नौकरी वाला भाई

नौकरी वाला भाई

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दीपक जैसे ही छुट्टी मिलने पर शहर से अपने गाँव पहुंचा, वहाँ पर उसकी पत्नी शीला ने मुंह फुलाए हुए उसका शानदार स्वागत किया। दीपक ने उसकी ऐसी हालत देखकर पूछा, “क्या बात है शीला ! तुम इतनी नाराज़ क्यों हो ? क्या किसी ने तुम्हें कुछ कहा है ?”

इतना सुनते ही मानो शीला ने दिल कि भड़ास निकाल दी। “तीर चलाकर पुछते हो, दिल है कहाँ और दर्द है कहाँ !

“मैं तुम्हारी बात नहीं समझा शीला”, दीपक ने नासमझते हुए कहा।

इस पर शीला कुछ गरम होकर बोली, “हाँ-हाँ तुम्हें मेरी बात भला कैसे समझ में आएगी ! तुम तो अपनी सारी तंख्वाह अपने बड़े भैया और भाभी को दे देते हो और मुझे जरूरत पड़ने पर उनके सामने हाथ फैलाने पड़ते हैं। मैं कभी यह बर्दाश्त नहीं कर सकती कि, मेरा पति कमाए और मुझे पैसों के लिए दूसरों के सामने हाथ फैलाना पड़े।

इसपर आश्चर्यचकित होते हुए कहा, “तुम भी कैसी बहकी बातें कर रही हो शीला, तुम्हारा दीमग तो खराब नहीं हो गया है ! प्रकाश मेरे बड़े भी नहीं मेरे पिता भी हैं। पिताजी के देहांत के बाद भैया ने मुझे अपने बेटे से भी बढ़कर पाला, पढ़ाया-लिखाया और आज इस काबिल बनाया कि, मैं बैंक में शाखा प्रबन्धक के पद पर कार्यरत हूँ। मेरी भाभी ने भी मुझे माँ से बढ़कर कम प्यार नहीं दिया। अरे पगली तुम्हें तो उनकी पुजा करनी चाहिए जिनकी बदौलत तुम्हारा पति कुछ लायक बना। वरना आज के जमाने में कौन भाई अपने भाई का इतना खयाल रखता है, और तुम हो कि, तुम उन्हे पराया समझती हो। अगर पैसे की जरूरत पड़ने पर तुम्हें उनसे पैसे मांगने पड़ते हैं तो इसमे हाथ फैलाने वाली कौन सी बात आ गई। आखिर तुम उनसे उम्र में, पद में, समझदारी में और हर हालत में छोटी हो। तुम्हें ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए।“ बस करो अपनी ये लंबे चौड़े प्रसंशा के भाषण ! सुनते सुनते मेरे कान पाक गए। मैं सब समझती हूँ। तुम्हारे भाई साहब की चल को। उन्होने तुम्हें इसीलिए नहीं पढ़ाया-लिखाया कि, तुम अपने पैरों पर खड़े हो सको; बल्कि इसलिए इतना सब किया कि, एक दिन कमाकर उनकी झोली भरो।“ शीला ने एक ही सांस में सारी बातें उगल दी।

दीपक मानो चीख ही पड़ा। “अब अगर एक भी लब्ज अगर मेरे भैया-भाभी के खिलाफ कहा तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।“ “क्या करोगे ? मुझे मरोगे ? भला कर भी क्या सकते हो ! मेरी ही किस्मत खराब थी कि, तुम्हारे जैसा निष्ठुर पति मिला। तुम्हारी मति तो इन लोगों ने मार दी है।“ शीला ने रोने की शानदार भूमिका अदा की। अपने आँसू पोछते हुए उसने फिर कहा, “ हमारे पड़ोस के विमला के पति दिनेश जी शहर में एक सरकारी नौकरी करते हैं। विमला के कहने पर वे बच्चों और विमला के साथ वही जाकर रहने लगे। अब दोनों काफी मजे में हैं। अच्छा सा बंगला है, कार भी है। उनके बच्चे एक अच्छे से अंग्रेजी विद्यालय में पढ़ने जाते हैं। घर में फ्रिज, टीवी, गोदरेज की अलमारी आदि सब कुछ है। और एक तुम हो कि, भविष्य के बारे में एक जरा भी चिंता नहीं है। कम से कम अपना और मेरा खयाल नहीं है तो आने वाले बच्चे का तो खयाल करो। मानो तो गाँव छोड़ कर शहर ही चलो। वहीं जमीन-जायदाद लेकर अच्छा सा मकान बनवाएंगे। टीवी, कार, वीसीआर आदि चीजें हमारे पास होंगी। हमारे बच्चे भी अच्छे से विद्यालय में पढ़ेंगे। तुम जिंदगी भर कमा-कमाकर अपने भैया-भाभी की झोली भरते रहोगे। बदले में होगा क्या कि, तुम्हारी ही सारी कमाई का दो हिस्सा होगा और तुम्हारे बड़े भाई साहब बैठे-बैठे मजे से आधे हिस्से का मालिक बन जाएंगे।“ शीला ने दीपक को समझते हुए कहा। दीपक ने खीजते हुए कहा, “ आखिर तुम्हें हो क्या गया है ?” शीला: हहय ! “हम दोनों भाई कभी अलग होंगे ही नहीं तो जायदाद बटेगी कैसे ? और फिर कार-बंगला का इंतेजाम तो यहा भी हो सकता है। अभी बच्चे हुए ही नहीं तो उनके बारे में सोचना भी बेकार है। जब होंगे तो देखा जाएगा। अभी से क्यों माथापच्ची कि जाए !”

“देखो दीपक, मैंने तुमसे शादी तुमसे इसीलिए नहीं कि, मैं यहा इस घर में गुलाम या दासी बनकर रहूँ। मैं भी बड़े बाप कि बेटी हूँ। कान खोलकर सुन लो, मैं अब इस घर में नहीं रह सकती” शीला ने निर्णयात्मक स्वर मे कहा। “नहीं रह सकती तो जहन्नुम ने जाओ। तुम्हारे चलते अपने भैया-भाभी को नहीं छोड़ सकता। निकाल जाओ इसी वक्त मेरे घर से।“ दीपक ने गुस्से से विफरते हुए कहा। इतना कहकर वह शीला कि बांह पकड़कर ढ्कलने ने वाला था कि तभी उसके बड़े भैया और भाभी आ गए। “ये क्या करने जा रहे हो दीपक ? शीला ठीक ही कह रही है। यदि यह हमारे साथ नहीं रहना चाहती है तो इसे लेकर शहर में रहो। मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी।“ “लेकिन भैया !” “अब कुछ मत कहो।“ प्रकाश ने बीच में ही बातों को काटकर कहा। “मैंने तुम्हें इसीलिए पढ़ाया ताकि तुम एक दिन अपने पैरों पर खड़े हो जाओ। अपना परिवार संभाल सको। अब तुम्हारे ज़िम्मेदारी का समय आ गया है। मुझे इस बोझ से हल्का करो दीपक। मुझे इस बात से काफी शांति मिलेगी कि, तुम जहां भी रहो सुख से रहो, प्रोन्नति करो।“

“ये आप क्या कह रहे हैं भैया ? भला मैं आपको कभी छोड़ सकता हूँ? दीपक ने रुवासे स्वर में कहा।“ “तुम्हें हमारी कसम दीपक, अब तुम वही करोगे जो शीला चाहती है।“ इतना कह कर प्रकाश जी अपनी अर्धांगिनी लक्ष्मी को लेकर कमरे से निकाल गए। दीपक ने माथा पीट लिया। “ये आपने क्या किया भैया ! आपने तो अपनी कसम देकर मेरे मुंह पर ताला ही लगा दिया।“ फिर उसने शीला की तरफ मुखातिब होकर कहा, “देख लिया मेरे भाई का दिल, पा लिया न अपनी दिल की मुराद ?”

और छुट्टियाँ समाप्त होते ही दीपक शीला को लेकर शहर चला गया। जाते समय उसकी आंखे भर आई थीं। बड़े भैया ने अपनी नाम आँखों को पोछते हुए कहा था, “रो मत पगले ! ये तो दुनिया का दस्तूर है।“ लेकिन हाँ, दुःख-सुख में अपने बड़े भाई को भुलाना मत। अपनी खबर चिट्ठी द्वारा देते रहना।“

दीपक अपने भाई के सीने से लग कर बच्चों की तरह फुर-फुट कर रो पड़ा था। शहर आते ही शीला की फर्माइशें बढ़ गईं थीं। शहर की हर सामाजिक संस्थाओं से उसका संबंध बढ़ गया। क्लबों में तो उसके आने से चार-चाँद लग जाते। दीपक ने उसकी फर्माइशों को पूरी करने के लिए घपलेबाजी करने शुरू कर दिया। धीरे-धीरे शीला ने बंगला, टीवी, कार आदि सब कुछ ले लिया। गाँव की उसके खोज खबर भी न ली। यदा-कदा कोई चिट्ठी आ भी जाती जिसमे दीपक का बुलावा होता या पैसे की कोई मांग होती तो शीला उस चिट्ठी को कूड़ेदान की शोभा बना देती या चूल्हे का शृंगार। इधर गाँव में प्रकाश का एक जबर्दस्त कार दुर्घटना हुआ। जिसमे उसकी दोनों आँखें बुरी तरह जख्मी हो गई। चिकित्सक ने कहा, “प्रकाश अब कभी देख नहीं सकेगा। अगर डेढ़ लाख रूपाय का इंतेजाम किया जाए तो प्रकाश की दूसरी आँखें लगाई जा सकती हैं। लक्ष्मी पर तो मानो पहाड़ भी टूट पड़ा। इतनी रकम वह कहा से जुगाड़ कर पाती। अंत में उसने अपने देवर दीपक को एक तार भेजा। तार जब शीला को मिला तो वह मन ही मन काफी प्रसन्न हुई। सोची कमबख्त की आँखें ही गई, मर ही गया होता तो कितना अच्छा होता। सारा घर-द्वार, खेती-बारी उसका अपना हो जाता। तभी यह खयाल किया कि, तार दीपक को ना मिल जाए, वो घबराकर गाँव न चला जाए, उसने उस तार को भी चूल्हे के हवाले कर दिया।

जब काफी इंतेजार के बाद भी दीपक का जवाब नहीं आया, लक्ष्मी हवाश और निराश हो गई। अचानक उसे अपने गहने और खेतों का खयाल आया। उसने सोचा कि, मेरे पति आँखें ही नहीं रहेंगी तो इनका क्या करूंगी ? यह सोचते हुए उसने अपने सारे खेत, बाग-बगीचे और गहने गाँव के सबसे बड़े किसान धनपत के पास दो लाख में गिरवी रख दिये। चिकित्सकों ने बड़ी सावधानी और लगन से प्रकाश के आँखों का ऑपरेशन कर दूसरी आँखें लगा दी। कुछ दिनों के बाद प्रकाश भला हो गया। खेत और बगीचे तो उसके पास थे ही नहीं। बाकी बचे पचास हज़ार से उसने कोयले का व्यापार शुरू किया। इस तरह उसके कोयले का व्यापार चल पड़ा और दिन दुगुनी-रात चौगुनी के हिसाब से उसके व्यापार में प्रगति होने लगी। धीरे-धीरे उसने अपने सारे खेत-बगीचे और गहने धनपत किसान से छुड़ा लिया। अब उसके पास कई कार, बंगले और ट्रक थे। बैंक बैलेन्स भी काफी हो गया था। अब प्रकाश कि हस्ती जाने-माने वाले करोडपतियों से होने लगी। उसकी पहुँच बड़े-बड़े अफसरों, थानेदारों और राजनेताओं तक हो चुकी थी।

इधर शीला अपने नौकरी वाली पति के घमंड में अंधी हो चुकी थी। अपने आप को समाज में काफी रईस दिखाने के लिए वह अंधाधुंध खर्च करती थी और पार्टियां देती थी। फलस्वरूप दीपक ने भी अधिक पैसे कमाने के चक्कर में इतनी घपलेबाजियाँ की की, एक दिन उसकी सारी घपलेबाजी पकड़ में आ गई। उसके बाद लगभग साढ़े दस लाख ले गबन का आर्प दीपक पर लगा था। कार, बंगला और अन्य सारी वस्तुएं जप्त कर ली गई। लगभग सात लाख रूपाय की वापसी तो कर ली गई लेकिन साढ़े तीन लाख की रकम अदा नहीं कर पाने पर दीपक को गिरफ्तार कर लिया गया। अस्ब शीला बंगले से लेकर सड़क पर आ गई। जिन-जिन के साथ उसने मौज मस्ती की थी, सबके पास उसने रोया, गिड़-गिड़ाया। पर किसी को भी उसके हालत पर जरा सा भी तरस नहीं आया। बेचारी अपनी दो बच्चियों को लेकर मारी-मारी फिरती रही।

अंत में उसे दीपक के बड़े भाई का खयाल आया लेकिन फिर सोची कि, उनकी तो आंखे ही खराब हो गई। भला वो का मदद पर पाएगा। फिर भी न जाने क्या सोच कर वह अपने दोनों बच्चियों को ले अपने गाँव चली गई। गाँव आते ही उसने जो देखा और सुना, पहले तो उसे अपने आंखों और कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ। जब वह प्रकाश के बंगले पर गई तो दरवान ने उससे पूछा कि तुम कौन हो और किस से मिलना चाहती हो ? तब शीला ने कहा, “ मैं प्रकाश जी के छोटे भाई दीपक की पत्नी हूँ। मुझे उनके बड़े भैया से मिलना है। शीला की हालत उस समय काफी दयनीय थी। सारे कपड़े अस्त-व्यस्त थे। सदी और ब्लाउज का रंग काफी मटमैला हो गया था। कई दिनों से नहीं नहाने के कारण बाल भी लटिया गए थे। पहनने के लिए तो और कोई कपड़ा भी तो नहीं था। सारी चीजें तो जप्त हो गई थी। सिर्फ जो बदन में पहने हुई थी वो ही बचा था। वह भी कई जगह से फट गया था।

दरबान ने सुन रखा था कि, मालिक के छोटे भाई किसी बैंक के मैनेजर हैं। इसीलिए सोचा, मालिक के छोटे भाई की पत्नी भला ऐसे हालत में कैसे आ सकती है। जरूर यह कोई चालबाज औरत है। ऐसा सोचकर उसने उसे अंदर जाने से रोका और यहा से जाने को कहा। इसपर शीला दरबान से काफी रोई, गिड़-गिड़ई; कम से कम मुझे अपने मालिक से एक बार मिल लेने दीजिये। तभी गेट पर किसी नारी स्वर में किसी के रोने, विलापने के स्वर को सुनकर प्रकाश चौक पड़े। वे जल्दी-जल्दी गेट पर पहुंचे। जैसे ही उन्होने गेट पर शीला को दरबान से रोते गिड़-गिड़ते देखा, उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। उनके मुंह से निकाल पड़ा, “अरे बहू ! तुम और ऐसी हालत में ! दीपक कहा है ?” दरबान ने देखा कि, सचमुच वह औरत मालिक के छोटे भाई कि पत्नी है तो वह आवाक रह गया। उसने झट दरवाजा खोल दिया और अपनी गुस्ताखी के लिये माफी मांगने लगा। लेकिन शीला ने उसके बातों पर ध्यान नहीं देते हुए दौड़ कर प्रकाश के पैरों पर गिर पड़ी। “भाई साहब दीपक को बचा लीजिये, वरना ! तभी बीच में बात को रोकते हुए प्रकाश ने कहा पहले तुम नहा धोकर कपड़े बादल लो फिर इतमीनान से सारी बातें बताना। तभी उन्होने आवाज देकर कहा, “लक्ष्मी ! देखो तो कौन आई है ?” अपने पति कि आवाज सुनकर लक्ष्मी बाहर आई। जैसे ही उसकी नजर शीला पर पड़ी, वह सन्न रह गई। शीला दौड़ के लक्ष्मी से लिपटकर बच्चों कि तरह विलाप-विलाप कर रो पड़ी। प्रकाश ने डरते हुए कहा, “अरे भाई यह रोना धोना बंद करो और जाओ जल्दी

नहा धोकर नए कपड़े पहनो और जलपान करो।“

लक्ष्मी की भी आँखें नाम हो गई और आंसु पोछकर शीला को अंदर ले गई। खाना खाने के जैसे ही शीला ने दीपक के बारे मे बताया, प्रकाश और लक्ष्मी सन्न रह गए। ऐसे भी होगा उन्होने सपने मे भी नहीं सोचा था। प्रकाश ने कहा, “खैर अब तुम चिंता मत करो बहू, दीपक जल्द ही बाहर होगा।“ फिर उन्होने ड्राईवर को कशहर पहुँचकर उन्होने साढ़े तीन लाख जुर्माना भरा और दीपक तो जमानत पर छुड़ा लिया। दीपक प्रकाश के कंधे से लग कर फुट-फुट कर रोने लगा। प्रकाश ने उसकी पीठ थप-थपाते हुए कहा, “रो मत पगले, ये सब किस्मत का खेल है। गाँव आने पर शीला ने सबके सामने अपराध स्वीकार किया कि, उसने नौकरी के घमंड में अंधा होगर, दीपक को प्रकाश से अलग करवाया। गाँव की आने वाली हर चिट्ठी को वह दीपक तक पहुँचने से पहले ही नष्ट कर देती थी। तार वाली बात भी उसने बताई। जब दीपक को इन सारी बातों का पता चला तो वह काफी दुःखी हुआ। प्रकाश ने सच्चे दिल से सबको माफ कर दिये !


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