त हो चुका है।
विश्ववेशर कुछ भी नहीं बोल सका और चलने को तैयार हो गया मनीषा भी तैयार होकर विश्वेश्वर के साथ चल पड़ी सप्ताह भर राजस्थान के विभिन्न ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थानों का भ्रमण करने के बाद लौट कर आये तब तक सारे मेहमान जा चुके थे एक दिन रुकने के बाद दोनों दिल्ली लौट आये।
दिल्ली लौटने के बाद विश्ववेशर गुमसुम रहने लगा एवं उसने मनीषा से मिलना ही बंद कर दिया जब दो दिन तक कॉलेज केम्पस में मनीषा की मुलाकात विश्ववेशर से नहीं हुये तब वह स्वयं लाइब्रेरी में गयी जहाँ विश्वेश्वर अपने अध्ययन में व्यस्त था और जबरन हाथ पकड़ कर बाहर एकांत जगह ले गयी और क्रोधित शेरनी की तरह बोली क्या हुआ तुम्हें दो दिन लौटे हो गया और तुम्हारी हमारी मुलाकात तक नहीं हुये पिछले पांच वर्षों में कभी ऐसा नहीं हुआ? क्या समझ रखा है जनाब ने? किसी की भावनाओ का कद्र करना नहीं सीखा है क्या?क्या गुनाह है मेरा ?यही न कि मैंने तुमसे प्यार किया है? क्या मैं तुम्हारे कल्पनाओं के अनुरूप नहीं हूँ ?विश्वेश्वर सिर्फ इतना ही बोल सका कि नहीं मनीषा मैंने कभी आपको प्यार के पैमाने पर नहीं रखा ना ही देखा मनीषा बोली अब देख लो ना कौन सी उमर गुजर गई है और जो जो मासूम मनिषा के मन मे आया #जली कटी सुनाया# विधेश्वर के पास सिर्फ #मनीषा के जली कटी सुनने #के अलावा कोई रास्ता ही नहीं रहा मनीषा ने अपने भावुक एवं मासूम अंदाज़ में कहा जनाब मैंने प्यार किया है कोई मज़ाक या खेल नहीं आपको जीवन भर रहना मेरे साथ ही होगा चाहे जितना चाहे सर पटक लीजिये आपके पास किसी तरह कि कमी निकाल सकने का हक है यदि निकाल सकते है तो निकाल कर मुझे बाहर कर सकते है और खरी खोटी जली कटी सुनाते हुए चली गयी विश्वेश्वर को बहुत अच्छी तरह अंदाज़ था कि मनीषा साधारण नहीं असाधारण प्रतिभा सम्पन्न एव अभिजात्य समाज कि आधुनिक लड़की है जो ठान लेगी वह अवश्य पूरा करेगी अतः वह गम्भीरता से उसके अगले कदम की प्रतीक्षा करने लगा।