नेकी का फल
नेकी का फल
शायद आज वो थोड़ी लेट हो गई थी। सो मैं भी सुबह सुबह की भागदौड़ में अपना रसोई का काम निपटा कर नहाने चली गई। इतने में ही वो आ गई। और रोटी के लिए आवाज लगाने लगी। अब मैं जवाब देती भी कैसे। दो तीन चार पांच बार आवाज लगाई।पर उसे कोई जवाब नहीं मिला। थोड़ी देर में मैं भी नहा कर बाहर आ गई। मैंने तो सोचा वो आज निराश होकर चली गई होगी। पर ये क्या वो तो अब जोर जोर से गेट खटखटाने लगी। मैं भी रसोई से जल्दबाजी में रोटी उठाकर उसको देने चली गई। पर ये क्या उसके तो चेहरे के रंग ही उड़े हुए थे।और मुझे देखते ही वो एकदम बोली, "आप ठीक तो हो मैडम जी!" मैं जल्दी में तो थी पर फिर भी पूछ लिया," हां ठीक हूं मैं तो, क्यों क्या हो गया?"
तब वो रुआंसी सी होकर बोली, "आप तो आवाज लगाते ही रोटी देने आ जाते हो। आज इतनी देर तक आप आए नहीं तो मुझे चिंता हो गई। गेट बंद होता तो मैं चली भी जाती,पर गेट खुला देखकर और आपका कोई जवाब न आने पर मैं डर गई थी। अंदर भी तो आ नहीं सकती थी।कोई देखता तो चोर ही समझ लेता"।
वो एक सांस में बोल रही थी और मैं सोच रही थी कि मैं अब सोचूं क्या।
क्या मेरा एक छोटा सा नित्य का व्यवहार भी मेरे लिए इतना मायने रखता है।
"कभी कुछ न हो आपको मैडम जी",इतना कहकर रोटी लेकर वो आगे चल पड़ी।
मैंने उसे रोटी देते वक्त पहले कभी भी उससे कोई ज्यादा बात नहीं की। वो बुजुर्ग है इसलिए एक दो बार रोटी दे दी और बस धीरे धीरे उसका रूटीन बन गया।
पर आज तो उस अनजान शख्स की परवाह ने मेरा दिन बना दिया।
अब तो घर से स्कूल तक सारे रास्ते यही सोचती रही कि क्या मेरा एक छोटा सा नित्य का व्यवहार भी मेरे लिए इतना मायने रखता है।मेरी दो रोटियों ने मेरे लिए अनमोल अनजानी परवाह कमा ली थी।
"तुलसी या संसार में सबसे मिलिए धाय
ना जाने किस भेस में नारायण मिल जाए"