निज जीवन अपना धन्य करो
निज जीवन अपना धन्य करो
जननी से जाये जन तुमको,
जब तक जीने का मौका है ।
जीवन को अपने धन्य करो,
जीवन कर्मों का लेखा है ।
सुन्दर सुन्दर तुम करो कर्म,
पुष्टित जिससे हो सदा धर्म ।
होगी तेरी पहचान यही,
मर कर भी जिससे जीना है ।।
सुन्दर जीवन है यहाँ वही,
जिसकी होवे पहचान भली ।
नेकी के पथ पर नितप्रति ही,
जिसके कर्मों की धार चली ।
जो सदा सभी को सुख देता,
दुःख औरों के है हर लेता ।
उसकी जीवन सरिता अच्छी,
फैले उसकी नित कीर्ति कली ।।
यह मृत्यु लोक है कर्म लोक,
कर्मों की शान निराली है ।
बहु व्यंजन कोई ग्रहण करे,
बहुतों की थाली खाली है ।
है ताज किसी के मस्तक पर,
दुःख पाये कोई जीवन भर ।
शुभ कीर्ति किसी के फैले हैं,
अपकीर्ति किसी की आली है ।।
इस कर्मभूमि पर हरजन को,
कर्मानुसार फल मिलता है ।
जो जैसा कर्म विधान करे,
वह वैसा ही फल पाता है ।
पद और प्रतिष्ठा की गरिमा,
है कुछ की जीवन अभिलाषा ।
हो लोभ स्वार्थ के वशीभूत,
कोई जीवन मान घटाता है ।।
सद्कर्मों के तपबल से जो,
जीवन का मान बढ़ाता है ।
हो परं यशी इस दुनिया में,
वह जन ही पूजा जाता है ।
इसलिए सदा सद्कर्मों से,
निज जीवन का श्रृंगार करो ।
रहती है कीर्ति सदा जन की,
जीवन तो आता जाता है ।।
ले लिया जन्म जो धरती पर,
इक दिन उसको मर जाना है ।
इसलिए स्वांस संचरण तलक,
जीवन को सफल बनाना है ।
परहित में निष्ठा रखकर ही,
जीवन यह परं प्रतिष्ठित हो ।
पितु माँ के जीवन धन्य हेतु,
निज जीवन हमें सजाना है ।।